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==== सात्विक आहार के लक्षण ====
 
==== सात्विक आहार के लक्षण ====
सात्विक स्वभाव के मनुष्यों को जो प्रिय है वह सात्विक आहार है ऐसा श्रीमद भगवदगीता <ref name=":0">श्रीमद भगवदगीता श्लोक 17.8 </ref><ref name=":0" />में कहा है । ऐसे आहार का वर्णन इस प्रकार किया गया है: <blockquote>आयुःसत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।</blockquote><blockquote>रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः।।17.8।।</blockquote><blockquote>अर्थात्‌ आयु, सत्त्व (शुद्धि), बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को प्रवृद्ध करने वाले एवं रसयुक्त, स्निग्ध ( घी आदि की चिकनाई से युक्त) स्थिर तथा मन को प्रसन्न करने वाले आहार अर्थात् भोज्य पदार्थ सात्त्विक पुरुषों को प्रिय होते हैं।।<ref name=":1"><nowiki>https://www.gitasupersite.iitk.ac.in/srimad?language=dv&field_chapter_value=17&field_nsutra_value=8&htrskd=1&httyn=1&htshg=1&scsh=1&etsiva=1&etpurohit=1</nowiki> (स्वामी तेजोमायानंद द्वारा हिन्दी अनुवाद) </ref><ref name=":1" /></blockquote>
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सात्विक स्वभाव के मनुष्यों को जो प्रिय है वह सात्विक आहार है ऐसा श्रीमद भगवदगीता <ref name=":0">श्रीमद भगवदगीता श्लोक 17.8 </ref><ref name=":0" />में कहा है । ऐसे आहार का वर्णन इस प्रकार किया गया है: <blockquote>आयुःसत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।</blockquote><blockquote>रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः।।17.8।।</blockquote><blockquote>अर्थात्‌ आयु, सत्त्व (शुद्धि), बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को प्रवृद्ध करने वाले एवं रसयुक्त, स्निग्ध ( घी आदि की चिकनाई से युक्त) स्थिर तथा मन को प्रसन्न करने वाले आहार अर्थात् भोज्य पदार्थ सात्त्विक पुरुषों को प्रिय होते हैं।।<ref name=":1"><nowiki>https://www.gitasupersite.iitk.ac.in/srimad?language=dv&field_chapter_value=17&field_nsutra_value=8&htrskd=1&httyn=1&htshg=1&scsh=1&etsiva=1&etpurohit=1</nowiki> (स्वामी तेजोमायानंद द्वारा हिन्दी अनुवाद) </ref></blockquote>
    
==== स्निग्ध आहार किसे कहते हैं ? सात्त्विक आहार क्या-क्या बढ़ाता है ? ====
 
==== स्निग्ध आहार किसे कहते हैं ? सात्त्विक आहार क्या-क्या बढ़ाता है ? ====
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=== कब खायें ===
 
=== कब खायें ===
आहार लेने के बाद उसका पाचन होनी चाहिये । शरीर में पाचनतन्त्र होता है। साथ ही अन्न को पचाकर उसका रस बनाने वाला जठराग्नि होता है । आंतें, आमाशय, अन्ननलिका, दाँत आदि तथा विभिन्न प्रकार के पाचनरस अपने आप अन्न को नहीं पचाते, जठराग्नि ही अन्न को पचाती है। शरीर के अंग पात्र हैं और विभिन्न पाचक रस मानो मसाले हैं । जठराग्नि नहीं है तो पात्र और मसाले क्या काम आयेंगे ?
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आहार लेने के बाद उसका पाचन होनी चाहिये । शरीर में पाचनतन्त्र होता है। साथ ही अन्न को पचाकर उसका रस बनाने वाला जठराग्नि होता है । आंतें, आमाशय, अन्ननलिका, दाँत आदि तथा विभिन्न प्रकार के पाचनरस अपने आप अन्न को नहीं पचाते, जठराग्नि ही अन्न को पचाती है। शरीर के अंग पात्र हैं और विभिन्न पाचक रस मानो मसाले हैं । जठराग्नि नहीं है तो पात्र और मसाले क्या काम आयेंगे ? अतः जठराग्नि अच्छा होना चाहिये, प्रदीप्त होना चाहिये।
 
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अतः जठराग्नि अच्छा होना चाहिये, प्रदीप्त होना चाहिये।
      
