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| यह संकल्पना सबके ट्वारा सबको सदा-सर्वदा एक ही तरीके से नहीं सिखाई जाती । स्थान, समय, शिक्षक, विद्यार्थी, परिस्थिति के सन्दर्भ में वह विशेष रूप से सिखाई जाती है । तात्पर्य यह है कि सामग्री नहीं शिक्षक ही अधिक महत्वपूर्ण होता है । | | यह संकल्पना सबके ट्वारा सबको सदा-सर्वदा एक ही तरीके से नहीं सिखाई जाती । स्थान, समय, शिक्षक, विद्यार्थी, परिस्थिति के सन्दर्भ में वह विशेष रूप से सिखाई जाती है । तात्पर्य यह है कि सामग्री नहीं शिक्षक ही अधिक महत्वपूर्ण होता है । |
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− | === गृहकार्य ===
| + | == गृहकार्य == |
| # छात्रों को गृहकार्य क्यों देना चाहिये ? | | # छात्रों को गृहकार्य क्यों देना चाहिये ? |
| # गृहकार्य का अर्थ क्या होता है ? | | # गृहकार्य का अर्थ क्या होता है ? |
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| # गृहकार्य के सम्बन्ध में छात्र की वृत्ति, प्रवृत्ति कैसी होती है ? कैसी होनी चाहिये ? | | # गृहकार्य के सम्बन्ध में छात्र की वृत्ति, प्रवृत्ति कैसी होती है ? कैसी होनी चाहिये ? |
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− | ==== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ====
| + | === प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर === |
| गृहकार्य विषयक यह प्रश्नावली भुसावल (महाराष्ट्र) के महाविद्यालय के अरुण महाजन ने ४९ शिक्षकों, अभिभावकों एवं प्राध्यापकों से भरवाकर भेजी है । | | गृहकार्य विषयक यह प्रश्नावली भुसावल (महाराष्ट्र) के महाविद्यालय के अरुण महाजन ने ४९ शिक्षकों, अभिभावकों एवं प्राध्यापकों से भरवाकर भेजी है । |
| # विद्यालय में पढ़ाये हुए पाठ को दूढ करने हेतु गृहकार्य की आवश्यकता होती है, ऐसा सबका मत है । | | # विद्यालय में पढ़ाये हुए पाठ को दूढ करने हेतु गृहकार्य की आवश्यकता होती है, ऐसा सबका मत है । |
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| # गृहकार्य कितना और किस प्रकार का हो ? इस प्रश्न के उत्तर में सबने लिखा है कि विद्यार्थी कर सके उतना एवं विविध प्रकार का होना चाहिए । गृहकार्य की विविधता के सम्बन्ध में किसी ने भी स्पष्टता नहीं की । शिक्षकों द्वारा गृहकार्य देने का प्रकार जैसे : पाठ ३ के प्रश्न २, ५ व ९ करना । ऐसा ही रहता है । इस यान्त्रिकता के कारण विविधता का लोप हो जाता है । शिक्षक में कल्पनाशीलता के अभाव के कारण रोचकता नहीं आ पाती । विविध प्रकार के गृहकार्य देने के लाभालाभ क्या होते हैं जैसे प्रश्न अनुत्तरित रहे । मिला हुआ गृहकार्य कैसे भी पूरा करने की छात्रों की वृत्ति होती है, जबकि अभिभावक चाहते हैं कि छात्र उत्साह व जिज्ञासा से गृहकार्य पूर्ण करे । अनेक बार अत्यधिक दिया गया गृहकार्य सहानुभूति पूर्वक अभिभावक स्वयं ही पूरा कर देते हैं । गृहकार्य पूरा नहीं किया तो सजा मिलेगी, इसलिए उसे मात्र पूरा करने का उद्देश्य छात्रों का रहता है । | | # गृहकार्य कितना और किस प्रकार का हो ? इस प्रश्न के उत्तर में सबने लिखा है कि विद्यार्थी कर सके उतना एवं विविध प्रकार का होना चाहिए । गृहकार्य की विविधता के सम्बन्ध में किसी ने भी स्पष्टता नहीं की । शिक्षकों द्वारा गृहकार्य देने का प्रकार जैसे : पाठ ३ के प्रश्न २, ५ व ९ करना । ऐसा ही रहता है । इस यान्त्रिकता के कारण विविधता का लोप हो जाता है । शिक्षक में कल्पनाशीलता के अभाव के कारण रोचकता नहीं आ पाती । विविध प्रकार के गृहकार्य देने के लाभालाभ क्या होते हैं जैसे प्रश्न अनुत्तरित रहे । मिला हुआ गृहकार्य कैसे भी पूरा करने की छात्रों की वृत्ति होती है, जबकि अभिभावक चाहते हैं कि छात्र उत्साह व जिज्ञासा से गृहकार्य पूर्ण करे । अनेक बार अत्यधिक दिया गया गृहकार्य सहानुभूति पूर्वक अभिभावक स्वयं ही पूरा कर देते हैं । गृहकार्य पूरा नहीं किया तो सजा मिलेगी, इसलिए उसे मात्र पूरा करने का उद्देश्य छात्रों का रहता है । |
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− | ==== अभिमत : ====
| + | === अभिमत : === |
| शिक्षक के अध्यापन का उत्तरार्ध छात्रों द्वारा किया हुआ गृहकार्य है, ऐसा भी कह सकते हैं । विद्यालय में आज जो पढ़ाया है उसका पुनरावर्तन, स्वअध्ययन करने के लिए गृहकार्य दिया जाता है । गृहकार्य में विविधता हो, रुचि जाग्रत हो, कुछ अनुभव प्राप्त हो आदि उद्देश्यों का समावेश होना चाहिए । कंठस्थीकरण हेतु शिक्षा के मूलभूत सूत्र, स्पेलिंग, पहाड़े, श्लोक-सुभाषित, स्तोत्रादि अनिवार्य रूप से नित्य करने का गृहपाठ होना चाहिए । इस गृहकार्य को घर पर अभिभावकों को करवाना चाहिए । | | शिक्षक के अध्यापन का उत्तरार्ध छात्रों द्वारा किया हुआ गृहकार्य है, ऐसा भी कह सकते हैं । विद्यालय में आज जो पढ़ाया है उसका पुनरावर्तन, स्वअध्ययन करने के लिए गृहकार्य दिया जाता है । गृहकार्य में विविधता हो, रुचि जाग्रत हो, कुछ अनुभव प्राप्त हो आदि उद्देश्यों का समावेश होना चाहिए । कंठस्थीकरण हेतु शिक्षा के मूलभूत सूत्र, स्पेलिंग, पहाड़े, श्लोक-सुभाषित, स्तोत्रादि अनिवार्य रूप से नित्य करने का गृहपाठ होना चाहिए । इस गृहकार्य को घर पर अभिभावकों को करवाना चाहिए । |
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− | ==== विमर्श ====
| + | === विमर्श === |
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| ==== गृहकार्य कैसा हो ==== | | ==== गृहकार्य कैसा हो ==== |
− | विद्यालय में गणित विषय के अन्तर्गत मापन करना सिखाया है तो घर पर गृहपाठ के रूप में घर के टेबल-कुर्सी की लम्बाई-चौड़ाई नापना, खिड़कियों व दरवाजों को नापना, साड़ी-धोती, चहदर-नेपकिन | + | विद्यालय में गणित विषय के अन्तर्गत मापन करना सिखाया है तो घर पर गृहपाठ के रूप में घर के टेबल-कुर्सी की लम्बाई-चौड़ाई नापना, खिड़कियों व दरवाजों को नापना, साड़ी-धोती, चादर-नेपकिन आदि वस्त्रों की लम्बाई नापना । इसी प्रकार घर में उपलब्ध भौमितिक आकृतियों वाली वस्तुओं के नाम लिखना । बाजार से खरीदी हुई सामग्री पर छपी हुई कीमत व वजन की सूची बनाना और इस सूची के आधार पर गणित के सवाल बनाना । घर में किराणा के समान की सूची वजन सहित लिखना । दवाइयों की कीमत एवं एक्सपायरी डेट की जाँच करना । घर में आने वाले समाचार पत्र एवं दूध का हिसाब रखना और मासिक बिल बनाना । अपने घर का मानचित्र बनाना, घर से विद्यालय जाने का मार्ग दिग्दर्शित करना । अपने गाँव के नक्शे में महत्वपूर्ण स्थान यथा - मंदिर, विद्यालय, चिकित्सालय, तालाब आदि भरना । गाँव में स्थित मंदिरों का इतिहास जानना जैसे अनेक प्रकार के गृहकार्य दिये जा सकते हैं । ऐसे वैविध्यपूर्ण गृहकार्य छात्र उत्साह से करेंगे और सीखेंगे । घर एवं शाला दोनों शिक्षा के केन्द्र हैं । 'विद्यालय शास्त्रों के अध्ययन का केन्द्र है तो घर उस अध्ययन की प्रयोगशाला है ।' विधिवत सही पद्धति से सूर्यनमस्कार करना सिखाना विद्यालय का काम है, और सीखे हुए सूर्यनमस्कार को घर में प्रतिदिन करना, यह घर का काम है । स्वच्छता, पर्यावरण रक्षा, जल संरक्षण के नियम व सिद्धान्त विद्यालय में सिखाना और घर में उन्हें लागू करना । |
