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| {{One source|date=May 2020 }} | | {{One source|date=May 2020 }} |
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− | यो योगिराजः किल कर्मयोगमार्गस्य नेतृत्वमलंचकार। | + | यो योगिराजः किल कर्मयोगमार्गस्य नेतृत्वमलंचकार<ref>महापुरुषकीर्तनम्, लेखक- विद्यावाचस्पति विद्यामार्तण्ड धर्मदेव; सम्पादक: आचार्य आनन्दप्रकाश; प्रकाशक: आर्ष-विद्या-प्रचार-न्यास, आर्ष-शोध-संस्थान, अलियाबाद, मं. शामीरेपट, जिला.- रंगारेड्डी, (आ.प्र.) -500078</ref>। |
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− | सद्धर्मसरक्षणदत्तचित्तः कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः? 36॥ | + | सद्धर्मसरक्षणदत्तचित्तः कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः? |
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| जिस योगिराज श्री कृष्ण ने कर्मयोग के मार्ग का नेतृत्व किया, | | जिस योगिराज श्री कृष्ण ने कर्मयोग के मार्ग का नेतृत्व किया, |
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| ज्ञानी सुवीरः शुभगायको यो गुणाकरः शाश्वतधर्मगोप्ता। | | ज्ञानी सुवीरः शुभगायको यो गुणाकरः शाश्वतधर्मगोप्ता। |
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− | तथाप्यहंकारलवेन हीनः कुष्णो महात्मा स न केन वन्ह्यः?37॥। | + | तथाप्यहंकारलवेन हीनः कुष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः? |
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| जो ज्ञानी, वीर, गायक, गुण-भण्डार और नित्य धर्म-रक्षक थे, फिर | | जो ज्ञानी, वीर, गायक, गुण-भण्डार और नित्य धर्म-रक्षक थे, फिर |
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| परोपकारर्पितजीवतो यः क'सादिदुष्टारिगणस्य हन्ता। | | परोपकारर्पितजीवतो यः क'सादिदुष्टारिगणस्य हन्ता। |
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− | गीतामृतं पाययिता प्रशस्तं कृष्णो महात्मा स न केन वन््यः?38॥ | + | गीतामृतं पाययिता प्रशस्तं कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः? |
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| जिस ने परोपकार में जीवन लगाया, कादि दुष्ट शत्रुओं का हनन | | जिस ने परोपकार में जीवन लगाया, कादि दुष्ट शत्रुओं का हनन |
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| <nowiki>*</nowiki>सन्ध्याग्निहोत्रादिककृत्यजातं सन्निष्ठया यो विदधे ऽ प्रमत्तः। | | <nowiki>*</nowiki>सन्ध्याग्निहोत्रादिककृत्यजातं सन्निष्ठया यो विदधे ऽ प्रमत्तः। |
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− | देवेशभक्त्याधिगतप्रसादः कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?39॥ | + | देवेशभक्त्याधिगतप्रसादः कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः? |
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| जो सन्ध्या अग्निहोत्रादि नित्य कमो को बिना प्रमाद के करते थे, | | जो सन्ध्या अग्निहोत्रादि नित्य कमो को बिना प्रमाद के करते थे, |
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| <nowiki>*</nowiki>आत्मा ऽविनाशी ह्यजरोऽमरो ऽयं मृत्युस्तु वासः परिवर्त एव। | | <nowiki>*</nowiki>आत्मा ऽविनाशी ह्यजरोऽमरो ऽयं मृत्युस्तु वासः परिवर्त एव। |
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− | इत्यादितत्त्वं प्रदिशन् यर्थार्थं कृष्णो महात्मा स न केन वन्ह्यः?41॥ | + | इत्यादितत्त्वं प्रदिशन् यर्थार्थं कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः? |
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| यह आत्मा अजर अमर है, मृत्यु तो चोला बदलना है। इस प्रकार | | यह आत्मा अजर अमर है, मृत्यु तो चोला बदलना है। इस प्रकार |
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| <nowiki>*</nowiki>भूत्वेह लोके गुणसागरोऽपि यः पादपूजां विदधे द्विजानाम्। | | <nowiki>*</nowiki>भूत्वेह लोके गुणसागरोऽपि यः पादपूजां विदधे द्विजानाम्। |
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− | आसीद् सुहृद् यो धनवर्जितानां कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्य?41॥ | + | आसीद् सुहृद् यो धनवर्जितानां कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः? |
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| जिन्होंने गुणो का समुद्र होते हुए भी राजसूय यज्ञ में ब्राह्मणों के पैर | | जिन्होंने गुणो का समुद्र होते हुए भी राजसूय यज्ञ में ब्राह्मणों के पैर |
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| <nowiki>*</nowiki> विप्रे सुशीले विनयोपपन्ने तथा श्वपाके शुनि गोगजेषु। | | <nowiki>*</nowiki> विप्रे सुशीले विनयोपपन्ने तथा श्वपाके शुनि गोगजेषु। |
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− | समानदृष्टिं य इहादिदेश कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?42॥ | + | समानदृष्टिं य इहादिदेश कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः? |
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| जिन्होंने विनीत, सुशील विप्र, चाण्डाल, कुत्ते तथा हाथी में समदृष्टि | | जिन्होंने विनीत, सुशील विप्र, चाण्डाल, कुत्ते तथा हाथी में समदृष्टि |
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| आसीत् क्षमावान् धृतिमान् नयज्ञो यो राजनीतौ कुशलोऽद्वितीयः | | आसीत् क्षमावान् धृतिमान् नयज्ञो यो राजनीतौ कुशलोऽद्वितीयः |
