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जीवन के अधार्मिक (अधार्मिक) याने शासनाधिष्ठित प्रतिमान के कारण विद्यालयों में पढाए जानेवाले विषय भी शासकीय व्यवस्था से जुड़े हुए ही होते हैं। जैसे भूगोल पढ़ाते समय भारत का शासकीय नक्शा लेकर पढ़ाया जाता है। इस नक्शे में कुछ कम अधिक हो जानेपर हो-हल्ला मच जाता है। हमें इतिहास भी पढ़ाया जाता है; वह राजकीय इतिहास ही होता है। वर्तमान में पढ़ाया जानेवाला सम्पत्ति शास्त्र (इकोनोमिक्स) भी राजकीय सम्पत्ति शास्त्र (पोलिटिकल इकोनोमी) है।   
 
जीवन के अधार्मिक (अधार्मिक) याने शासनाधिष्ठित प्रतिमान के कारण विद्यालयों में पढाए जानेवाले विषय भी शासकीय व्यवस्था से जुड़े हुए ही होते हैं। जैसे भूगोल पढ़ाते समय भारत का शासकीय नक्शा लेकर पढ़ाया जाता है। इस नक्शे में कुछ कम अधिक हो जानेपर हो-हल्ला मच जाता है। हमें इतिहास भी पढ़ाया जाता है; वह राजकीय इतिहास ही होता है। वर्तमान में पढ़ाया जानेवाला सम्पत्ति शास्त्र (इकोनोमिक्स) भी राजकीय सम्पत्ति शास्त्र (पोलिटिकल इकोनोमी) है।   
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भारतीय परम्परा इन सभी शास्त्रों की सांस्कृतिक दृष्टि से अध्ययन की रही है। एकात्मता और समग्रता के सन्दर्भ में अध्ययन की रही है। सर्वे भवन्तु सुखिन: की दृष्टि से अध्ययन की रही है।  
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धार्मिक परम्परा इन सभी शास्त्रों की सांस्कृतिक दृष्टि से अध्ययन की रही है। एकात्मता और समग्रता के सन्दर्भ में अध्ययन की रही है। सर्वे भवन्तु सुखिन: की दृष्टि से अध्ययन की रही है।  
    
वर्तमान में पैसे से कुछ भी खरीदा जा सकता है, ऐसा लोगों को लगने लगा है। इसलिए शिक्षा केवल अर्थार्जन के लिए याने पैसा कमाने के लिए होती है, ऐसा सबको लगता है। इसीलिए जिन पाठ्यक्रमों के पढ़ने से अधिक पैसा मिलेगा, ऐसे पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए भीड़ लग जाती है। इतिहास, भूगोल जैसे पाठ्यक्रमों की उपेक्षा होती है। सामान्यत: मनुष्य वही बातें याद रखने का प्रयास करता है जिनका उसे पैसा कमाने के लिए उपयोग होता है या हो सकता है ऐसा उसे लगता है। भूगोल (खगोल का ही एक हिस्सा), यह भी एक ऐसा विषय है जो बच्चे सामान्यत: पढ़ना नहीं चाहते। बच्चों के माता-पिता भी बच्चों को भूगोल पढ़ाना नहीं चाहते। उन्हें लगता है कि इसका बड़े होकर पैसा कमाने में कोई उपयोग नहीं है। इसमें बच्चों का दोष नहीं है। उनके माता-पिता का भी दोष नहीं है। यह दोष है शिक्षा क्षेत्र के नेतृत्व का, शिक्षाविदों का।  
 
