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इस यूरोपीय सोच में ‘मैं’ भिन्न हूँ। मैं दुनिया का हिस्सा नहीं हूँ और सारी दुनिया मेरे उपभोग के लिए है ऐसा माना गया है। इसका आधार शायद बायबल का कथन हो सकता है। पाँच दिन में गॉड ने सृष्टि निर्माण की। छठे दिन मानव का निर्माण किया और उसे कहा यह पाँच दिन में निर्माण की हुई सृष्टि तुम्हारे उपभोग के लिए है। रेने देकार्ते और फ्रांसिस बेकन की परम्परा में विश्वास रखनेवाले यूरो-अमरीकी आधुनिक दार्शनिक भी इससे भिन्न सोच नहीं रखते। साईंस ने ईसाईयत की धज्जियां उड़ा दीं हैं, लेकिन उपभोग के विषय में उनकी सोच बायबल के कथन जैसी ही है। जीवन को टुकड़ों में समझने का और वैसा व्यवहार करने का शायद यही प्रारम्भ बिन्दु है।
 
इस यूरोपीय सोच में ‘मैं’ भिन्न हूँ। मैं दुनिया का हिस्सा नहीं हूँ और सारी दुनिया मेरे उपभोग के लिए है ऐसा माना गया है। इसका आधार शायद बायबल का कथन हो सकता है। पाँच दिन में गॉड ने सृष्टि निर्माण की। छठे दिन मानव का निर्माण किया और उसे कहा यह पाँच दिन में निर्माण की हुई सृष्टि तुम्हारे उपभोग के लिए है। रेने देकार्ते और फ्रांसिस बेकन की परम्परा में विश्वास रखनेवाले यूरो-अमरीकी आधुनिक दार्शनिक भी इससे भिन्न सोच नहीं रखते। साईंस ने ईसाईयत की धज्जियां उड़ा दीं हैं, लेकिन उपभोग के विषय में उनकी सोच बायबल के कथन जैसी ही है। जीवन को टुकड़ों में समझने का और वैसा व्यवहार करने का शायद यही प्रारम्भ बिन्दु है।
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लेकिन कुछ वर्तमान वैज्ञानिकों ने विज्ञान के प्रयोगों के माध्यम से ही सारी सृष्टि के अस्तित्वों में परस्पर सम्बद्धता, अखण्डता को खोजा है। डेव्हिड बोहम, बेल आदि की परिकल्पनाओं और उसकी अन्य वैज्ञानिकों ने की हुई पुष्टि ने यूरो अमरीकी विज्ञान विश्व में हलचल मचा रखी है। जीवन को एकात्मता और समग्रता में देखने की धार्मिक (भारतीय) जीवन दृष्टि की प्रतिष्ठापना के लिए यह एक सुअवसर है। सारी सृष्टि में अन्तर्निहित एकात्मता को समग्रता में समझना हो तो जीवन के विभिन्न पहलू, विषय, व्यवस्थाएँ, शास्त्र एक दूसरे के साथ कैसे अंगांगी संबंध से जुड़े हुए हैं यह समझना उपयुक्त होगा। सारी दुनिया इससे लाभान्वित होगी।
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लेकिन कुछ वर्तमान वैज्ञानिकों ने विज्ञान के प्रयोगों के माध्यम से ही सारी सृष्टि के अस्तित्वों में परस्पर सम्बद्धता, अखण्डता को खोजा है। डेव्हिड बोहम, बेल आदि की परिकल्पनाओं और उसकी अन्य वैज्ञानिकों ने की हुई पुष्टि ने यूरो अमरीकी विज्ञान विश्व में हलचल मचा रखी है। जीवन को एकात्मता और समग्रता में देखने की धार्मिक (भारतीय) जीवन दृष्टि की प्रतिष्ठापना के लिए यह एक सुअवसर है। सारी सृष्टि में अन्तर्निहित एकात्मता को समग्रता में समझना हो तो जीवन के विभिन्न पहलू, विषय, व्यवस्थाएँ, शास्त्र एक दूसरे के साथ कैसे अंगांगी संबंध से जुड़े हुए हैं यह समझना उपयुक्त होगा। सारी दुनिया इससे लाभान्वित होगी।<ref>जीवन का भारतीय प्रतिमान-खंड २, अध्याय २४, लेखक - दिलीप केलकर</ref>
    
== सृष्टि में प्रस्परावलंबन/परस्पर सम्बद्धता ==
 
== सृष्टि में प्रस्परावलंबन/परस्पर सम्बद्धता ==

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