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− | {{ToBeEdited}}१. आज शिक्षा का प्रश्न इतना अधिक उलझ गया है कि उसे सुलझाना किसी एक व्यक्ति या एक संस्था के बस की बात नहीं है । इसे सुलझाने के लिये संगठन की ही आवश्यकता है । वह भी अखिल भारतीय स्तर के संगठन की । | + | {{ToBeEdited}}१. आज शिक्षा का प्रश्न इतना अधिक उलझ गया है कि उसे सुलझाना किसी एक व्यक्ति या एक संस्था के बस की बात नहीं है । इसे सुलझाने के लिये संगठन की ही आवश्यकता है । वह भी अखिल धार्मिक स्तर के संगठन की । |
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| २. इसका अर्थ यह है कि संगठनों का सबसे प्रमुख कार्य है शिक्षा की समस्या सुलझाना । छोटे मोटे विद्यालय चलाना, छोटे बडे. सेमिनार करना, प्रकल्प खडे करना, शिक्षकों का या अभिभावकों का प्रबोधन करना, सरकार का मार्गदर्शन करना, संचालकों का सहयोग प्राप्त करना आदि कार्य दूसरे क्रम में आयेंगे । | | २. इसका अर्थ यह है कि संगठनों का सबसे प्रमुख कार्य है शिक्षा की समस्या सुलझाना । छोटे मोटे विद्यालय चलाना, छोटे बडे. सेमिनार करना, प्रकल्प खडे करना, शिक्षकों का या अभिभावकों का प्रबोधन करना, सरकार का मार्गदर्शन करना, संचालकों का सहयोग प्राप्त करना आदि कार्य दूसरे क्रम में आयेंगे । |
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| ११. इसलिये संगठनों का प्रथम कार्य तो अपनी नित्य परिष्कृति करते रहना है । यह तो जीने के लिये शरीर स्वास्थ्य बनाये रखने जैसी बात है । स्वस्थ शरीर धर्माचरण के लिये होता है, निरुद्देश्य नहीं होता । संगठन भी शिक्षा की समस्या सुलझाने के लिये होता है, केवल बने रहने के लिये नहीं । | | ११. इसलिये संगठनों का प्रथम कार्य तो अपनी नित्य परिष्कृति करते रहना है । यह तो जीने के लिये शरीर स्वास्थ्य बनाये रखने जैसी बात है । स्वस्थ शरीर धर्माचरण के लिये होता है, निरुद्देश्य नहीं होता । संगठन भी शिक्षा की समस्या सुलझाने के लिये होता है, केवल बने रहने के लिये नहीं । |
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− | १२. शैक्षिक संगठनों ने अपना तन्त्र ठीक से बिठाने के बाद शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत अन्य संगठनों के साथ संवाद स्थापित करना चाहिये । संवाद स्थापित करने का कार्य केवल संगठनों तक सीमित नहीं रखना चाहिये । देशभर में अनेक व्यक्तियों के मन में शिक्षा का भारतीयकरण करने की आकांक्षा है । वे प्रयोग भी करते हैं । परन्तु उनके प्रयोग व्यक्तिगत स्तर पर होने के कारण अच्छी शिक्षा के नमूने बन जाते हैं । शिक्षा की गहरी और व्यापक समस्या सुलझाने की दृष्टि से प्रभावी नहीं होते हैं । इन सभी प्रयासों को पिरोने के लिये संगठनों को सूत्र बनाना चाहिये । | + | १२. शैक्षिक संगठनों ने अपना तन्त्र ठीक से बिठाने के बाद शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत अन्य संगठनों के साथ संवाद स्थापित करना चाहिये । संवाद स्थापित करने का कार्य केवल संगठनों तक सीमित नहीं रखना चाहिये । देशभर में अनेक व्यक्तियों के मन में शिक्षा का धार्मिककरण करने की आकांक्षा है । वे प्रयोग भी करते हैं । परन्तु उनके प्रयोग व्यक्तिगत स्तर पर होने के कारण अच्छी शिक्षा के नमूने बन जाते हैं । शिक्षा की गहरी और व्यापक समस्या सुलझाने की दृष्टि से प्रभावी नहीं होते हैं । इन सभी प्रयासों को पिरोने के लिये संगठनों को सूत्र बनाना चाहिये । |
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− | १२. पुनरावर्तन करके कहें तो शिक्षा के भारतीयकरण हेतु संगटन अनिवार्य है और संगठनों को भारतीयकरण के निहितार्थ समझकर अपनी योजना बनाना अनिवार्य हैं | | + | १२. पुनरावर्तन करके कहें तो शिक्षा के धार्मिककरण हेतु संगटन अनिवार्य है और संगठनों को धार्मिककरण के निहितार्थ समझकर अपनी योजना बनाना अनिवार्य हैं | |
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| १३. संगठनों के बिना देश की अपेक्षा पूर्ण नहीं हो सकती । संगठनों में ही देश की अपेक्षा पूर्ण करने की क्षमता है । संगठन यदि इस तथ्य का स्मरण नहीं रखता तो क्या होगा यह कहना कठिन है । | | १३. संगठनों के बिना देश की अपेक्षा पूर्ण नहीं हो सकती । संगठनों में ही देश की अपेक्षा पूर्ण करने की क्षमता है । संगठन यदि इस तथ्य का स्मरण नहीं रखता तो क्या होगा यह कहना कठिन है । |