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| यह अनीति समाजविरोधी है, देशविरोधी है, धर्मविरोधी है । भारत की विचारधारा कभी भी इसका समर्थन नहीं करती । भारत की परम्परा इसकी कभी भी दुहाई नहीं देती । यहाँ तो दो शत्रुओं के बीच युद्ध भी धर्म के नियमों का पालन करके होते हैं। निहत्थे शत्रु के साथ लडने के लिये व्यक्ति अपना हथियार छोड देता है क्योंकि एक के हाथ में शस्त्र हो और दूसरे के हाथ में न हो तो शख्रधारी निःशस्त्र के साथ युद्ध करे यह अन्याय है, अधर्म है । | | यह अनीति समाजविरोधी है, देशविरोधी है, धर्मविरोधी है । भारत की विचारधारा कभी भी इसका समर्थन नहीं करती । भारत की परम्परा इसकी कभी भी दुहाई नहीं देती । यहाँ तो दो शत्रुओं के बीच युद्ध भी धर्म के नियमों का पालन करके होते हैं। निहत्थे शत्रु के साथ लडने के लिये व्यक्ति अपना हथियार छोड देता है क्योंकि एक के हाथ में शस्त्र हो और दूसरे के हाथ में न हो तो शख्रधारी निःशस्त्र के साथ युद्ध करे यह अन्याय है, अधर्म है । |
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− | नीतिमत्ता का ह्रास वर्तमान समय का राष्ट्रीय संकट | + | नीतिमत्ता का ह्रास वर्तमान समय का राष्ट्रीय संकट है । इसके साथ लडने हेतु और इस संकट को दूर करने हेतु विद्यालय, घर और धर्माचार्यों ने जिम्मेदारी लेकर योजना बनानी होगी । |
− | है । इसके साथ लडने हेतु और इस दृषण को दूर करने हेतु विद्यालय, घर और धर्माचार्यों ने जिम्मेदारी लेकर योजना बनानी होगी । | |
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| ====विद्यालय की भूमिका==== | | ====विद्यालय की भूमिका==== |
| 1. विद्यालय का प्रमुख दायित्व है यह मानना होगा । जिस देश के विद्यालय नीतिमत्ता की रक्षा नहीं कर सकते उस देश का भविष्य धुंधला ही होता है । | | 1. विद्यालय का प्रमुख दायित्व है यह मानना होगा । जिस देश के विद्यालय नीतिमत्ता की रक्षा नहीं कर सकते उस देश का भविष्य धुंधला ही होता है । |
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− | 2. विद्यालय संचालकों और शिक्षकों के नीतिमान होने | + | 2. विद्यालय संचालकों और शिक्षकों के नीतिमान होने से ही विद्यार्थियों को नीतिमान बना सकते हैं । |
− | से ही विद्यार्थियों को नीतिमान बना सकते हैं । | |
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| संचालकों के अनीतिमान होने के अनेक उदाहरण सर्वविदित हैं | | संचालकों के अनीतिमान होने के अनेक उदाहरण सर्वविदित हैं |
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| शिक्षा किस प्रकार दी जा सकेगी ? | | शिक्षा किस प्रकार दी जा सकेगी ? |
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− | 3. शिक्षकों की नीतिमत्ता के अभाव का स्वरूप कुछ इस प्रकार का है..... | + | 3. शिक्षकों की नीतिमत्ता के अभाव का स्वरूप कुछ इस प्रकार का है: |
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| *शिक्षकों को पढाना आता नहीं है, पढाने की नीयत नहीं होती है तब वे विद्यार्थियों को नकल करवाते हैं और बदले में पैसे लेते हैं । | | *शिक्षकों को पढाना आता नहीं है, पढाने की नीयत नहीं होती है तब वे विद्यार्थियों को नकल करवाते हैं और बदले में पैसे लेते हैं । |
