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− | लौहपुरुषो वल्लभभाई पटेलः | + | लौहपुरुषो वल्लभभाई पटेलः<ref>महापुरुषकीर्तनम्, लेखक- विद्यावाचस्पति विद्यामार्तण्ड धर्मदेव; सम्पादक: आचार्य आनन्दप्रकाश; प्रकाशक: आर्ष-विद्या-प्रचार-न्यास, आर्ष-शोध-संस्थान, अलियाबाद, मं. शामीरेपट, जिला.- रंगारेड्डी, (आ.प्र.) -500078</ref> (31 जनवरी 1875-16 दिसम्बर 1950 ई०)<blockquote>आसीत् कुशाग्रा खलु यस्य बुद्धिः,यो राजनीतिज्ञशिरोमणिः सन्।</blockquote><blockquote>राष्ट्रस्य चक्रेऽद्भुतकार्यजातं मान्यं पटेलं तमहं नमामि॥</blockquote>जिन की बुद्धि कुशाग्र थी और राजनीतिज्ञ-शिरोमणि होकर जिन्होंने राष्ट्र के लिये अद्भुत कार्य करके दिखाये, ऐसे माननीय पटेल जी को मैं नमस्कार करता हूँ।<blockquote>राष्ट्रं विभक्तं परेदशजानां, धौरत्येन खण्डेषु परश्शतेषु।</blockquote><blockquote>दाक्ष्येण चक्रे पनुरेकरूपं, मान्यं पटेलं तमहं नमामि॥</blockquote>विदेशियों की धूर्तता से सैकड़ों टुकड़ों में विभक्त राष्ट्र को जिन्होंने अपनी कुशलता से फिर एक रूप कर दिया ऐसे माननीय पटेल जी को मैं नमस्कार करता हूँ।<blockquote>चकम्पिरे यस्य पुरो विपक्षाः, न वीरसिंहस्य पुरोऽपि तस्थुः।</blockquote><blockquote>उग्रं खलेष्वेव न जातु सत्सु, मान्यं पटेलं तमहं नमामि॥</blockquote>जिन वीरसिंह के आगे विरोधी लोग काँपते थे और उन के सामने खड़े भी न हो सकते थे, उन दुष्टों के लिये ही भयंकर न कि सज्जनों के लिए, ऐसे माननीय पटेल जी को मैं नमस्कार करता हूँ।<blockquote>आसीदुदारो न परन्तु नम्रो, योऽन्यायिनामत्र पुरो जनानाम्।</blockquote><blockquote>नृकेसरी लोहनरः प्रसिद्धो, यस्तं पटेलं विनतो नमामि॥</blockquote>जो उदार थे किन्तु जो अन्यायी मनुष्यों के आगे कभी झुकने वाले न थे, ऐसे नरकेसरी लोह पुरुष के नाम से प्रसिद्ध श्री पटेल जी को मैं नमस्कार करता हूँ।<blockquote>गान्धी महात्मानमतीव मान्यं, मेने परं यो न जहौ विवेकम्।</blockquote><blockquote>राष्ट्रस्य दृष्ट्या हितमाचरन्तं, मान्यं पटेल तमहं नमामि॥</blockquote>जो महात्मा गान्धी जी को अत्यन्त माननीय समझते थे किन्तु जो अपने विवेक का कभी परित्याग न करते थे राष्ट्र की दृष्टि से हितकारक कायो को सदा करने वाले उन माननीय पटेल जी को मैं नमस्कार करता हूँ।<blockquote>आसीद् विशालं हृदयं यदीयं, सहानुभूत्या परिपूरितं यत्।</blockquote><blockquote>श्रद्धास्पद तं बहुसंख्यकानां, नृणां पटेलं विनतो नमामि॥</blockquote>जिन का हदय बड़ा विशाल तथा सहानुभूति से भरा हुआ था, लोगों की बहुत बड़ी संख्या के श्रद्धापात्र उन मान्य पटेल जी को मैं नमस्कार करता हूँ।<blockquote>दृष्ट्वा निजामं मदमत्तमित्थं, स्वतन्त्रसाम्राज्यमभीप्समानम्।</blockquote><blockquote>दिनत्रये सैनिकशक्तियोगात्, संत्रासयन्तं नृमणिं नमामि॥</blockquote>हैदराबाद निजाम को मदमत्त और स्वतन्त्र साम्राज्य की इच्छा करने वाला देख कर जिन्होंने सैनिक शक्ति के प्रयोग द्वारा तीन दिनों में सन्त्रस्त कर दिया, ऐसे मनुष्यों में मणि के समान माननीय पटेल जी को मैं नमस्कार करता हूँ।<blockquote>शूरं क्रियास्वेव न वाकप्रसारे, काश्मीरराज्ये निजसैन्यवर्गम्।</blockquote><blockquote>विमानमार्गेण विना विलम्बं, संग्रेषयन्तं नृमणिं नमामि॥</blockquote>क्रिया में (न कि बातें बनाने में) शूर, कश्मीर राज्य में विमान द्वारा विना विलम्ब के अतिशीघ्र अपनी सेना को भिजवाने वाले मनुष्यों में मणि के समान श्रेष्ठ पटेल जी को में नमस्कार करता हूँ।<blockquote>चकार कार्य न भृशं जगाद, जगाद यत् तद्धयविधृष्यमासीत्।</blockquote><blockquote>देवे परां भक्तिमिहादधानं, मान्यं पटेलं विनतो नमामि॥</blockquote>जो खूब काम करते थे किन्तु अधिक बोलते न थे, पर जो कुछ बोलते थे उसे कोई दबा न सकता था, ऐसे परमेश्वर में उत्तम भक्ति को धारण करने वाले माननीय पटेल जी को मैं विनय से नमस्कार करता हूँ।<blockquote>चाणक्यतुल्यो नयशास्त्रदक्षो, यो मंस्यते सर्वजनैर्जगत्याम्।</blockquote><blockquote>राष्ट्रस्य निर्मातूवरेषु गण्यं, मान्यं पटेलं विनतो नमामि॥</blockquote>जिन को संसार में सब मनुष्य चाणक्य के समान नीति शास्त्र में निपुण मानेंगे, भारतराष्ट्र का निर्माण करने वालों में श्रेष्ठ गिने जाने वाले उन माननीय पटेल जी को मैं नमस्कार करता हूँ। |
