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मैं जिस कम्पनी में आर्थिक हत्यारे के रूप में नौकरी करता था, उसमें अधिकांश लोग तो इंजिनयीर थे। परन्तु हमारे पास निर्माण कार्य के लिए कुछ भी साधन नहीं थे । हमने कभी भी कोई छत भी बाँधी नहीं थी। मैंने जब नौकरी में प्रवेश लिया तब कुछ महिनों तक तो समझ ही नहीं सका कि मेरी कम्पनी काम क्या करती है। हमें सभी बातें अत्यन्त गुप्त रखनी होती थीं। एक दिन मुझे मेरी अधिकारी महिला ने समझाया कि उसका काम मुझे आर्थिक हत्यारा बनाने का है। उसने मुझे समझाया कि हम कहीं ढूँढने से भी न मिले, ऐसे वंश के लोग हैं । हमें बहुत सारे खराब काम करने हैं और उसकी जानकारी कभी भी किसी को नहीं होनी चाहिए। तुम्हारी पत्नी को भी नहीं । तुम इस काम में आये हो वह अब पूरी जिंदगी के लिए है।
 
मैं जिस कम्पनी में आर्थिक हत्यारे के रूप में नौकरी करता था, उसमें अधिकांश लोग तो इंजिनयीर थे। परन्तु हमारे पास निर्माण कार्य के लिए कुछ भी साधन नहीं थे । हमने कभी भी कोई छत भी बाँधी नहीं थी। मैंने जब नौकरी में प्रवेश लिया तब कुछ महिनों तक तो समझ ही नहीं सका कि मेरी कम्पनी काम क्या करती है। हमें सभी बातें अत्यन्त गुप्त रखनी होती थीं। एक दिन मुझे मेरी अधिकारी महिला ने समझाया कि उसका काम मुझे आर्थिक हत्यारा बनाने का है। उसने मुझे समझाया कि हम कहीं ढूँढने से भी न मिले, ऐसे वंश के लोग हैं । हमें बहुत सारे खराब काम करने हैं और उसकी जानकारी कभी भी किसी को नहीं होनी चाहिए। तुम्हारी पत्नी को भी नहीं । तुम इस काम में आये हो वह अब पूरी जिंदगी के लिए है।
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मेरा काम विशाल अन्तरराष्ट्रीय कृणों को उचित ठहराना था । उस ऋण की रकम बेथेल, हलीबर्टन, स्टोन एण्ड वेबस्टर, ब्राउन एण्ड रुट, प्रोजेक्ट के द्वारा मिलने वाली थी। साथ ही यह भी देखना था कि जो देश ये ऋण लेंगे वे हमारा ऋण तो उतार दें परन्तु उसके बाद दिवालिया हो जाने चाहिए। जिससे वे हमेशा के लिए हमसे दबकर रहें। और हम इनका मनमाना उपयोग अपना हित साधने के लिए कर सकें । कृणों को उचित ठहराने के लिए मुझे आँकड़ों की गणना के द्वारा यह समझाना होता था कि इससे कितना विकास होगा। इसमें सबसे मुख्य आँकड़ा अर्थात् ग्रोस नेशनल प्रोडक्ट की गणना कर बताना होता था। जिस प्रोजेक्ट में जीएनपी सबसे अधिक बढ़ती है, वह प्रोजेक्ट जीत जाता है। मेरा रेल्वे लाइन डालने का प्रोजेक्ट, दूर संचार (टेली कोम्युनिकेशन) का जाल बिछाने का प्रोजेक्ट, हाइवे, बन्दरगाह, एयरपोर्ट के निर्माण कार्य के प्रोजेक्ट आदि के लिए ऋण लें, यह समझाने का काम था। जिस किसी प्रोजेक्ट को उचित ठहराना हो, तो उससे जीएनपी बहुत बढ़ेगी यह समझाना ताकि वह प्रोजेक्ट स्वीकृत हो जाय । ऐसे प्रत्येक प्रोजेक्ट के विषय में अन्दर की