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| जब सर्वसामान्य रूप से ऐसी अनीति छाई हो तो आशा कहाँ है ? इस अनीति को कम करने में, नष्ट करने में कानून की कोई भूमिका नहीं है । कानून से अनीति दूर हो ही नहीं सकती । अनीति अधर्म है और धर्म से ही उसके साथ लड़ना और उस पर विजय पाना सम्भव हो सकता है । | | जब सर्वसामान्य रूप से ऐसी अनीति छाई हो तो आशा कहाँ है ? इस अनीति को कम करने में, नष्ट करने में कानून की कोई भूमिका नहीं है । कानून से अनीति दूर हो ही नहीं सकती । अनीति अधर्म है और धर्म से ही उसके साथ लड़ना और उस पर विजय पाना सम्भव हो सकता है । |
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− | धर्म और अधर्म के युद्ध में धर्म की ही विजय होती है ऐसा हमारा इतिहास कहता है परन्तु वह तब होता है जब धर्म का पक्ष लेने वाला, धर्म के लिये लडनेवाला कोई खडा हो । धर्म का पक्ष लेने पर अन्तिम विजय होती भले ही हो परन्तु कष्ट भी बहुत उठाने पड़ते हैं । आज का सवाल तो यह है कि धर्म का पक्ष तो लिया जा सकता है परन्तु उसके लिये कष्ट उठाने की सिद्धता नहीं होती । धर्म के गुण तो गाये जा सकते हैं परन्तु धर्ममार्ग पर चलना कठिन है। ऐसा तो कोई क्यों करेगा ? धर्ममार्ग पर चलने से दिखने वाला कोई लाभ हो तब तो | + | धर्म और अधर्म के युद्ध में धर्म की ही विजय होती है ऐसा हमारा इतिहास कहता है परन्तु वह तब होता है जब धर्म का पक्ष लेने वाला, धर्म के लिये लडनेवाला कोई खडा हो । धर्म का पक्ष लेने पर अन्तिम विजय होती भले ही हो परन्तु कष्ट भी बहुत उठाने पड़ते हैं । आज का सवाल तो यह है कि धर्म का पक्ष तो लिया जा सकता है परन्तु उसके लिये कष्ट उठाने की सिद्धता नहीं होती । धर्म के गुण तो गाये जा सकते हैं परन्तु धर्ममार्ग पर चलना कठिन है। ऐसा तो कोई क्यों करेगा ? धर्ममार्ग पर चलने से दिखने वाला कोई लाभ हो तब तो ठीक है । अधर्म मार्ग पर चलकर लाभ मिलता हो तो अधर्म ही सही । |
− | ठीक है । अधर्म मार्ग पर चलकर लाभ मिलता हो तो | |
− | अधर्म ही सही । | |
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| ===इस स्थिति में विद्यालय क्या करें ?=== | | ===इस स्थिति में विद्यालय क्या करें ?=== |
| कुछ इस प्रकार से विचार किया जा सकता है... | | कुछ इस प्रकार से विचार किया जा सकता है... |
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− | नीति का पक्ष लेने वाले कुछ लोग तो समाज में हैं ही । ये केवल नीति की बात ही नहीं करते, उनका आचरण भी नैतिक होता है । अक्सर ऐसे लोग अपने | + | नीति का पक्ष लेने वाले कुछ लोग तो समाज में हैं ही । ये केवल नीति की बात ही नहीं करते, उनका आचरण भी नैतिक होता है । अक्सर ऐसे लोग अपने में ही मस्त होते हैं । दूसरों को अनीति का आचरण करना है तो करें, उनका हिसाब भगवान करेगा, हम अनीति का आचरण नहीं करेंगे । हमने दुनिया को सुधार करने का ठेका नहीं लिया है ऐसा वे कहते हैं । |
− | में ही मस्त होते हैं । दूसरों को अनीति का आचरण करना है तो करें, उनका हिसाब भगवान करेगा, हम अनीति का. आचरण नहीं करेंगे । हमने दुनिया को सुधार करने का ठेका नहीं लिया है ऐसा वे कहते हैं । | |
