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महान विष्णुभक्त [[Bali Chakravarti (बलिचक्रवर्तिः)|राजा बलि]] प्रसिद्ध भगवद्भक्त [[Prahlada (प्रह्लादः)|प्रह्लाद]] के पौत्र थे। इन्होंने अपने पराक्रम से देवलोक पर अधिकार कर लिया था। इन्द्रासन का अधिकारी बनने के लिए इन्होंने एक सौ [[Ashvamedha Yajna (अश्वमेधयज्ञः)|अश्वमेध यज्ञ]] किये। अंतिम सौवें अश्वमेध यज्ञ के समय देवगण चिन्तित होकर भगवान विष्णु की शरण में गये। विष्णु [[Vamana Avatara (वामनावतारः)|वामन]] रूप धारण कर यज्ञ-स्थल पर पहुँचे और बलि से तीन पद (पग) भूमि माँगी। दैत्यगुरु शुक्राचार्य के निषेध करने पर भी बलि ने वामन को तीन पद भूमि दान दे दी। भगवान वामन ने प्रथम दो पदों से मर्त्यलोक और स्वर्गलोक नाप लिये। तब तीसरा पद रखने के लिए बलि ने अपना मस्तक झुका दिया। भगवान प्रसन्न हुए। उन्होंने बलि राजा को पाताल का अधिपति बना दिया। राजा बलि का चरित्र दानशीलता, वचनबद्धता और विष्णुभक्ति का अनुपम उदाहरण है। कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा बलि-प्रतिपदा के रूप में मनायी जाती है और इस दिन बलिपूजन किया जाता है।
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