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नया लेख बनाया
बङ्गकेसरी श्यामाप्रसादमुखोपाध्यायः

(1901-1953 ई०)

यो निर्भयः सन्‌ विचचार लोके, राष्ट्रे परां भक्तिमिहादधानः।

सुवाग्मिनं तं स्फुटवक्तृवर्यं, श्यामाप्रसादाख्यसुवीरमीडे।।45॥।

जो राष्ट्र में उत्तम भक्ति को धारण करते हुए निर्भय होकर लोक

में विचरण करते थे ऐसे प्रभावशाली वक्ता और स्पष्ट वक्‍्ताओं में श्रेष्ठ

डॉ. श्यामाप्रसाद जी मुखेपाध्याय नामक उत्तम वीर की मैं स्तुति करता हूँ।

केन्द्रीयमन्त्रत्वमलञ्चकार, विचारभेदाद्‌ विजहौ पदं तत्‌।

आसीत्‌ सुयोग्यो नरकेसरी यः, श्यामाप्रसादाख्यसुवीरमीडे।।46॥

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जो केन्द्रीय शासन में उद्योग मन्त्री थे, किन्तु विचारभेद के

कारण जिन्होंने उस पद से त्यागपत्र दे दिया, जो सुयोग्य पुरुषसिंह थे

ऐसे डॉ. श्यामा प्रसाद जी नामक उत्तम वीर की मैं स्तुति करता हूँ।

आसीद्‌ विरोधी परितोषनीत्याः, न्यायस्य पक्षं परिपोषयन्‌

यः।

प्राचीनसत्संस्कृतिपोषक' तं, श्यामाप्रसादाख्यसुवीरमीडे।।47।।

जो मुस्लिम परितोषिणी नीति के विरोधी और न्याय का समर्थन

करने वाले थे, उन प्राचीन भारतीय श्रेष्ठ संस्कृति के पोषक डॉ.

श्यामाप्रसाद जी नामक उत्तम वीर की मैं स्तुति करता हूँ।

अकम्पयद्‌ यस्य वचो विपक्षान्‌ निर्भीकमुक्तं बहुयुक्तियुक्तम्‌।

प्रवर्तकं त॑ जनसंघकस्य श्यामाप्रसादाख्यसुवीरमीडे।।48॥।

जिनका निर्भयता पूर्वक कहा गया अनेक युक्तियों से युक्त वचन

विरोधियों को कम्पित कर देता था, उन जनसंघ के प्रवर्तक डॉ.

श्यामाप्रसाद नामक उत्तम वीर की मैं स्तुति करता हूँ।

काइ्मीरराज्यं ननु भारमाङ्ग भवेद्‌ विभक्तं नहि तत्कदाचित्‌।

बन्धे स्वदेहस्य बलिं दानं, श्यामाप्रसादाख्यसुवीरमीडे।।49॥

कश्मीर राज्य निश्चय से भारत का ही एक अङ्ग है वह कभी

भारत से पृथक्‌ न हो जाए, और न उसके टुकड़े किये जाएं, नजरबन्दी

को अवस्था में ही अपने शरीर की बलि देने वाले डॉ. श्यामाप्रसाद

नामक उत्तम वीर की मैं स्तुति करता हूँ।

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