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− | (31 जनवरी 1875-16 दिसम्बर 1950 ई०) | |
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− | आसीत् कुशाग्रा खलु यस्य बुद्धिः,यो राजनीतिज्ञशिरोमणिः सन्। | |
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− | राष्ट्रस्य चक्रेऽद्भुतकार्यजातं मान्यं पटेलं तमहं नमामि।35॥। | |
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− | जिन की बुद्धि कुशाग्र थी और राजनीतिज्ञ-शिरोमणि होकर जिन्होंने | |
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− | राष्ट्र के लिये अद्भुत कार्य करके दिखाये, ऐसे माननीय पटेल जी को मैं | |
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− | नमस्कार करता हूँ। | |
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− | राष्ट्रं विभक्तं परेदशजानां, धौरत्येन खण्डेषु परश्शतेषु। | |
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− | दाक्ष्येण चक्रे पनुरेकरूपं, मान्यं पटेलं तमहं नमामि।।३6॥ | |
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− | विदेशियों की धूर्तता से सैकड़ों टुकड़ों में विभक्त राष्ट्र को जिन्होंने | |
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− | अपनी कुशलता से फिर एक रूप कर दिया ऐसे माननीय पटेल जी को | |
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− | मैं नमस्कार करता हूँ। | |
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− | चकम्पिरे यस्य पुरो विपक्षाः, न वीरसिंहस्य पुरोऽपि तस्थुः। | |
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− | उग्रं खलेष्वेव न जातु सत्सु, मान्यं पटेलं तमहं नमामि।३7॥ | |
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− | जिन वीरसिंह के आगे विरोधी लोग काँपते थे और उन के सामने | |
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− | खड़े भी न हो सकते थे, उन दुष्टों के लिये ही भयंकर न कि सज्जनों के | |
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− | लिए, ऐसे माननीय पटेल जी को मैं नमस्कार करता हूँ। | |
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− | आसीदुदारो न परन्तु नम्रो, योऽन्यायिनामत्र पुरो जनानाम्। | |
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− | नृकेसरी लोहनरः प्रसिद्धो, यस्तं पटेलं विनतो नमामि।।38॥ | |
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− | जो उदार थे किन्तु जो अन्यायी मनुष्यों के आगे कभी झुकने | |
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− | वाले न थे, ऐसे नरकेसरी लोह पुरुष के नाम से प्रसिद्ध श्री पटेल जी | |
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− | को मैं नमस्कार करता हूँ। | |
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− | गान्धी महात्मानमतीव मान्यं, मेने परं यो न जहौ विवेकम्। | |
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− | राष्ट्रस्य दृष्ट्या हितमाचरन्तं, मान्यं पटेल तमहं नमामि।।३9॥। | |
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− | जो महात्मा गान्धी जी को अत्यन्त माननीय समझते थे किन्तु जो | |
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− | अपने विवेक का कभौ परित्याग न करते थे राष्ट्र की दृष्टि से हितकारक | |