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− | आदि वस्त्रों की लम्बाई नापना । इसी प्रकार घर में उपलब्ध भौमितिक आकृतियों वाली वस्तुओं के नाम लिखना । बाजार से खरीदी हुई सामग्री पर छपी हुई कीमत व वजन की सूची बनाना और इस सूची के आधार पर गणित के सवाल बनाना । घर में किराणा के समान की सूची वजन सहित लिखना । दवाइयों की कीमत एवं एक्सपायरी डेट की जाँच करना । घर में आने वाले समाचार पत्र एवं दूध का हिसाब रखना और मासिक बिल बनाना । अपने घर का मानचित्र बनाना, घर से विद्यालय जाने का मार्ग दिग्दर्शित करना । अपने गाँव के नक्शे में महत्वपूर्ण स्थान यथा - मंदिर, विद्यालय, चिकित्सालय, तालाब आदि भरना । गाँव में स्थित मंदिरों का इतिहास जानना जैसे अनेक प्रकार के गृहकार्य दिये जा सकते हैं । ऐसे वैविध्यपूर्ण गृहकार्य छात्र उत्साह से करेंगे और सीखेंगे । घर एवं शाला दोनों शिक्षा के केन्द्र हैं । 'विद्यालय शास्त्रों के अध्ययन का केन्द्र है तो घर उस अध्ययन की प्रयोगशाला है ।' विधिवत सही पद्धति से सूर्यनमस्कार करना सिखाना विद्यालय का काम है, और सीखे हुए सूर्यनमस्कार को घर में प्रतिदिन करना, यह घर का काम है । स्वच्छता, पर्यावरण रक्षा, जल संरक्षण के नियम व सिद्धान्त विद्यालय में सिखाना और घर में उन्हें लागू करना । | |
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| इस प्रकार का रुचिपूर्ण गृहकार्य देना शिक्षक की कल्पनाशीलता और हेतुपूर्णता पर निर्भर करता है । आज ऐसे कुशल आचार्यों का अभाव दिखाई देता है । आजकल अलग-अलग प्रोजेक्ट (उपक्रम) देने की पद्धति चल पड़ी है। परन्तु प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए नेट से सम्पूर्ण जानकारी लेना, झेरोक्स करवाना, साज सज्ञा करके फाइल बनाना और उसमें माता-पिता का पूर्ण सहयोग लेना आदि बातों का समावेश होता है । यांत्रिक एवं तांत्रिक कार्यों की यह दशा है । ज्ञानार्जन के लिए नहीं अपितु अंकार्जन के लिए यह सब किया जाता है । अतः हेतुपूर्वक सार्थक गृहकार्य देने पर और अधिक चिन्तन-मनन की आवश्यकता है । अध्ययन अध्यापन से ज्ञानार्जन हो और गृहकार्य उसमें सहयोगी बने, ऐसी योजना एवं रचना करनी चाहिए । | | इस प्रकार का रुचिपूर्ण गृहकार्य देना शिक्षक की कल्पनाशीलता और हेतुपूर्णता पर निर्भर करता है । आज ऐसे कुशल आचार्यों का अभाव दिखाई देता है । आजकल अलग-अलग प्रोजेक्ट (उपक्रम) देने की पद्धति चल पड़ी है। परन्तु प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए नेट से सम्पूर्ण जानकारी लेना, झेरोक्स करवाना, साज सज्ञा करके फाइल बनाना और उसमें माता-पिता का पूर्ण सहयोग लेना आदि बातों का समावेश होता है । यांत्रिक एवं तांत्रिक कार्यों की यह दशा है । ज्ञानार्जन के लिए नहीं अपितु अंकार्जन के लिए यह सब किया जाता है । अतः हेतुपूर्वक सार्थक गृहकार्य देने पर और अधिक चिन्तन-मनन की आवश्यकता है । अध्ययन अध्यापन से ज्ञानार्जन हो और गृहकार्य उसमें सहयोगी बने, ऐसी योजना एवं रचना करनी चाहिए । |
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| सामान्य रूप में छोटी कक्षाओं में एक घण्टा और बड़ी में दो घण्टे का गृहकार्य होता है। भिन्न-भिन्न विद्यालयों में उसका समय भिन्न-भिन्न हो सकता है परन्तु औसत लगभग यही होता है । | | सामान्य रूप में छोटी कक्षाओं में एक घण्टा और बड़ी में दो घण्टे का गृहकार्य होता है। भिन्न-भिन्न विद्यालयों में उसका समय भिन्न-भिन्न हो सकता है परन्तु औसत लगभग यही होता है । |
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− | गृहकार्य जाँचे जाने के सम्बन्ध में दो प्रकार होते हैं । वह या तो जाँचा जाता है अथवा नहीं जांचा जाता । जाँचा जाता है वहाँ भी सुधार होता है कि नहीं, यह निश्चित नहीं है । सुधार के लिए उसे पुन: पुन: लिखने को कहा जाता है । गृहकार्य जाँचना शिक्षकों के लिए बहुत झंझट वाला काम होता है। इस विषय में अभिभावक और शिक्षक दोनों में वाद-विवाद होता ही रहता है । सामान्य विद्यालयों में अभिभावकों की बात सुनी-अनसुनी कर भी दी जाती है परन्तु ऊँचे शुल्क वाले विद्यालयों में अभिभावकों की बात सुननी ही पड़ती है । | + | गृहकार्य जाँचे जाने के सम्बन्ध में दो प्रकार होते हैं । वह या तो जाँचा जाता है अथवा नहीं जांचा जाता । जाँचा जाता है वहाँ भी सुधार होता है कि नहीं, यह निश्चित नहीं है । सुधार के लिए उसे पुन: पुन: लिखने को कहा जाता है । गृहकार्य जाँचना शिक्षकों के लिए बहुत झंझट वाला काम होता है। इस विषय में अभिभावक और शिक्षक दोनों में वाद-विवाद होता ही रहता है । सामान्य विद्यालयों में अभिभावकों की बात सुनी-अनसुनी कर भी दी जाती है परन्तु ऊँचे शुल्क वाले विद्यालयों में अभिभावकों की बात सुननी ही पड़ती है। |
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| गृहकार्य कापी में किया जाता है । कभी पेंसिल से और कभी पेन से लिखा जाता है । प्रत्येक विषय की गृहकार्य की कापी अलग होती है । इन कापियों के कारण से ही बस्ते का बोझ कुछ मात्रा में बढ़ जाता है । | | गृहकार्य कापी में किया जाता है । कभी पेंसिल से और कभी पेन से लिखा जाता है । प्रत्येक विषय की गृहकार्य की कापी अलग होती है । इन कापियों के कारण से ही बस्ते का बोझ कुछ मात्रा में बढ़ जाता है । |
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| अधिक पढ़ने से अधिक अच्छा पढ़ा जाता है, ऐसी एक भ्रांत धारणा बन गई है । ऐसा नहीं है कि यह केवल अभिभावकों की ही धारणा है । जिन्हें शिक्षा के विषय में सही धारणा होनी चाहिए उन शिक्षकों की भी ऐसी धारणा बनती है । यह धारणा सर्वथा अनुचित है । अधिक समय पढ़ने से अधिक अच्छा पढ़ा जाता है ऐसा नियम नहीं है । जो पढ़ना चाहिए वह पढ़ने से और जिस पद्धति से पढ़ना चाहिए उस पद्धति से पढ़ने से अच्छा पढ़ा जाता है । यांत्रिक पद्धति से गृहकार्य देने से या करने से समय, शक्ति और धन का व्यर्थ व्यय ही होता है । इसलिए यांत्रिक रूप से किया जाय ऐसा गृहकार्य नहीं देना चाहिए | | | अधिक पढ़ने से अधिक अच्छा पढ़ा जाता है, ऐसी एक भ्रांत धारणा बन गई है । ऐसा नहीं है कि यह केवल अभिभावकों की ही धारणा है । जिन्हें शिक्षा के विषय में सही धारणा होनी चाहिए उन शिक्षकों की भी ऐसी धारणा बनती है । यह धारणा सर्वथा अनुचित है । अधिक समय पढ़ने से अधिक अच्छा पढ़ा जाता है ऐसा नियम नहीं है । जो पढ़ना चाहिए वह पढ़ने से और जिस पद्धति से पढ़ना चाहिए उस पद्धति से पढ़ने से अच्छा पढ़ा जाता है । यांत्रिक पद्धति से गृहकार्य देने से या करने से समय, शक्ति और धन का व्यर्थ व्यय ही होता है । इसलिए यांत्रिक रूप से किया जाय ऐसा गृहकार्य नहीं देना चाहिए | |
