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लेकिन अश्वत्थामा जैसा अपने जख्म और उनसे होनेवाली वेदनाएं लेकर अमर बनना कोई नहीं चाहता। धार्मिक (भारतीय) मान्यता के अनुसार सात चिरंजीवी लोगों में से अन्य बलि, व्यास, हनुमान, बिभीषण, कृपाचार्य और परशुराम ये जो छ: चिरंजीवी लोग हैं वे इस सुख और दुःख से परे गए हुए लोग हैं। उनके जैसे हम बनें ऐसी प्रार्थना लोग नित्य करते हैं।  
 
लेकिन अश्वत्थामा जैसा अपने जख्म और उनसे होनेवाली वेदनाएं लेकर अमर बनना कोई नहीं चाहता। धार्मिक (भारतीय) मान्यता के अनुसार सात चिरंजीवी लोगों में से अन्य बलि, व्यास, हनुमान, बिभीषण, कृपाचार्य और परशुराम ये जो छ: चिरंजीवी लोग हैं वे इस सुख और दुःख से परे गए हुए लोग हैं। उनके जैसे हम बनें ऐसी प्रार्थना लोग नित्य करते हैं।  
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हमारे पूर्वजों ने यह सुख दुःख के परे जाने की प्रक्रिया को ढूंढा था। उस प्रक्रिया के अनुसार प्रत्यक्ष जीने का तरीका उन्होंने आत्मसात किया था। केवल इसीलिये भारत एक चिरंजीवी राष्ट्र बन सका है। आज भी इस तत्वज्ञान को जानने वाले लोग अच्छी खासी संख्या में भारत राष्ट्र में विद्यमान हैं। इस तत्वज्ञान के अनुसार जीने की शायद उनकी क्षमता नहीं होगी लेकिन इस में उनका विश्वास अवश्य है। इस प्रक्रिया के अनुसार जीनेवालों की संख्या में जिस प्रमाण में कमी आ रही है, भारत राष्ट्र की चिरंजीविता उसी प्रमाण में घट रही है।
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हमारे पूर्वजों ने यह सुख दुःख के परे जाने की प्रक्रिया को ढूंढा था। उस प्रक्रिया के अनुसार प्रत्यक्ष जीने का तरीका उन्होंने आत्मसात किया था। केवल इसीलिये भारत एक चिरंजीवी राष्ट्र बन सका है। आज भी इस तत्वज्ञान को जानने वाले लोग अच्छी खासी संख्या में भारत राष्ट्र में विद्यमान हैं। इस तत्वज्ञान के अनुसार जीने की शायद उनकी क्षमता नहीं होगी लेकिन इस में उनका विश्वास अवश्य है। इस प्रक्रिया के अनुसार जीनेवालों की संख्या में जिस प्रमाण में कमी आ रही है, भारत राष्ट्र की चिरंजीविता उसी प्रमाण में घट रही है।<ref>जीवन का भारतीय प्रतिमान-खंड १, अध्याय २०, लेखक - दिलीप केलकर</ref>
    
== सुख विवेचन ==
 
== सुख विवेचन ==

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