वर्तमान में पैसे से कुछ भी खरीदा जा सकता है, ऐसा लोगों को लगने लगा है। इसलिए शिक्षा केवल अर्थार्जन के लिए याने पैसा कमाने के लिए होती है, ऐसा सबको लगता है। इसीलिए जिन पाठ्यक्रमों के पढ़ने से अधिक पैसा मिलेगा, ऐसे पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए भीड़ लग जाती है। इतिहास, भूगोल जैसे पाठ्यक्रमों की उपेक्षा होती है। सामान्यत: मनुष्य वही बातें याद रखने का प्रयास करता है जिनका उसे पैसा कमाने के लिए उपयोग होता है या हो सकता है ऐसा उसे लगता है। भूगोल (खगोल का ही एक हिस्सा), यह भी एक ऐसा विषय है जो बच्चे सामान्यत: पढ़ना नहीं चाहते। बच्चों के माता-पिता भी बच्चों को भूगोल पढ़ाना नहीं चाहते। उन्हें लगता है कि इसका बड़े होकर पैसा कमाने में कोई उपयोग नहीं है। इसमें बच्चों का दोष नहीं है। उनके माता-पिता का भी दोष नहीं है। यह दोष है शिक्षा क्षेत्र के नेतृत्व का, शिक्षाविदों का।  
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वैसे तो गणित का सम्बन्ध जीवन के हर विषय से है। विज्ञान की विभिन्न शाखाओं का तो गणित आधार ही है। वर्तमान में तो प्रत्येक विषय का गणितीय नमूना बनाने की एक विचित्र पद्धति बन गयी है। फिर गणित का विषय खगोल भूगोल के साथ लेने का औचित्य क्या है? वास्तव में गणित की महत्वपूर्ण संकल्पनाओं और प्रक्रियाओं का विकास, खगोल भूगोल के क्षेत्र में हुए अध्ययन के कारण हुआ होगा ऐसा हम कह सकते हैं। गणित की शून्य की संकल्पना, अनंत की संकल्पना, सृष्टि के निर्माण और लय की प्रक्रिया को समझने के लिए १० पर १४२ शून्यवाली ‘असंख्येय’ संख्या तक का मापन, आदि काल के मापन के लिए किये प्रयासों में या विभिन्न ग्रहों में जो अन्तर हैं उन अंतरों के मापन के लिए शायद आवश्यक थे। खगोल शास्त्र के अध्ययन में ग्रहों के बीच के अंतर, ग्रहों की गति का मापन आदि अनेकों पहलू ऐसे हैं जिनका काम गणित के बगैर चल नहीं सकता। भूमिति गणित का ही एक अंग है। इस के गोल, लंबगोल आदि विभिन्न आकार भी खगोल के अध्ययन के लिये आवश्यक होते हैं। विभिन्न ग्रहों के बीच के अन्तर को नापने के लिए त्रिकोण, चतुर्भुज आदि के भिन्न भिन्न आकार और उन की रेखाओं की लम्बाईयों के अनुपात इन प्राक्रियाओं को सरल बनाते हैं। गणित की कलन (इंटीग्रल केलकुलस) और अवकलन (डीफ्रंशियल केलकुलस) जैसी प्रगत प्रक्रियाएं भी खगोल शास्त्र के गेंदाकृति भूमिति (स्फेरिकल ज्योमेट्री) के अध्ययन के लिए अनिवार्य होतीं हैं। वेदों के छ: उपांग हैं। शिक्षा, कल्प, निरुक्त, छंद, व्याकरण और ज्योतिष। ज्योतिष और कुछ नहीं ग्रह गणित ही है। ग्रहों की आकाश में स्थिति और उनके पृथ्वी पर, मानव जिस भौगोलिक क्षेत्र में है, उस पर परिणाम करने की क्षमताओं के आधार पर यज्ञों के लिए याने शुभ कार्यों के लिए सुमुहूर्त देखने के लिए ज्योतिष विद्या का उपयोग किया जाता है। इस के लिए ग्रहों की अचूक स्थिति, उसका अचूक प्रभाव समझने के लिए ग्रहों का पृथ्वी अन्तर जानना और उनकी प्रभाव डालने की शक्ति को आँकना यह गणित से ही संभव हो पाता है।  
 
