# जब तक ऐसा करने की समझ और शक्ति सज्जन समाज के नेतृत्व में नहीं होगी, सज्जनोंद्वारा परिचालित सहकार के प्रयासों से दुर्जनों को दूर ही रखना होगा। वर्तमान में ‘सहकारी’ विशेषण लगाकर काम करनेवाली लगभग सभी संस्थाएं अपने अपने स्वार्थ साधने के लिये निर्माण की गई हैं। अन्य लोगों के हित के लिये नहीं। फिर वह सहनिवास संस्था हो, सहकारी पतसंस्था हो, सहकारी मच्छीमार संस्था हो या सहकारी शकर कारखाना हो। ये सभी संस्थाएं, अपने अपने स्वार्थ के लिये कुछ लोगों ने एकत्रित आकर चलाए हुए उपक्रम है। इन सभी के पीछे पाश्चात्य 'समाजशास्त्र' की भावना काम कर रही है। सोशल कॉण्ट्रॅक्ट थियरी के आधार पर अर्थात् परस्पर स्वार्थ की पूर्ति के लिये जब लोग एकत्रित होते हैं तो समाज बनता है, इस विचार से प्रेरित यह सभी सहकारिता के नाम से चलने वाले प्रयास हैं। | # जब तक ऐसा करने की समझ और शक्ति सज्जन समाज के नेतृत्व में नहीं होगी, सज्जनोंद्वारा परिचालित सहकार के प्रयासों से दुर्जनों को दूर ही रखना होगा। वर्तमान में ‘सहकारी’ विशेषण लगाकर काम करनेवाली लगभग सभी संस्थाएं अपने अपने स्वार्थ साधने के लिये निर्माण की गई हैं। अन्य लोगों के हित के लिये नहीं। फिर वह सहनिवास संस्था हो, सहकारी पतसंस्था हो, सहकारी मच्छीमार संस्था हो या सहकारी शकर कारखाना हो। ये सभी संस्थाएं, अपने अपने स्वार्थ के लिये कुछ लोगों ने एकत्रित आकर चलाए हुए उपक्रम है। इन सभी के पीछे पाश्चात्य 'समाजशास्त्र' की भावना काम कर रही है। सोशल कॉण्ट्रॅक्ट थियरी के आधार पर अर्थात् परस्पर स्वार्थ की पूर्ति के लिये जब लोग एकत्रित होते हैं तो समाज बनता है, इस विचार से प्रेरित यह सभी सहकारिता के नाम से चलने वाले प्रयास हैं। |