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− | दूसरा बिंदु यह है कि इस बात पर विचार किया जाय कि गृहकार्य हमेशा लिखित ही क्यों होना चाहिए । पढ़ाई केवल लिखकर नहीं होती है । पढ़ाई अनेक प्रकार की गतिविधियों के माध्यम से होती है। अभिभावकों और शिक्षकों की यह भी पक्की धारणा बन गई है कि लिखना ही मुख्य कार्य है । ज्ञान कितना भी | + | दूसरा बिंदु यह है कि इस बात पर विचार किया जाय कि गृहकार्य हमेशा लिखित ही क्यों होना चाहिए । पढ़ाई केवल लिखकर नहीं होती है । पढ़ाई अनेक प्रकार की गतिविधियों के माध्यम से होती है। अभिभावकों और शिक्षकों की यह भी पक्की धारणा बन गई है कि लिखना ही मुख्य कार्य है । ज्ञान कितना भी मौखिक रूप से अवगत हो तो भी जबतक लिखा नहीं जाता तबतक वह अधूरा है, ऐसा माना जाता है । यह धारणा सही नहीं है । कर्मन्द्रियों की कुशलता, आत्मविश्वास, व्यवहारदक्षता, सद्धावना, विचारशीलता और आकलनक्षमता लिखित रूप में व्यक्त ही नहीं हो सकते । लिखित रूप में गृहकार्य करने के लिए इन बातों की कोई आवश्यकता नहीं होती । तो भी गृहकार्य लिखित स्वरूप का दिया जाता है । इसके पीछे बड़ा विचित्र कारण सुनने को मिलता है । शिक्षक कहते हैं कि लिखित गृहकार्य नहीं दिया तो छात्र ने गृहकार्य किया कि नहीं इसका पता कैसे चलेगा । पढ़ने के लिए दिया तो वे नहीं करने पर भी किया है, ऐसा कहेंगे । अभिभावकों को भी लिखित कार्य ही प्रमाण लगता है । यह तो अविश्वास का मामला हुआ । शिक्षक को छात्र पर या अभिभावकों को शिक्षकों पर विश्वास नहीं होता कि वे सच बोलेंगे या जिसका प्रमाण नहीं देना पड़ता ऐसा भी निश्चित रूप से करेंगे ही । इसलिए गृहकार्य से कोई अर्थ साध्य न होता हो तो भी लिखित गृहकार्य देने का प्रचलन हो गया है । अब तो यह बात चुभने वाली भी नहीं रह गई है । |
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− | मौखिक रूप से अवगत हो तो भी जबतक लिखा नहीं जाता तबतक वह अधूरा है, ऐसा माना जाता है । यह धारणा सही नहीं है । कर्मन्द्रियों की कुशलता, आत्मविश्वास, व्यवहारदक्षता, सद्धावना, विचारशीलता और आकलनक्षमता लिखित रूप में व्यक्त ही नहीं हो सकते । लिखित रूप में गृहकार्य करने के लिए इन बातों की कोई आवश्यकता नहीं होती । तो भी गृहकार्य लिखित स्वरूप का दिया जाता है । इसके पीछे बड़ा विचित्र कारण सुनने को मिलता है । शिक्षक कहते हैं कि लिखित गृहकार्य नहीं दिया तो छात्र ने गृहकार्य किया कि नहीं इसका पता कैसे चलेगा । पढ़ने के लिए दिया तो वे नहीं करने पर भी किया है, ऐसा कहेंगे । अभिभावकों को भी लिखित कार्य ही प्रमाण लगता है । यह तो अविश्वास का मामला हुआ । शिक्षक को छात्र पर या अभिभावकों को शिक्षकों पर विश्वास नहीं होता कि वे सच बोलेंगे या जिसका प्रमाण नहीं देना पड़ता ऐसा भी निश्चित रूप से करेंगे ही । इसलिए गृहकार्य से कोई अर्थ साध्य न होता हो तो भी लिखित गृहकार्य देने का प्रचलन हो गया है । अब तो यह बात चुभने वाली भी नहीं रह गई है । | |
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| यह ठीक तो नहीं है । इस विषय में विद्यालय ने अभिभावकों के साथ विश्वास का सम्बन्ध बनाना चाहिए । दोनों को यह ध्यान में लेना चाहिए की छात्र को ज्ञान प्राप्त होना महत्वपूर्ण है, कापी में लिखना नहीं । इसलिए पहली बात अविश्वास से और लिखित गृहकार्य से मुक्त होना है । इसका अर्थ यह नहीं है की लिखना सर्वथा निषिद्ध है । जहाँ आवश्यक है वहाँ लिखित अवश्य होना चाहिए । उदाहरण के लिए सुलेख ही पक्का करना हो तो लिखना ही चाहिए । वर्तनी सीखना हो तो लिखना ही चाहिए । लिखित अभिव्यक्ति लिखकर ही हो सकती है । गणित के कुछ सवाल लिखकर ही किये जाएंगे । अत: तात्पर्य समझकर लिखित गृहकार्य का प्रयोग कर सकते हैं । | | यह ठीक तो नहीं है । इस विषय में विद्यालय ने अभिभावकों के साथ विश्वास का सम्बन्ध बनाना चाहिए । दोनों को यह ध्यान में लेना चाहिए की छात्र को ज्ञान प्राप्त होना महत्वपूर्ण है, कापी में लिखना नहीं । इसलिए पहली बात अविश्वास से और लिखित गृहकार्य से मुक्त होना है । इसका अर्थ यह नहीं है की लिखना सर्वथा निषिद्ध है । जहाँ आवश्यक है वहाँ लिखित अवश्य होना चाहिए । उदाहरण के लिए सुलेख ही पक्का करना हो तो लिखना ही चाहिए । वर्तनी सीखना हो तो लिखना ही चाहिए । लिखित अभिव्यक्ति लिखकर ही हो सकती है । गणित के कुछ सवाल लिखकर ही किये जाएंगे । अत: तात्पर्य समझकर लिखित गृहकार्य का प्रयोग कर सकते हैं । |
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| सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि विद्यालय की औपचारिक पढ़ाई को व्यावहारिक जीवन के साथ जोड़कर सार्थक बनाने वाले गृहकार्य के विषय में विचार करना चाहिए । यह गृहकार्य केवल लिखित नहीं हो सकता यह स्वाभाविक है । यदि लिखित नहीं तो यह कैसा होगा इसके कुछ उदाहरण यहाँ दिये जा सकते हैं । | | सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि विद्यालय की औपचारिक पढ़ाई को व्यावहारिक जीवन के साथ जोड़कर सार्थक बनाने वाले गृहकार्य के विषय में विचार करना चाहिए । यह गृहकार्य केवल लिखित नहीं हो सकता यह स्वाभाविक है । यदि लिखित नहीं तो यह कैसा होगा इसके कुछ उदाहरण यहाँ दिये जा सकते हैं । |
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− | १२. पाँचवीं के छात्रों को विद्यालय से घर जाते समय रास्ते में पड़ने वाली दुकानों के फ़लक अपनी कापी में लिखो । घर जाकर उनकी भाषा शुद्ध है कि नहीं यह जाँचो । यदि शुद्ध है तो दुकानदारों को अभिनन्दनपरक पत्र लिखो । यदि उनमें कोई अशुद्धि है तो उसे दूर कर शुद्ध करो और दुकानदार को उसकी उचित भाषा में सूचना दो । इस कार्य में समय जायेगा, सम्पर्क करना होगा, शब्दकोश देखना होगा, व्याकरण के नियम याद करने होंगे, पत्रलेखन करना होगा । कई बार ऐसे कामों को प्रोजेक्ट कहा जाता है । यदि विद्यालय में किया तो वह प्रोजेक्ट है, घर में किया तो गृहकार्य । इस प्रकार के गृहकार्य में भाषा का व्यावहारिक और शैक्षिक पक्ष समाविष्ट हो जाता है , केवल भाषाज्ञान के साथ-साथ अन्य व्यावहारिक पक्ष भी समझ में आते हैं ।
| + | पाँचवीं के छात्रों को विद्यालय से घर जाते समय रास्ते में पड़ने वाली दुकानों के फ़लक अपनी कापी में लिखो । घर जाकर उनकी भाषा शुद्ध है कि नहीं यह जाँचो । यदि शुद्ध है तो दुकानदारों को अभिनन्दनपरक पत्र लिखो । यदि उनमें कोई अशुद्धि है तो उसे दूर कर शुद्ध करो और दुकानदार को उसकी उचित भाषा में सूचना दो । इस कार्य में समय जायेगा, सम्पर्क करना होगा, शब्दकोश देखना होगा, व्याकरण के नियम याद करने होंगे, पत्रलेखन करना होगा । कई बार ऐसे कामों को प्रोजेक्ट कहा जाता है । यदि विद्यालय में किया तो वह प्रोजेक्ट है, घर में किया तो गृहकार्य । इस प्रकार के गृहकार्य में भाषा का व्यावहारिक और शैक्षिक पक्ष समाविष्ट हो जाता है , केवल भाषाज्ञान के साथ-साथ अन्य व्यावहारिक पक्ष भी समझ में आते हैं । |
