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सर्वांगीण विकास को जो लोग लक्ष्य मानते हैं उनके अनुसार अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय ऐसे पाँच कोशों का विकास ही मनुष्य का विकास होता है। समग्र विकास की व्याप्ति इससे अधिक है। उसका विचार हम आगे करेंगे।
 
सर्वांगीण विकास को जो लोग लक्ष्य मानते हैं उनके अनुसार अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय ऐसे पाँच कोशों का विकास ही मनुष्य का विकास होता है। समग्र विकास की व्याप्ति इससे अधिक है। उसका विचार हम आगे करेंगे।
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हमारे पंचमहाभौतिक शरीर में से हम में विद्यमान उस परमात्म तत्व की जो सहज अभिव्यक्ति होती है उसे धार्मिक (भारतीय) सोच में व्यक्तित्व कहते है । यह मुखौटे जैसी कृत्रिम नहीं होती । और ना ही किसी को बताने के लिये धारण की हुई होती है। इसलिये हम ऑल राऊंड पर्सनॅलिटी डेव्हलपमेंट का विचार नहीं करेंगे । हम विचार करेंगे अष्टधा प्रकृति के सभी अंगों के सर्वांगीण विकास से भी अधिक व्यापक ऐसे व्यक्तित्व के समग्र विकास का। लेकिन उससे पहले व्यक्तित्व क्या है इसे समझना आवश्यक है।
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हमारे पंचमहाभौतिक शरीर में से हम में विद्यमान उस परमात्म तत्व की जो सहज अभिव्यक्ति होती है उसे धार्मिक (भारतीय) सोच में व्यक्तित्व कहते है । यह मुखौटे जैसी कृत्रिम नहीं होती । और ना ही किसी को बताने के लिये धारण की हुई होती है। इसलिये हम ऑल राऊंड पर्सनॅलिटी डेव्हलपमेंट का विचार नहीं करेंगे । हम विचार करेंगे अष्टधा प्रकृति के सभी अंगों के सर्वांगीण विकास से भी अधिक व्यापक ऐसे व्यक्तित्व के समग्र विकास का। लेकिन उससे पहले व्यक्तित्व क्या है इसे समझना आवश्यक है।<ref>जीवन का भारतीय प्रतिमान-खंड १, अध्याय ८, लेखक - दिलीप केलकर</ref>
    
== व्यक्तित्व का अर्थ ==
 
== व्यक्तित्व का अर्थ ==
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* शूद्र वर्ण- तम प्रधान, दूसरे और तीसरे क्रमांक पर सत्व या रज
 
* शूद्र वर्ण- तम प्रधान, दूसरे और तीसरे क्रमांक पर सत्व या रज
 
समाज सुखी बनें इसलिये विप्र वर्ण स्वतंत्रता के लिये, क्षत्रिय वर्ण सुरक्षा के लिये, वैश्य वर्ण सुसाध्य आजीविका के लिये और शूद्र वर्ण शांति के लिये जिम्मेदार है। ब्राह्मण वर्ण की जिम्मेदारी स्वाभाविक स्वतंत्रता की प्रस्थापना, क्षत्रिय वर्ण की जिम्मेदारी शासनिक स्वतंत्रता की प्रस्थापना, वैश्य वर्ण की जिम्मेदारी आर्थिक स्वतंत्रता की प्रस्थापना की है।
 
समाज सुखी बनें इसलिये विप्र वर्ण स्वतंत्रता के लिये, क्षत्रिय वर्ण सुरक्षा के लिये, वैश्य वर्ण सुसाध्य आजीविका के लिये और शूद्र वर्ण शांति के लिये जिम्मेदार है। ब्राह्मण वर्ण की जिम्मेदारी स्वाभाविक स्वतंत्रता की प्रस्थापना, क्षत्रिय वर्ण की जिम्मेदारी शासनिक स्वतंत्रता की प्रस्थापना, वैश्य वर्ण की जिम्मेदारी आर्थिक स्वतंत्रता की प्रस्थापना की है।
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इन का समायोजन सामाजिक संगठन और व्यवस्थाओं में होना आवश्यक है। इस हेतु से समाज भिन्न भिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं को चलाता है, भिन्न भिन्न संगठन और व्यवस्थाएँ निर्माण करता है।  
 
इन का समायोजन सामाजिक संगठन और व्यवस्थाओं में होना आवश्यक है। इस हेतु से समाज भिन्न भिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं को चलाता है, भिन्न भिन्न संगठन और व्यवस्थाएँ निर्माण करता है।  
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