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| गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा । पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः ॥१५- १३॥ | | गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा । पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः ॥१५- १३॥ |
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| + | gām āviśya ca bhūtāni dhārayāmy aham ojasā puṣṇāmi cauṣadhīḥ sarvāḥ somo bhūtvā rasātmakaḥ ॥15-13॥ |
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| अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः । प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम् ॥१५- १४॥ | | अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः । प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम् ॥१५- १४॥ |
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| + | ahaṁ vaiśvānaro bhūtvā prāṇināṁ deham āśritaḥ prāṇāpāna-samāyuktaḥ pacāmy annaṁ catur-vidham ॥15-14॥ |
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| सर्वस्य चाहं हृदि संनिविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च । वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् ॥१५- १५॥ | | सर्वस्य चाहं हृदि संनिविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च । वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् ॥१५- १५॥ |
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| + | sarvasya cāhaṁ hṛdi sanniviṣṭo mattaḥ smṛtir jñānam apohanaṁ ca vedaiś ca sarvair aham eva vedyo vedānta-kṛd veda-vid eva cāham ॥15-15॥ |
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| द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च । क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते ॥१५- १६॥ | | द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च । क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते ॥१५- १६॥ |
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| + | dvāv imau puruṣau loke kṣaraś cākṣara eva ca kṣaraḥ sarvāṇi bhūtāni kūṭa-stho ’kṣara ucyate ॥15-16॥ |
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| उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदाहृतः । यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः ॥१५- १७॥ | | उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदाहृतः । यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः ॥१५- १७॥ |
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| + | uttamaḥ puruṣas tv anyaḥ paramātmety udāhṛtaḥ yo loka-trayam āviśya bibharty avyaya īśvaraḥ ॥15-17॥ |
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| यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तमः । अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुषोत्तमः ॥१५- १८॥ | | यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तमः । अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुषोत्तमः ॥१५- १८॥ |
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| + | yasmāt kṣaram atīto ’ham akṣarād api cottamaḥ ato ’smi loke vede ca prathitaḥ puruṣottamaḥ ॥15-18॥ |
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| यो मामेवमसंमूढो जानाति पुरुषोत्तमम् । स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत ॥१५- १९॥ | | यो मामेवमसंमूढो जानाति पुरुषोत्तमम् । स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत ॥१५- १९॥ |
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| + | yo mām evam asammūḍho jānāti puruṣottamam sa sarva-vid bhajati māṁ sarva-bhāvena bhārata ॥15-19॥ |
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| इति गुह्यतमं शास्त्रमिदमुक्तं मयानघ । एतद्बुद्ध्वा बुद्धिमान्स्यात्कृतकृत्यश्च भारत ॥१५- २०॥ | | इति गुह्यतमं शास्त्रमिदमुक्तं मयानघ । एतद्बुद्ध्वा बुद्धिमान्स्यात्कृतकृत्यश्च भारत ॥१५- २०॥ |
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| + | iti guhya-tamaṁ śāstram idam uktaṁ mayānagha etad buddhvā buddhimān syāt kṛta-kṛtyaś ca bhārata ॥15-20॥ |
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| ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुन संवादे पुरुषोत्तमयोगो नाम पञ्चदशोऽध्यायः ॥ १५ ॥ | | ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुन संवादे पुरुषोत्तमयोगो नाम पञ्चदशोऽध्यायः ॥ १५ ॥ |