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| + | == क्या वर्तमान विज्ञान सभी प्रश्नों के उत्तर दे सकता है? == |
| + | वर्तमान में साईंटिफिक टेम्परामेंट जिसे हम गलती से वैज्ञानिक दृष्टिकोण कहते हैं, को अनन्य साधारण महत्व प्राप्त हो गया है। जीवन के किसी भी पहलू से जुडी बात हो उसे साईंस की कसौटी पर तौला जाता है। वर्तमान में जिसे साईंस कहा जाता है वह प्रमुखत: पंचमहाभौतिक तत्वों से संबंध रखता है। इन पंचमहाभूतों से संबंधित जो भी सिद्धांत साईंटिस्टों ने प्रस्तुत किये है वे सत्य ही हैं। पंचमहाभूतों के संबंध में तो कसौटी साईंस के नियमों के आधार पर लगाई जाये यह उचित ही है। किन्तु विश्व केवल पंचमहाभूतों से ही नहीं बना। अन्य भी कुछ घटक मिलकर विश्व का निर्माण हुआ है। इस दृष्टि से साईंस की कसौटीयों की मर्यादाएं खींच जातीं हैं। मन, बुद्धि, अहंकार जैसी अनुभवजन्य,बातें, जो पंचमहाभूतों से अति सूक्ष्म है उन के लिये और परमात्व तत्व जैसी अनूभूतिजन्य बात के लिये साईंस की कसौटीयाँ लागू नहीं होतीं। |
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| + | वैसे तो एस्ट्रो फिजिक्स या पार्टिकल फिजिक्स जैसे क्षेत्रों में काम करने वाले वैज्ञानिक अपने प्रगत प्रयोगों के माध्यम से पंचमहाभौतिक से आगे मन और बुद्धि के क्षेत्र में विचार करने को बाध्य हो रहे हैं। आईन्स्टीन, नील बोर, हायज़ेनबर्ग, व्हीलर आदि और उन के अनुयायी ऐसे वैज्ञानिकों में रहे हैं जो भारतीय दर्शनों में साईंस को आगे बढाने की सम्भावनाएँ देखते हैं। उन के लिये भी ऐसा संतुलित और बुद्धियुक्त विश्लेषण लाभदायी होगा। |
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| + | अध्याय ३, श्लोक ४२ में बताया गया है<ref name=":0">श्रीमद्भगवद्गीता, 3-42</ref>:<blockquote>इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्य: परं मन।</blockquote><blockquote>मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुध्दे: परतस्तु स: ॥ 3-42 ॥ </blockquote><blockquote>अर्थात् इंद्रियों से मन सूक्ष्म है। मन से बुद्धि सूक्ष्म है। और आत्म तत्व तो बुद्धि से भी कहीं अधिक सूक्ष्म है। </blockquote>संस्कृत में सूक्ष्म का अर्थ होता है बलवान और व्यापक। पंचमहाभूतों से बनीं इंद्रियाँ स्थूल महाभूतों से तो सूक्ष्म है किन्तु मन उन से भी अधिक सूक्ष्म है। बुद्धि मन से और आत्म तत्व बुद्धि से भी अत्यंत सूक्ष्म है। जो सूक्ष्म होता है उसकी मापन पट्टी से तो जो उस से स्थूल है उस का मापन किया जा सकता है, किन्तु जो उस से अधिक सूक्ष्म है उस का मापन नहीं किया जा सकता। इस दृष्टि से आत्म तत्व की मापन पट्टी से बुद्धि का, बुद्धि की मापन पट्टी से मन का और मन की मापन पट्टी से इंद्रियों का और इंद्रियों की मापन पट्टी से स्थूल पंचमहाभूतों का मापन किया जा सकता है। किन्तु इस से उलट नहीं किया जा सकता। भौतिक उपकरणों से मन, बुद्धि और आत्म तत्व के व्यापारों का मापन नहीं किया जा सकता। वर्तमान साईंस के मापन के जो उपकरण हैं वे प्रकृति के पंचमहाभौतिक घटकों का तो मापन कर सकते है लेकिन इस से सूक्ष्म घटकों का मापन नहीं कर सकते। |
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| + | इस तरह इस से यह स्पष्ट होता है कि आत्म तत्व (इस मुख्य सेट का) यानी अध्यात्म के क्षेत्र के बुद्धि, मन और इन्द्रियाँ यह एक-एक हिस्से (सब-सेट) हैं। इसे समझने के उपरांत साईंस जो आज पंचमहाभूतों में उलझ गया है उस का मन, बुद्धि और अहंकार के अध्ययन का क्षेत्र खुल जाता है। |