वैसे तो गणित का सम्बन्ध जीवन के हर विषय से है। विज्ञान की विभिन्न शाखाओं का तो गणित आधार ही है। वर्तमान में तो प्रत्येक विषय का गणितीय नमूना बनाने की एक विचित्र पद्धति बन गयी है। फिर गणित का विषय खगोल भूगोल के साथ लेने का औचित्य क्या है? वास्तव में गणित की महत्वपूर्ण संकल्पनाओं और प्रक्रियाओं का विकास, खगोल भूगोल के क्षेत्र में हुए अध्ययन के कारण हुआ होगा ऐसा हम कह सकते हैं। गणित की शून्य की संकल्पना, अनंत की संकल्पना, सृष्टि के निर्माण और लय की प्रक्रिया को समझने के लिए १० पर १४२ शून्यवाली ‘असंख्येय’ संख्या तक का मापन, आदि काल के मापन के लिए किये प्रयासों में या विभिन्न ग्रहों में जो अन्तर हैं उन अंतरों के मापन के लिए शायद आवश्यक थे। खगोल शास्त्र के अध्ययन में ग्रहों के बीच के अंतर, ग्रहों की गति का मापन आदि अनेकों पहलू ऐसे हैं जिनका काम गणित के बगैर चल नहीं सकता। भूमिति गणित का ही एक अंग है। इस के गोल, लंबगोल आदि विभिन्न आकार भी खगोल के अध्ययन के लिये आवश्यक होते हैं। विभिन्न ग्रहों के बीच के अन्तर को नापने के लिए त्रिकोण, चतुर्भुज आदि के भिन्न भिन्न आकार और उन की रेखाओं की लम्बाईयों के अनुपात इन प्राक्रियाओं को सरल बनाते हैं। गणित की कलन (इंटीग्रल केलकुलस) और अवकलन (डीफ्रंशियल केलकुलस) जैसी प्रगत प्रक्रियाएं भी खगोल शास्त्र के गेंदाकृति भूमिति (स्फेरिकल ज्योमेट्री) के अध्ययन के लिए अनिवार्य होतीं हैं। वेदों के छ: उपांग हैं। शिक्षा, कल्प, निरुक्त, छंद, व्याकरण और ज्योतिष। ज्योतिष और कुछ नहीं ग्रह गणित ही है। ग्रहों की आकाश में स्थिति और उनके पृथ्वी पर, मानव जिस भौगोलिक क्षेत्र में है, उस पर परिणाम करने की क्षमताओं के आधार पर यज्ञों के लिए याने शुभ कार्यों के लिए सुमुहूर्त देखने के लिए ज्योतिष विद्या का उपयोग किया जाता है। इस के लिए ग्रहों की अचूक स्थिति, उसका अचूक प्रभाव समझने के लिए ग्रहों का पृथ्वी अन्तर जानना और उनकी प्रभाव डालने की शक्ति को आँकना यह गणित से ही संभव हो पाता है।  
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अब धार्मिक (भारतीय) खगोल / भूगोल / गणित दृष्टि के कुछ महत्वपूर्ण पहलूओं का हम विचार करेंगे। भूगोल यह हम जिस पृथ्वी पर रहते हैं, जिस के बिना हमारी एक भी आवश्यकता पूर्ण नहीं हो सकती उसकी जानकारी का विषय है। इस के साथ ही ज्योतिष विद्या के लिए भी मनुष्य की भौगोलिक स्थिति जानने के लिए भी पृथ्वी के भूगोल को जानना आवश्यक है।<ref>जीवन का भारतीय प्रतिमान-खंड २, अध्याय ४०, लेखक - दिलीप केलकर</ref>  
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अब धार्मिक (धार्मिक) खगोल / भूगोल / गणित दृष्टि के कुछ महत्वपूर्ण पहलूओं का हम विचार करेंगे। भूगोल यह हम जिस पृथ्वी पर रहते हैं, जिस के बिना हमारी एक भी आवश्यकता पूर्ण नहीं हो सकती उसकी जानकारी का विषय है। इस के साथ ही ज्योतिष विद्या के लिए भी मनुष्य की भौगोलिक स्थिति जानने के लिए भी पृथ्वी के भूगोल को जानना आवश्यक है।<ref>जीवन का धार्मिक प्रतिमान-खंड २, अध्याय ४०, लेखक - दिलीप केलकर</ref>  
    
