1,771 bytes added
, 02:29, 6 June 2020
धर्मवीरो गुरुस्तेगबहादुरः
(१६१९-१६७५ ई०)
'य आर्यधर्मस्य हि रक्षणार्थ, स्वीयानसूनुज्झितवान् समोदम्।
नाङ्गीचकारान्यमतप्रवेशं, नमामि वीरं गुरुतेगसंज्ञम्।32॥
जिन्होंने आर्यधर्म की रक्षा के लिए प्रसन्नता के साथ अपने प्राणों
की आहुति दे दी, किन्तु अपना धर्म छोड़कर अन्य मत में प्रवेश करना
स्वीकार नहीं किया, उन वीर तेगबहादुर जी को मैं नमस्कार करता हूँ।
इत्थं हुतात्मा ह्यमरो बभूव, ख्यातं तथाद्यापि हि शीशगञ्जम् ।
यत्राहुतिस्तेन तनोः प्रदत्ता, नमामि वीरं गुरुतेगसंज्ञम् ।।33॥
इस प्रकार ये हुतात्मा (शहीद)अमर हो गए जिन के नाम से आज भी वह
शीशगंज नामक गुरुद्वारा देहली में बना हुआ है जहाँ उन्होंने अपने शरीर
की बलि दी थी। ऐसे वीर गुरु तेगबहादुर जी को मैं नमस्कार करता हुँ ।