बिल्कुल छिपी बात यह थी कि हमारे देश की ठेका लेने वाली (कोन्ट्राक्टर) कम्पनियों को जंगी नफा जमा कर देने का उद्देश्य था, और ऋण लेने वाले देश के मुट्ठी भर धनवान लोग और प्रभावी परिवार ही अति सुखी होंगे, यह भी हम छिपाकर रखते थे। साथ ही हम यह निश्चितता भी करते रहते थे कि लम्बी अवधि में वित्तीय मजबूरियों में देश अवश्य फँस जायेगा । जिससे हम उस देश को अपना राजकीय मोहरा बना सकें । इसलिए ऋण जितने जंगी होते थे, उतना ही अच्छा रहता था। जिस किसी देश पर लादे गये कर्ज के पहाड़ से उस देश के गरीब से गरीब मनुष्यों को मिलने वाली आरोग्य, शिक्षा और अन्य सामाजिक सेवायें दशकों तक बन्द हो जायेगी, इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया जाता था । क्यों कि हम तो उसे गुप्त रखते थे।
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मेरा काम विशाल अन्तरराष्ट्रीय ऋणों को उचित ठहराना था । उस ऋण की रकम बेथेल, हलीबर्टन, स्टोन एण्ड वेबस्टर, ब्राउन एण्ड रुट, प्रोजेक्ट के द्वारा मिलने वाली थी। साथ ही यह भी देखना था कि जो देश ये ऋण लेंगे वे हमारा ऋण तो उतार दें परन्तु उसके बाद दिवालिया हो जाने चाहिए। जिससे वे हमेशा के लिए हमसे दबकर रहें। और हम इनका मनमाना उपयोग अपना हित साधने के लिए कर सकें । ऋणों को उचित ठहराने के लिए मुझे आँकड़ों की गणना के द्वारा यह समझाना होता था कि इससे कितना विकास होगा। इसमें सबसे मुख्य आँकड़ा अर्थात् ग्रोस नेशनल प्रोडक्ट की गणना कर बताना होता था। जिस प्रोजेक्ट में जीएनपी सबसे अधिक बढ़ती है, वह प्रोजेक्ट जीत जाता है। मेरा रेल्वे लाइन डालने का प्रोजेक्ट, दूर संचार (टेली कोम्युनिकेशन) का जाल बिछाने का प्रोजेक्ट, हाइवे, बन्दरगाह, एयरपोर्ट के निर्माण कार्य के प्रोजेक्ट आदि के लिए ऋण लें, यह समझाने का काम था। जिस किसी प्रोजेक्ट को उचित ठहराना हो, तो उससे जीएनपी बहुत बढ़ेगी यह समझाना ताकि वह प्रोजेक्ट स्वीकृत हो जाय । ऐसे प्रत्येक प्रोजेक्ट के विषय में अन्दर की बिल्कुल छिपी बात यह थी कि हमारे देश की ठेका लेने वाली (कोन्ट्राक्टर) कम्पनियों को जंगी नफा जमा कर देने का उद्देश्य था, और ऋण लेने वाले देश के मुट्ठी भर धनवान लोग और प्रभावी परिवार ही अति सुखी होंगे, यह भी हम छिपाकर रखते थे। साथ ही हम यह निश्चितता भी करते रहते थे कि लम्बी अवधि में वित्तीय मजबूरियों में देश अवश्य फँस जायेगा । जिससे हम उस देश को अपना राजकीय मोहरा बना सकें । इसलिए ऋण जितने जंगी होते थे, उतना ही अच्छा रहता था। जिस किसी देश पर लादे गये कर्ज के पहाड़ से उस देश के गरीब से गरीब मनुष्यों को मिलने वाली आरोग्य, शिक्षा और अन्य सामाजिक सेवायें दशकों तक बन्द हो जायेगी, इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया जाता था । क्यों कि हम तो उसे गुप्त रखते थे।
    