== साधना की महत्ता ==
 
== साधना की महत्ता ==
भारतीय विचारों में ज्ञानार्जन की प्रक्रिया में साधन सापेक्षता से साधना सापेक्षता का आग्रह किया हुआ है। साधनों के महत्व को नकारा नहीं गया है। लेकिन जहाँ साधना की मर्यादा आ जाती है वहाँ साधनों के उपयोग की परम्परा रही है। इसी कारण हमारे पूर्वज अपने इन्द्रिय, मन और बुद्धि को कुशाग्र बनाकर सृष्टि के रहस्यों को जान पाए थे।   
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धार्मिक विचारों में ज्ञानार्जन की प्रक्रिया में साधन सापेक्षता से साधना सापेक्षता का आग्रह किया हुआ है। साधनों के महत्व को नकारा नहीं गया है। लेकिन जहाँ साधना की मर्यादा आ जाती है वहाँ साधनों के उपयोग की परम्परा रही है। इसी कारण हमारे पूर्वज अपने इन्द्रिय, मन और बुद्धि को कुशाग्र बनाकर सृष्टि के रहस्यों को जान पाए थे।   
    
ज्ञानार्जन के लिए परमात्मा ने हर मनुष्य को साधन दिए हैं। इन प्राकृतिक साधनों को करण कहा जाता है। प्राकृतिक करण दो प्रकार के होते हैं। बही:करण और अंत:करण। ज्ञानार्जन के बही:करणों में पांच ज्ञानेन्द्रियों का समावेश होता है। अंत:करण में मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार का समावेश होता है। न्यूनतम एक ज्ञानेन्द्रिय और अंत:करण के चारों घटकों का समायोजन होने से ही ज्ञानार्जन हो सकता है। इन में से एक के भी असहयोग से या अभाव में ज्ञानार्जन नहीं हो सकता।  
 
ज्ञानार्जन के लिए परमात्मा ने हर मनुष्य को साधन दिए हैं। इन प्राकृतिक साधनों को करण कहा जाता है। प्राकृतिक करण दो प्रकार के होते हैं। बही:करण और अंत:करण। ज्ञानार्जन के बही:करणों में पांच ज्ञानेन्द्रियों का समावेश होता है। अंत:करण में मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार का समावेश होता है। न्यूनतम एक ज्ञानेन्द्रिय और अंत:करण के चारों घटकों का समायोजन होने से ही ज्ञानार्जन हो सकता है। इन में से एक के भी असहयोग से या अभाव में ज्ञानार्जन नहीं हो सकता।  
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== माता भूमि पुत्रोऽहं पृथिव्या: ==
 
== माता भूमि पुत्रोऽहं पृथिव्या: ==
भारतीय सोच में ऐसे सभी पदार्थ जो नि:स्वार्थ भाव से अन्यों का हित करते रहते हैं उन्हें पवित्र माना गया है। माता माना गया है। माता बदले में किसी भी प्रकार की अपेक्षा न रखते हुए अपने बच्चे को सब कुछ देती है। इसीलिये प्रकृति को माता, गंगा को माता, तुलसी को माता माना जाता है। इसी तरह से पृथ्वी को भी पवित्र और माता माना गया है। भारत ऐसा देश है जहाँ अपने देश को मातृभूमि कहा जाता है। यह इस भूमि के प्रति जो पवित्रता की भावना है उसके कारण ही है। राष्ट्र के भौतिक अस्तित्व के लिए भूमि का होना अनिवार्य है, और उस भूमि के साथ समाज के घटकों का मातृभाव भी। मातृभूमि के भूगोल के कारण एक राष्ट्र के सभी सदस्य एक दूसरे भाई / बहन बन जाते हैं। आत्मीयता के बंधन से बंध जाते हैं।  
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धार्मिक सोच में ऐसे सभी पदार्थ जो नि:स्वार्थ भाव से अन्यों का हित करते रहते हैं उन्हें पवित्र माना गया है। माता माना गया है। माता बदले में किसी भी प्रकार की अपेक्षा न रखते हुए अपने बच्चे को सब कुछ देती है। इसीलिये प्रकृति को माता, गंगा को माता, तुलसी को माता माना जाता है। इसी तरह से पृथ्वी को भी पवित्र और माता माना गया है। भारत ऐसा देश है जहाँ अपने देश को मातृभूमि कहा जाता है। यह इस भूमि के प्रति जो पवित्रता की भावना है उसके कारण ही है। राष्ट्र के भौतिक अस्तित्व के लिए भूमि का होना अनिवार्य है, और उस भूमि के साथ समाज के घटकों का मातृभाव भी। मातृभूमि के भूगोल के कारण एक राष्ट्र के सभी सदस्य एक दूसरे भाई / बहन बन जाते हैं। आत्मीयता के बंधन से बंध जाते हैं।  
    