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| घर के सभी कमरों का नाप निकालकर प्रत्येक का क्षेत्रफल कितना है, इसकी तालिका बनाने का गृहकार्य दे सकते हैं । इसी पद्धति से भूमिति विद्यालय में भी पढ़ाई जा सकती है । | | घर के सभी कमरों का नाप निकालकर प्रत्येक का क्षेत्रफल कितना है, इसकी तालिका बनाने का गृहकार्य दे सकते हैं । इसी पद्धति से भूमिति विद्यालय में भी पढ़ाई जा सकती है । |
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| एक सप्ताह का अल्पाहार स्वयं बनाकर ले आने का गृहकार्य भी हो सकता है । उस पदार्थ का वर्णन, उसमें कया क्या सामाग्री प्रयुक्त हुई है और उसका पोषक मूल्य तथा सात्त्विकता कैसी है, इसका वर्णन करने को कहा जा सकता है । कोई गीत, संवाद, सूत्र आदि कंठस्थ करने का गृहकार्य भी दिया जा सकता है । यह सूची शिक्षक की मौलिकता से बहुत बड़ी हो सकती है । तात्पर्य यह है कि पढ़ी हुई, सीखी हुई बातों को व्यवहार में लागू करना आए, इस दृष्टि से गृहकार्य का स्वरूप बनाना चाहिए । | | एक सप्ताह का अल्पाहार स्वयं बनाकर ले आने का गृहकार्य भी हो सकता है । उस पदार्थ का वर्णन, उसमें कया क्या सामाग्री प्रयुक्त हुई है और उसका पोषक मूल्य तथा सात्त्विकता कैसी है, इसका वर्णन करने को कहा जा सकता है । कोई गीत, संवाद, सूत्र आदि कंठस्थ करने का गृहकार्य भी दिया जा सकता है । यह सूची शिक्षक की मौलिकता से बहुत बड़ी हो सकती है । तात्पर्य यह है कि पढ़ी हुई, सीखी हुई बातों को व्यवहार में लागू करना आए, इस दृष्टि से गृहकार्य का स्वरूप बनाना चाहिए । |
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− | विद्यार्थी की जीवनचर्या का मुख्य कार्य अध्ययन करना है इस लिए उसकी सम्पूर्ण जीवनचर्या को अध्ययन के विषयों के अनुसार ढालना चाहिए । इस बात को ध्यान में रखकर गृहकार्य की योजना करनी चाहिए । | + | विद्यार्थी की जीवनचर्या का मुख्य कार्य अध्ययन करना है इस लिए उसकी सम्पूर्ण जीवनचर्या को अध्ययन के विषयों के अनुसार ढालना चाहिए । इस बात को ध्यान में रखकर गृहकार्य की योजना करनी चाहिए । |
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| ==== गृहकार्य की जाँच कैसे करें ==== | | ==== गृहकार्य की जाँच कैसे करें ==== |
− | जो बातें लिखित स्वरूप की होती हैं उनकी जाँच शिक्षक को करनी तो चाहिए ही, परंतु यह कार्य अत्यन्त परेशान करने वाला होता है । बहुत समय उसमें जाता है । उतना समय उसके लिए दिया जाय तो अध्ययन जैसी अन्य आवश्यक बातों के लिए समय नहीं रहता । कई स्थानों पर शिक्षकों के लिए कापियाँ जाँचने का कार्य अनिवार्य किया जाता है, परंतु यह अविश्वास के कारण होता है । शिक्षक जहाँ अधिक विश्वासपात्र होते हैं, वहाँ ऐसा अविश्वास नहीं होता । विश्वास के वातावरण में लिखित गृहकार्य और उसे जाँचने की अनिवार्यता नहीं होगी । तब लिखित कार्य जाँचने की वैकल्पिक व्यवस्था कर शिक्षक अधिक अध्ययन करने के लिए समय प्राप्त कर सकता है । लिखित गृहकार्य जाँचने के लिए अभिभावकों की तथा स्वयं छात्रों की सहायता ली जा सकती है । यहाँ भी परस्पर सौहार्द और विश्वास की आवश्यकता रहेगी । सौहार्द नहीं रहा तो अभिभावक कहते हैं की यह काम शिक्षक का है, उसे वेतन ऐसे कामों के लिए ही दिया जाता है । छात्रों को यह काम नहीं देना चाहिए क्योंकि एक तो वे इस काम के लिए नहीं आते हैं, पढ़ने के लिए आते हैं, और दूसरा, वे विश्वसनीय नहीं हैं । छात्रों की अविश्वसनीयता और अक्षमता के कारण और छात्रों पर अन्याय होता है, इसलिये यह कार्य उन्हें नहीं सॉपना चाहिये । ऐसा तर्क अभिभावकों और संचालकों का रहता है । इसका और इसके जैसे अन्य प्रश्नों का समाधान तो सज्जनता और विश्वास बढ़ाने का ही है , अन्य किसी भी उपायों से विश्वास का संकट दूर नहीं हो सकता । गृहकार्य यदि लिखित है तो स्वयं सुधार हो सके ऐसा होना चाहिए ताकि छात्र अपने आप ही अपना गृहकार्य जाँच सकें । | + | जो बातें लिखित स्वरूप की होती हैं उनकी जाँच शिक्षक को करनी तो चाहिए ही, परंतु यह कार्य अत्यन्त परेशान करने वाला होता है। बहुत समय उसमें जाता है । उतना समय उसके लिए दिया जाय तो अध्ययन जैसी अन्य आवश्यक बातों के लिए समय नहीं रहता। कई स्थानों पर शिक्षकों के लिए कापियाँ जाँचने का कार्य अनिवार्य किया जाता है, परंतु यह अविश्वास के कारण होता है । शिक्षक जहाँ अधिक विश्वासपात्र होते हैं, वहाँ ऐसा अविश्वास नहीं होता । विश्वास के वातावरण में लिखित गृहकार्य और उसे जाँचने की अनिवार्यता नहीं होगी । तब लिखित कार्य जाँचने की वैकल्पिक व्यवस्था कर शिक्षक अधिक अध्ययन करने के लिए समय प्राप्त कर सकता है । लिखित गृहकार्य जाँचने के लिए अभिभावकों की तथा स्वयं छात्रों की सहायता ली जा सकती है । यहाँ भी परस्पर सौहार्द और विश्वास की आवश्यकता रहेगी । सौहार्द नहीं रहा तो अभिभावक कहते हैं की यह काम शिक्षक का है, उसे वेतन ऐसे कामों के लिए ही दिया जाता है । छात्रों को यह काम नहीं देना चाहिए क्योंकि एक तो वे इस काम के लिए नहीं आते हैं, पढ़ने के लिए आते हैं, और दूसरा, वे विश्वसनीय नहीं हैं । छात्रों की अविश्वसनीयता और अक्षमता के कारण और छात्रों पर अन्याय होता है, इसलिये यह कार्य उन्हें नहीं सॉपना चाहिये । ऐसा तर्क अभिभावकों और संचालकों का रहता है । इसका और इसके जैसे अन्य प्रश्नों का समाधान तो सज्जनता और विश्वास बढ़ाने का ही है , अन्य किसी भी उपायों से विश्वास का संकट दूर नहीं हो सकता । गृहकार्य यदि लिखित है तो स्वयं सुधार हो सके ऐसा होना चाहिए ताकि छात्र अपने आप ही अपना गृहकार्य जाँच सकें । |
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| जो भी प्रायोगिक कार्य दिया होता है, उसकी जाँच भी प्रायोगिक पद्धति से ही होती है । वह इतनी व्यक्ति और कार्यसापेक्ष होती है कि उसको नियमों में बांधना संभव नहीं होता है । इसलिए उसकी चर्चा नहीं करेंगे । गृहकार्य के संबंध में इतनी चर्चा पर्याप्त है । | | जो भी प्रायोगिक कार्य दिया होता है, उसकी जाँच भी प्रायोगिक पद्धति से ही होती है । वह इतनी व्यक्ति और कार्यसापेक्ष होती है कि उसको नियमों में बांधना संभव नहीं होता है । इसलिए उसकी चर्चा नहीं करेंगे । गृहकार्य के संबंध में इतनी चर्चा पर्याप्त है । |
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| === विद्यालय की दैनंदिन गतिविधियाँ === | | === विद्यालय की दैनंदिन गतिविधियाँ === |