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| == अभारतीय (मूलतः पश्चिमी) जीवनदृष्टि और इस पर आधारित व्यवहार सूत्र == | | == अभारतीय (मूलतः पश्चिमी) जीवनदृष्टि और इस पर आधारित व्यवहार सूत्र == |
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| # जैविक तंत्रज्ञान अनैतिक है। जैविक तन्त्रज्ञान सूक्ष्म तन्त्रज्ञान है। सूक्ष्म का अर्थ है अधिक बलवान। अधिक व्यापक। इन का चार या दस पीढियों के बाद की पीढियों पर क्या परिणाम होगा यह समझना इनका विकास करनेवालों के लिये संभव ही नहीं है। फिर भी कुछ प्रयोगों के आधार पर प्रतिजैविकों को मनुष्य के लिये योग्य होने की घोषणा अनैतिक ही है। एक ही पीढी में तेजी से परिवर्तन करनेवाले जैविक तन्त्रज्ञान प्रकृति में जो सहज परस्परावलंबन है उस की किसी कडी को हानि पहुँचाते हैं। लाखों की संख्या में जो जीवजातियाँ हैं उन के इस परस्परावलंबन को पूरी तरह से समझना असंभव है। फिर भी इस का झूठा दावा कर जैविक परिवर्तन करने के तन्त्रज्ञान वर्तमान में बाजार व्याप रहे हैं। ऐसे तन्त्रज्ञान सर्वथा अमान्य हैं। | | # जैविक तंत्रज्ञान अनैतिक है। जैविक तन्त्रज्ञान सूक्ष्म तन्त्रज्ञान है। सूक्ष्म का अर्थ है अधिक बलवान। अधिक व्यापक। इन का चार या दस पीढियों के बाद की पीढियों पर क्या परिणाम होगा यह समझना इनका विकास करनेवालों के लिये संभव ही नहीं है। फिर भी कुछ प्रयोगों के आधार पर प्रतिजैविकों को मनुष्य के लिये योग्य होने की घोषणा अनैतिक ही है। एक ही पीढी में तेजी से परिवर्तन करनेवाले जैविक तन्त्रज्ञान प्रकृति में जो सहज परस्परावलंबन है उस की किसी कडी को हानि पहुँचाते हैं। लाखों की संख्या में जो जीवजातियाँ हैं उन के इस परस्परावलंबन को पूरी तरह से समझना असंभव है। फिर भी इस का झूठा दावा कर जैविक परिवर्तन करने के तन्त्रज्ञान वर्तमान में बाजार व्याप रहे हैं। ऐसे तन्त्रज्ञान सर्वथा अमान्य हैं। |
| # इसी तरह से नैनो तन्त्रज्ञान भी सूक्ष्म तन्त्रज्ञान है। इनका भी चराचर के ऊपर क्या और कैसा सूक्ष्म प्रभाव होगा इसकी जानकारी नहीं होती। लाखों जीवजातियों के ऊपर इनका होनेवाला सूक्ष्म प्रभाव जानना असंभव है। | | # इसी तरह से नैनो तन्त्रज्ञान भी सूक्ष्म तन्त्रज्ञान है। इनका भी चराचर के ऊपर क्या और कैसा सूक्ष्म प्रभाव होगा इसकी जानकारी नहीं होती। लाखों जीवजातियों के ऊपर इनका होनेवाला सूक्ष्म प्रभाव जानना असंभव है। |
− | == जीवन का पूरा प्रतिमान ही अभारतीय ==
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− | अंग्रेजों ने हमारे पूरे जीवन के धार्मिक (भारतीय) प्रतिमान को ही नष्ट कर उस के स्थान पर अपना अंग्रेजी जीवन का प्रतिमान स्थापित कर दिया है। जीवन दृष्टि, जीवन शैली (व्यवहार सूत्र) और सामाजिक जीवन की व्यवस्थाएं इन को मिलाकर जीवन का प्रतिमान बनता है। हमारी जीवन दृष्टि, जीवन शैली (व्यवहार सूत्र) और सामाजिक जीवन की व्यवस्थाएं सभी अधार्मिक (अभारतीय) बन गये हैं। यदि कुछ शेष है तो पिछली पीढियों के कुछ लोग जो धार्मिक (भारतीय) जीवनदृष्टि को जानने वाले हैं। व्यवहार तो उन के भी मोटे तौर पर अधार्मिक (अभारतीय) जीवनदृष्टि के अनुरूप ही होते हैं। युवा पीढ़ी के तो शायद ही कोई धार्मिक (भारतीय) जीवन दृष्टि से परिचित होंगे। जब जीवन दृष्टि से ही युवा पीढ़ी अपरिचित है तो धार्मिक (भारतीय) जीवनशैली और जीवन व्यवस्थाओं की समझ की उन से अपेक्षा भी नहीं की जा सकती।
