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== मानव जीवन का लक्ष्य ==
 
== मानव जीवन का लक्ष्य ==
अधार्मिक (अभारतीय) और धार्मिक (भारतीय) विचार प्रवाह में सबसे पहला अंतर है मानव जीवन के लक्ष्य का । विश्व में यहूदी, ईसाई, मुसलमान समाजों की जनसंख्या विशाल और लक्षणीय है। इन सभी का लक्ष्य हेवन या जन्नत माना गया है। हेवन या जन्नत यह संकल्पनाएं मोक्ष से एकदम भिन्न हैं। मोक्ष का अर्थ है परमात्मपद की प्राप्ति । अर्थात् सुख और दुख की सीमा से परे चले जाना । सर्वं खल्विदं ब्रह्मं अर्थात् चराचर में एकत्व की या एक ही आत्मतत्व की अनूभूति करना । कई लोग ईसाई सॅल्व्हेशन या इस्लामी कयामत (आखिरत) की तुलना मोक्ष से करते हैं। किन्तु यह गलत है। यह दोनों पूर्णत: भिन्न बातें हैं।                                                                                             
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अधार्मिक (अभारतीय) और धार्मिक (भारतीय) विचार प्रवाह में सबसे पहला अंतर है मानव जीवन के लक्ष्य का । विश्व में यहूदी, ईसाई, मुसलमान समाजों की जनसंख्या विशाल और लक्षणीय है। इन सभी का लक्ष्य हेवन या जन्नत माना गया है। हेवन या जन्नत यह संकल्पनाएं मोक्ष से एकदम भिन्न हैं। मोक्ष का अर्थ है परमात्मपद की प्राप्ति। अर्थात् सुख और दुख की सीमा से परे चले जाना । सर्वं खल्विदं ब्रह्मं अर्थात् चराचर में एकत्व की या एक ही आत्मतत्व की अनूभूति करना । कई लोग ईसाई सॅल्व्हेशन या इस्लामी कयामत (आखिरत) की तुलना मोक्ष से करते हैं। किन्तु यह गलत है। यह दोनों पूर्णत: भिन्न बातें हैं।                                                                                             
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सॅल्व्हेशन या आखिरत यह तो हेवन और जन्नत तथा हेल और दोजख की संकल्पनाओं से जुडी संकल्पनाएं ही हैं। धार्मिक (भारतीय) विचार में स्वर्ग और नरक की संकल्पनाएं भी हेवन और जन्नत और हेल और दोजख की संकल्पनाओं से भिन्न है। ईसाईयत की सॅल्व्हेशन और इस्लाम की कयामत (आखिरत) की कल्पना और मोक्ष में कोई साम्य नहीं है। अधार्मिक (अभारतीय) (ईसाई और इस्लाम की) मान्यता है कि मनुष्य मरने के बाद अपनी दफनभूमि में पडा रहता है। डे ऑफ सॅल्व्हेशन या कयामत के दिन को गॉड या अल्लाह अपने प्रेषित के माध्यम से सब को उठाते हैं। प्रेषित के कहे अनुसार जिसने ईसाईयत पर श्रध्दा रखी थी उसे गॉड हमेशा के लिये स्वर्ग भेज देता है। और जिन्होंने गॉड पर श्रध्दा नहीं रखी थी उन सबको हेल में भेज देता है। इसी प्रकार से प्रेषित के कहने से अल्लाहताला प्रत्येक मनुष्य की रूह का क्या होगा यह निर्णय करता है। जिसने अल्लाहताला में निष्ठा रखी थी उन सब को हमेशा के लिये जन्नत में भेज देता है। और जिसने अल्लताला पर निष्ठा नहीं रखी थी उन सब को हमेशा के लिये दोजख में भेज देता है। वास्तव में इन दोनों मजहबों की प्रक्रिया में गॉड या अल्लाहताला तो बस नाममात्र हैं। सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञानी तो उनके प्रेषित ही हैं गॉड और अल्लाहताला का काम तो बस अपने प्रेषित द्वारा बताये अनुसार लोगों को हेवन और हेल या जन्नत और दोजख में भेजने का ही है।
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सॅल्व्हेशन या आखिरत यह तो हेवन और जन्नत तथा हेल और दोजख की संकल्पनाओं से जुडी संकल्पनाएं ही हैं। धार्मिक (भारतीय) विचार में स्वर्ग और नरक की संकल्पनाएं भी हेवन और जन्नत और हेल और दोजख की संकल्पनाओं से भिन्न है। ईसाईयत की सॅल्व्हेशन और इस्लाम की कयामत (आखिरत) की कल्पना और मोक्ष में कोई साम्य नहीं है। अधार्मिक (अभारतीय) मान्यता है कि मनुष्य मरने के बाद अपनी दफनभूमि में पडा रहता है। डे ऑफ सॅल्व्हेशन या कयामत के दिन को गॉड या अल्लाह अपने प्रेषित के माध्यम से सब को उठाते हैं। प्रेषित के कहे अनुसार जिसने ईसाईयत पर श्रद्धा रखी थी उसे गॉड हमेशा के लिये स्वर्ग भेज देता है। और जिन्होंने गॉड पर श्रद्धा नहीं रखी थी उन सबको हेल में भेज देता है। इसी प्रकार से प्रेषित के कहने से अल्लाहताला प्रत्येक मनुष्य की रूह का क्या होगा यह निर्णय करता है। जिसने अल्लाहताला में निष्ठा रखी थी उन सब को हमेशा के लिये जन्नत में भेज देता है। और जिसने अल्लाहताला पर निष्ठा नहीं रखी थी उन सब को हमेशा के लिये दोजख में भेज देता है।
    