जठराग्नि का सम्बन्ध सूर्य के साथ है । सूर्य उगने के बाद जैसे जैसे आगे बढता है वैसे वैसे जठराग्नि भी प्रदीप्त होता जाता है । मध्याहन के समय जठराग्नि सर्वाधिक प्रदीप्त होता है । मध्याह्न के बाद धीरे धीरे शान्त होता जाता है । अतः मध्याह्न से आधा घण्टा पूर्व दिन का मुख्य भोजन करना चाहिये । दिन के सभी समय के आहार दिन दहते ही लेने चाहिये । प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व और सायंकाल सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिये । प्रातःकाल का नास्ता और सायंकाल का भोजन लघु अर्थात् हल्का होना चाहिये। समय के विपरीत भोजन करने से लाभ नहीं होता, उल्टे हानि ही होती है।
 
जठराग्नि का सम्बन्ध सूर्य के साथ है । सूर्य उगने के बाद जैसे जैसे आगे बढता है वैसे वैसे जठराग्नि भी प्रदीप्त होता जाता है । मध्याहन के समय जठराग्नि सर्वाधिक प्रदीप्त होता है । मध्याह्न के बाद धीरे धीरे शान्त होता जाता है । अतः मध्याह्न से आधा घण्टा पूर्व दिन का मुख्य भोजन करना चाहिये । दिन के सभी समय के आहार दिन दहते ही लेने चाहिये । प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व और सायंकाल सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिये । प्रातःकाल का नास्ता और सायंकाल का भोजन लघु अर्थात् हल्का होना चाहिये। समय के विपरीत भोजन करने से लाभ नहीं होता, उल्टे हानि ही होती है।
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आटे को घी में सेंककर उसमें पानी तथा गुड या शक्कर मिलाकर पकाया जाता है वह हलवा है।
 
आटे को घी में सेंककर उसमें पानी तथा गुड या शक्कर मिलाकर पकाया जाता है वह हलवा है।
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आबालवृध्ध सब खा सकते हैं। मेहमान को भी परोस सकते हैं, किसी भी समय पर किसी भी ऋतु में किसी भी अवसर पर नाश्ते अथवा भोजन में भी खाया जाता है। किसी भी पदार्थ के साथ खाया जाता है, जो सादा भी होता है, पानी के स्थान पर दूध मिलाकर भी हो सकता है, उसमें बदाम-केसर-पिस्ता चारोली इलायची जैसा सूखा मेवा भी डाल सकते हैं। और सत्यनारायण का प्रसाद भी बन सके ऐसा यह अदभुत पदार्थ बनाने में सरल, झटपट, स्वाद में रुचिकर और पाचन में भी लघु और पौष्टिक है।  
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आबालवृद्ध सब खा सकते हैं। मेहमान को भी परोस सकते हैं, किसी भी समय पर किसी भी ऋतु में किसी भी अवसर पर नाश्ते अथवा भोजन में भी खाया जाता है। किसी भी पदार्थ के साथ खाया जाता है, जो सादा भी होता है, पानी के स्थान पर दूध मिलाकर भी हो सकता है, उसमें बदाम-केसर-पिस्ता चारोली इलायची जैसा सूखा मेवा भी डाल सकते हैं। और सत्यनारायण का प्रसाद भी बन सके ऐसा यह अदभुत पदार्थ बनाने में सरल, झटपट, स्वाद में रुचिकर और पाचन में भी लघु और पौष्टिक है।  
    
==== सुखडी ====
 
==== सुखडी ====
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==== मुरमुरे की चटपटी ====
 
==== मुरमुरे की चटपटी ====
मुरमुरे भीगोकर पूरा पानी निकालकर सब मसाले एवं गाजर, पत्ता गोभी इत्यादि को मिलाकर थोडी देर पकाया हुआ पदार्थ। मनचाहे मसाले डालकर स्वादिष्ट बनाया जाता है।  माध्यम पौष्टिक, बनाने में सरल परन्तु पोहे से कम प्रचलित।  
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मुरमुरे भीगोकर पूरा पानी निकालकर सब मसाले एवं गाजर, पत्ता गोभी इत्यादि को मिलाकर थोडी देर पकाया हुआ पदार्थ। मनचाहे मसाले डालकर स्वादिष्ट बनाया जाता है।  माध्यम पौष्टिक, बनाने में सरल परन्तु पोहे से कम प्रचलित। मनचाहे मसाले डालकर स्वादिष्ट बनाया जाता है। मध्यम पौष्टिक, बनाने में सरल परन्तु पोहे से कम पौष्टिक।
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हुआ पदार्थ । मनचाहे मसाले डालकर स्वादिष्ट बनाया जाता है। मध्यम पौष्टिक, बनाने में सरल परन्तु पोहे से कम
      