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− | ताता सतां पापिदलस्य छेत्ता कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?43॥ | + | ताता सतां पापिदलस्य छेत्ता कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः? |
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| जो क्षमाशील,धैर्यवान्,नीतिज्ञ, राजनीति में अद्वितीय कुशल थे, जो | | जो क्षमाशील,धैर्यवान्,नीतिज्ञ, राजनीति में अद्वितीय कुशल थे, जो |
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| <nowiki>*</nowiki>क्लैब्यं प्रपन्नं युधि पार्थशूरं विसृज्य चापं विकलं स्थितं तम्। | | <nowiki>*</nowiki>क्लैब्यं प्रपन्नं युधि पार्थशूरं विसृज्य चापं विकलं स्थितं तम्। |
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− | विबोध्य धर्म विदधे सुवीरं कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?44॥ | + | विबोध्य धर्म विदधे सुवीरं कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः? |
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| युद्ध के प्रारम्भ में नपुंसक समान बने, धनुष छोड़े, व्याकुल हुए | | युद्ध के प्रारम्भ में नपुंसक समान बने, धनुष छोड़े, व्याकुल हुए |
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| योगस्य यज्ञस्य सुखस्य शान्तेस्त्यागस्य तत्त्वं सुरसम्पदश्च। | | योगस्य यज्ञस्य सुखस्य शान्तेस्त्यागस्य तत्त्वं सुरसम्पदश्च। |
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− | ज्ञानस्य भक्तेस्तपसो दिशन् नः कुष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?45॥ | + | ज्ञानस्य भक्तेस्तपसो दिशन् नः कुष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः? |
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| योग.यज्ञ, सुख, शान्ति, त्याग, दैवी सम्पत्ति, ज्ञान, भक्ति,तप के | | योग.यज्ञ, सुख, शान्ति, त्याग, दैवी सम्पत्ति, ज्ञान, भक्ति,तप के |
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| जातो ऽमरो दिव्यगुणैः स्वकीयैर्मतो जनैयो भगवानिवेह। | | जातो ऽमरो दिव्यगुणैः स्वकीयैर्मतो जनैयो भगवानिवेह। |
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− | यज्ञान्वितं जीवितमादधानः कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?46॥ | + | यज्ञान्वितं जीवितमादधानः कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः? |
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| जो अपने दिव्य गुणों से अमर हो गये, जिन्हें लोगों ने भगवान के | | जो अपने दिव्य गुणों से अमर हो गये, जिन्हें लोगों ने भगवान के |
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| यदीयशिक्षा प्रददाति मोदं स्फूर्ति नवोत्साहबलं सुधैर्यम्। | | यदीयशिक्षा प्रददाति मोदं स्फूर्ति नवोत्साहबलं सुधैर्यम्। |
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− | शरद्धान्वितानां मनसां स सम्राट् कृष्णो महात्मा न हि केन वन्द्यः?47॥ | + | शरद्धान्वितानां मनसां स सम्राट् कृष्णो महात्मा न हि केन वन्द्यः? |
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| जिस की शिक्षा प्रसन्नता, नया उत्साह, जोश और धैर्य देती है, | | जिस की शिक्षा प्रसन्नता, नया उत्साह, जोश और धैर्य देती है, |
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| यो घातकायाशिष एव दत्वा चकार शान्त्या परलोकयात्राम्। | | यो घातकायाशिष एव दत्वा चकार शान्त्या परलोकयात्राम्। |
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− | बभूव मुक्तः प्रभुतत्त्ववेत्ता कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?48॥ | + | बभूव मुक्तः प्रभुतत्त्ववेत्ता कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः? |
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| जिन्होंने मारने वाले को भी आशीर्वाद देकर शान्ति से परलोक यात्रा | | जिन्होंने मारने वाले को भी आशीर्वाद देकर शान्ति से परलोक यात्रा |
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| संस्थाप्य साम्राज्यमधर्मनाशं कर्त्तु तथा धर्मविवर्धनाय। | | संस्थाप्य साम्राज्यमधर्मनाशं कर्त्तु तथा धर्मविवर्धनाय। |
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− | येन प्रयत्नो विहिनो ऽभिनन्द्यः कुष्णो महात्मा स न केन वन्ह्यः?49॥ | + | येन प्रयत्नो विहिनो ऽभिनन्द्यः कुष्णो महात्मा स न केन वन्ह्यः? |
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| जिन्होंने आर्य समाज की स्थापना कर के धर्म की वृद्धि और | | जिन्होंने आर्य समाज की स्थापना कर के धर्म की वृद्धि और |
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| यो मोहनः स्वीयगुणैः प्रशस्तैः स्थितो जनानां हृदयेषु नित्यम्। | | यो मोहनः स्वीयगुणैः प्रशस्तैः स्थितो जनानां हृदयेषु नित्यम्। |
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− | निष्कामकर्माण्यकरोत्सदा यः कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?50॥। | + | निष्कामकर्माण्यकरोत्सदा यः कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः? |
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| जो मोहन अपने श्रेष्ठ गुणों के कारण लोगों के हृदय में घर किये | | जो मोहन अपने श्रेष्ठ गुणों के कारण लोगों के हृदय में घर किये |