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विश्व की इन परेशानियों को दूर करने का सामर्थ्य भारत की जीवनदृष्टि में है। भारत के अलावा और कोई यह कार्य नहीं कर सकता। अतः भारत को यह भूमिका निभानी चाहिये । भारत ने अतीत में भी ऐसा कार्य किया है । आज भी वह ऐसा कर सकता है ।
 
विश्व की इन परेशानियों को दूर करने का सामर्थ्य भारत की जीवनदृष्टि में है। भारत के अलावा और कोई यह कार्य नहीं कर सकता। अतः भारत को यह भूमिका निभानी चाहिये । भारत ने अतीत में भी ऐसा कार्य किया है । आज भी वह ऐसा कर सकता है ।
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परन्तु भारत में दोहरी कठिनाई है। पहली तो यह कि भारत स्वयं ही तो पश्चिमी प्रभाव में जी रहा हैं । हम ही यदि पश्चिमी व्यवस्था से मुक्त नहीं होंगे तो विश्व को कैसे मुक्त करेंगे ? इसलिये प्रथम आवश्यकता है भारत में भारतीय शिक्षा की प्रतिष्ठा करने की । ऐसी प्रतिष्ठा करने हेतु शैक्षिक संगठन पहल करें और शासन तथा प्रशासन उन्हें सहयोग करें यह आवश्यक है। मैं इस पुस्तिका में आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का प्रारूप लाया हूँ । मेरा निवेदन है कि आप इसे पढ़ें, उस पर विचार करें और बाद में हम उस पर चर्चा करेंगे।
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परन्तु भारत में दोहरी कठिनाई है। पहली तो यह कि भारत स्वयं ही तो पश्चिमी प्रभाव में जी रहा हैं । हम ही यदि पश्चिमी व्यवस्था से मुक्त नहीं होंगे तो विश्व को कैसे मुक्त करेंगे ? इसलिये प्रथम आवश्यकता है भारत में धार्मिक शिक्षा की प्रतिष्ठा करने की । ऐसी प्रतिष्ठा करने हेतु शैक्षिक संगठन पहल करें और शासन तथा प्रशासन उन्हें सहयोग करें यह आवश्यक है। मैं इस पुस्तिका में आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का प्रारूप लाया हूँ । मेरा निवेदन है कि आप इसे पढ़ें, उस पर विचार करें और बाद में हम उस पर चर्चा करेंगे।
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'''मन्त्री''' : महाशय, आपने जो भी कहा, मैं उससे पूर्ण रूप से सहमत हूँ। मैं भी तो शिक्षक रहा हूँ। प्रथम माध्यमिक विद्यालय में और बाद में विश्वविद्यालय में पढाते समय मुझे हमेशा लगता था कि हम वही सब कर रहे हैं जो हमें एक भारतीय शिक्षक के नाते नहीं करना चाहिये। उस समय मुजे लगता था कि सरकार क्यों कुछ नहीं करती, हमें क्यों यह सब पढाना पड़ रहा है । परन्तु राजनीतिमें आने के बाद सांसद और मन्त्री बनने के बाद अनुभव कर रहा हूँ कि हम तो बुरे फंसे हैं । शिक्षक के नाते तो शिक्षा की थोडी बहुत भी सेवा कर लेते थे, शिक्षामन्त्री बनने के बाद हम कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं। पूरा देश हमसे अपेक्षा करता है परन्तु हम गैरशैक्षिक बातों में ही उलझे हैं। कभी आरक्षण के नाम पर, कभी वेतन को लेकर, कभी बजट को लेकर, कभी भगवाकरण के नाम पर इतना शोर मचता है कि शिक्षा की बात तो कभी होती ही नहीं है । विरोध पक्ष सही गलत देखे बिना सभी बातों का विरोध ही करता है। अब आप ही कुछ मार्ग बतायें ऐसा मेरा आग्रह है।
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'''मन्त्री''' : महाशय, आपने जो भी कहा, मैं उससे पूर्ण रूप से सहमत हूँ। मैं भी तो शिक्षक रहा हूँ। प्रथम माध्यमिक विद्यालय में और बाद में विश्वविद्यालय में पढाते समय मुझे हमेशा लगता था कि हम वही सब कर रहे हैं जो हमें एक धार्मिक शिक्षक के नाते नहीं करना चाहिये। उस समय मुजे लगता था कि सरकार क्यों कुछ नहीं करती, हमें क्यों यह सब पढाना पड़ रहा है । परन्तु राजनीतिमें आने के बाद सांसद और मन्त्री बनने के बाद अनुभव कर रहा हूँ कि हम तो बुरे फंसे हैं । शिक्षक के नाते तो शिक्षा की थोडी बहुत भी सेवा कर लेते थे, शिक्षामन्त्री बनने के बाद हम कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं। पूरा देश हमसे अपेक्षा करता है परन्तु हम गैरशैक्षिक बातों में ही उलझे हैं। कभी आरक्षण के नाम पर, कभी वेतन को लेकर, कभी बजट को लेकर, कभी भगवाकरण के नाम पर इतना शोर मचता है कि शिक्षा की बात तो कभी होती ही नहीं है । विरोध पक्ष सही गलत देखे बिना सभी बातों का विरोध ही करता है। अब आप ही कुछ मार्ग बतायें ऐसा मेरा आग्रह है।
    
