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=== शिक्षा योजना के बिन्दु ===
 
=== शिक्षा योजना के बिन्दु ===
 
पानी के सम्बन्ध में शिक्षा की योजना करते समय इन बिन्दुओं को ध्यान में लेना आवश्यक है ।  
 
पानी के सम्बन्ध में शिक्षा की योजना करते समय इन बिन्दुओं को ध्यान में लेना आवश्यक है ।  
 
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# पानी विषयक शिक्षा छोटी से लेकर बड़ी कक्षाओं तक देने की आवश्यकता है।  
१. पानी विषयक शिक्षा छोटी से लेकर बड़ी कक्षाओं तक देने की आवश्यकता है।  
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# पानी जीवनधारणा के लिये अनिवार्य रूप से आवश्यक है। पानी के बिना जीवन सम्भव नहीं । पानी का एक नाम ही जीवन है।  
 
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# पानी पंचमहाभूतों में एक है। वह सर्वव्यापी है। सृष्टि के हर पदार्थ में पानी होता है । पानी के कारण ही पदार्थ का संधारण होता है।  
२. पानी जीवनधारणा के लिये अनिवार्य रूप से आवश्यक है। पानी के बिना जीवन सम्भव नहीं । पानी का एक नाम ही जीवन है।  
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# भौतिक विज्ञान कहता है कि पानी स्वयं स्वादहीन है, उसका अपना कोई स्वाद नहीं है, परन्तु यह भी सत्य है कि पानी के कारण ही किसी भी पदार्थ को स्वाद प्राप्त होता है।  
 
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# पानी पंचमहाभूतों में एक महाभूत है । पंचमहाभूतों के सूक्ष्म स्वरूप को तन्मात्रा कहते हैं। पानी की तन्मात्रा रस है। रस का अनुभव करने वाली ज्ञानेन्द्रिय जीभ है । वह रस का अनुभव करती है इसलिये उसे रसना कहते हैं। रसना स्वाद का अनुभव करती है। हम सब जानते हैं कि जीभ के बिना हम सृष्टि में जो रस अर्थात् स्वाद है उसका अनुभव नहीं कर सकते ।  
३. पानी पंचमहाभूतों में एक है। वह सर्वव्यापी है। सृष्टि के हर पदार्थ में पानी होता है । पानी के कारण ही पदार्थ का संधारण होता है।  
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# पानी पवित्र है। पानी देवता है। वेदों में जलदेवता को ही वरुण देवता कहा है। पदार्थों का संधारण करने का, प्राणियों और वनस्पति का जीवन सम्भव बनाने का महत्त्वपूर्ण कार्य पानी करता है इसीलिये वह पवित्र है। हम देवता की पूजा करते हैं, उन्हें आदर देते हैं और सन्तुष्ट भी करते हैं। पानी का आदर करना और उसकी पवित्रता की रक्षा करना हमारा धर्म है। इसीकी शिक्षा छोटे बड़े सबको मिलनी चाहिये।  
 
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# सभी विषयों की शिक्षा की तरह पानी विषयक शिक्षा भी ज्ञान, भावना और क्रिया के रूप में देनी चाहिये । स्वाभाविक रूप से ही प्रथम क्रियात्मक, दूसरे क्रम में भावात्मक और बाद में ज्ञानात्मक शिक्षा देनी चाहिये ।  
४. भौतिक विज्ञान कहता है कि पानी स्वयं स्वादहीन है, उसका अपना कोई स्वाद नहीं है, परन्तु यह भी सत्य है कि पानी के कारण ही किसी भी पदार्थ को स्वाद प्राप्त होता है।  
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५. पानी पंचमहाभूतों में एक महाभूत है । पंचमहाभूतों के सूक्ष्म स्वरूप को तन्मात्रा कहते हैं। पानी की तन्मात्रा रस है। रस का अनुभव करने वाली ज्ञानेन्द्रिय जीभ है । वह रस का अनुभव करती है इसलिये उसे रसना कहते हैं। रसना स्वाद का अनुभव करती है। हम सब जानते हैं कि जीभ के बिना हम सृष्टि में जो रस अर्थात् स्वाद है उसका अनुभव नहीं कर सकते ।  
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६. पानी पवित्र है। पानी देवता है। वेदों में जलदेवता को ही वरुण देवता कहा है। पदार्थों का संधारण करने का, प्राणियों और वनस्पति का जीवन सम्भव बनाने का महत्त्वपूर्ण कार्य पानी करता है इसीलिये वह पवित्र है। हम देवता की पूजा करते हैं, उन्हें आदर देते हैं और सन्तुष्ट भी करते हैं। पानी का आदर करना और उसकी पवित्रता की रक्षा करना हमारा धर्म है। इसीकी शिक्षा छोटे बड़े सबको मिलनी चाहिये।  
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७. सभी विषयों की शिक्षा की तरह पानी विषयक शिक्षा भी ज्ञान, भावना और क्रिया के रूप में देनी चाहिये । स्वाभाविक रूप से ही प्रथम क्रियात्मक, दूसरे क्रम में भावात्मक और बाद में ज्ञानात्मक शिक्षा देनी चाहिये ।
      