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− | परन्तु केवल अच्छाई पर्याप्त नहीं है । यह सत्य है कि ऐसे लोगों के प्रभाव से ही दुनिया का अभी नाश नहीं हुआ है परन्तु नीतिमान अच्छे लोगों के अक्रिय | + | परन्तु केवल अच्छाई पर्याप्त नहीं है । यह सत्य है कि ऐसे लोगों के प्रभाव से ही दुनिया का अभी नाश नहीं हुआ है परन्तु नीतिमान अच्छे लोगों के अक्रिय रहने से चलने वाला नहीं है । इन्हें संगठित होकर सामर्थ्य बढाने की आवश्यकता है । |
− | रहने से चलने वाला नहीं है । इन्हें संगठित होकर | |
− | सामर्थ्य बढाने की आवश्यकता है । | |
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| *विद्यालयों के संचालक और शिक्षक दोनों नीतिमान हों ऐसे विद्यालयों के साथ समाज की सज्जनशक्ति को ज़ुडना चाहिये । | | *विद्यालयों के संचालक और शिक्षक दोनों नीतिमान हों ऐसे विद्यालयों के साथ समाज की सज्जनशक्ति को ज़ुडना चाहिये । |
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| ===अपनी दृष्टि व्यापक बनाना=== | | ===अपनी दृष्टि व्यापक बनाना=== |
− | बात प्रथम दृष्टि में तो ठीक लगती है, परन्तु हमें व्यापक दृष्टि से देखना होगा । दृष्टि व्यापक करने से इन | + | बात प्रथम दृष्टि में तो ठीक लगती है, परन्तु हमें व्यापक दृष्टि से देखना होगा । दृष्टि व्यापक करने से इन बातों को भी सूची में समाविष्ट करने का तात्पर्य ध्यान में आयेगा | |
− | बातों को भी सूची में समाविष्ट करने का तात्पर्य ध्यान में आयेगा | | |
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− | *इस कार्यक्रम को अपने अपने विद्यालयों में निश्चितता पूर्वक लागू करना चाहिये । कडाई से लागू करने से प्रारम्भ होगा परन्तु धीरे धीरे विद्यार्थियों और अभिभावकों को समझाकर सहमत बनाना चाहिये । सबको इन बातों के लिये अपने विद्यालय पर गर्व हो ऐसी स्थिति आनी चाहिये । | + | *इस कार्यक्रम को अपने अपने विद्यालयों में निश्चितता पूर्वक लागू करना चाहिये । कड़ाई से लागू करने से प्रारम्भ होगा परन्तु धीरे धीरे विद्यार्थियों और अभिभावकों को समझाकर सहमत बनाना चाहिये । सबको इन बातों के लिये अपने विद्यालय पर गर्व हो ऐसी स्थिति आनी चाहिये । |
| *धीरे धीरे इन विद्यालयों की प्रतिष्ठा समाज में बनने लगे इस बात की और ध्यान देना चाहिये । सज्जनों को चाहिये कि वे इन्हें समाज में प्रतिष्ठा दिलने का काम करे । | | *धीरे धीरे इन विद्यालयों की प्रतिष्ठा समाज में बनने लगे इस बात की और ध्यान देना चाहिये । सज्जनों को चाहिये कि वे इन्हें समाज में प्रतिष्ठा दिलने का काम करे । |
| *अब इन विद्यालयों का सामर्थ्य केवल संचालकों और शिक्षकों तक सीमित नहीं है । विद्यार्थी और उनके परिवार भी इनके साथ जुडे हैं । | | *अब इन विद्यालयों का सामर्थ्य केवल संचालकों और शिक्षकों तक सीमित नहीं है । विद्यार्थी और उनके परिवार भी इनके साथ जुडे हैं । |