==== उपमा ====
 
==== उपमा ====
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==== पूरी, थेपला इत्यादि ====
 
==== पूरी, थेपला इत्यादि ====
गेहूं का आटा मोन लगाकर, आवश्यक मसाला डालकर, आवश्यकता के अनुसार पानी से गूंदकर बेलकर के बनाया जाता हैं। पूरी अथवा थेपला, जो बनाना है उसके अनुसार उसका आकार छोटा या बडा, पतला या मोटा हो सकता है। ऐसा बेलने के बाद पूरी बनानी है तो कडाईमे तेल लेकर तलना होता है। और थेपला बनाना है तो तवे पर तेल डालकर सेंकना होता है। खट्टे अथवा मीठे अचार के साथ, दूध अथवा चाय के साथ अथवा सब्जी के साथ भी खा सकते हैं। पौष्टिकता में थेपला प्रथम है, पूरी बादमें ।
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गेहूं का आटा मोन लगाकर, आवश्यक मसाला डालकर, आवश्यकता के अनुसार पानी से गूंदकर बेलकर के बनाया जाता हैं। पूरी अथवा थेपला, जो बनाना है उसके अनुसार उसका आकार छोटा या बडा, पतला या मोटा हो सकता है। ऐसा बेलने के बाद पूरी बनानी है तो कडाईमे तेल लेकर तलना होता है। और थेपला बनाना है तो तवे पर तेल डालकर सेंकना होता है। खट्टे अथवा मीठे अचार के साथ, दूध अथवा चाय के साथ अथवा सब्जी के साथ भी खा सकते हैं। पौष्टिकता में थेपला प्रथम है, पूरी बादमें । गुजरात से लेकर समग्र उत्तर भारत में रोटी अथवा पराठा के विविध रुपों में यह पदार्थ प्रचलित है, परिचित है, और प्रतिष्ठित भी है।
 
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गुजरात से लेकर समग्र उत्तर भारत में रोटी अथवा पराठा के विविध रुपों में यह पदार्थ प्रचलित है, परिचित है, और प्रतिष्ठित भी है।  
      
==== खमण ====
 
==== खमण ====
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===== रोटीचूरा =====
 
===== रोटीचूरा =====
रात के भोजन से बची हुई रोटी को मसलकर उसका या तो चूर्ण बनाया जाता है, या छोटे छोटे टुकडे। उसमें नमक, मिर्च आदि मनपसन्द मसाला डालकर छौंककर गरम किया जाता है। उसे रोटी का उपमा कह सकते हैं। उसी प्रकार छाछ छौंक कर उसमें रोटी के थोडे बडे टुकडे डाले जाते हैं और रुचि के अनुसार मसाले डाले जाते है।  
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रात के भोजन से बची हुई रोटी को मसलकर उसका या तो चूर्ण बनाया जाता है, या छोटे छोटे टुकडे। उसमें नमक, मिर्च आदि मनपसन्द मसाला डालकर छौंककर गरम किया जाता है। उसे रोटी का उपमा कह सकते हैं। उसी प्रकार छाछ छौंक कर उसमें रोटी के थोडे बड़े टुकडे डाले जाते हैं और रुचि के अनुसार मसाले डाले जाते है।  
    
===== रोटी का लड्ड =====
 
===== रोटी का लड्ड =====
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===== खिचडी के पराठे, पकौडे =====
 
===== खिचडी के पराठे, पकौडे =====
बची हुई खिचडी में गेहूं का आटा मिलाकर, अच्छी तरह गँधकर उसके पराठे बनाये जाते हैं। उसमें बेसन मिलाकर पकौडे तले जाते हैं या गेहूँ चने आदि दो तीन प्रकार का आटा मिलाकर उसके छोटे छोटे गोले बनाकर, उन्हे भाँप पर पकाकर फिर छौंक कर बडे या बडियाँ बनाई जाती हैं। खिचडी में इसी प्रकार से आटा मिलाकर, उसे गूंधकर खाखरा या सूखी रोटी बनाई जाती है।  
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बची हुई खिचडी में गेहूं का आटा मिलाकर, अच्छी तरह गँधकर उसके पराठे बनाये जाते हैं। उसमें बेसन मिलाकर पकौडे तले जाते हैं या गेहूँ चने आदि दो तीन प्रकार का आटा मिलाकर उसके छोटे छोटे गोले बनाकर, उन्हे भाँप पर पकाकर फिर छौंक कर बड़े या बडियाँ बनाई जाती हैं। खिचडी में इसी प्रकार से आटा मिलाकर, उसे गूंधकर खाखरा या सूखी रोटी बनाई जाती है।  
    