मेरी उच्च महिला अधिकारी “क्लाउडीन" और मैं खुली चर्चा करते कि यह जीएनपी (ग्रोस नेशनल प्रोजेक्ट) का आँकड़ा कितना छलावा करने वाला है। उदाहरण के लिए एक भी व्यक्ति अरबपति बनता है तो भी जीएनपी तो बढ़ती ही है। कोई अरबपति व्यक्ति बिजली की कम्पनी का मालिक हो और वह ढ़ेरों धन कमावे और सारा देश कर्ज में डूब जाय तब भी जीएनपी का आँकड़ा तो बढ़ता ही है और वह विकास माना जाता है। गरीब अधिक गरीब होता है और धनवान अधिक धनी होता जाता है तब भी जीएनपी बढ़ता है और आर्थिक विकास हुआ, यह माना जाता है।
 
मेरी उच्च महिला अधिकारी “क्लाउडीन" और मैं खुली चर्चा करते कि यह जीएनपी (ग्रोस नेशनल प्रोजेक्ट) का आँकड़ा कितना छलावा करने वाला है। उदाहरण के लिए एक भी व्यक्ति अरबपति बनता है तो भी जीएनपी तो बढ़ती ही है। कोई अरबपति व्यक्ति बिजली की कम्पनी का मालिक हो और वह ढ़ेरों धन कमावे और सारा देश कर्ज में डूब जाय तब भी जीएनपी का आँकड़ा तो बढ़ता ही है और वह विकास माना जाता है। गरीब अधिक गरीब होता है और धनवान अधिक धनी होता जाता है तब भी जीएनपी बढ़ता है और आर्थिक विकास हुआ, यह माना जाता है।
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अमेरिका में ११ सितम्बर को दो टॉवर गिरा दिये गये उसके बाद धनवान साउदी अरब जिसमें ओसामा बिन लादेन के परिवार के लोग भी थे, उन्हें प्राइवेट जेट विमानों के द्वारा फुर्ती के साथ अमेरिका से बाहर भगा दिया गया । इन उड़ानों का क्लीयरन्स भी नहीं हुआ। किसी भी पेसेन्जर को कुछ भी पूछा नहीं गया । राष्ट्रपति बुश के दीर्घकालीन पारिवारिक सम्बन्धों ने ही इसमें मदद की है ना ?
 