=== पानी के सम्बन्ध में क्रियात्मक शिक्षा ===
 
=== पानी के सम्बन्ध में क्रियात्मक शिक्षा ===
१. पानी को हमेशा शुद्ध रखे, अशुद्ध न करें, शुद्ध पानी ही पियें ।  
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# पानी को हमेशा शुद्ध रखे, अशुद्ध न करें, शुद्ध पानी ही पियें ।  
 
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# खडे खडे, लेटे लेटे पानी न पियें । हमेशा बैठकर ही पियें।  
२. खडे खडे, लेटे लेटे पानी न पियें । हमेशा बैठकर ही पियें।  
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# पानी जल्दबाजी में न पियें, धीरे धीरे एक एक बूंट लेकर ही पियें।  
 
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# प्लास्टिक की बोतलों में भरा हुआ, यंत्रों और रसायनों से शुद्ध किया हुआ पानी वास्तव में शुद्ध नहीं होता। उसे शुद्ध मानना और कहना हमारी वैज्ञानिक अंधश्रद्धा ही है। ऐसा अशुद्ध पानी अप्राकृतिक बीमारियों को जन्म देता है।  
३. पानी जल्दबाजी में न पियें, धीरे धीरे एक एक बूंट लेकर ही पियें।  
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# भोजन के प्रारम्भ में और भोजन के तुरन्त बाद पानी न पियें । मुँह साफ करने के लिये एकाध घुट ही पियें ।  
 
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# दिनभर में पर्याप्त पानी पीना चाहिये, न बहुत अधिक, न बहुत कम ।  
४. प्लास्टिक की बोतलों में भरा हुआ, यंत्रों और रसायनों से शुद्ध किया हुआ पानी वास्तव में शुद्ध नहीं होता। उसे शुद्ध मानना और कहना हमारी वैज्ञानिक अंधश्रद्धा ही है। ऐसा अशुद्ध पानी अप्राकृतिक बीमारियों को जन्म देता है।  
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# पीने के साथ साथ पानी भोजन बनाने के, स्थान और वस्तुओं को साफ करने के, पेड पौधों का पोषण करने के काम में भी आता है। उन बातों का भी सम्यक विचार करना आवश्यक है।  
 
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# भोजन बनाने के लिये हमेशा शुद्ध और पवित्र पानी का ही प्रयोग करना चाहिये । ताँबे या पीतल के पात्र में भरे पानी का प्रयोग करें। स्टील, प्लास्टिक, एल्युमिनियम या अन्य पदार्थों से बने पात्रों में भरे पानी का प्रयोग नहीं करना चाहिये । चाँदी और सुवर्ण तो अति उत्तम हैं ही परन्तु हम व्यवहार में सामान्य रूप से इन पात्रों का प्रयोग नहीं करते ।  
५. भोजन के प्रारम्भ में और भोजन के तुरन्त बाद पानी न पियें । मुँह साफ करने के लिये एकाध घुट ही पियें ।  
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# सिमेन्ट से बनी टाँकियों में भरा पानी भी उतना अधिक शुद्ध नहीं होता है, सिमेन्ट के ऊपर यदि चूने से पुताई की जायतोवह अच्छा है, लाभदायी है ।प्लास्टिक की टँकियाँ किसी भी तरह लाभदायी नहीं हैं।  
 
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# पानी का उपयोग पेड पौधों और प्राणियों के लिये होता है। विद्यार्थियों को इसके क्रियात्मक संस्कार मिलने चाहिये । इस दृष्टि से विद्यालय में पक्षी पानी पी सके ऐसे पात्र टाँगने चाहिये । विद्यार्थी इन पात्रों को साफ करें और उन्हें पानी से भरें ऐसी योजना करना चाहिये । यह व्यवस्था हर विद्यार्थी के घर तक पहुँचे यह देखना चाहिये । साथ ही पशुओं को पानी पीने की व्यवस्था भी करनी चाहिये । रास्ते पर आते जाते पशु इससे पानी पी सकें ऐसी जगह पर यह व्यवस्था होनी चाहिये । इसकी स्वच्छता भी विद्यार्थी ही करें यह देखना चाहिये ।  
६. दिनभर में पर्याप्त पानी पीना चाहिये, न बहुत अधिक, न बहुत कम ।  
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# मनुष्यों को पानी पिलाने की व्यवस्था भी होना आवश्यक है। इस दृष्टि से प्याऊ की व्यवस्था की जा सकती है। इस प्याऊ की व्यवस्था का संचालन विद्यार्थियों को करना चाहिये ।  
 