== मोक्ष प्राप्ति के लिए भूगोल/खगोल ==
 
== मोक्ष प्राप्ति के लिए भूगोल/खगोल ==
सृष्टि निर्माण की मान्यता खगोलीय ज्ञान के आधार पर ही पुष्ट होती है। खगोल की चक्रीयता, यत् पिंडे तत् ब्रह्मांडे की अनुभूति खगोल के ज्ञान से ही अच्छी तरह से हो सकती है। चराचर में व्याप्त आत्मतत्व को अनुमान प्रमाण के आधार पर जानने के लिए भी खगोल भूगोल का ज्ञान आवश्यक है। सृष्टि निर्माण की जो भी वैज्ञानिक मान्यताएँ हैं वे सभी मान्यताएँ खगोल के ज्ञान की ही उपज हैं। जड़वादी सृष्टि निर्माण की अधार्मिक (अधार्मिक) खगोलीय दृष्टि ने ही विश्व को जड़वादी, व्यक्तिवादी और इहवादी बनाकर विनाश की कगार पर लाकर खडा किया है। एकात्मवादी, अध्यात्मवादी, समग्रता की धार्मिक (भारतीय) दृष्टि भी खगोलीय सृष्टि निर्माण के ज्ञान के आधार से ही पुष्ट हुई है। इस खगोलीय ज्ञान के कारण ही जीवन की स्थल और काल के सन्दर्भ में अखण्डता की अनुभूति हो पाती है। डेव्हिड बोह्म की खोज से हजारों वर्ष पूर्व से धार्मिक (भारतीय) मनीषी यह जानते थे कि सारी सृष्टि बहुत निकटता से परस्पर सम्बद्ध है। धूल का एक कण हिलने का प्रभाव और परिणाम सारी सृष्टि पर होता है (द होल युनिव्हर्स इज व्हेरी क्लोजली इंटरकनेक्टेड – डेव्हिड बोह्म की प्रतिष्ठापना)। खगोल के ज्ञान से ही जीवन की चक्रियता समझ में आती है। उत्पत्ति, स्थिति और लय की सही समझ मन में बनती है। सृष्टि की प्राकृतिक व्यवस्थाओं के नियमों के आधार पर ही कर्म सिद्धांत, ऋण सिद्धांत जैसे धार्मिक (भारतीय) जीवनदृष्टि के तर्क आधारित और मनुष्य को सन्मार्गगामी बनाने के लिए अत्यंत उपयुक्त व्यवहार सूत्र उभरकर आते हैं।  
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सृष्टि निर्माण की मान्यता खगोलीय ज्ञान के आधार पर ही पुष्ट होती है। खगोल की चक्रीयता, यत् पिंडे तत् ब्रह्मांडे की अनुभूति खगोल के ज्ञान से ही अच्छी तरह से हो सकती है। चराचर में व्याप्त आत्मतत्व को अनुमान प्रमाण के आधार पर जानने के लिए भी खगोल भूगोल का ज्ञान आवश्यक है। सृष्टि निर्माण की जो भी वैज्ञानिक मान्यताएँ हैं वे सभी मान्यताएँ खगोल के ज्ञान की ही उपज हैं। जड़वादी सृष्टि निर्माण की अधार्मिक (अधार्मिक) खगोलीय दृष्टि ने ही विश्व को जड़वादी, व्यक्तिवादी और इहवादी बनाकर विनाश की कगार पर लाकर खडा किया है। एकात्मवादी, अध्यात्मवादी, समग्रता की धार्मिक (धार्मिक) दृष्टि भी खगोलीय सृष्टि निर्माण के ज्ञान के आधार से ही पुष्ट हुई है। इस खगोलीय ज्ञान के कारण ही जीवन की स्थल और काल के सन्दर्भ में अखण्डता की अनुभूति हो पाती है। डेव्हिड बोह्म की खोज से हजारों वर्ष पूर्व से धार्मिक (धार्मिक) मनीषी यह जानते थे कि सारी सृष्टि बहुत निकटता से परस्पर सम्बद्ध है। धूल का एक कण हिलने का प्रभाव और परिणाम सारी सृष्टि पर होता है (द होल युनिव्हर्स इज व्हेरी क्लोजली इंटरकनेक्टेड – डेव्हिड बोह्म की प्रतिष्ठापना)। खगोल के ज्ञान से ही जीवन की चक्रियता समझ में आती है। उत्पत्ति, स्थिति और लय की सही समझ मन में बनती है। सृष्टि की प्राकृतिक व्यवस्थाओं के नियमों के आधार पर ही कर्म सिद्धांत, ऋण सिद्धांत जैसे धार्मिक (धार्मिक) जीवनदृष्टि के तर्क आधारित और मनुष्य को सन्मार्गगामी बनाने के लिए अत्यंत उपयुक्त व्यवहार सूत्र उभरकर आते हैं।  
    