| *अब इन विद्यालयों ने आसपास के विद्यालयों को बदलने का. अभियान छेडना होगा । विद्यार्थी विद्यार्थियों को, शिक्षक शिक्षकों को और संचालक संचालकों को परिवर्तित करने का काम करें । | | *अब इन विद्यालयों ने आसपास के विद्यालयों को बदलने का. अभियान छेडना होगा । विद्यार्थी विद्यार्थियों को, शिक्षक शिक्षकों को और संचालक संचालकों को परिवर्तित करने का काम करें । |
| *अब धमचिार्यों को भी इस अभियान में जुड़ने हेतु समझाना चाहिये । सन्त, महन्त, आचार्य, कथाकार, सत्संगी सार्वजनिक कार्यक्रमों में नीतिमत्ता के इन दस सूत्रों के पालन का आग्रह करें, अपने अनुयायियों से प्रतिज्ञा करवायें । | | *अब धमचिार्यों को भी इस अभियान में जुड़ने हेतु समझाना चाहिये । सन्त, महन्त, आचार्य, कथाकार, सत्संगी सार्वजनिक कार्यक्रमों में नीतिमत्ता के इन दस सूत्रों के पालन का आग्रह करें, अपने अनुयायियों से प्रतिज्ञा करवायें । |
− | *कुछ दम्भी और भोंदू अवश्य होंगे, तथापि इसका परिणाम अवश्य होगा | | + | *कुछ दम्भी और भोंदू अवश्य होंगे, तथापि इसका परिणाम अवश्य होगा। |
− | *नीतिमत्ता की परीक्षा करना भूलना नहीं चाहिये, नहीं तो दम्भ फैलेगा । इन सूत्रों का क्रियान्वयन सरल है ऐसा तो नहीं है । | + | *नीतिमत्ता की परीक्षा करना भूलना नहीं चाहिये, नहीं तो दम्भ फैलेगा । इन सूत्रों का क्रियान्वयन सरल है ऐसा तो नहीं है । साथ ही इन दस सूत्रों में ही सारी नीतिमत्ता का समावेश हो जाता है ऐसा भी नहीं है । यह बड़ा व्यापक विषय है, सर्वत्र इसका प्रभाव है परन्तु इसे हटाना तो पड़ेगा ही। विघ्न बहुत आयेंगे । इन विघ्नों का स्वरूप कुछ इस प्रकार हो सकता है |
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− | साथ ही इन दस सूत्रों में ही सारी नीतिमत्ता का समावेश हो | |
− | जाता है ऐसा भी नहीं है । यह बड़ा व्यापक विषय है, सर्वत्र इसका प्रभाव है परन्तु इसे हटाना तो पड़ेगा ही। विघ्न बहुत आयेंगे । इन विघ्नों का स्वरूप कुछ इस प्रकार हो सकता है | |
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| #विद्यालयों के संचालकों और शिक्षकों की टोली में ही अनीतिमान तत्त्वों की घूसखोरी हो सकती है । यह घूसखोरी अधिक नीतिमान के स्वांग में भी हो सकती है । | | #विद्यालयों के संचालकों और शिक्षकों की टोली में ही अनीतिमान तत्त्वों की घूसखोरी हो सकती है । यह घूसखोरी अधिक नीतिमान के स्वांग में भी हो सकती है । |
| #नीति की राह पर चलने वालों को लालच, भय, आरोप आदि के रूप में अवरोध निर्माण किये जा सकते हैं । | | #नीति की राह पर चलने वालों को लालच, भय, आरोप आदि के रूप में अवरोध निर्माण किये जा सकते हैं । |
− | #अनीति के आरोप और स्वार्थी तत्त्वों की ओर से दृण्डात्मक कारवाई तक की जा सकती है । | + | #अनीति के आरोप और स्वार्थी तत्त्वों की ओर से दंडात्मक कारवाई तक की जा सकती है । |
| #विद्यार्थी और अभिभावकों को विद्यालय के विरोधी बनाया जा सकता है । | | #विद्यार्थी और अभिभावकों को विद्यालय के विरोधी बनाया जा सकता है । |
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− | *राजीनति के क्षेत्र के लोगों की ओर से जाँच, आरोप, दण्ड आदि के माध्यम से परेशानी निर्माण की जा सकती है । | + | *राजनीति के क्षेत्र के लोगों की ओर से जाँच, आरोप, दण्ड आदि के माध्यम से परेशानी निर्माण की जा सकती है । |