आज हम तीनों साथ बैठे हैं यह सुयोग है वरना आप लोग भी हमें दोष देते हैं और प्रशासक हमें नियमों और कानूनों में उलझाते हैं । नियमों और कानूनों का अध्ययन करें उतने समय में या तो हमारा विभाग बदल जाता है अथवा चुनाव आ जाते हैं। अतः मुझे लगता है कि शिक्षकों और शिक्षक संगठनों को ही कुछ करना होगा।
 
आज हम तीनों साथ बैठे हैं यह सुयोग है वरना आप लोग भी हमें दोष देते हैं और प्रशासक हमें नियमों और कानूनों में उलझाते हैं । नियमों और कानूनों का अध्ययन करें उतने समय में या तो हमारा विभाग बदल जाता है अथवा चुनाव आ जाते हैं। अतः मुझे लगता है कि शिक्षकों और शिक्षक संगठनों को ही कुछ करना होगा।
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'''मन्त्री''' : परन्तु मुझे कुछ आशंकायें लग रही हैं। सरकार सहयोग भी करे और नियन्त्रण न करे तो चारों ओर से विरोध होगा। दूसरा, अनेक लोग अनेक प्रकार से प्रस्ताव लायेंगे, और हमें भी करने दें ऐसा कहेंगे । एक करते करते अनेक प्रश्न निर्माण हो जायेंगे।
 
'''मन्त्री''' : परन्तु मुझे कुछ आशंकायें लग रही हैं। सरकार सहयोग भी करे और नियन्त्रण न करे तो चारों ओर से विरोध होगा। दूसरा, अनेक लोग अनेक प्रकार से प्रस्ताव लायेंगे, और हमें भी करने दें ऐसा कहेंगे । एक करते करते अनेक प्रश्न निर्माण हो जायेंगे।
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भारतीय जीवनदृष्टि पर आधारित शिक्षायोजना कहते ही धर्मनिरपेक्षता संकट में पड़ जायेगी और अनेक लोग करने ही नहीं देंगे । इसलिये मेरा सुझाव है कि शासन और प्रशासन की सहमति रहे परन्तु वे सक्रिय न रहें । अनेक बार लोग कहते हैं कि सरकार में परिवर्तन करने का साहस नहीं है। मैं कहता हूँ कि यह साहस का प्रश्न नहीं है, व्यावहारिकता का है। विरोध के लिये विरोध का उत्तर देते रहें और हमारा काम ही न हो ऐसा करने के स्थान पर सरकार इसमें सहभागी ही न हो यह बेहतर है। हम आपको व्यक्तिगत रूप से सहायता अवश्य करेंगे। आप हमारा भरोसा करें।
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धार्मिक जीवनदृष्टि पर आधारित शिक्षायोजना कहते ही धर्मनिरपेक्षता संकट में पड़ जायेगी और अनेक लोग करने ही नहीं देंगे । इसलिये मेरा सुझाव है कि शासन और प्रशासन की सहमति रहे परन्तु वे सक्रिय न रहें । अनेक बार लोग कहते हैं कि सरकार में परिवर्तन करने का साहस नहीं है। मैं कहता हूँ कि यह साहस का प्रश्न नहीं है, व्यावहारिकता का है। विरोध के लिये विरोध का उत्तर देते रहें और हमारा काम ही न हो ऐसा करने के स्थान पर सरकार इसमें सहभागी ही न हो यह बेहतर है। हम आपको व्यक्तिगत रूप से सहायता अवश्य करेंगे। आप हमारा भरोसा करें।
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'''शिक्षक''' : मैं आपकी कठिनाई समझता हूँ परन्तु साहस करने की आवश्यकता भी देखता हूँ। मैं देखता हूँ कि स्पष्टता के अभाव में हम कई प्रश्न सुलझाने का प्रयास ही नहीं कर रहे हैं। भारत में शिक्षा भारतीय होनी चाहिये ऐसा सूत्र प्रस्तुत करना और उस पर चर्चा आमन्त्रित करना तो प्रारम्भ है । इसमें हमें संकोच क्यों करना चाहिये ? धर्म, अध्यात्म, राष्ट्र आदि संकल्पनाओं को हम जितना जल्दी ठीक करें उतना अच्छा है । 'भारतीय शिक्षा' कोई संविधान के विरोध की बात तो है नहीं। अतः मेरा आग्रह है कि हम अपनी बात दृढतापूर्वक रखें । स्वाधीनता प्राप्ति के बाद बहुत समय बीत चुका है। हम उल्टी दिशा में ही जा रहे हैं । देशवासियों में इसका भान जगे ऐसा प्रयास सरकार को भी करना चाहिये । प्रशासन में तो अब उच्चशिक्षित लोग होते हैं। वे यद्यपि उल्टा पढे हैं परन्तु उल्टा क्या और सीधा क्या इतना समझने की बुद्धि उनमें अवश्य है। सरकार संकल्प करे और प्रजा उस संकल्प को अपना ले तो काम शुरू हो सकता है। हमारे जैसे शैक्षिक संगठन सक्रिय होंगे तो कार्य को गति भी मिल सकती है।
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'''शिक्षक''' : मैं आपकी कठिनाई समझता हूँ परन्तु साहस करने की आवश्यकता भी देखता हूँ। मैं देखता हूँ कि स्पष्टता के अभाव में हम कई प्रश्न सुलझाने का प्रयास ही नहीं कर रहे हैं। भारत में शिक्षा धार्मिक होनी चाहिये ऐसा सूत्र प्रस्तुत करना और उस पर चर्चा आमन्त्रित करना तो प्रारम्भ है । इसमें हमें संकोच क्यों करना चाहिये ? धर्म, अध्यात्म, राष्ट्र आदि संकल्पनाओं को हम जितना जल्दी ठीक करें उतना अच्छा है । 'धार्मिक शिक्षा' कोई संविधान के विरोध की बात तो है नहीं। अतः मेरा आग्रह है कि हम अपनी बात दृढतापूर्वक रखें । स्वाधीनता प्राप्ति के बाद बहुत समय बीत चुका है। हम उल्टी दिशा में ही जा रहे हैं । देशवासियों में इसका भान जगे ऐसा प्रयास सरकार को भी करना चाहिये । प्रशासन में तो अब उच्चशिक्षित लोग होते हैं। वे यद्यपि उल्टा पढे हैं परन्तु उल्टा क्या और सीधा क्या इतना समझने की बुद्धि उनमें अवश्य है। सरकार संकल्प करे और प्रजा उस संकल्प को अपना ले तो काम शुरू हो सकता है। हमारे जैसे शैक्षिक संगठन सक्रिय होंगे तो कार्य को गति भी मिल सकती है।
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भारत में शिक्षा भारतीय होनी चाहिये ऐसा स्पष्ट रूप से कहने में क्या आपत्ति है ? यदि सरकार संविधान की धाराओं को बीच में लाये बिना भारतीय की व्याख्या करना शुरू करती है तो बात सुलझती जायेगी। भारतीयता की बात करना अपराध तो नहीं है। विश्व के अनेक मनीषियों ने भारतीय ज्ञान और संस्कृति की प्रतिष्ठा की है। हम अपने गौरव को क्यों न मानें और उसे स्थापित करने का प्रयास क्यों न करें ?
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भारत में शिक्षा धार्मिक होनी चाहिये ऐसा स्पष्ट रूप से कहने में क्या आपत्ति है ? यदि सरकार संविधान की धाराओं को बीच में लाये बिना धार्मिक की व्याख्या करना शुरू करती है तो बात सुलझती जायेगी। धार्मिकता की बात करना अपराध तो नहीं है। विश्व के अनेक मनीषियों ने धार्मिक ज्ञान और संस्कृति की प्रतिष्ठा की है। हम अपने गौरव को क्यों न मानें और उसे स्थापित करने का प्रयास क्यों न करें ?
    
