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(१५ अगस्त १८७२-५ दिस. १९५० ई०)
तपसा सुविवेकपूर्वक, स्थितबुद्धेः पदमास्थितं परम्।
अरविन्दमुनेर्महामतेः, स्मरणं स्फूर्तिविधायक' न किम्?।68॥।
तप से उत्तम विवेक पूर्वक स्थितप्रज्ञ के परमपद पर स्थित,
महाबुद्धिमान् श्री अरविन्द मुनि का स्मरण क्या स्फूर्तिदायक नहीं?
जगतीह समन्वयात्मक, किल योग॑ प्रदिशन्तमुत्तमम्।
अरविन्दमुनेर्महामतेः, स्मरणं स्मूर्तिविधायकं न किम्?।169॥
जगत् में समन्वयात्मक उत्तम योग को निश्चयपूर्वक प्रदर्शित करने
वाले महामति श्री अरविन्द मुनि का स्मरण क्या स्फूर्तिदायक नहीं हैं?
सकलस्य हिताय सन्ततं, जगतो योगपथोपदेशिनः।
अरविन्दमुनेर्महामतेः, स्मरणं स्मूर्तिविधायकं न किम्?।।70॥
समस्त संसार के हित के लिये योगमार्ग का निरन्तर उपदेश करने
वाले महामुनि श्री अरविन्द मुनि का स्मरण क्या स्फूर्तिदायक नहीं है?
जगतो गुरु्भारतं भवेदिति, भावं निदधानमद्भुतम्।
अरविन्दमुनेर्महामतेः, स्मरणं स्मूर्तिविधायकं न किम्?।।71॥।
भारत जगत् का गुरु बने इस अद्भुत भाव को रखने वाले महामति
श्री अरविन्द मुनि का स्मरण क्या स्फूर्तिदायक नहीं है?
जननीं सुखशान्तिदायिनीं, हृदयेऽर्चन्तमहर्निशं मुदा।
प्रभुराज्यविवर्धने रतम्, अरविन्दं सुमतिं नमाम्यहम्।।72॥
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सुख शान्ति देने वाली जगन्माता की दिन-रात प्रसन्नतापूर्वक हृदय
में पूजा करने वाले और भगवान् के राज्य को ही बढ़ाने (आस्तिकता का
प्रसार करने) में तत्पर, उत्तम बुद्धि सम्पन्न, श्री अरविन्द जी को मैं
नमस्कार करता हूँ।
अदितिः सकलैर्जनैः सदा, समुपास्या भ्रुवशान्तिलब्धये।
इति नास्तिकलोकमादिशन्, अरविन्दः सुमतिः सदा जयेत्।।73॥
स्थिर शान्ति की प्राप्ति के लिये सब मनुष्यों को अविनाशिनी
जगन्माता की सदा उपासना करनी चाहिये। इस प्रकार नास्तिकों को भी
आदेश देने वाले उत्तम बुद्धिमान् श्री अरविन्द जी की जय हो।
समतां सकलार्पणं दिशन्, भ्रुवसिद्धेः परमं हि साधनम्।
अरविन्दमिव स्थितं पयस्यरविन्दं सुमतिं नमाम्यहम् 11741
समता और भगवान् के प्रति सर्वार्पणा को स्थिरसिद्धि का परम
साधन बतलाने वाले, जल में कमल के समान लोक में अनासक्त भाव से
स्थित, उत्तम बुद्धिमान् श्री अरविन्द जी को मैं नमस्कार करता हूँ।