| *इन अवरोधों से भयभीत हुए बिना यदि विद्यालय डटे रहते हैं तो वे अपने अभियान में यशस्वी हो सकते हैं । लोग भी इन्हें मान्यता देने लगते हैं । | | *इन अवरोधों से भयभीत हुए बिना यदि विद्यालय डटे रहते हैं तो वे अपने अभियान में यशस्वी हो सकते हैं । लोग भी इन्हें मान्यता देने लगते हैं । |
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− | विश्व में भारतीय ज्ञान की प्रतिष्ठा है । अमरिका में डॉक्टर, इन्जिनियर, संगणक निष्णात, वैज्ञानिक आदि बडी संख्या में भारतीय हैं । विश्व में भारतीय परिवार संकल्पना | + | विश्व में भारतीय ज्ञान की प्रतिष्ठा है । अमरिका में डॉक्टर, इन्जिनियर, संगणक निष्णात, वैज्ञानिक आदि बडी संख्या में भारतीय हैं । विश्व में भारतीय परिवार संकल्पना की प्रतिष्ठा है । भारत की कामगीरी की प्रतिष्ठा है । परन्तु अनीतिमान लोगों के रूप में अप्रतिष्ठा भी है । |
− | की प्रतिष्ठा है । भारत की कामगीरी की प्रतिष्ठा है । परन्तु | |
− | अनीतिमान लोगों के रूप में अप्रतिष्ठा भी है । | |
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| ===स्वच्छता के विषय में अप्रतिष्ठा=== | | ===स्वच्छता के विषय में अप्रतिष्ठा=== |
− | दूसरी अआप्रतिष्ठा है स्वच्छता के विषय में । विदेश | + | दूसरी अप्रतिष्ठा है स्वच्छता के विषय में । विदेश जाकर आये हुए भारतीय वहाँ की स्वच्छता की प्रशंसा करते हैं । वे ही लोग भारत में स्वयं गन्दगी करते हैं । विद्यालयों और कार्यालयों की सीढियाँ और कोने थूकने से, कचरा डालने के कारण गंदी हो जाती हैं । सार्वजनिक शौचालय, स्नानगृह आदि भयंकर गन्दे होते हैं । रास्तों पर लोग कचरा फैंकते हैं । बस या रेल में से थूकते हैं । प्लास्टिक के खाली बैग, पेकिंग के डिब्बे कहीं पर भी फैके जाते हैं । तीर्थ यात्रा के स्थान, पवित्ननगर, नदियों के किनारे प्लास्टिक तथा अन्य कचरे से गन्दे हो जाते हैं । अपना घर साफ करके पडौसी के आँगन में कचरा फैकते हैं । स्वच्छता को हमने योगसूत्र में पाँच नियमों में सबसे प्रथम स्थान दिया है । परन्तु व्यवहार में हम अस्वच्छता की परिसीमा लांघते हैं । |
− | जाकर आये हुए भारतीय वहाँ की स्वच्छता की प्रशंसा करते | |
− | हैं । वे ही लोग भारत में स्वयं गन्दगी करते हैं । विद्यालयों | |
− | और कार्यलयों की सीढियाँ और कोने थूकने से, कचरा डालने | |
− | a re BU chad हैं । सार्वजनिक शौचालय, स्नानगृह आदि
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− | भयंकर गन्दे होते हैं । रास्तों पर लोग कचरा फैंकते हैं । बस | |
− | या रेल में से थूकते हैं । प्लास्टिक के खाली बैग, पेकिंग के | |
− | डिब्बे कहीं पर भी फैके जाते हैं । तीर्थ यात्रा के स्थान, | |
− | पवित्ननगर, नदियों के किनारे प्लास्टिक तथा अन्य कचरे से | |
− | गन्दे हो जाते हैं । अपना घर साफ करके पडौसी के आँगन में | |
− | कचरा फैकते हैं । स्वच्छता को हमने योगसूत्र में पाँच नियमों | |
− | में सबसे प्रथम स्थान दिया है । परन्तु व्यवहार में हम | |
− | अस्वच्छता की परिसीमा लांघते हैं । | |