===== दालभात मिक्स =====
 
===== दालभात मिक्स =====
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# यही आदत बिना किसी प्रयोजन के बोतल का पानी फेंक देने की है। केवल मजे मजे में पानी गिराना पैसे बर्बाद करना ही है। इस आदत को भी ठीक करना चाहिये।  
 
# यही आदत बिना किसी प्रयोजन के बोतल का पानी फेंक देने की है। केवल मजे मजे में पानी गिराना पैसे बर्बाद करना ही है। इस आदत को भी ठीक करना चाहिये।  
 
# पैसा खर्च करके खरीदे हुए पानी को एक क्षण में फैंक देने का प्रचलन भी बहुत बढ़ रहा है। पानी की बर्बादी के साथ साथ यह पैसे की भी बर्बादी है। बुद्धि हीनता के साथ साथ यह असंस्कारिता की भी निशानी है।  
 
# पैसा खर्च करके खरीदे हुए पानी को एक क्षण में फैंक देने का प्रचलन भी बहुत बढ़ रहा है। पानी की बर्बादी के साथ साथ यह पैसे की भी बर्बादी है। बुद्धि हीनता के साथ साथ यह असंस्कारिता की भी निशानी है।  
# बडे बडे समारोहों में पीने का पानी और हाथ धोने का पानी एक साथ रखा भी जाता है और गिराया भी जाता है। ऐसे स्थानों पर गन्दगी हो जाती है और
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# बड़े बड़े समारोहों में पीने का पानी और हाथ धोने का पानी एक साथ रखा भी जाता है और गिराया भी जाता है। ऐसे स्थानों पर गन्दगी हो जाती है और
 
# पानी की बहुत बर्बादी होती है । इसे ठीक करने की क्रियात्मक शिक्षा विद्यालय में ही देने की आवश्यकता है।
 
# पानी की बहुत बर्बादी होती है । इसे ठीक करने की क्रियात्मक शिक्षा विद्यालय में ही देने की आवश्यकता है।
 
# पानी के सम्बन्ध में भावात्मक शिक्षा
 
# पानी के सम्बन्ध में भावात्मक शिक्षा
# क्रियात्मक शिक्षा के साथ ही भावात्मक शिक्षा भी देनी चाहिये । भावात्मक शिक्षा से क्रिया के साथ श्रद्धा जुडती है और निष्ठा बनती है। कुछ इन बातों पर विचार किया जा सकता है:  
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# क्रियात्मक शिक्षा के साथ ही भावात्मक शिक्षा भी देनी चाहिये । भावात्मक शिक्षा से क्रिया के साथ श्रद्धा जुडती है और निष्ठा बनती है। कुछ इन बातों पर विचार किया जा सकता है:
 