अमेरिका में ११ सितम्बर को दो टॉवर गिरा दिये गये उसके बाद धनवान साउदी अरब जिसमें ओसामा बिन लादेन के परिवार के लोग भी थे, उन्हें प्राइवेट जेट विमानों के द्वारा फुर्ती के साथ अमेरिका से बाहर भगा दिया गया । इन उड़ानों का क्लीयरन्स भी नहीं हुआ। किसी भी पेसेन्जर को कुछ भी पूछा नहीं गया । राष्ट्रपति बुश के दीर्घकालीन पारिवारिक सम्बन्धों ने ही इसमें मदद की है ना ?
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एक दिन पौला (कोलम्बिया की एक स्त्री का नाम) ने मुझे कहा कि आपने अच्छा किया कि जो बाँध बना रहे हो नदी के किनारे पर, वहाँ के स्थानीय लोग और सभी किसान तुम्हें धिक्कार रहे हैं । अरे ! शहर के लोग जिनका इस बाँध के साथ कोई सम्बन्ध नहीं वे सब भी तुम्हारे निर्माण करने वाले केम्प के ऊपर जो गेरिला लोग हमला करते हैं, उनके प्रति सहानुभूति रखते हैं । तुम्हारी सरकार भले ही उन्हें साम्यवादियों, आतंकवादियों और नार्कोटिक जैसे ड्रग बैचने वालों के रूप में बताये सत्य हकीकत यही है कि तुम्हारी कम्पनी जिन जमीनों का नाश कर रही है, उन जमीनों पर जीने वाले कुटुम्ब - कबीले वाले लोग बिल्कुल सीधे सादे हैं । ऐसी नीतियों के कारण मुझे मेरे साथ ही जीने में बहुत अधिक कठिनाई निर्माण होने लगीं । पौला ने मेरे सामने ही एक समाचारपत्र खोला, और उसमें छपा हआ पत्र मुझे पढ़ कर सुनाया । वह पत्र यह था। "हम सब अपने पूर्वजों के रक्त की सौगन्ध खाकर प्रतिज्ञा करते हैं कि इस नदी के ऊपर कभी भी बाँध बनने नहीं देंगे । हमारी जमीन पर पानी भर जाय उससे तो अच्छा है कि हम मर जायें । हमें हमारे कोलम्बियन भाइयों को चेतावनी देनी चाहिए कि बाँध बनाने वाली कम्पनी में काम या नौकरी करना बन्द कर दें।" मुझे ऐसा लगा कि मैं गेरिला के आक्रमण का भोग बन गया होता तो अच्छा होता अथवा मैं स्वयं ही गेरिला बन जाऊँ तो अच्छा है, जिससे प्रतिदिन मैं मेरी नौकरी को अधिक से अधिक धिक्कारने लगूं। पौला ने मुझे कहा कि तुम्हारा यह लडाकू ध्येय बहुत सही है । तुम बाँध बना कर बिजली पैदा करोगे, वह तो कुछ धनवान कोलम्बियनों की मदद होगी। परन्तु हजारों कोलम्बियन तो मर ही जायेंगे, क्योंकि पानी ही प्रदूषित होगा, जिससे मछलियाँ भी मर जायेंगी।
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एक दिन पौला (कोलम्बिया की एक स्त्री का नाम) ने मुझे कहा कि आपने अच्छा किया कि जो बाँध बना रहे हो नदी के किनारे पर, वहाँ के स्थानीय लोग और सभी किसान तुम्हें धिक्कार रहे हैं । अरे ! शहर के लोग जिनका इस बाँध के साथ कोई सम्बन्ध नहीं वे सब भी तुम्हारे निर्माण करने वाले केम्प के ऊपर जो गेरिला लोग हमला करते हैं, उनके प्रति सहानुभूति रखते हैं । तुम्हारी सरकार भले ही उन्हें साम्यवादियों, आतंकवादियों और नार्कोटिक जैसे ड्रग बैचने वालों के रूप में बताये सत्य हकीकत यही है कि तुम्हारी कम्पनी जिन जमीनों का नाश कर रही है, उन जमीनों पर जीने वाले कुटुम्ब - कबीले वाले लोग बिल्कुल सीधे सादे हैं । ऐसी नीतियों के कारण मुझे मेरे साथ ही जीने में बहुत अधिक कठिनाई निर्माण होने लगीं । पौला ने मेरे सामने ही एक समाचारपत्र खोला, और उसमें छपा हआ पत्र मुझे पढ़ कर सुनाया । वह पत्र यह था। "हम सब अपने पूर्वजों के रक्त की सौगन्ध खाकर प्रतिज्ञा करते हैं कि इस नदी के ऊपर कभी भी बाँध बनने नहीं देंगे । हमारी जमीन पर पानी भर जाय उससे तो अच्छा है कि हम मर जायें । हमें हमारे कोलम्बियन भाइयों को चेतावनी देनी चाहिए कि बाँध बनाने वाली कम्पनी में काम या नौकरी करना बन्द कर दें।"
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मुझे ऐसा लगा कि मैं गेरिला के आक्रमण का भोग बन गया होता तो अच्छा होता अथवा मैं स्वयं ही गेरिला बन जाऊँ तो अच्छा है, जिससे प्रतिदिन मैं मेरी नौकरी को अधिक से अधिक धिक्कारने लगूं। पौला ने मुझे कहा कि तुम्हारा यह लडाकू ध्येय बहुत सही है । तुम बाँध बना कर बिजली पैदा करोगे, वह तो कुछ धनवान कोलम्बियनों की मदद होगी। परन्तु हजारों कोलम्बियन तो मर ही जायेंगे, क्योंकि पानी ही प्रदूषित होगा, जिससे मछलियाँ भी मर जायेंगी।
    