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− | विद्यालयों को इस विषय का भी विचार करना होगा । व्यक्तिगत जीवन में स्वच्छता का आग्रह अधिकांश लोग | + | विद्यालयों को इस विषय का भी विचार करना होगा । व्यक्तिगत जीवन में स्वच्छता का आग्रह अधिकांश लोग रखते हैं परन्तु सार्वजनिक स्थानों की स्वच्छता की दरकार कोई नहीं करता । यह भी कानून का विषय नहीं है । |
− | रखते हैं परन्तु सार्वजनिक स्थानों की स्वच्छता की दरकार कोई नहीं करता । यह भी कानून का विषय नहीं है । | |
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− | 'कचरा' हमारा अधिकार है, सफाई करना | + | 'कचरा' हमारा अधिकार है, सफाई करना नगरनिगम का कर्तव्य है, इस सूत्र पर चलने से काम नहीं बनता | यह प्रबोधन का विषय है। वास्तव में धर्माचार्यों ने इसे भी अपना विषय बनाना चाहिये । |
− | नगरनिगम का कर्तव्य है, इस सूत्र पर चलने से काम नहीं | |
− | बनता | यह प्रबोधन का विषय है । वास्तव में धर्माचार्यों ने | |
− | इसे भी अपना विषय बनाना चाहिये । | |
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| ===एक हाथ में लेने लायक अभियान=== | | ===एक हाथ में लेने लायक अभियान=== |
| चारों ओर पैकिंग का बोलबाला है । पैन पन्सिल, रबड से लेकर कपडे जूते खाने की वस्तुर्यें पैकिंग में मिलती हैं । आकर्षक पैकिंग के विज्ञापन होते हैं । | | चारों ओर पैकिंग का बोलबाला है । पैन पन्सिल, रबड से लेकर कपडे जूते खाने की वस्तुर्यें पैकिंग में मिलती हैं । आकर्षक पैकिंग के विज्ञापन होते हैं । |
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− | आकर्षक पैकिंग से लोग आसानी से वस्तु खरीद करते हैं ऐसा व्यापारियों का मत है । एक पुस्तक प्रकाशक का कहना है कि आकर्षक मुखपृष्ठ देखकर पुस्तक या नियतकालिक पढने के लिये उठाने वाले और स्वरूप | + | आकर्षक पैकिंग से लोग आसानी से वस्तु खरीद करते हैं ऐसा व्यापारियों का मत है । एक पुस्तक प्रकाशक का कहना है कि आकर्षक मुखपृष्ठ देखकर पुस्तक या नियतकालिक पढने के लिये उठाने वाले और स्वरूप आकर्षक नहीं है इसलिये उसके प्रति उदासीन रहनेवाले पाठक होते हैं । यह तो खरीदने वाले की या पढनेवाले की बुद्धि पर प्रश्नचिह्न है। आकर्षक पैकिंग और अन्दर की वस्तु की गुणवत्ता का क्या सम्बन्ध है ? मुखपृष्ठ और अन्दर की सामग्री का क्या सम्बन्ध है ? |
− | आकर्षक नहीं है इसलिये उसके प्रति उदासीन रहनेवाले पाठक होते हैं । | |
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− | यह तो खरीद ने वाले की या पढनेवाले की बुद्धि पर प्रश्नाथ है। आकर्षक पैकिंग और अन्दर की वस्तु की | |
− | गुणवत्ता का क्या सम्बन्ध है ? मुखपृष्ठ और अन्दर की सामग्री का क्या सम्बन्ध है ? | |
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− | इस दुर्बल मनःस्थिति का फायदा उठाने वाले धूर्तव्यापारी तो हो सकते हैं परन्तु ग्राहकों और पाठकों की विवेकबुद्धि को जाग्रत करने वाले मार्गदर्शकों की भी | + | इस दुर्बल मनःस्थिति का फायदा उठाने वाले धूर्त व्यापारी तो हो सकते हैं परन्तु ग्राहकों और पाठकों की विवेकबुद्धि को जाग्रत करने वाले मार्गदर्शकों की भी आवश्यकता है । जहाँ आवश्यक है वहाँ तो लाख रूपये खर्च करने में संकोच नहीं करना चाहिये परन्तु जहाँ अनावश्यक है वहाँ एक पैसे का भी खर्च नहीं करना चाहिये ऐसी व्यावहारिक बुद्धि का विकास करना चाहिये । |
