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# बडों का आदर करना, छोटों को प्यार देना, अतिथि का सत्कार करना, बराबरी के लोगों के साथ मित्रता, स्त्री का सम्मान करना, कुटुंब के हित में ही अपना हित देखना, अपनों के लिये किये त्याग के आनंद की अनूभूति, घर के नौकर-चाकर, भिखारी, मधुकरी, अतिथि, याचक, भिक्षा माँगनेवाले, पशु, पक्षी, पौधे आदि कुटुंब के घटक ही हैं ऐसा उन सब से व्यवहार करना आदि बातें बच्चे कुटुंब में बढते बढते अपने आप सीख जाते थे ।   
 
# बडों का आदर करना, छोटों को प्यार देना, अतिथि का सत्कार करना, बराबरी के लोगों के साथ मित्रता, स्त्री का सम्मान करना, कुटुंब के हित में ही अपना हित देखना, अपनों के लिये किये त्याग के आनंद की अनूभूति, घर के नौकर-चाकर, भिखारी, मधुकरी, अतिथि, याचक, भिक्षा माँगनेवाले, पशु, पक्षी, पौधे आदि कुटुंब के घटक ही हैं ऐसा उन सब से व्यवहार करना आदि बातें बच्चे कुटुंब में बढते बढते अपने आप सीख जाते थे ।   
 
# मृत्यू का डर बताकर बीमे के दलाल कहते हैं की ‘बीमा(इंश्युअरन्स्) का कोई विकल्प नहीं है’। किन्तु बडे कुटुंब के किसी भी घटक को आयुर्बीमा की कोई आवश्यकता नहीं होती। आपात स्थिति में पूरा परिवार उस घटक का केवल आर्थिक ही नही तो भावनात्मक बोझ और आजीवन रक्षण का बोझ भी सहज ही उठा लेता है । सीमित आर्थिक रक्षण को छोडकर भावनात्मक, शारीरिक, सामाजिक आदि हर प्रकार की सुरक्षा के लिये आयुर्बीमा में कोई विकल्प नहीं है ।   
 
# मृत्यू का डर बताकर बीमे के दलाल कहते हैं की ‘बीमा(इंश्युअरन्स्) का कोई विकल्प नहीं है’। किन्तु बडे कुटुंब के किसी भी घटक को आयुर्बीमा की कोई आवश्यकता नहीं होती। आपात स्थिति में पूरा परिवार उस घटक का केवल आर्थिक ही नही तो भावनात्मक बोझ और आजीवन रक्षण का बोझ भी सहज ही उठा लेता है । सीमित आर्थिक रक्षण को छोडकर भावनात्मक, शारीरिक, सामाजिक आदि हर प्रकार की सुरक्षा के लिये आयुर्बीमा में कोई विकल्प नहीं है ।   
# अनाथालय, विधवाश्रम, वृध्दाश्रम, अपंगाश्रम, बडे अस्पताल आदि की आवश्यकता वास्तव में समाज जीवन में आई विकृतियों के कारण है। इन सब समस्याओं की जड तो अधार्मिक (अभारतीय) जीवनशैली में है । टूटते संयुक्त कुटुंबों में है ।   
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# अनाथालय, विधवाश्रम, वृध्दाश्रम, अपंगाश्रम, बडे अस्पताल आदि की आवश्यकता वास्तव में समाज जीवन में आई विकृतियों के कारण है। इन सब समस्याओं की जड तो अधार्मिक (अधार्मिक) जीवनशैली में है । टूटते संयुक्त कुटुंबों में है ।   
 
# आर्थिक दृष्टि से देखें तो विभक्त कुटुंब को उत्पादक अधिक आसानी से लूट सकते हैं। विज्ञापनबाजी का प्रभाव जितना विभक्त कुटुंबपर होता है संयुक्त कुटुंब पर नहीं होता है ।   
 
# आर्थिक दृष्टि से देखें तो विभक्त कुटुंब को उत्पादक अधिक आसानी से लूट सकते हैं। विज्ञापनबाजी का प्रभाव जितना विभक्त कुटुंबपर होता है संयुक्त कुटुंब पर नहीं होता है ।   
 
# एकत्रित कुटुंब एक शक्ति केंद्र होता है । अपने हर सदस्य को शक्ति और आत्मविश्वास देता है । विभक्त परिवार से एकत्रित परिवार के सदस्य का आत्मविश्वास बहुत अधिक होता है । पूरे परिवार की शक्ति मेरे पीछे खडी है ऐसी भावना के कारण एकत्रित परिवार के सदस्य को यह आत्मविश्वास प्राप्त होता है । इस संदर्भ में मजेदार और मार्मिक ऐसी दो पंक्तियाँ हिंदीभाषी प्रदेश में सुनने में आती हैं ।   
 