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## पानी को पवित्र मानना सिखाना चाहिये । पवित्रता केवल शुद्धता नहीं है। शुद्धता के साथ जब सात्त्विकता जुडती है तब पवित्रता बनती है ।  
# पानी को पवित्र मानना सिखाना चाहिये । पवित्रता केवल शुद्धता नहीं है। शुद्धता के साथ जब सात्त्विकता जुडती है तब पवित्रता बनती है ।  
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## पवित्र पदार्थ या स्थान के साथ आदरयुक्त व्यवहार होता है। पवित्रता की रक्षा करने के लिये हम अपवित्र शरीर और मन से उसके पास नहीं जाते हैं । उदाहरण के लिये घर में जहाँ पीने का पानी रखा जाता है वहाँ कोई जूते पहनकर या बिना स्नान किये नहीं जाता है। यह दीर्घकाल की परम्परा है। हम विद्यालय में भी ऐसी व्यवस्था कर सकते हैं ।
# पवित्र पदार्थ या स्थान के साथ आदरयुक्त व्यवहार होता है। पवित्रता की रक्षा करने के लिये हम अपवित्र शरीर और मन से उसके पास नहीं जाते हैं । उदाहरण के लिये घर में जहाँ पीने का पानी रखा जाता है वहाँ कोई जूते पहनकर या बिना स्नान किये नहीं जाता है। यह दीर्घकाल की परम्परा है। हम विद्यालय में भी ऐसी व्यवस्था कर सकते हैं ।
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## जहाँ पीने का पानी रखा होता है वहाँ सायंकाल संध्या के समय दीपक जलाया जाता है। इससे पर्यावरण की शुद्धि होती है । पवित्रता की भावना भी निर्माण होती है।  
# जहाँ पीने का पानी रखा होता है वहाँ सायंकाल संध्या के समय दीपक जलाया जाता है। इससे पर्यावरण की शुद्धि होती है । पवित्रता की भावना भी निर्माण होती है।  
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## पानी को जलदेवता मानने का प्रचलन शुरू करना चाहिये । जलदेवता की स्तुति करनेवाले मंत्र ऋग्वेद में तो हैं परन्तु हिन्दी में और हर भारतीय भाषा में रचे जा सकते हैं । जलदेवता की स्तुति के गीत भी रचे जा सकते हैं । पानी का प्रयोग करते समय इन मन्त्रों का उच्चारण करने की प्रथा भी शुरु की जा सकती है।  
# पानी को जलदेवता मानने का प्रचलन शुरू करना चाहिये । जलदेवता की स्तुति करनेवाले मंत्र ऋग्वेद में तो हैं परन्तु हिन्दी में और हर भारतीय भाषा में रचे जा सकते हैं । जलदेवता की स्तुति के गीत भी रचे जा सकते हैं । पानी का प्रयोग करते समय इन मन्त्रों का उच्चारण करने की प्रथा भी शुरु की जा सकती है।  
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## पानी का संग्रह जहाँ किया जाता है वहाँ भी जूते पहनकर नहीं जाना, आसपास में गन्दगी नहीं करना, उस स्थान की सफाई के लिये अलग से झाडू आदि की व्यवस्था करना आदि माध्यमो से पवित्रता का भाव जगाया जा सकता है।  
# पानी का संग्रह जहाँ किया जाता है वहाँ भी जूते पहनकर नहीं जाना, आसपास में गन्दगी नहीं करना, उस स्थान की सफाई के लिये अलग से झाडू आदि की व्यवस्था करना आदि माध्यमो से पवित्रता का भाव जगाया जा सकता है।  
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## जलदेवता को सन्तुष्ट और प्रसन्न करने के लिये यज्ञों की रचना करनी चाहिये । यज्ञ में जलदेवता के लिये आहुति देनी चाहिये । जलदेवता प्रसन्न हों इस दृष्टि से जिस प्रकार नये मन्त्रों की रचना होगी उसी प्रकार यज्ञ में होम करने की सामग्री का भी भौतिक विज्ञान की दृष्टि से विचार होगा। यज्ञ तो वैज्ञानिक अनुष्ठान है ही, उसे आज की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके ऐसा स्वरूप दिया जाना चाहिये।
# जलदेवता को सन्तुष्ट और प्रसन्न करने के लिये यज्ञों की रचना करनी चाहिये । यज्ञ में जलदेवता के लिये आहुति देनी चाहिये । जलदेवता प्रसन्न हों इस दृष्टि से जिस प्रकार नये मन्त्रों की रचना होगी उसी प्रकार यज्ञ में होम करने की सामग्री का भी भौतिक विज्ञान की दृष्टि से विचार होगा। यज्ञ तो वैज्ञानिक अनुष्ठान है ही, उसे आज की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके ऐसा स्वरूप दिया जाना चाहिये
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## पानी का मुख्य स्रोत वर्षा है। संग्रहित पानी का प्राकृतिक स्रोत नदियाँ हैं। संग्रहित पानी का मानवसर्जिक स्रोत तालाब, कुएँ, बावडी आदि हैं । संग्रहित पानी के इससे भी कृत्रिम स्रोत पानी की टँकियों से लेकर घर के छोटे मटकों तक के पात्र हैं । वर्षा की और नदियों की स्तुति के अनुष्टान किये जाने चाहिये तथा मानव सर्जित पानी के संग्रहस्थानों के सम्बन्ध में विवेकपूर्ण विचार होना चाहिये । यहीं से पानी के विषय में ज्ञानात्मक शिक्षा शुरू होती है ।
# पानी का मुख्य स्रोत वर्षा है। संग्रहित पानी का प्राकृतिक स्रोत नदियाँ हैं। संग्रहित पानी का मानवसर्जिक स्रोत तालाब, कुएँ, बावडी आदि हैं । संग्रहित पानी के इससे भी कृत्रिम स्रोत पानी की टँकियों से लेकर घर के छोटे मटकों तक के पात्र हैं । वर्षा की और नदियों की स्तुति के अनुष्टान किये जाने चाहिये तथा मानव सर्जित पानी के संग्रहस्थानों के सम्बन्ध में विवेकपूर्ण विचार होना चाहिये । यहीं से पानी के विषय में ज्ञानात्मक शिक्षा शुरू होती है ।
      