धार्मिक (भारतीय) स्वर्ग और नरक की कल्पना भी इन से पूर्णत: भिन्न है। स्वर्ग या नरक की प्राप्ति में परमात्मा सीधा न्याय करता है। उसे किसी मध्यस्थ की कोई आवश्यकता नहीं होती। वह सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञानी होने से वह प्रत्येक द्वारा किये सत्कर्म और दुष्कर्म जानता है। प्रत्येक मनुष्य द्वारा किये इन सत्कर्मों के अनुसार ही परमात्मा उस के लिये स्वर्ग सुख या नरक यातनाओं की व्यवस्था करता है। जैसे ही स्वर्ग सुख या नरक यातनाओं के भोग पूरे हो जाते हैं, मनुष्य स्वर्ग सुख से वंचित और नरक यातनाओं से मुक्त हो जाता है। यह भोग हर मनुष्य अपने वर्तमान जन्म में और आगामी जन्मों में प्राप्त करता है। धार्मिक (भारतीय) सोच में तो सीधा सीधा गणित है। जितना सत्कर्म उतना सुख जितना दुष्कर्म उतना दु:ख। अधार्मिक (अभारतीय) समाजों में सत्कर्म और दुष्कर्म की कोई संकल्पना ही नहीं है। हेवन या जन्नत का अर्थ है सदैव सुखी रहने की स्थिति और हेल और दोजख का अर्थ है हमेशा दुखी रहने की स्थिति।
 
धार्मिक (भारतीय) स्वर्ग और नरक की कल्पना भी इन से पूर्णत: भिन्न है। स्वर्ग या नरक की प्राप्ति में परमात्मा सीधा न्याय करता है। उसे किसी मध्यस्थ की कोई आवश्यकता नहीं होती। वह सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञानी होने से वह प्रत्येक द्वारा किये सत्कर्म और दुष्कर्म जानता है। प्रत्येक मनुष्य द्वारा किये इन सत्कर्मों के अनुसार ही परमात्मा उस के लिये स्वर्ग सुख या नरक यातनाओं की व्यवस्था करता है। जैसे ही स्वर्ग सुख या नरक यातनाओं के भोग पूरे हो जाते हैं, मनुष्य स्वर्ग सुख से वंचित और नरक यातनाओं से मुक्त हो जाता है। यह भोग हर मनुष्य अपने वर्तमान जन्म में और आगामी जन्मों में प्राप्त करता है। धार्मिक (भारतीय) सोच में तो सीधा सीधा गणित है। जितना सत्कर्म उतना सुख जितना दुष्कर्म उतना दु:ख। अधार्मिक (अभारतीय) समाजों में सत्कर्म और दुष्कर्म की कोई संकल्पना ही नहीं है। हेवन या जन्नत का अर्थ है सदैव सुखी रहने की स्थिति और हेल और दोजख का अर्थ है हमेशा दुखी रहने की स्थिति।
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* शूद्र वर्ण- तम प्रधान, दूसरे और तीसरे क्रमांक पर सत्व या रज
 
* शूद्र वर्ण- तम प्रधान, दूसरे और तीसरे क्रमांक पर सत्व या रज
 
समाज सुखी बनें इसलिये विप्र वर्ण स्वतंत्रता के लिये, क्षत्रिय वर्ण सुरक्षा के लिये, वैश्य वर्ण सुसाध्य आजीविका के लिये और शूद्र वर्ण शांति के लिये जिम्मेदार है। ब्राह्मण वर्ण की जिम्मेदारी स्वाभाविक स्वतंत्रता की प्रस्थापना, क्षत्रिय वर्ण की जिम्मेदारी शासनिक स्वतंत्रता की प्रस्थापना, वैश्य वर्ण की जिम्मेदारी आर्थिक स्वतंत्रता की प्रस्थापना की है।
 
समाज सुखी बनें इसलिये विप्र वर्ण स्वतंत्रता के लिये, क्षत्रिय वर्ण सुरक्षा के लिये, वैश्य वर्ण सुसाध्य आजीविका के लिये और शूद्र वर्ण शांति के लिये जिम्मेदार है। ब्राह्मण वर्ण की जिम्मेदारी स्वाभाविक स्वतंत्रता की प्रस्थापना, क्षत्रिय वर्ण की जिम्मेदारी शासनिक स्वतंत्रता की प्रस्थापना, वैश्य वर्ण की जिम्मेदारी आर्थिक स्वतंत्रता की प्रस्थापना की है।
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इन का समायोजन सामाजिक संगठन और व्यवस्थाओं में होना आवश्यक है। इस हेतु से समाज भिन्न भिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं को चलाता है, भिन्न भिन्न संगठन और व्यवस्थाएँ निर्माण करता है।  
 
इन का समायोजन सामाजिक संगठन और व्यवस्थाओं में होना आवश्यक है। इस हेतु से समाज भिन्न भिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं को चलाता है, भिन्न भिन्न संगठन और व्यवस्थाएँ निर्माण करता है।  
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