− | १. क्या इतने प्रकार की गतिविधियाँ विद्यालय में नियमित रूप से हो सकती हैं -
| + | # क्या इतने प्रकार की गतिविधियाँ विद्यालय में नियमित रूप से हो सकती हैं - |
− | # पशु, पक्षी, कीट, पतंग आदि की सेवा | + | ## पशु, पक्षी, कीट, पतंग आदि की सेवा |
− | # वृक्ष वनस्पति की सेवा | + | ## वृक्ष वनस्पति की सेवा |
− | # स्वच्छता | + | ## स्वच्छता |
− | # वंदना | + | ## वंदना |
− | # कारसेवा एवं यज्ञ | + | ## कारसेवा एवं यज्ञ |
− | # व्यायाम | + | ## व्यायाम |
− | # योगाभ्यास | + | ## योगाभ्यास |
− | # साजसज्जा | + | ## साजसज्जा |
− | # गुरुसेवा, गुरुवन्दना | + | ## गुरुसेवा, गुरुवन्दना |
− | # भोजन | + | ## भोजन |
− | २. विद्यालय के समय में इन्हें किस प्रकार से बिठा सकते हैं ?
| + | # विद्यालय के समय में इन्हें किस प्रकार से बिठा सकते हैं ? |
− | | + | # इन सब बातों का शैक्षिक मूल्य कितना है ? |
− | ३. इन सब बातों का शैक्षिक मूल्य कितना है ?
| + | # इनको करने में किस प्रकार के अवरोध निर्माण हो सकते हैं ? |
− | | + | # उन्हें दूर कैसे करें ? |
− | ४. इनको करने में किस प्रकार के अवरोध निर्माण हो सकते हैं ?
| + | # और कौन सी गतिविधियाँ जोड़ी जा सकती हैं ? |
− | | + | # इन सब गतिविधियों के लिये आर्थिक बोज कितना उठाना पडेगा ? |
− | ५. उन्हें दूर कैसे करें ?
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− | | |
− | ६. और कौन सी गतिविधियाँ जोड़ी जा सकती हैं ?
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− | ७. इन सब गतिविधियों के लिये आर्थिक बोज कितना उठाना पडेगा ?
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| ==== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ==== | | ==== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ==== |
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| ==== गतिविधियाँ ==== | | ==== गतिविधियाँ ==== |
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− | ===== १. पशु पक्षी कीट पतंग आदि की सेवा ===== | + | ===== पशु पक्षी कीट पतंग आदि की सेवा ===== |
− | इसमें पक्षिओं को दाना डालना एवं उन्होंने की हुई अस्वच्छता स्वच्छ करना ये दो प्रकार के काम होंगे विद्यालय के ५-६ बच्चों का गट प्रार्थना में न बैठे उस समय यह काम करेगा । एक सप्ताह के बाद गट बदलेगा काम वही रहेगा । उचित जगह पर पक्षिओं के लिए मिट्टी के पात्रों में पानी रखना । ये पात्र साफ करना, उनमें ताजा पानी भरना । मैदान या छज्जेपर दाने डालना (बाजरा चावल) पक्षिओं द्वारा की हुई गंदगी साफ करना | + | इसमें पक्षियों को दाना डालना एवं उन्होंने की हुई अस्वच्छता स्वच्छ करना ये दो प्रकार के काम होंगे विद्यालय के ५-६ बच्चों का गट प्रार्थना में न बैठे उस समय यह काम करेगा । एक सप्ताह के बाद गट बदलेगा काम वही रहेगा । उचित जगह पर पक्षिओं के लिए मिट्टी के पात्रों में पानी रखना । ये पात्र साफ करना, उनमें ताजा पानी भरना । मैदान या छज्जेपर दाने डालना (बाजरा चावल) पक्षिओं द्वारा की हुई गंदगी साफ करना |
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| ====== शैक्षिक मूल्य : ====== | | ====== शैक्षिक मूल्य : ====== |
| पक्षी निर्भयता से कहाँ आते हैं । चींटियाँ कहाँ रहती हैं ? उन्हें कितनी मात्रा में दाना पानी चाहिये ? इसका अंदाज लगाना । मन में प्राणीद्या निर्माण होती है । चित्त निर्मल रहता है । | | पक्षी निर्भयता से कहाँ आते हैं । चींटियाँ कहाँ रहती हैं ? उन्हें कितनी मात्रा में दाना पानी चाहिये ? इसका अंदाज लगाना । मन में प्राणीद्या निर्माण होती है । चित्त निर्मल रहता है । |
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− | ====== अवरोध - ====== | + | ====== अवरोध ====== |
− | १. प्रार्थना मे न जाते हुए यह काम
| + | # प्रार्थना मे न जाते हुए यह काम करवाना मन को अच्छा नहीं लगता । |
− | | + | # अभिभावक ऐसे सामान्य कामों को फालतू एवं अशैक्षिक समझते हैं । |
− | करवाना मन को अच्छा नहीं लगता । २. अभिभावक ऐसे | |
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− | सामान्य कामों को फालतू एवं अशैक्षिक समझते हैं । | |
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− | ====== उपाय - ======
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− | १. शान्त बैठकर प्रार्थना करना और
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− | | |
− | पक्षीकी सेवा करना दोनों समान ही है, यह विचार करना ।
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− | | |
− | बच्चों को इस का अर्थ समझाना रे. यह भी महत्वपूर्ण
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− | शिक्षा है इस बात को धयान में रखना । | + | ====== उपाय ====== |
| + | शान्त बैठकर प्रार्थना करना और पक्षी की सेवा करना दोनों समान ही है, यह विचार करना । बच्चों को इस का अर्थ समझाना, यह भी महत्वपूर्ण शिक्षा है इस बात को ध्यान में रखना । |
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− | ===== २. वृक्ष वनस्पती सेवा ===== | + | ===== वृक्ष वनस्पति सेवा ===== |
| पौंधो को पानी पिलाना, वृक्षों के तनों को रंग लगाना, पतझड में गिरे हुई पत्ते, कचरा इकट्ठा करना, गमले साफ रखना, पौधों को खाद देना इत्यादी प्रकार के काम सेवाकार्य ही हैं । १० बालकों का गट बनाना, गट प्रमुख बनाना। इससे कार्यविभाजन होगा। खेल के कालांश में यह सेवाकार्य करना । | | पौंधो को पानी पिलाना, वृक्षों के तनों को रंग लगाना, पतझड में गिरे हुई पत्ते, कचरा इकट्ठा करना, गमले साफ रखना, पौधों को खाद देना इत्यादी प्रकार के काम सेवाकार्य ही हैं । १० बालकों का गट बनाना, गट प्रमुख बनाना। इससे कार्यविभाजन होगा। खेल के कालांश में यह सेवाकार्य करना । |
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− | ====== शैक्षिक मूल्य - ====== | + | ====== शैक्षिक मूल्य ====== |
| वृक्ष वनस्पति का परिचय, उनकी आवश्यकताएँ समझना उनके प्रति आत्मीयता निर्माण होती है । ये सारी बातें हमारे विद्यालय की हैं, उनका रक्षण एवं संवर्धन करना हमारा दायित्व है यह भाव जागृत होता है । | | वृक्ष वनस्पति का परिचय, उनकी आवश्यकताएँ समझना उनके प्रति आत्मीयता निर्माण होती है । ये सारी बातें हमारे विद्यालय की हैं, उनका रक्षण एवं संवर्धन करना हमारा दायित्व है यह भाव जागृत होता है । |
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− | ====== अवरोध - ====== | + | ====== अवरोध ====== |
| सभी छात्र ठीक से काम करेंगे या नहीं ? आपस में झगड़ेंगे ऐसी आशंका निर्माण होती है। यह काम क्या पढ़ाई है ? ऐसा प्रश्न अभिभावक पूछ सकते हैं। | | सभी छात्र ठीक से काम करेंगे या नहीं ? आपस में झगड़ेंगे ऐसी आशंका निर्माण होती है। यह काम क्या पढ़ाई है ? ऐसा प्रश्न अभिभावक पूछ सकते हैं। |