== पानी के विषय में ज्ञानात्मक शिक्षा ==
 
== पानी के विषय में ज्ञानात्मक शिक्षा ==
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# खेतों को पानी क्यों नहीं मिलता, पीने के लिये पानी क्यों नहीं मिलता, अनावृष्टि क्यों होती हैं, नदियाँ क्यों सूख जाती हैं इत्यादि बातों की गम्भीर चर्चा होना आवश्यक है।  
 
# खेतों को पानी क्यों नहीं मिलता, पीने के लिये पानी क्यों नहीं मिलता, अनावृष्टि क्यों होती हैं, नदियाँ क्यों सूख जाती हैं इत्यादि बातों की गम्भीर चर्चा होना आवश्यक है।  
 
# पानी की निकासी के लिये जो व्यवस्था बनाई जाती है वह कितनी उचित या अनुचित है इसका विमर्श होना चाहिये।
 
# पानी की निकासी के लिये जो व्यवस्था बनाई जाती है वह कितनी उचित या अनुचित है इसका विमर्श होना चाहिये।
# गंगा जैसी पवित्र नदी सहित देश की अन्य नदियों का पानी बडे बडे कारखानों के विषैले रासायनिक कचरे के कारण प्रदूषित होता है। इस कचरे से नदियों को बचाने के क्या उपाय हैं ? सरकार की ओर से अनेक कानून बनाये जाने के बाद भी नदियों को नहीं बचाया जा सकता है इसका कारण क्या है ? इस स्थिति को ठीक करने के लिये विद्यालय या विद्याक्षेत्र क्या कर सकता है इसका विचार होना चाहिये।  
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# गंगा जैसी पवित्र नदी सहित देश की अन्य नदियों का पानी बड़े बड़े कारखानों के विषैले रासायनिक कचरे के कारण प्रदूषित होता है। इस कचरे से नदियों को बचाने के क्या उपाय हैं ? सरकार की ओर से अनेक कानून बनाये जाने के बाद भी नदियों को नहीं बचाया जा सकता है इसका कारण क्या है ? इस स्थिति को ठीक करने के लिये विद्यालय या विद्याक्षेत्र क्या कर सकता है इसका विचार होना चाहिये।  
# बडे बडे बाँध बाँधने से क्या वास्तव में देश का जलसंकट दर हो सकता है इसका विचार भी करना चाहिये । यदि संकट दूर नहीं हो सकता है तो फिर हम क्यों बाँधते हैं ?  
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# बड़े बड़े बाँध बाँधने से क्या वास्तव में देश का जलसंकट दर हो सकता है इसका विचार भी करना चाहिये । यदि संकट दूर नहीं हो सकता है तो फिर हम क्यों बाँधते हैं ?  
 
# कुएँ, तालाब, बावडियाँ आदि पुनः निर्माण करने के क्या तरीके हो सकते हैं इसकी भी चर्चा होनी जरूरी
 
# कुएँ, तालाब, बावडियाँ आदि पुनः निर्माण करने के क्या तरीके हो सकते हैं इसकी भी चर्चा होनी जरूरी
 
# पानी का अमर्याद उपयोग करना, पानी का प्रदूषण करना, पानी बचाने की कोई व्यवस्था न करना, पानी के स्रोतों को अवरुद्ध करना आदि विनाशक गतिविधियों के पीछे कौनसी विचारधारा, कौनसी मनोवृत्ति और कौनसी प्रवृत्ति होती है इसका मूलगामी चिन्तन करना सिखाना चाहिये । पानी को लेकर हमारे छोटे से कार्य के परिणाम दूरगामी होते हैं यह समझने की आवश्यकता है।  
 
# पानी का अमर्याद उपयोग करना, पानी का प्रदूषण करना, पानी बचाने की कोई व्यवस्था न करना, पानी के स्रोतों को अवरुद्ध करना आदि विनाशक गतिविधियों के पीछे कौनसी विचारधारा, कौनसी मनोवृत्ति और कौनसी प्रवृत्ति होती है इसका मूलगामी चिन्तन करना सिखाना चाहिये । पानी को लेकर हमारे छोटे से कार्य के परिणाम दूरगामी होते हैं यह समझने की आवश्यकता है।  

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