− | आवश्यकता है । जहाँ आवश्यक है वहाँ तो लाख रूपये खर्च करने में संकोच नहीं करना चाहिये परन्तु जहाँ अनावश्यक है वहाँ एक पैसे का भी खर्च नहीं करना | |
− | चाहिये ऐसी व्यावहारिक बुद्धि का विकास करना चाहिये । | |
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− | विज्ञापन अत्यन्त विनाशक उद्योग है। पैकिंग आकर्षक डाकिनी है । इसके भुलावे में पडने वाले लोग | + | विज्ञापन अत्यन्त विनाशक उद्योग है। पैकिंग आकर्षक डाकिनी है। इसके भुलावे में पडने वाले लोग विवेक भूले हुए हैं । इन्हें विवेक सिखाने वाले लोगों को आगे आने की आवश्यकता है । नई पीढ़ी के छात्रों को यह काम करने की आवश्यकता है । |
− | विवेक भूले हुए हैं । इन्हें विविक सिखाने वाले लोगों को आगे आने की आवश्यकता है । नई पीढ़ी के छात्रों को यह काम करने की आवश्यकता है । | |
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| ==विद्यालय एवं परिवार== | | ==विद्यालय एवं परिवार== |
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| ===प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर=== | | ===प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर=== |
− | विद्यालय और परिवारका केन्द्रवर्ती बिंदु विद्यार्थी | + | विद्यालय और परिवार का केन्द्रवर्ती बिंदु विद्यार्थी होता है । उसका विकास यही दोनों का लक्ष्य बन जाता है । इस लक्ष्यपूर्ति के लिये विद्यालय एवं परिवार इन दोनों के सम्बन्धों का लोकमत जानने के लिये इस प्रश्नावली का प्रयोजन रहा । कुरुक्षेत्र से श्री रमेन्द्रसिंहजी ने ३९ शिक्षक, ९८ अभिभावक, ३ प्रधानाचार्य, २ संस्थाचालकों का सहभाग लेकर इसकी पूर्तता की । |
− | होता है । उसका विकास यही दोनों का लक्ष्य बन जाता | |
− | है । इस लक्ष्यपूर्ति के लिये विद्यालय एवं परिवार इन दोनों | |
− | के सम्बन्धों का लोकमत जानने के लिये इस प्रश्नावली का प्रयोजन रहा । कुरुक्षेत्र से श्री रमेन्द्रसिंहजी ने ३९ शिक्षक ९८ अभिभावक, ३ प्रधानाचार्य, २ संस्थाचालकों का | |
− | सहभाग लेकर इसकी पूर्तता की । | |
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− | प्र.१ विद्यालय और छात्र के परिवार इन दोनों का | + | प्र.१ विद्यालय और छात्र के परिवार इन दोनों का संबंध स्पष्ट करते हुए दोनों मे गहरा आत्मीय संबंध, परस्पर पूरक संबंध, गाडी के दो पहियों जैसा संबंध, शैक्षिक एवं |
− | संबंध स्पष्ट करते हुए दोनों मे गहरा आत्मीय संबंध, परस्पर | |
− | पूरक संबंध, गाडी के दो पहियों जैसा संबंध, शैक्षिक एवं | |
| सामाजिक सबंध जैसे विविध उत्तर प्राप्त हुए । उन दोनों मे | | सामाजिक सबंध जैसे विविध उत्तर प्राप्त हुए । उन दोनों मे |
| आत्मीय सबंध कैसे निर्माण होंगे इस पाचवे प्रश्न में आपस में सहकार्य की भूमिका, आपसी सद्भाव, परिवार के सुखदुःख मे सहभागी होना इस प्रकार से उत्तर मिले । | | आत्मीय सबंध कैसे निर्माण होंगे इस पाचवे प्रश्न में आपस में सहकार्य की भूमिका, आपसी सद्भाव, परिवार के सुखदुःख मे सहभागी होना इस प्रकार से उत्तर मिले । |