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− | ====== उपाय - ====== | + | ====== उपाय ====== |
| इस गतिविधी का स्वरूप और महत्व छात्रों को समझाना । शिक्षक ने थोडीबहुत देखरेख रखना । किताबी पढ़ाई से हटकर इस अभ्यास से छात्रों की मनःस्थिति में अच्छा बदलाव आता है । फिर अभिभावक भी शिकायत नहीं करेंगे । | | इस गतिविधी का स्वरूप और महत्व छात्रों को समझाना । शिक्षक ने थोडीबहुत देखरेख रखना । किताबी पढ़ाई से हटकर इस अभ्यास से छात्रों की मनःस्थिति में अच्छा बदलाव आता है । फिर अभिभावक भी शिकायत नहीं करेंगे । |
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− | ===== ३. स्वच्छता ===== | + | ===== स्वच्छता ===== |
| सफाई करना, श्यामपट स्वच्छ करना, डेस्क बेंच साफ रखना, कागज कचरा उठाकर कचरा पात्र में डालना । इस प्रकार के सारे काम होंगे। रोज प्रार्थना के तुरंत बाद १० मिनट यह स्वच्छता कार्य होगा । कक्षा शिक्षक इसका ठीक से नियोजन करेंगे । सब को अपना कार्य समझायेंगे । | | सफाई करना, श्यामपट स्वच्छ करना, डेस्क बेंच साफ रखना, कागज कचरा उठाकर कचरा पात्र में डालना । इस प्रकार के सारे काम होंगे। रोज प्रार्थना के तुरंत बाद १० मिनट यह स्वच्छता कार्य होगा । कक्षा शिक्षक इसका ठीक से नियोजन करेंगे । सब को अपना कार्य समझायेंगे । |
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− | ====== अवरोध - ====== | + | ====== अवरोध ====== |
| कुछ बालक काम करेंगे, कुछ मस्ती | | कुछ बालक काम करेंगे, कुछ मस्ती |
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− | ====== उपाय - ====== | + | ====== उपाय ====== |
| अच्छे काम करने वालों का गौरव करना । न करनेवालों को डाँट नहीं, अपितु उनकी समझ बढ़ाना । कक्षाचार्य ने स्वयं इसमें सहभागी होना । | | अच्छे काम करने वालों का गौरव करना । न करनेवालों को डाँट नहीं, अपितु उनकी समझ बढ़ाना । कक्षाचार्य ने स्वयं इसमें सहभागी होना । |
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− | ====== शैक्षिक मूल्य - ====== | + | ====== शैक्षिक मूल्य ====== |
| समूह में काम करने की आदत, विद्यालय के प्रति आत्मीय भाव जागृत करना । | | समूह में काम करने की आदत, विद्यालय के प्रति आत्मीय भाव जागृत करना । |
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− | ===== ४. वन्दना ===== | + | ===== वन्दना ===== |
− | विद्यालय सरस्वती का मन्दिर है । अध्ययन रोज उसी की वन्दना से शुरु होना चाहिये । पूजन करना शुद्ध एवं सुस्वर में वन्दना करना । वन्दना मे शिक्षक, मुख्याध्यापक, उपस्थित अतिथि एवं अभिभावकों को भी सम्मिलित करें । | + | विद्यालय सरस्वती का मन्दिर है । अध्ययन रोज उसी की वन्दना से शुरु होना चाहिये । पूजन करना शुद्ध एवं सुस्वर में वन्दना करना। वन्दना मे शिक्षक, मुख्याध्यापक, उपस्थित अतिथि एवं अभिभावकों को भी सम्मिलित करें । |
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− | ====== शैक्षिकमूल्य - ====== | + | ====== शैक्षिकमूल्य ====== |
| सरस्वती वन्दना में संगीत, संस्कृत और योग तीनों बातों का संयोग होता है। स्थिरता अनुशासन संयम आदि संस्कार होते है । | | सरस्वती वन्दना में संगीत, संस्कृत और योग तीनों बातों का संयोग होता है। स्थिरता अनुशासन संयम आदि संस्कार होते है । |
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− | ====== अवरोध - ====== | + | ====== अवरोध ====== |
− | कुछलोग पूजापाठ के विरोधी होते हैं ।
| + | कुछ लोग पूजापाठ के विरोधी होते हैं । |
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− | ====== उपाय - ====== | + | ====== उपाय ====== |
− | उनकी ओर ध्यान नहीं देना । उनसे __ भयभीत भी नहीं होना। | + | उनकी ओर ध्यान नहीं देना । उनसे भयभीत भी नहीं होना। |
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− | ===== ५. कारसेवा एवं यज्ञ ===== | + | ===== कारसेवा एवं यज्ञ ===== |
− | विद्यालय में अग्निहोत्र नित्य करें । विद्यालय की ५ वीं से ऊपर की कक्षाओं में से प्रतिदिन एक कक्षा के छात्र अग्निहोत्र करे । उस समय वे वन्दना में नहीं जायेंगे । बैठक व्यवस्था करना, यज्ञ की सामग्री रखना, बाद में उठाकर यथास्थान रखना, ४ छात्रोंने प्रत्यक्ष हवन करना इस प्रकार की योजना बने । उपरोक्त सर्व गतिविधियों में कुछ न कुछ कारसेवा हर विद्यर्थी को करनी ही है। अतः अलगसे कारसेवा न लगाए तो भी चलेगा। | + | विद्यालय में अग्निहोत्र नित्य करें । विद्यालय की ५ वीं से ऊपर की कक्षाओं में से प्रतिदिन एक कक्षा के छात्र अग्निहोत्र करे । उस समय वे वन्दना में नहीं जायेंगे । बैठक व्यवस्था करना, यज्ञ की सामग्री रखना, बाद में उठाकर यथास्थान रखना, ४ छात्रों द्वारा प्रत्यक्ष हवन करना, इस प्रकार की योजना बने । उपरोक्त सर्व गतिविधियों में कुछ न कुछ कारसेवा हर विद्यार्थी को करनी ही है। अतः अलग से कारसेवा न लगाए तो भी चलेगा। |
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− | ====== शैक्षिक मूल्य - ====== | + | ====== शैक्षिक मूल्य ====== |
− | पर्यावरण शुद्धि, वेदमंत्र कंठस्थ होना, उच्चारण स्पष्टता एवं आध्यात्मिक संस्कार साध्य होते | + | पर्यावरण शुद्धि, वेदमंत्र कंठस्थ होना, उच्चारण स्पष्टता एवं आध्यात्मिक संस्कार साध्य होते हैं। |
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− | ====== अवरोध - ====== | + | ====== अवरोध ====== |
| घी और हवन सामग्री रोज खर्च होती है ऐसा कुछ लोग सोचते हैं। | | घी और हवन सामग्री रोज खर्च होती है ऐसा कुछ लोग सोचते हैं। |
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− | ====== उपाय - ====== | + | ====== उपाय ====== |
| समिधा इकट्ठी कर सकते हैं। घी खर्च होगा परंतु अन्य उपलब्धिओं की तुलना मे खर्च नगण्य है । घी जलकर नष्ट होता है और वह फिजूल खर्च है, यह विचार दूर करे। | | समिधा इकट्ठी कर सकते हैं। घी खर्च होगा परंतु अन्य उपलब्धिओं की तुलना मे खर्च नगण्य है । घी जलकर नष्ट होता है और वह फिजूल खर्च है, यह विचार दूर करे। |
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− | ===== ६. व्यायाम ===== | + | ===== व्यायाम ===== |
| दिन भर के समयपत्रक मे रोज १५ मिनिट व्यायाम के लिए निकालना चाहिये । व्यायाम का स्वरूप छात्रों की आयु के अनुसार निश्चित करें । वर्गशिक्षक रोज उपस्थिति लेता है उसी प्रकार व्यायाम भी अनिवार्य रूप से हो । | | दिन भर के समयपत्रक मे रोज १५ मिनिट व्यायाम के लिए निकालना चाहिये । व्यायाम का स्वरूप छात्रों की आयु के अनुसार निश्चित करें । वर्गशिक्षक रोज उपस्थिति लेता है उसी प्रकार व्यायाम भी अनिवार्य रूप से हो । |