# एकत्रित कुटुंब एक शक्ति केंद्र होता है । अपने हर सदस्य को शक्ति और आत्मविश्वास देता है । विभक्त परिवार से एकत्रित परिवार के सदस्य का आत्मविश्वास बहुत अधिक होता है । पूरे परिवार की शक्ति मेरे पीछे खडी है ऐसी भावना के कारण एकत्रित परिवार के सदस्य को यह आत्मविश्वास प्राप्त होता है । इस संदर्भ में मजेदार और मार्मिक ऐसी दो पंक्तियाँ हिंदीभाषी प्रदेश में सुनने में आती हैं ।   
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== वसुधैव कुटुंबकम् ==
 
== वसुधैव कुटुंबकम् ==
 
<blockquote>अयं निज: परोवेत्ति गणनां लघुचेतसाम्{{Citation needed}} </blockquote><blockquote>उदार चरितानां तु वसुधैव कुटु्म्बकम्</blockquote> भावार्थ : यह मेरा यह पराया यह तो संकुचित मन और भावना के लक्षण हैं । जिन के हृदय बडे होते हैं, मन विशाल होते हैं उन के लिये तो सारा विश्व ही एक कुटुंब होता है। ऐसा विशाल मन और हृदय रखनेवाला मानव समाज बनाने की आकांक्षा और प्रयास हमारे पूर्वजों ने किये । वास्तव में एकत्रित कुटुंब जिस भावना और व्यवस्थाओं के आधारपर सुव्यवस्थित ढँग से चलता है उसी प्रकार पूरा विश्व भी चल सकता है। यत् पिंडे तत् ब्रह्मांडे। इस दृष्टि से दस दस हजार से अधिक संख्या की आबादी वाले गुरुकुल विस्तारित कुटुंब ही हुआ करते थे। इसीलिये वे कुल कहलाए जाते थे। इसी तरह ग्राम भी ग्रामकुल हुआ करते थे। गुरुकुल, ग्रामकुल की तरह ही राष्ट्र(कुल) में भी यही परिवार भावना ही परस्पर संबंधों का आधार हुआ करती थी।
 
<blockquote>अयं निज: परोवेत्ति गणनां लघुचेतसाम्{{Citation needed}} </blockquote><blockquote>उदार चरितानां तु वसुधैव कुटु्म्बकम्</blockquote> भावार्थ : यह मेरा यह पराया यह तो संकुचित मन और भावना के लक्षण हैं । जिन के हृदय बडे होते हैं, मन विशाल होते हैं उन के लिये तो सारा विश्व ही एक कुटुंब होता है। ऐसा विशाल मन और हृदय रखनेवाला मानव समाज बनाने की आकांक्षा और प्रयास हमारे पूर्वजों ने किये । वास्तव में एकत्रित कुटुंब जिस भावना और व्यवस्थाओं के आधारपर सुव्यवस्थित ढँग से चलता है उसी प्रकार पूरा विश्व भी चल सकता है। यत् पिंडे तत् ब्रह्मांडे। इस दृष्टि से दस दस हजार से अधिक संख्या की आबादी वाले गुरुकुल विस्तारित कुटुंब ही हुआ करते थे। इसीलिये वे कुल कहलाए जाते थे। इसी तरह ग्राम भी ग्रामकुल हुआ करते थे। गुरुकुल, ग्रामकुल की तरह ही राष्ट्र(कुल) में भी यही परिवार भावना ही परस्पर संबंधों का आधार हुआ करती थी।
यह विश्वास और ऐसा करने की सामर्थ्य हमारे पूर्वजों में थी। यह बात आज भी असंभव नहीं है। वैसी दुर्दमनीय आकांक्षा और तप-सामर्थ्य हमें जगाना होगा। वैश्वीकरण की पाश्चात्य घोषणाएँ तो बस दिखावा और छलावा मात्र हैं। जिन समाजों में पति-पत्नि एक छत के नीचे उम्र गुजार नहीं सकते उन्हे हम भारतीयों को वैश्वीकरण सिखाने का कोई अधिकार नहीं है। वसुधैव कुटुंबकम् कैसे होगा यह हमें भी अपने पूर्वजों से फिर से सीखना चाहिये और अभारतीयों को भी सिखाना चाहिये।
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यह विश्वास और ऐसा करने की सामर्थ्य हमारे पूर्वजों में थी। यह बात आज भी असंभव नहीं है। वैसी दुर्दमनीय आकांक्षा और तप-सामर्थ्य हमें जगाना होगा। वैश्वीकरण की पाश्चात्य घोषणाएँ तो बस दिखावा और छलावा मात्र हैं। जिन समाजों में पति-पत्नि एक छत के नीचे उम्र गुजार नहीं सकते उन्हे हम भारतीयों को वैश्वीकरण सिखाने का कोई अधिकार नहीं है। वसुधैव कुटुंबकम् कैसे होगा यह हमें भी अपने पूर्वजों से फिर से सीखना चाहिये और अधार्मिकों को भी सिखाना चाहिये।
    
कुटुंब भावना के विकास की महत्वपुर्ण बातें:
 
कुटुंब भावना के विकास की महत्वपुर्ण बातें:

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