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− | १९४७ में हम स्वाधीन हुए। स्वतंत्र नहीं। स्वतंत्र होने का तो कोई विचार भी हमारे मन में कभी आता नहीं है। स्वतंत्र का अर्थ है अपने तंत्रों के साथ याने अपनी व्यवस्थाओं के साथ जीनेवाले। अंग्रेजों ने भारत में स्थापित की हुई शासन, प्रशासन, न्याय, अर्थ, उद्योग, कृषि, जल प्रबंधन, शिक्षा आदि में से एक भी व्यवस्था को हमने अपनी जीवन दृष्टि और जीवन शैली के अनुसार बदलने का विचार भी नहीं किया है। प्रत्यक्ष बदलना तो बहुत दूर की बात है।
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− | == साईंटिफिक टेम्परामेंट का आतंक ==
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− | वर्तमान में साईंटिफिक टेम्परामेंट जिसे हम गलती से वैज्ञानिक दृष्टिकोण कहते हैं, को अनन्य साधारण महत्व प्राप्त हो गया है। जीवन के किसी भी पहलू से जुडी बात हो उसे साईंस की कसौटी पर तौला जाता है। वर्तमान में जिसे साईंस कहा जाता है वह प्रमुखत: पंचमहाभौतिक तत्वों से संबंध रखता है। इन पंचमहाभूतों से संबंधित जो भी सिद्धांत साईंटिस्टों ने प्रस्तुत किये है वे सत्य ही हैं। पंचमहाभूतों के संबंध में तो कसौटी साईंस के नियमों के आधार पर लगाई जाये यह उचित ही है। किन्तु विश्व केवल पंचमहाभूतों से ही नहीं बना। अन्य भी कुछ घटक मिलकर विश्व का निर्माण हुआ है। इस दृष्टि से साईंस की कसौटीयों की मर्यादाएं खींच जातीं हैं। मन, बुद्धि, अहंकार जैसी अनुभव जन्य बातों के लिये जो पंचमहाभूतों से अति सूक्ष्म है उन के लिये और परमात्व तत्व जैसी अनूभूति जन्य बात के लिये साईंस की कसौटीयाँ लागू नहीं होतीं। किन्तु आज के साईंटिस्ट सामान्यत: यह समझते नहीं हैं।
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− | वास्तव में धार्मिक (भारतीय) शास्त्रों के ज्ञाता जब वर्तमान साईंस का भी ठीक अध्ययन कर दोनों की संतुलित विश्लेषणात्मक प्रस्तुति करेंगे तब न केवल कसौटी की समस्या दूर होगी साथ ही में साईंस का मार्ग जो आज पंचमहाभौतिक में उलझ जाने के कारण अवरूध्द हुआ है, वह भी प्रशस्त होगा। वैसे तो एस्ट्रो फिजिक्स या पार्टिकल फिजिक्स जैसे क्षेत्रों में काम करने वाले वैज्ञानिक अपने प्रगत प्रयोगों के माध्यम से पंचमहाभौतिक से आगे मन और बुद्धि के क्षेत्र में विचार करने को बाध्य हो रहे हैं। आईन्स्टीन, नील बोर, हायज़ेनबर्ग, व्हीलर आदि और उन के अनुयायी ऐसे वैज्ञानिकों में रहे हैं जो धार्मिक (भारतीय) दर्शनों में साईंस को आगे बढाने की सम्भावनाएँ देखते हैं। उन के लिये भी ऐसा संतुलित और बुद्धियुक्त विश्लेषण लाभदायी होगा।
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− | परमात्म तत्व के अलावा सृष्टि में कुछ भी नहीं है। चराचर सृष्टि का प्रत्येक अस्तित्व इसी अष्टधा प्रकृति का ही बना हुआ है। यह प्रत्येक अस्तित्व अन्य कुछ नहीं, परमात्म तत्व के ही विविध रूप हैं इसे जानना ही विज्ञान है।