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− | ====== शैक्षिक मूल्य - ====== | + | ====== शैक्षिक मूल्य ====== |
| शरीर मे स्फूर्ति उत्साह एव लोच बढता है। ये बातें ज्ञानार्जन के लिए अत्यावश्यक है । | | शरीर मे स्फूर्ति उत्साह एव लोच बढता है। ये बातें ज्ञानार्जन के लिए अत्यावश्यक है । |
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− | ===== अवरोध - ===== | + | ===== अवरोध ===== |
| शिक्षक ही प्रमुख रूप से इसमें अवरोध है । येन केन प्रकारेण इसे मुख्याध्यापक ही दूर करे । | | शिक्षक ही प्रमुख रूप से इसमें अवरोध है । येन केन प्रकारेण इसे मुख्याध्यापक ही दूर करे । |
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− | ===== ७. योगाभ्यास ===== | + | ===== योगाभ्यास ===== |
| नित्य वंदना के बाद १० मिनिट प्रार्थना कक्ष में ही योगाभ्यास हो । योगाभ्यास अर्थात् केवल आसन प्राणायाम ही नहीं । अनेक प्रकार से इसका अभ्यास हो सकता है । | | नित्य वंदना के बाद १० मिनिट प्रार्थना कक्ष में ही योगाभ्यास हो । योगाभ्यास अर्थात् केवल आसन प्राणायाम ही नहीं । अनेक प्रकार से इसका अभ्यास हो सकता है । |
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− | ====== शैक्षिक मूल्य - ====== | + | ====== शैक्षिक मूल्य ====== |
| छात्रों की ग्रहणशक्ति, धारणाशक्ति बढ़ती है उसका प्रयोग और मापन करके देखे । | | छात्रों की ग्रहणशक्ति, धारणाशक्ति बढ़ती है उसका प्रयोग और मापन करके देखे । |
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− | ====== अवरोध - ====== | + | ====== अवरोध ====== |
| शिक्षक को इस विषय मे रुचि और महत्व कम रहता है, समझ कम और श्रम ज्यादा होते है । | | शिक्षक को इस विषय मे रुचि और महत्व कम रहता है, समझ कम और श्रम ज्यादा होते है । |
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− | ====== उपाय - ====== | + | ====== उपाय ====== |
| योग्य एवं जानकार व्यक्ति से इसे ठीक से समझ ले, अभिभावकों से भी अनुकूलता प्राप्त करे । | | योग्य एवं जानकार व्यक्ति से इसे ठीक से समझ ले, अभिभावकों से भी अनुकूलता प्राप्त करे । |
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− | ===== ८... साजसज्जा : ===== | + | ===== साजसज्जा ===== |
| नियमित रूप से भले अल्पमात्रा मे साजसज्जा अवश्य करे । सभी चीजे यथास्थान रखना वर्ग मे गुलदस्ता सजाना और अन्य कई प्रकार हो सकते है । | | नियमित रूप से भले अल्पमात्रा मे साजसज्जा अवश्य करे । सभी चीजे यथास्थान रखना वर्ग मे गुलदस्ता सजाना और अन्य कई प्रकार हो सकते है । |
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− | शैक्षिक मूल्य - कलागुणों में वृद्धी, सौन्दर्य दूष्ठी बढती है, कल्पकता का आनंद एवं उत्साह वर्धन होता है । इस काम का नियोजन व पालन व्यवस्थित करना अन्यथा साजसज्जा कम और गडबड ज्यादा जैसा होगा । | + | ====== शैक्षिक मूल्य ====== |
| + | कलागुणों में वृद्धि, सौन्दर्य दृष्टि बढती है, कल्पकता का आनंद एवं उत्साह वर्धन होता है । इस काम का नियोजन व पालन व्यवस्थित करना अन्यथा साजसज्जा कम और गडबड ज्यादा जैसा होगा । |
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− | ===== ९. गुरुसेवा गुरु वन्दना : ===== | + | ===== गुरुसेवा गुरु वन्दना ===== |
| आचार्यों को आदर देना, उनकी सेवा करना, गुरु निन्दा उपहास न करना । | | आचार्यों को आदर देना, उनकी सेवा करना, गुरु निन्दा उपहास न करना । |
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− | ===== १०, भोजन : ===== | + | ===== भोजन ===== |
− | मध्यावकाश को भोजन के रूप में यह विद्यालयों में होने वाली नित्य गतिविधि है । भोजन बडा संस्कार है । अन्न से शरीर और मन की पुष्ठी होती है । इस विषय में विस्तृत विवेचन मध्यावकाश का भोजन इस प्रश्नावली में किया है । | + | मध्यावकाश को भोजन के रूप में यह विद्यालयों में होने वाली नित्य गतिविधि है । भोजन बडा संस्कार है । अन्न से शरीर और मन की पुष्टि होती है । इस विषय में विस्तृत विवेचन मध्यावकाश का भोजन इस प्रश्नावली में किया है । |
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| पाँच छ घण्टे के विद्यालय में ऐसी गतिविधियाँ संभव है । उसके लिए खर्च अधिक नहीं आता । कल्पकता एवं उत्कृष्ट योजकता मात्र आवश्यक है। मानसिकता भी आवश्यक है । आज विद्यालयों में ये गतिविधियाँ करवाना झंझट, बोझ भी लग सकता है । परन्तु भारतीय शिक्षा का प्रयोग करना है तो सब समझकर करना । छात्रों को इनका अच्छा परिणाम मिलेगा । शिक्षक एवं अभिभावकों को छात्रो के व्यवहार में अनुकूल परिवर्तन जरूर दिखेगा । | | पाँच छ घण्टे के विद्यालय में ऐसी गतिविधियाँ संभव है । उसके लिए खर्च अधिक नहीं आता । कल्पकता एवं उत्कृष्ट योजकता मात्र आवश्यक है। मानसिकता भी आवश्यक है । आज विद्यालयों में ये गतिविधियाँ करवाना झंझट, बोझ भी लग सकता है । परन्तु भारतीय शिक्षा का प्रयोग करना है तो सब समझकर करना । छात्रों को इनका अच्छा परिणाम मिलेगा । शिक्षक एवं अभिभावकों को छात्रो के व्यवहार में अनुकूल परिवर्तन जरूर दिखेगा । |
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| शुद्ध पढ़ने पढ़ाने के अतिरिक्त अनेक बातें ऐसी हैं जो पढाई की सहयोगी के रूप में विद्यालयों में होती है । इनका शैक्षिक दृष्टि से विचार किया जाना चाहिये क्योंकि इनका सीधा सम्बन्ध पढ़ाई से है । | | शुद्ध पढ़ने पढ़ाने के अतिरिक्त अनेक बातें ऐसी हैं जो पढाई की सहयोगी के रूप में विद्यालयों में होती है । इनका शैक्षिक दृष्टि से विचार किया जाना चाहिये क्योंकि इनका सीधा सम्बन्ध पढ़ाई से है । |
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− | ===== १, प्रार्थना ===== | + | ===== प्रार्थना ===== |
− | प्रार्थथा से किसी भी शुभ कार्य का प्रारम्भ होना भारत में केवल स्वाभाविक ही नहीं तो अनिवार्य माना गया है । हमने कल्याणकारी सभी बातों को देवता का स्वरूप दिया है। यहाँ तक की पानी को जलदेवता अथवा वरुण देवता, अग्नि को अग्थिदेवता, वायु को वायुदेवता, पृथ्वी को पृथ्वीदेवता कहा है | पृथ्वी को तो हम माता ही कहते हैं। तब विद्या को, ज्ञान को हम देवता न मानें ऐसा हो ही नहीं सकता । विद्या की, वाणी की, कला की, संगीत की देवता सरस्वती विद्यालयों की अधिष्ठात्री देवी है । अध्ययन अध्यापन के रूप में हम उसकी उपासना करते हैं। ज्ञान के सभी लक्षणों को साकार रूप देकर हमने सरस्वती की प्रतिमा बनाई है । इस देवता की प्रार्थना से प्रारम्भ करना नितान्त आवश्यक है । परन्तु इसमें केवल कर्मकाण्ड नहीं चलेगा । कुछ बातें ध्यान देने योग्य हैं....