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− | कायो को सदा करने वाले उन माननीय पटेल जी को मैं नमस्कार करता | |
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− | आसीद् विशालं हृदयं यदीयं, सहानुभूत्या परिपूरितं यत्। | |
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− | श्रद्धास्पद तं बहुसंख्यकानां, नृणां पटेलं विनतो नमामि।।40॥ | |
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− | जिन का हदय बड़ा विशाल तथा सहानुभूति से भरा हुआ था, | |
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− | लोगों की बहुत बड़ी संख्या के श्रद्धापात्र उन मान्य परेल जी को मैं | |
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− | नमस्कार करता हूँ। | |
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− | दृष्ट्वा निजामं मदमत्तमित्थं, स्वतन्त्रसाम्राज्यमभीप्समानम्। | |
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− | दिनत्रये सैनिकशक्तियोगात्, संत्रासयन्तं नृमणिं नमामि।47॥। | |
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− | हैदराबाद निजाम को मदमत्त और स्वतन्त्र साम्राज्य की इच्छा करने | |
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− | वाला देख कर जिन्होंने सैनिक शक्ति के प्रयोग द्वारा तीन दिनों में सन्त्रस्त | |
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− | कर दिया, ऐसे मनुष्यों में मणि के समान माननीय पटेल जी को मैं | |
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− | नमस्कार करता हूँ। | |
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− | शूरं क्रियास्वेव न वाकप्रसारे, काश्मीरराज्ये निजसैन्यवर्गम्। | |
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− | विमानमार्गेण विना विलम्बं, संग्रेषयन्तं नृमणिं नमामि।।42॥ | |
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− | क्रिया में (न कि बातें बनाने में) शूर, कश्मीर राज्य में विमान | |
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− | द्वारा विना विलम्ब के अतिशीघ्र अपनी सेना को भिजवाने वाले मनुष्यों | |
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− | में मणि के समान श्रेष्ठ पटेल जी को में नमस्कार करता हूँ। | |
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− | चकार कार्य न भृशं जगाद, जगाद यत् तद्धयविधृष्यमासीत्। | |
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− | देवे परां भक्तिमिहादधानं, मान्यं पटेलं विनतो नमामि।।4३।। | |
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− | जो खूब काम करते थे किन्तु अधिक बोलते न थे, पर जो कुछ | |
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− | बोलते थे उसे कोई दबा न सकता था, ऐसे परमेश्वर में उत्तम भक्ति को | |
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− | धारण करने वाले माननीय पटेल जी को मैं विनय से नमस्कार करता हूँ। | |
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− | चाणक्यतुल्यो नयशास्त्रदक्षो, यो मंस्यते सर्वजनैर्जगत्याम्। | |
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− | राष्ट्रस्य निर्मातूवरेषु गण्यं, मान्यं पटेलं विनतो नमामि।।44। | |
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− | जिन को संसार में सब मनुष्य चाणक्य के समान नीति शास्त्र में | |
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− | निपुण मानेंगे, भारतराष्ट्र का निर्माण करने वालों में श्रेष्ठ गिने जाने वाले | |
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− | उन माननीय पटेल जी को मैं नमस्कार करता हूँ। | |
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| ==References== | | ==References== |