− | ज्ञानार्जन का अर्थ है ज्ञान का अर्जन।<ref>भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला १), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref> ज्ञान का अर्जन करने का अर्थ है ज्ञान प्राप्त करना । हम जब कहते हैं कि हम पढ़ते हैं तब हम ज्ञान प्राप्त कर रहे होते हैं । ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमने बहुत सारी व्यवस्था की है, बहुत सारे साधन जुटाये हैं । ज्ञान प्राप्त करने के लिए हम पुस्तकों का और लेखन सामग्री का उपयोग करते हैं । अब तो पुस्तक और लेखन सामग्री का व्याप बहुत बढ़ गया है। टीवी, फिल्म, टैब, संगणक, अंतर्जाल, चित्र, चार्ट, नक्शे आदि विविध प्रकार की सामग्री का अम्बार आज उपलब्ध है । छात्र इन सबका उपयोग कर सर्के ऐसी नई नई पाठन पठन पद्धतियों का भी आविष्कार होता है जिन्हें नवाचार कहा जाता है । इन सबका प्रयोग कर सकें ऐसी नई नई सुविधायें भी निर्माण की जा रही हैं। इन सुविधाओं और सामाग्री के कारण पढ़ने पढ़ाने का खर्च बहुत बढ़ गया है और बाजार विकसित हो गया है। | + | ज्ञानार्जन का अर्थ है ज्ञान का अर्जन।<ref>भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला १) - अध्याय १४, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref> ज्ञान का अर्जन करने का अर्थ है ज्ञान प्राप्त करना । हम जब कहते हैं कि हम पढ़ते हैं तब हम ज्ञान प्राप्त कर रहे होते हैं । ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमने बहुत सारी व्यवस्था की है, बहुत सारे साधन जुटाये हैं । ज्ञान प्राप्त करने के लिए हम पुस्तकों का और लेखन सामग्री का उपयोग करते हैं । अब तो पुस्तक और लेखन सामग्री का व्याप बहुत बढ़ गया है। टीवी, फिल्म, टैब, संगणक, अंतर्जाल, चित्र, चार्ट, नक्शे आदि विविध प्रकार की सामग्री का अम्बार आज उपलब्ध है । छात्र इन सबका उपयोग कर सर्के ऐसी नई नई पाठन पठन पद्धतियों का भी आविष्कार होता है जिन्हें नवाचार कहा जाता है । इन सबका प्रयोग कर सकें ऐसी नई नई सुविधायें भी निर्माण की जा रही हैं। इन सुविधाओं और सामाग्री के कारण पढ़ने पढ़ाने का खर्च बहुत बढ़ गया है और बाजार विकसित हो गया है। |
| परन्तु बाजार के बढ़ने से, खर्च बढ़ने से, सुविधाओं और सामग्री के बढ़ने से ज्ञानार्जन बहुत अच्छा हो गया है ऐसी स्थिति नहीं है। कदाचित इन सबके बढ़ने का परिणाम विपरीत ही हुआ है। इसका एक स्वाभाविक कारण है । शिक्षा इन सब बातों से नहीं होती । ये सब शिक्षा प्राप्त करने के उपकरण हैं, करण नहीं । उपकरण और करण में अन्तर है। उपकरण का अर्थ ही है गौण साधन । करण ही मुख्य साधन है । उदाहरण के लिये आँख देखने का मुख्य साधन है जबकि चश्मा गौण साधन । वृद्धों के लिये पैर चलने हेतु मुख्य साधन है परन्तु लकड़ी गौण साधन है । लिखने के लिये हाथ मुख्य साधन है और लेखनी सहायक साधन । देखना आँखों से ही होता है, चश्मे से नहीं, चलना पैरों से ही होता है, लकड़ी से नहीं । शिक्षा करणों से होती है, उपकरणों से नहीं । करणों की चिन्ता न करते हुए उपकरणों की ही चिन्ता अधिक करने के कारण वर्तमान में ज्ञानार्जन का कार्य ठीक प्रकार से नहीं हो रहा है। | | परन्तु बाजार के बढ़ने से, खर्च बढ़ने से, सुविधाओं और सामग्री के बढ़ने से ज्ञानार्जन बहुत अच्छा हो गया है ऐसी स्थिति नहीं है। कदाचित इन सबके बढ़ने का परिणाम विपरीत ही हुआ है। इसका एक स्वाभाविक कारण है । शिक्षा इन सब बातों से नहीं होती । ये सब शिक्षा प्राप्त करने के उपकरण हैं, करण नहीं । उपकरण और करण में अन्तर है। उपकरण का अर्थ ही है गौण साधन । करण ही मुख्य साधन है । उदाहरण के लिये आँख देखने का मुख्य साधन है जबकि चश्मा गौण साधन । वृद्धों के लिये पैर चलने हेतु मुख्य साधन है परन्तु लकड़ी गौण साधन है । लिखने के लिये हाथ मुख्य साधन है और लेखनी सहायक साधन । देखना आँखों से ही होता है, चश्मे से नहीं, चलना पैरों से ही होता है, लकड़ी से नहीं । शिक्षा करणों से होती है, उपकरणों से नहीं । करणों की चिन्ता न करते हुए उपकरणों की ही चिन्ता अधिक करने के कारण वर्तमान में ज्ञानार्जन का कार्य ठीक प्रकार से नहीं हो रहा है। |