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जगद्विख्यात-दार्शनिको राधाकृष्णः
(5 दिसम्बर 1888-17 अप्रैल 1975 ई०)
यो वाग्मिप्रवरोऽखिलेऽपिभुवने विख्यातकीर्तिः सुधीः,
तत्त्वज्ञानिशिरोमणिर्बुधजनैराष्ट्रौपपत्ये वृतः।
प्राचीनां सरणीं सुसंस्कृतगिरं यः श्लाघतेऽहर्निशम्,
राधाकूष्णमहोदयो विजयते देशावतंसो महान् 11641
जो उत्तम वक्ताओं में श्रेष्ठ, सारे संसार में प्रसिद्ध यशस्वी
बुद्धिमान्, तत्त्व-ज्ञानियों के सिस्मौर, बुद्धिमानों द्वारा भारत राष्ट्र के
उपपति के रूप में चुने गये, जो प्राचीन भारतीय संस्कृति और सस्कृत
भाषा की दिनरात प्रशंसा करते हैं, उन देश के महान् भूषण डॉ. राध
कृष्ण जी की सदा विजय हो।
प्रीतिर्यस्य हि भारतस्य सततं, प्राचीन सत्संस्कृतौ,
सन्देशं वितरन् सुशान्तिजनक', चास्ते य आध्यात्मिकम्।
योऽसौ दार्शनिकाग्रणीः सुविदितो मूर्धन्यभूतः सतां,
राधाकुष्णमहोदयो विजयते देशावतंसो महान् 1165
जिनका भारत की प्राचीन उत्तम संस्कृति से निरन्तर प्रेम है, जो
उत्तम शान्ति के उत्पादक आध्यात्मिक सन्देश को सदा देते रहते हैं, जो
दार्शनिकों में श्रेष्ठ, सज्जनों में सुप्रसिद्ध शिरोमणि हैं, ऐसे देश के महान्
भूषण डॉ. राधाकृष्ण जी की सदा विजय हो।
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