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# हाथ पैर धोने या नहाने के लिये हम कितने कम पानी का प्रयोग कर सकते हैं यह सिखाने की आवश्यकता है। अधिक पानी का प्रयोग करना बुद्धिमानी नहीं है ।  
७. पीने के साथ साथ पानी भोजन बनाने के, स्थान और वस्तुओं को साफ करने के, पेड पौधों का पोषण करने के काम में भी आता है। उन बातों का भी सम्यक विचार करना आवश्यक है।  
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# इसी प्रकार वर्तन साफ करने के लिये, कपडे धोने के लिये कम पानी का प्रयोग करने की कुशलता प्राप्त करनी चाहिये।  
 
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# डीटेर्जन्ट से कपडे और बर्तन साफ करने से अधिक पानी का प्रयोग करना पडता है। इससे बचने के
८. भोजन बनाने के लिये हमेशा शुद्ध और पवित्र पानी का ही प्रयोग करना चाहिये । ताँबे या पीतल के पात्र में भरे पानी का प्रयोग करें। स्टील, प्लास्टिक, एल्युमिनियम या अन्य पदार्थों से बने पात्रों में भरे पानी का प्रयोग नहीं करना चाहिये । चाँदी और सुवर्ण तो अति उत्तम हैं ही परन्तु हम व्यवहार में सामान्य रूप से इन पात्रों का प्रयोग नहीं करते ।  
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९. सिमेन्ट से बनी टाँकियों में भरा पानी भी उतना अधिक शुद्ध नहीं होता है, सिमेन्ट के ऊपर यदि चूने से पुताई की जायतोवह अच्छा है, लाभदायी है ।प्लास्टिक की टँकियाँ किसी भी तरह लाभदायी नहीं हैं।  
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१०. पानी का उपयोग पेड पौधों और प्राणियों के लिये होता है। विद्यार्थियों को इसके क्रियात्मक संस्कार मिलने चाहिये । इस दृष्टि से विद्यालय में पक्षी पानी पी सके ऐसे पात्र टाँगने चाहिये । विद्यार्थी इन पात्रों को साफ करें और उन्हें पानी से भरें ऐसी योजना करना चाहिये । यह व्यवस्था हर विद्यार्थी के घर तक पहुँचे यह देखना चाहिये । साथ ही पशुओं को पानी पीने की व्यवस्था भी करनी चाहिये । रास्ते पर आते जाते पशु इससे पानी पी सकें ऐसी जगह पर यह व्यवस्था होनी चाहिये । इसकी स्वच्छता भी विद्यार्थी ही करें यह देखना चाहिये ।  
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११. मनुष्यों को पानी पिलाने की व्यवस्था भी होना आवश्यक है। इस दृष्टि से प्याऊ की व्यवस्था की जा सकती है। इस प्याऊ की व्यवस्था का संचालन विद्यार्थियों को करना चाहिये ।  
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१२. हाथ पैर धोने या नहाने के लिये हम कितने कम पानी का प्रयोग कर सकते हैं यह सिखाने की आवश्यकता है। अधिक पानी का प्रयोग करना बुद्धिमानी नहीं है ।  
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१३. इसी प्रकार वर्तन साफ करने के लिये, कपडे धोने के लिये कम पानी का प्रयोग करने की कुशलता प्राप्त करनी चाहिये।  
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१४. डीटेर्जन्ट से कपडे और बर्तन साफ करने से अधिक पानी का प्रयोग करना पडता है। इससे बचने के
   
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लिये डिटर्जन्ट का प्रयोग बन्द कर उसके स्थान पर प्राकृतिक पदार्थों का प्रयोग करना चाहिये । बर्तन की सफाई के लिये मिट्टी या राख तथा कपड़ों की सफाई के लिये साबुन का प्रयोग करने से पानी की बचत भी होती है और प्रदूषण भी नहीं होता।  
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लिये डिटर्जन्ट का प्रयोग बन्द कर उसके स्थान पर प्राकृतिक पदार्थों का प्रयोग करना चाहिये । बर्तन की सफाई के लिये मिट्टी या राख तथा कपड़ों की सफाई के लिये साबुन का प्रयोग करने से पानी की बचत भी होती है और प्रदूषण भी नहीं होता।
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१५. पीने के लिये प्याले में उतना ही पानी लेना चाहिये जितना कि पीना है। प्याला भरकर लेना, थोडा पीना और बचा हुआ फेंक देना कम बुद्धि का लक्षण है।
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पीने के लिये प्याले में उतना ही पानी लेना चाहिये जितना कि पीना है। प्याला भरकर लेना, थोडा पीना और बचा हुआ फेंक देना कम बुद्धि का लक्षण है।  
    
१६. पानी का बहुत अधिक अपव्यय होता है शौचालयों में। फ्लश की व्यवस्था वाले शौचालय पानी के प्रयोग की दृष्टि से अनुकूल नहीं है। उनके पर्याय खोजने चाहिये ।  
 
१६. पानी का बहुत अधिक अपव्यय होता है शौचालयों में। फ्लश की व्यवस्था वाले शौचालय पानी के प्रयोग की दृष्टि से अनुकूल नहीं है। उनके पर्याय खोजने चाहिये ।  

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