आगे अब हम तत्वज्ञान पर आधारित जीवनदृष्टि, जीवनशैली (व्यवहार), और व्यवस्था समूहों से बनने वाले प्रतिमानों को समझने का प्रयास करेंगे। देशिक शास्त्र में इसी तत्वज्ञान पर आधारित जीवनदृष्टि को उस समाज का 'स्वभाव' या 'चिति' कहा है। इस जीवनदृष्टि के अनुरूप वह समाज सर्व मान्य ऐसे कुछ व्यवहार सूत्र तय करता है और उन के अनुसार प्रत्यक्ष व्यवहार करता है। ऐसा व्यवहार सर्व सामान्य मनुष्य भी कर सके इस लिये वह व्यवस्थाओं का समूह निर्माण करता है। समाज के इस प्रकार अपनी जीवनदृष्टि के अनुसार व्यवहार करने और व्यवस्था समूह निर्माण कर आगे बढने को ही देशिक शास्त्र में उस समाज के विराट का जागरण होता है ऐसा कहा गया है। चिति और विराट मिलाकर उस समाज के जीवन का प्रतिमान बनता है। | आगे अब हम तत्वज्ञान पर आधारित जीवनदृष्टि, जीवनशैली (व्यवहार), और व्यवस्था समूहों से बनने वाले प्रतिमानों को समझने का प्रयास करेंगे। देशिक शास्त्र में इसी तत्वज्ञान पर आधारित जीवनदृष्टि को उस समाज का 'स्वभाव' या 'चिति' कहा है। इस जीवनदृष्टि के अनुरूप वह समाज सर्व मान्य ऐसे कुछ व्यवहार सूत्र तय करता है और उन के अनुसार प्रत्यक्ष व्यवहार करता है। ऐसा व्यवहार सर्व सामान्य मनुष्य भी कर सके इस लिये वह व्यवस्थाओं का समूह निर्माण करता है। समाज के इस प्रकार अपनी जीवनदृष्टि के अनुसार व्यवहार करने और व्यवस्था समूह निर्माण कर आगे बढने को ही देशिक शास्त्र में उस समाज के विराट का जागरण होता है ऐसा कहा गया है। चिति और विराट मिलाकर उस समाज के जीवन का प्रतिमान बनता है। |