पौला ने आगे कहा, 'विदेशी ऑयल कम्पनी के ऑफिस के बाहर प्रदर्शन किया, क्यों कि उनकी जमीनों के ऊपर तुमने तेल के कुँओं के लिए खुदाई की, उसका विरोध किया। पुलिस ने उनको पकड़कर मारा और जेल में डाल दिया । उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया था । केवल ऑफिस के बाहर खड़े होकर प्लेकार्ड हाथमें लेकर गाते गाते खड़े रहते थे। केवल इतने से विरोध के कारण ६ महीने तक जेल में रखा । जेल से बाहर आने के बाद वहाँ क्या हुआ कि उन्होंने उनसे बिल्कुल बात ही नहीं की । परन्तु वे जब जेल से बाहर आये तब अलग ही जाति के मनुष्य थे (आतंकवादी बनकर बाहर आये थे)
 
पौला ने आगे कहा, 'विदेशी ऑयल कम्पनी के ऑफिस के बाहर प्रदर्शन किया, क्यों कि उनकी जमीनों के ऊपर तुमने तेल के कुँओं के लिए खुदाई की, उसका विरोध किया। पुलिस ने उनको पकड़कर मारा और जेल में डाल दिया । उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया था । केवल ऑफिस के बाहर खड़े होकर प्लेकार्ड हाथमें लेकर गाते गाते खड़े रहते थे। केवल इतने से विरोध के कारण ६ महीने तक जेल में रखा । जेल से बाहर आने के बाद वहाँ क्या हुआ कि उन्होंने उनसे बिल्कुल बात ही नहीं की । परन्तु वे जब जेल से बाहर आये तब अलग ही जाति के मनुष्य थे (आतंकवादी बनकर बाहर आये थे)
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वैश्विक साम्राज्य आत्मकेन्द्री है, स्वार्थी है, लोभी है और अति भौतिकवादी, सारा ही खा जाना चाहता है, जो कुछ भी देखा वह ले लेना चाहता है, सत्ता और धन लेने के लिए तो वह चाहे जो साधन उपयोग में लेने के लिये तैयार रहता है।
 
वैश्विक साम्राज्य आत्मकेन्द्री है, स्वार्थी है, लोभी है और अति भौतिकवादी, सारा ही खा जाना चाहता है, जो कुछ भी देखा वह ले लेना चाहता है, सत्ता और धन लेने के लिए तो वह चाहे जो साधन उपयोग में लेने के लिये तैयार रहता है।
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मैंने देख लिया कि जो लोग अमेरिकन कोर्पोरेशन में काम करते हैं, वे भले ही आर्थिक हत्यारों के मायाजाल में शामिल न हों, फिर भी कोई व्यवस्थित रूप से रचे हुए षडयंत्र से भी अधिक विघातक कार्य में भाग ले रहे है।
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मैंने देख लिया कि जो लोग अमेरिकन कोर्पोरेशन में काम करते हैं, वे भले ही आर्थिक हत्यारों के मायाजाल में शामिल न हों, फिर भी कोई व्यवस्थित रूप से रचे हुए षडयंत्र से भी अधिक विघातक कार्य में भाग ले रहे हैं ।
    
==References==
 
==References==
 
<references />भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे
 
<references />भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे
 
[[Category:भारतीय शिक्षा ग्रंथमाला 5: पर्व 2: विश्वस्थिति का आकलन]]
 
[[Category:भारतीय शिक्षा ग्रंथमाला 5: पर्व 2: विश्वस्थिति का आकलन]]

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