| + | प्रार्थना से किसी भी शुभ कार्य का प्रारम्भ होना भारत में केवल स्वाभाविक ही नहीं तो अनिवार्य माना गया है । हमने कल्याणकारी सभी बातों को देवता का स्वरूप दिया है। यहाँ तक की पानी को जलदेवता अथवा वरुण देवता, अग्नि को अग्थिदेवता, वायु को वायुदेवता, पृथ्वी को पृथ्वीदेवता कहा है | पृथ्वी को तो हम माता ही कहते हैं। तब विद्या को, ज्ञान को हम देवता न मानें ऐसा हो ही नहीं सकता । विद्या की, वाणी की, कला की, संगीत की देवता सरस्वती विद्यालयों की अधिष्ठात्री देवी है । अध्ययन अध्यापन के रूप में हम उसकी उपासना करते हैं। ज्ञान के सभी लक्षणों को साकार रूप देकर हमने सरस्वती की प्रतिमा बनाई है । इस देवता की प्रार्थना से प्रारम्भ करना नितान्त आवश्यक है । परन्तु इसमें केवल कर्मकाण्ड नहीं चलेगा । कुछ बातें ध्यान देने योग्य हैं.... |
− | * जो भी करें शाख्रशुद्ध करें । विद्याकेन्द्रों में अशास्त्रीय नहीं चलता । सुशोभन अवश्य करना चाहिये और वह पर्यावरण और सौन्दर्य दृष्टि को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिये। | + | * जो भी करें शास्त्रशुद्ध करें । विद्याकेन्द्रों में अशास्त्रीय नहीं चलता । सुशोभन अवश्य करना चाहिये और वह पर्यावरण और सौन्दर्य दृष्टि को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिये। |
| * फूल, दीप और अगरबत्ती का प्रयोग यदि करते हैं तो ध्यान में रखें कि अगरबत्ती सिन्थेटिक न हो, दीप जर्सी के घी का न हो और फूल कृत्रिम न हों । इस निमित्त से विद्यालय में अन्यान्य चित्रों पर जो प्लास्टिक के फूलों की मालायें चढ़ाई जाती हैं वे उतार दी जाय । सरस्वती को यह मान्य नहीं है । | | * फूल, दीप और अगरबत्ती का प्रयोग यदि करते हैं तो ध्यान में रखें कि अगरबत्ती सिन्थेटिक न हो, दीप जर्सी के घी का न हो और फूल कृत्रिम न हों । इस निमित्त से विद्यालय में अन्यान्य चित्रों पर जो प्लास्टिक के फूलों की मालायें चढ़ाई जाती हैं वे उतार दी जाय । सरस्वती को यह मान्य नहीं है । |
− | * प्रार्थथा शुद्ध स्वर और शुद्ध उच्चारण से गाई जानी चाहिये । सरस्वती वाणी और संगीत दोनों की देवता है । बेसूरा गायन, बेसूरे और बेढब वाद्य और बेताल वादन, चिछ्ठा चिक्लाकर गाना, गलत उच्चारण करना उसे मान्य नहीं है। वह इसे क्षमा नहीं करेगी । कृपा करने की तो बात ही दूर की है । | + | * प्रार्थथा शुद्ध स्वर और शुद्ध उच्चारण से गाई जानी चाहिये । सरस्वती वाणी और संगीत दोनों की देवता है । बेसूरा गायन, बेसूरे और बेढब वाद्य और बेताल वादन, चिल्ला चिल्ला कर गाना, गलत उच्चारण करना उसे मान्य नहीं है। वह इसे क्षमा नहीं करेगी । कृपा करने की तो बात ही दूर की है । |
| * प्रार्थना सभा का वातावरण पवित्र होना भी उतना ही आवश्यक है । यदि हम कर सकें तो प्रार्थनाकक्ष में प्रार्थना के अलावा मौन रहना, अन्य किसी प्रकार की बातें नहीं करना भी होना चाहिये । अधिकांश विद्यालयों में विद्यालय का प्रारम्भ सभा से होता है । जिसमें सूचनायें, समाचार वाचन, पंचांग कथन, किसी विद्यार्थी या कक्षा की प्रस्तुति, शिक्षक द्वारा प्रेरक उदूबोधन होता है और इस सभा का एक अंग प्रार्थथा है। यह विद्यालय के कामकाज का उपयोगितावादी दृष्टिकोण है जिससे प्रार्थना का महत्व कम हो जाता है । | | * प्रार्थना सभा का वातावरण पवित्र होना भी उतना ही आवश्यक है । यदि हम कर सकें तो प्रार्थनाकक्ष में प्रार्थना के अलावा मौन रहना, अन्य किसी प्रकार की बातें नहीं करना भी होना चाहिये । अधिकांश विद्यालयों में विद्यालय का प्रारम्भ सभा से होता है । जिसमें सूचनायें, समाचार वाचन, पंचांग कथन, किसी विद्यार्थी या कक्षा की प्रस्तुति, शिक्षक द्वारा प्रेरक उदूबोधन होता है और इस सभा का एक अंग प्रार्थथा है। यह विद्यालय के कामकाज का उपयोगितावादी दृष्टिकोण है जिससे प्रार्थना का महत्व कम हो जाता है । |
| * एक बात विशेष उल्लेखनीय है । कई विद्यालयों में प्रार्थना केवल विद्यार्थियों के लिये होती है । कुछ विद्यालय ऐसे हैं जहाँ शिक्षकगण प्रार्थना में सहभागी होता है परन्तु लगभग एक भी विद्यालय ऐसा नहीं है जहाँ सेवक, कार्यालयीन कर्मचारी, या उसी समय उपस्थित अभिभावक प्रार्थना में सम्मिलित होते हों । यह अवश्य आश्चर्यकारक है । | | * एक बात विशेष उल्लेखनीय है । कई विद्यालयों में प्रार्थना केवल विद्यार्थियों के लिये होती है । कुछ विद्यालय ऐसे हैं जहाँ शिक्षकगण प्रार्थना में सहभागी होता है परन्तु लगभग एक भी विद्यालय ऐसा नहीं है जहाँ सेवक, कार्यालयीन कर्मचारी, या उसी समय उपस्थित अभिभावक प्रार्थना में सम्मिलित होते हों । यह अवश्य आश्चर्यकारक है । |