अतः मेरा आग्रह पूर्वक कहना है कि हम विधायक बातों को सामने लायें और परिवर्तन का प्रारम्भ करें ।
 
अतः मेरा आग्रह पूर्वक कहना है कि हम विधायक बातों को सामने लायें और परिवर्तन का प्रारम्भ करें ।
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'''मन्त्री''' : आपकी बातें स्वीकार करने योग्य तो लगती हैं। हम अवश्य विचार करेंगे। आप यह आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का प्रारूप यहाँ रखकर जाइये । हम लोग जरा अध्ययन कर लें। बाद में पुनः बैठेंगे और आपकी इच्छा के अनुसार कुछ न कुछ अवश्य करेंगे । यह केवल आपकी ही इच्छा नहीं है हमारी भी है। अतः आप आश्वस्त रहें। हम भी भारतीय हैं और भारतीय होने का हमें गर्व भी है। आज चर्चा यहीं समाप्त करते हैं । पुनः मिलेंगे।
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'''मन्त्री''' : आपकी बातें स्वीकार करने योग्य तो लगती हैं। हम अवश्य विचार करेंगे। आप यह आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का प्रारूप यहाँ रखकर जाइये । हम लोग जरा अध्ययन कर लें। बाद में पुनः बैठेंगे और आपकी इच्छा के अनुसार कुछ न कुछ अवश्य करेंगे । यह केवल आपकी ही इच्छा नहीं है हमारी भी है। अतः आप आश्वस्त रहें। हम भी धार्मिक हैं और धार्मिक होने का हमें गर्व भी है। आज चर्चा यहीं समाप्त करते हैं । पुनः मिलेंगे।
    
==References==
 
==References==
<references />भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे
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<references />धार्मिक शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण धार्मिक शिक्षा (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे
[[Category:भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा]]
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[[Category:धार्मिक शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण धार्मिक शिक्षा]]
 
[[Category:Education Series]]
 
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[[Category:Bhartiya Shiksha Granthmala(भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला)]]
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[[Category:Bhartiya Shiksha Granthmala(धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला)]]

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