भूगोल के गहराई से अध्ययन में कई प्रश्न उभरते हैं। वटवृक्ष के छोटे से बीज में पूरा वटवृक्ष होता है। एक छोटे से फल में बीजरूप में सैंकड़ों वृक्ष होते हैं। मनुष्य अपनी विभिन्न क्षमताओं के विकास के उपरांत भी ऐसा कुछ नहीं कर पाता। क्यों? गुलाब का रंग गुलाबी क्यों है और किसने बनाया। गुलाब में महक किसने निर्माण की। करने वाला कौन है? मौसम की विविधता किसने निर्माण की? यह पर्यावरण के सन्तुलन  की व्यवस्था किसने और क्यों निर्माण की है? कैसे निर्माण की? वर्तमान विज्ञान इनकी जानकारी तो देता है। क्या का उत्तर तो देता है, लेकिन क्यों, किसने, कैसे आदि प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पाता। इनके उत्तर केवल अध्यात्म शास्त्र ही देता है। भूगोल का अध्ययन अध्यात्म शास्त्र का महत्व ही अधोरेखित करता है।  
 
भूगोल के गहराई से अध्ययन में कई प्रश्न उभरते हैं। वटवृक्ष के छोटे से बीज में पूरा वटवृक्ष होता है। एक छोटे से फल में बीजरूप में सैंकड़ों वृक्ष होते हैं। मनुष्य अपनी विभिन्न क्षमताओं के विकास के उपरांत भी ऐसा कुछ नहीं कर पाता। क्यों? गुलाब का रंग गुलाबी क्यों है और किसने बनाया। गुलाब में महक किसने निर्माण की। करने वाला कौन है? मौसम की विविधता किसने निर्माण की? यह पर्यावरण के सन्तुलन  की व्यवस्था किसने और क्यों निर्माण की है? कैसे निर्माण की? वर्तमान विज्ञान इनकी जानकारी तो देता है। क्या का उत्तर तो देता है, लेकिन क्यों, किसने, कैसे आदि प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पाता। इनके उत्तर केवल अध्यात्म शास्त्र ही देता है। भूगोल का अध्ययन अध्यात्म शास्त्र का महत्व ही अधोरेखित करता है।  
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संकल्प में हम अपने को अद्य ब्रह्मणों के माध्यम से एक तरफ त्रिकालाबाधित ब्रह्म के साथ जोड़ते हैं तो दूसरी ओर शुभ मुहूर्त के माध्यम से वर्तमान मुहूर्त के साथ याने क्षण के साथ जोड़ते हैं। आगे जम्बूदीप याने एशिया खंड को तथा दूसरी ओर अपने यज्ञ के स्थान के प्रविभाग को जोड़ते हैं। इसे ही कहते हैं “थिंक ग्लोबली एक्ट लोकली” याने स्थानिक स्तर पर कुछ भी करना है तो वैश्विक हित का सन्दर्भ नहीं छोडना। उस सन्दर्भ का नित्य स्मरण करते रहना।   
 