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− | इसी प्रकार से अध्याय ३, श्लोक ४२ में बताया गया है<ref name=":0">श्रीमद्भगवद्गीता, 3-42</ref>:<blockquote>इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्य: परं मन।</blockquote><blockquote>मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुध्दे: परतस्तु स: ॥ 3-42 ॥ </blockquote><blockquote>अर्थात् इंद्रियों से मन सूक्ष्म है। मन से बुद्धि सूक्ष्म है। और आत्म तत्व तो बुद्धि से भी कहीं अधिक सूक्ष्म है। </blockquote>संस्कृत में सूक्ष्म का अर्थ होता है बलवान और व्यापक। पंचमहाभूतों से बनीं इंद्रियाँ स्थूल महाभूतों से तो सूक्ष्म है किन्तु मन उन से भी अधिक सूक्ष्म है। बुद्धि मन से और आत्म तत्व बुद्धि से भी अत्यंत सूक्ष्म है। जो सूक्ष्म होता है उसकी मापन पट्टी से तो जो उस से स्थूल है उस का मापन किया जा सकता है, किन्तु जो उस से अधिक सूक्ष्म है उस का मापन नहीं किया जा सकता। इस दृष्टि से आत्म तत्व की मापन पट्टी से बुद्धि का, बुद्धि की मापन पट्टी से मन का और मन की मापन पट्टी से इंद्रियों का और इंद्रियों की मापन पट्टी से स्थूल पंचमहाभूतों का मापन किया जा सकता है। किन्तु इस से उलट नहीं किया जा सकता। भौतिक उपकरणों से मन, बुद्धि और आत्म तत्व के व्यापारों का मापन नहीं किया जा सकता। वर्तमान साईंस के मापन के जो उपकरण हैं वे प्रकृति के पंचमहाभौतिक घटकों का तो मापन कर सकते है लेकिन इस से सूक्ष्म घटकों का मापन नहीं कर सकते।
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− | इस तरह इस से यह स्पष्ट होता है कि आत्म तत्व (इस मुख्य सेट का) यानी अध्यात्म के क्षेत्र के बुद्धि, मन और इन्द्रियाँ यह एक-एक हिस्से (सब-सेट) हैं। इसे समझने के उपरांत साईंस जो आज पंचमहाभूतों में उलझ गया है उस का मन, बुद्धि और अहंकार के अध्ययन का क्षेत्र खुल जाता है।
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| == अध्ययन और अनुसंधान के क्षेत्र में प्रमाण का अधिष्ठान == | | == अध्ययन और अनुसंधान के क्षेत्र में प्रमाण का अधिष्ठान == |
| आजकल वर्तमान शिक्षा के परिणाम स्वरूप और लिखने पढने का ज्ञान हो जाने से लोगों को लगने लगा है कि लिखा है और उससे भी अधिक जो छपा है वह सत्य ही होगा। भारतीय जीवन दृष्टि के अनुसार कहा गया है 'ना मूलं लिख्यते किंचित'{{Citation needed}}। इस का अर्थ है बगैर प्रमाण के कुछ नहीं लिखना। केवल कहीं किसी के कुछ लिख देने से या किसी वर्तमान पत्र में या पुस्तक में लिखे जाने से उसे सत्य नहीं माना जा सकता। | | आजकल वर्तमान शिक्षा के परिणाम स्वरूप और लिखने पढने का ज्ञान हो जाने से लोगों को लगने लगा है कि लिखा है और उससे भी अधिक जो छपा है वह सत्य ही होगा। भारतीय जीवन दृष्टि के अनुसार कहा गया है 'ना मूलं लिख्यते किंचित'{{Citation needed}}। इस का अर्थ है बगैर प्रमाण के कुछ नहीं लिखना। केवल कहीं किसी के कुछ लिख देने से या किसी वर्तमान पत्र में या पुस्तक में लिखे जाने से उसे सत्य नहीं माना जा सकता। |
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| # जीवन के धार्मिक (भारतीय) प्रतिमान की समझ नष्ट हो गई है। वर्तमान अधार्मिक (अभारतीय) प्रतिमान को ही अपना प्रतिमान माना जा रहा। | | # जीवन के धार्मिक (भारतीय) प्रतिमान की समझ नष्ट हो गई है। वर्तमान अधार्मिक (अभारतीय) प्रतिमान को ही अपना प्रतिमान माना जा रहा। |
| # एकात्मता का जप करते हुए अनात्मवादी, विखण्डित पद्दति से विचार हो रहा है। | | # एकात्मता का जप करते हुए अनात्मवादी, विखण्डित पद्दति से विचार हो रहा है। |
| + | # भारतीय शास्त्रों के ज्ञाता जब वर्तमान साईंस का ठीक अध्ययन कर दोनों की संतुलित विश्लेषणात्मक प्रस्तुति करेंगे तब साईंस का मार्ग जो आज पंचमहाभौतिक में उलझ जाने के कारण अवरूध्द हुआ है, वह भी प्रशस्त होगा। |
| == शोध विषय सूची == | | == शोध विषय सूची == |
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