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== प्रस्तावना ==
 
== प्रस्तावना ==
विचार या शोध के क्षेत्र में काम करनेवाले और राष्ट्रवादी कहलाने वाले लोगों के पाँच प्रकार हैं। पहले प्रकार के अपने को राष्ट्रवादी कहलाने वाले लोग ऐसे हैं जिन्हें धार्मिक (भारतीय) शास्त्रों का और वर्तमान साईंस का भी ज्ञान है किन्तु उन में शास्त्रों के प्रति या तो श्रद्धा नहीं है या धार्मिक (भारतीय) शास्त्रों के समर्थन में खडे होने की हिम्मत नहीं है। दूसरे ऐसे लोग हैं जो धार्मिक (भारतीय) शास्त्रों के जानकार तो हैं, धार्मिक (भारतीय) शास्त्रों पर श्रद्धा भी रखते हैं किन्तु वर्तमान साईंस की प्रगति से अनभिज्ञ हैं। तीसरे लोग ऐसे हैं जो धार्मिक (भारतीय) शास्त्रों को जानते नहीं हैं। लेकिन उन की श्रेष्ठता में श्रद्धा रखते हैं। उन्हें धार्मिक (भारतीय) शास्त्रों की जानकारी नहीं होने से वे निम्न स्तर के तथाकथित साईंटिस्टों द्वारा आतंकित हो जाते हैं। चौथे प्रकार के लोग वे हैं जो प्रामाणिकता से यह मानते हैं कि साईंस युगानुकूल है। शास्त्र अब कालबाह्य हो गये हैं। पाँचवे प्रकार के लोग वे हैं जो दोनों की समझ रखते हैं। लेकिन ये एक तो संख्या में नगण्य हैं और दूसरे ये मुखर नहीं हैं। धार्मिक (भारतीय) शोध दृष्टि की अच्छी समझ ऐसे सभी लोगों के लिये आवश्यक है।
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विचार या शोध के क्षेत्र में काम करनेवाले और राष्ट्रवादी कहलाने वाले लोगों के पाँच प्रकार हैं। पहले प्रकार के अपने को राष्ट्रवादी कहलाने वाले लोग ऐसे हैं जिन्हें धार्मिक (भारतीय) शास्त्रों का और वर्तमान साईंस का भी ज्ञान है किन्तु उन में शास्त्रों के प्रति या तो श्रद्धा नहीं है या धार्मिक (भारतीय) शास्त्रों के समर्थन में खडे होने की हिम्मत नहीं है। दूसरे ऐसे लोग हैं जो धार्मिक (भारतीय) शास्त्रों के जानकार तो हैं, धार्मिक (भारतीय) शास्त्रों पर श्रद्धा भी रखते हैं किन्तु वर्तमान साईंस की प्रगति से अनभिज्ञ हैं। तीसरे लोग ऐसे हैं जो धार्मिक (भारतीय) शास्त्रों को जानते नहीं हैं। लेकिन उन की श्रेष्ठता में श्रद्धा रखते हैं। उन्हें धार्मिक (भारतीय) शास्त्रों की जानकारी नहीं होने से वे निम्न स्तर के तथाकथित साईंटिस्टों द्वारा आतंकित हो जाते हैं। चौथे प्रकार के लोग वे हैं जो प्रामाणिकता से यह मानते हैं कि साईंस युगानुकूल है। शास्त्र अब कालबाह्य हो गये हैं। पाँचवे प्रकार के लोग वे हैं जो दोनों की समझ रखते हैं। लेकिन ये एक तो संख्या में नगण्य हैं और दूसरे ये मुखर नहीं हैं। धार्मिक (भारतीय) शोध दृष्टि की अच्छी समझ ऐसे सभी लोगों के लिये आवश्यक है।<ref>जीवन का भारतीय प्रतिमान-खंड २, अध्याय २६, लेखक - दिलीप केलकर</ref>
    
== भारतीय विद्वानों में हीनता बोध ==
 
== भारतीय विद्वानों में हीनता बोध ==

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