संकल्प में हम अपने को अद्य ब्रह्मणों के माध्यम से एक तरफ त्रिकालाबाधित ब्रह्म के साथ जोड़ते हैं तो दूसरी ओर शुभ मुहूर्त के माध्यम से वर्तमान मुहूर्त के साथ याने क्षण के साथ जोड़ते हैं। आगे जम्बूदीप याने एशिया खंड को तथा दूसरी ओर अपने यज्ञ के स्थान के प्रविभाग को जोड़ते हैं। इसे ही कहते हैं “थिंक ग्लोबली एक्ट लोकली” याने स्थानिक स्तर पर कुछ भी करना है तो वैश्विक हित का सन्दर्भ नहीं छोडना। उस सन्दर्भ का नित्य स्मरण करते रहना।   
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सीखने की दो प्रणालियाँ होतीं हैं। धार्मिक (भारतीय) प्रणाली में सामान्यत: पूर्ण याने अपनी प्रणाली से बड़ी प्रणाली के ज्ञान की प्राप्ति के बाद उसके हिस्से के ज्ञान प्राप्ति की रही है। जिस तरह अंगी को ठीक से समझने से अंग को समझना सरल और सहज होता है। अंग/उपांगों के परस्पर संबंधों को समझना सरल हो जाता है। इस प्रणाली में लाभ यह होता है कि बडी प्रणाली की समझ पहले प्राप्त करने से उसके साथ समायोजन करना सरल हो जाता है। इसी तरह से बड़ी प्रणाली के अपने जैसे ही अन्य हिस्सों के साथ समायोजन भी सरल और सहज हो जाता है।  
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सीखने की दो प्रणालियाँ होतीं हैं। धार्मिक (धार्मिक) प्रणाली में सामान्यत: पूर्ण याने अपनी प्रणाली से बड़ी प्रणाली के ज्ञान की प्राप्ति के बाद उसके हिस्से के ज्ञान प्राप्ति की रही है। जिस तरह अंगी को ठीक से समझने से अंग को समझना सरल और सहज होता है। अंग/उपांगों के परस्पर संबंधों को समझना सरल हो जाता है। इस प्रणाली में लाभ यह होता है कि बडी प्रणाली की समझ पहले प्राप्त करने से उसके साथ समायोजन करना सरल हो जाता है। इसी तरह से बड़ी प्रणाली के अपने जैसे ही अन्य हिस्सों के साथ समायोजन भी सरल और सहज हो जाता है।  
    
== भारत के भूगोल का इतिहास और सीखने का सबक ==
 
== भारत के भूगोल का इतिहास और सीखने का सबक ==
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##* धर्म, संस्कृति का विस्तार बढती जनसंख्या और बढ़ते भूगोल के क्षेत्र में होता रहे। इस के लिये योग्य शासक निर्माण करे। उसका समर्थन करे। उसकी सहायता करे। इस हेतु आवश्यक प्रचार, प्रसार, शिक्षा, साहित्य का निर्माण करे।
 
##* धर्म, संस्कृति का विस्तार बढती जनसंख्या और बढ़ते भूगोल के क्षेत्र में होता रहे। इस के लिये योग्य शासक निर्माण करे। उसका समर्थन करे। उसकी सहायता करे। इस हेतु आवश्यक प्रचार, प्रसार, शिक्षा, साहित्य का निर्माण करे।
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== भारतीय खगोल/भूगोल/गणित दृष्टि ==
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== धार्मिक खगोल/भूगोल/गणित दृष्टि ==
 
प्रकृति में सीधी रेखा में कुछ नहीं होता। प्रकृति सुसंगतता के लिए सीधी रेखा की रचनाएँ टालना। सीधी रेखा में तीर या बन्दूक की गोली जाती है। इससे हिंसा होती है। प्रकृति में अहिंसा है, एक दूसरे के साथ समायोजन है। इसलिए मानव निर्मित सभी बातें जैसे घर, मंदिर, ग्राम की रचनाएँ, सड़कें आदि यथासंभव सीधी रेखा में नहीं होते थे। सीधी सडकों से चेतना के स्तर में कमी आती है।
 
