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− | गुरुगोविन्दसिंहः (1665-1707 ई०) | + | गुरुगोविन्दसिंहः<ref>महापुरुषकीर्तनम्, लेखक- विद्यावाचस्पति विद्यामार्तण्ड धर्मदेव; सम्पादक: आचार्य आनन्दप्रकाश; प्रकाशक: आर्ष-विद्या-प्रचार-न्यास, आर्ष-शोध-संस्थान, अलियाबाद, मं. शामीरेपट, जिला.- रंगारेड्डी, (आ.प्र.) -500078</ref> (1665-1707 ई०)<blockquote>गुरोस्तेगस्यासीद् भुवि बहुमतो वीरतनयो, धृतोऽसिर्येनाऽऽसीत् सकलखलपापं शमयितुम् ।</blockquote><blockquote>कवियोंगी भक्तो खिलजगति विख्यातमहिमा, गुरुं गोविन्दं तं प्रमुदितमनस्का इह नुमः॥</blockquote>जो गुरु तेगबहादुर जी के उत्तम वीर पुत्र थे, जिन्होंने सब दुष्टों के पाप (अन्याय) को शान्त करने के लिए तलवार को धारण किया था ऐसे कवि,योगी, भक्त सारे जगत् में प्रसिद्ध महिमा वाले गुरु गोविन्दसिंह जी को हम प्रसन्न चित्त होकर नमस्कार करते हैं।<blockquote>जनान् सामान्यान् यो जगति विदधे सिंहसदृशान्, खलानां नाशार्थं सततमुपयुक्तान् सुकृतिनः।</blockquote><blockquote>शिशिक्ष सद्भक्तिं सकलजगतोप्यादिमगुरौ, गुरुं गोविन्दं तं प्रमुदितमनस्का इह नुमः॥</blockquote>सामान्य लोगों को भी संसार में जिन्होंने सिंह के समान, दुष्टों के नाश के लिए निरन्तर उपयोगी और पुण्यात्मा बना दिया, उन्हें सारे संसार के आदि गुरु परमेश्वर में उत्तम भक्ति की शिक्षा दी, ऐसे गुरु गोविन्दसिंह जी को हम प्रसन्न-चित्त होकर नमस्कार करते हैं।<blockquote>यदीयैः सत्तुत्रैरपि निजबलिर्धर्ममतिभिः, वितीर्णः सामोदं न तु सुकूतमार्गाद् विचलितम्।</blockquote><blockquote>सुधैयें सच्छौयें प्रथितयशसं सर्वविषये, गुरुं गोविन्दं त॑ प्रमुदितमनस्का इह नुमः ॥ </blockquote>जिन के धर्मात्मा सुपुत्रों ने भी प्रसन्नता पूर्वक अपनी बलि दे दी, किन्तु पुण्य के मार्ग से जो विचलित नहीं हुए, उत्तम धैर्य, शूरवीरता और राजनीतिञ्ञता आदि सब विषयों में प्रसिद्ध यश वाले गुरुगोविन्दसिंह जी को प्रसन्नचित्त होकर नमस्कार करते हैं। |
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− | गुरोस्तेगस्यासीद् भुवि बहुमतो वीरतनयो, | |
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− | धृतोऽसिर्येनाऽऽसीत् सकलखलपापं शमयितुम् । | |
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− | कवियोंगी भक्तो खिलजगति विख्यातमहिमा, | |
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− | गुरुं गोविन्दं तं प्रमुदितमनस्का इह नुमः।।3३4॥। | |
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− | जो गुरु तेगबहादुर जी के उत्तम वीर पुत्र थे, जिन्होंने सब दुष्टों | |
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− | के पाप (अन्याय) को शान्त करने के लिए तलवार को धारण किया था | |
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− | ऐसे कवि,योगी, भक्त सारे जगत् में प्रसिद्ध महिमा वाले गुरु गोविन्दसिंह | |
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− | जी को हम प्रसन्न चित्त होकर नमस्कार करते हैं। | |
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− | जनान् सामान्यान् यो जगति विदधे सिंहसदृशान्, | |
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− | खलानां नाशार्थं सततमुपयुक्तान् सुकृतिनः। | |
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− | शिशिक्ष सद्भक्तिं सकलजगतोप्यादिमगुरौ, | |
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− | गुरुं गोविन्दं तं प्रमुदितमनस्का इह नुमः।।35॥॥। | |
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− | सामान्य लोगों को भी संसार में जिन्होंने सिंह के समान, दुष्टों | |
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− | के नाश के लिए निरन्तर उपयोगी और पुण्यात्मा बना दिया, उन्हें सारे | |
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− | संसार के आदि गुरु परमेश्वर में उत्तम भक्ति की शिक्षा दी, ऐसे गुरु | |
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− | गोविन्दसिंह जी को हम प्रसन्न-चित्त होकर नमस्कार करते हैं। | |
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− | यदीयैः सत्तुत्रैरपि निजबलिर्धर्ममतिभिः, | |
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− | वितीर्णः सामोदं न तु सुकूतमार्गाद् विचलितम्। | |
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− | सुधैयें सच्छौयें प्रथितयशसं सर्वविषये, | |
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− | गुरुं गोविन्दं त॑ प्रमुदितमनस्का इह नुमः 113611 | |
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− | जिन के धर्मात्मा सुपुत्रों ने भी प्रसन्नता पूर्वक अपनी बलि दे दी, | |
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− | किन्तु पुण्य के मार्ग से जो विचलित नहीं हुए, उत्तम धैर्य, शूरवीरता और | |
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− | राजनीतिञ्ञता आदि सब विषयों में प्रसिद्ध यश वाले गुरुगोविन्दसिंह जी | |
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− | को प्रसन्नचित्त होकर नमस्कार करते हैं। | |
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| ==References== | | ==References== |