प्रकृति में सीधी रेखा में कुछ नहीं होता। प्रकृति सुसंगतता के लिए सीधी रेखा की रचनाएँ टालना। सीधी रेखा में तीर या बन्दूक की गोली जाती है। इससे हिंसा होती है। प्रकृति में अहिंसा है, एक दूसरे के साथ समायोजन है। इसलिए मानव निर्मित सभी बातें जैसे घर, मंदिर, ग्राम की रचनाएँ, सड़कें आदि यथासंभव सीधी रेखा में नहीं होते थे। सीधी सडकों से चेतना के स्तर में कमी आती है।
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तत्व की बातें, धर्म का तत्व, कुछ वैज्ञानिक बातें आदि समझने में कुछ कठिन होतीं हैं। इसलिए उसे किसी रीति या रिवाज के रूप में समाज में स्थापित किया जाता था। जैसे तुलसी पूजन, आम के पत्तों का तोरण बनाना, नहाते समय गंगे च यमुनेचैव जैसे श्लोक कहना आदि।
 
तत्व की बातें, धर्म का तत्व, कुछ वैज्ञानिक बातें आदि समझने में कुछ कठिन होतीं हैं। इसलिए उसे किसी रीति या रिवाज के रूप में समाज में स्थापित किया जाता था। जैसे तुलसी पूजन, आम के पत्तों का तोरण बनाना, नहाते समय गंगे च यमुनेचैव जैसे श्लोक कहना आदि।
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भारतीय शिक्षा प्रणाली में विषयों की शिक्षा नहीं होती। जीवन की शिक्षा होती है। आवश्यकतानुसार विषय का ज्ञान भी साथ ही में दिया जाता था। इसलिए सामान्यत: खगोल / भूगोल ऐसा अलग से विषय पढ़ाया नहीं जाता था। वेदांगों के अध्ययन में गृह ज्योतिष सीखते समय, आयुर्वेद में वनस्पतियों की जानकारी के लिए भूगोल का आवश्यक उतना अध्ययन कर लिया जाता था। रामायण, महाभारत या पुराणों के अध्ययन के माध्यम से आनन फानन में बच्चे खगोल-भूगोल की कई पेचीदगियों को समझ सकते हैं। जैसे एक स्थान से  सुदूर दूसरे स्थानपर जाने के लिए तेज गति (प्रकाश की) के साथ जाने से आयु नहीं बढ़ना आदि। इससे खगोल-भूगोल की शिक्षा भी रोचक रंजक हो जाती है।
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धार्मिक शिक्षा प्रणाली में विषयों की शिक्षा नहीं होती। जीवन की शिक्षा होती है। आवश्यकतानुसार विषय का ज्ञान भी साथ ही में दिया जाता था। इसलिए सामान्यत: खगोल / भूगोल ऐसा अलग से विषय पढ़ाया नहीं जाता था। वेदांगों के अध्ययन में गृह ज्योतिष सीखते समय, आयुर्वेद में वनस्पतियों की जानकारी के लिए भूगोल का आवश्यक उतना अध्ययन कर लिया जाता था। रामायण, महाभारत या पुराणों के अध्ययन के माध्यम से आनन फानन में बच्चे खगोल-भूगोल की कई पेचीदगियों को समझ सकते हैं। जैसे एक स्थान से  सुदूर दूसरे स्थानपर जाने के लिए तेज गति (प्रकाश की) के साथ जाने से आयु नहीं बढ़ना आदि। इससे खगोल-भूगोल की शिक्षा भी रोचक रंजक हो जाती है।
    
==References==
 
==References==
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अन्य स्रोत:
 
अन्य स्रोत:
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[[Category:Bhartiya Jeevan Pratiman (भारतीय जीवन प्रतिमान)]]
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[[Category:Bhartiya Jeevan Pratiman (धार्मिक जीवन प्रतिमान)]]
[[Category:Bhartiya Jeevan Pratiman (भारतीय जीवन प्रतिमान - भाग २)]]
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[[Category:Bhartiya Jeevan Pratiman (धार्मिक जीवन प्रतिमान - भाग २)]]

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