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| {{One source}} | | {{One source}} |
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− | === विद्यालय का सामाजिक दायित्व ===
| + | == विद्यालय का प्रशासन == |
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− | ==== विद्यालय का प्रशासन ====
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| ===== शिक्षा का यूरोपीकरण ===== | | ===== शिक्षा का यूरोपीकरण ===== |
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| धर्म की तरह शिक्षा भी उसका सम्मान करने से ही हमें सम्मान दिला सकती है। | | धर्म की तरह शिक्षा भी उसका सम्मान करने से ही हमें सम्मान दिला सकती है। |
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− | ==== विद्यालय की यांत्रिकता को कैसे दूर करे ====
| + | == विद्यालय की यांत्रिकता को कैसे दूर करे == |
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| ===== मनुष्य यंत्र द्वारा संचालित न हो ===== | | ===== मनुष्य यंत्र द्वारा संचालित न हो ===== |
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| इस मुद्दे को ध्यान में रखकर विद्यालय में परिवर्तन करने का प्रारम्भ करना चाहिये । | | इस मुद्दे को ध्यान में रखकर विद्यालय में परिवर्तन करने का प्रारम्भ करना चाहिये । |
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− | ==== विद्यालीन शिष्टाचार ====
| + | == विद्यालीन शिष्टाचार == |
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| ===== व्यव्हार कैसे होना चाहिए ===== | | ===== व्यव्हार कैसे होना चाहिए ===== |
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| अपना पुत्र या पुत्री अपने शिक्षक का सम्मान करे इसके संस्कार घर में मिलने चाहिये । अभिभावकों में भी शिक्षक के प्रति सम्मान का भाव होना चाहिये । विनयशील व्यवहार तो होना ही चाहिये । आजकल अखबारों में अनेक प्रकार से शिक्षकों को उपालम्भ और उपदेश दिये जाते हैं, अधिकारी विद्यार्थियों के सामने ही शिक्षकों के साथ अविनयशील व्यवहार करते हैं, मातापिता घर में शिक्षक के सन्दर्भ में अविनयशील सम्भाषण करते हैं, सरकार विद्यार्थियों के पक्ष में होती है, न्यायालय में शिक्षक और विद्यार्थी समान माने जाते हैं - ऐसे अनेक कारणों से विद्यार्थी विनय छोडकर उद्दण्ड बन जाते हैं। वास्तव में पढने के लिये पात्रता प्राप्त करना और जब तक वह पात्रता प्राप्त नहीं करता तब तक उसे नहीं पढाना विद्यार्थी और शिक्षक का धर्म है। शिक्षक और विद्यार्थी के बीच अन्य अनेक व्यवस्थायें आ गई हैं इसलिये इस धर्म की भी अवज्ञा होने लगी है । परन्तु शिक्षाक्षेत्र में चिन्ता करने योग्य ये भी बातें हैं और पर्याप्त महत्त्व रखती हैं यह मानकर कुछ उपाय किये जाने चाहिये। | | अपना पुत्र या पुत्री अपने शिक्षक का सम्मान करे इसके संस्कार घर में मिलने चाहिये । अभिभावकों में भी शिक्षक के प्रति सम्मान का भाव होना चाहिये । विनयशील व्यवहार तो होना ही चाहिये । आजकल अखबारों में अनेक प्रकार से शिक्षकों को उपालम्भ और उपदेश दिये जाते हैं, अधिकारी विद्यार्थियों के सामने ही शिक्षकों के साथ अविनयशील व्यवहार करते हैं, मातापिता घर में शिक्षक के सन्दर्भ में अविनयशील सम्भाषण करते हैं, सरकार विद्यार्थियों के पक्ष में होती है, न्यायालय में शिक्षक और विद्यार्थी समान माने जाते हैं - ऐसे अनेक कारणों से विद्यार्थी विनय छोडकर उद्दण्ड बन जाते हैं। वास्तव में पढने के लिये पात्रता प्राप्त करना और जब तक वह पात्रता प्राप्त नहीं करता तब तक उसे नहीं पढाना विद्यार्थी और शिक्षक का धर्म है। शिक्षक और विद्यार्थी के बीच अन्य अनेक व्यवस्थायें आ गई हैं इसलिये इस धर्म की भी अवज्ञा होने लगी है । परन्तु शिक्षाक्षेत्र में चिन्ता करने योग्य ये भी बातें हैं और पर्याप्त महत्त्व रखती हैं यह मानकर कुछ उपाय किये जाने चाहिये। |
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− | ====== २. शिक्षक और मुख्याध्यापक के आपसी व्यवहार में भी शिष्ट आचरण अपेक्षित है । ====== | + | ====== शिक्षक और मुख्याध्यापक के आपसी व्यवहार में भी शिष्ट आचरण अपेक्षित है । ====== |
| विद्यालय मुख्याध्यापक का है और सारे शिक्षक तथा अन्य कर्मचारी उसके सहयोगी हैं यह व्यवस्था है। परन्तु सबको सहयोगी के स्थान पर सहभागी बनाना और मानना मुख्याध्यापक का काम है। मुख्याध्यापक का ज्ञान में, आचार में, निष्ठा में वरिष्ठ होना अपेक्षित है इसलिये शिक्षकों को केवल आज्ञा करने का ही नहीं तो मार्गदर्शन करने का भी अधिकार मुख्याध्यापक का है। | | विद्यालय मुख्याध्यापक का है और सारे शिक्षक तथा अन्य कर्मचारी उसके सहयोगी हैं यह व्यवस्था है। परन्तु सबको सहयोगी के स्थान पर सहभागी बनाना और मानना मुख्याध्यापक का काम है। मुख्याध्यापक का ज्ञान में, आचार में, निष्ठा में वरिष्ठ होना अपेक्षित है इसलिये शिक्षकों को केवल आज्ञा करने का ही नहीं तो मार्गदर्शन करने का भी अधिकार मुख्याध्यापक का है। |
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| कहने की आवश्यकता नहीं कि शिक्षक समाज को अपने ज्ञान, तप, आचरण, सेवाभाव, सद्भाव और निष्ठा से ही यह पात्रता और अधिकार प्राप्त होता है केवल व्यवस्था से नहीं । व्यवस्था गुणों का अनुसरण करती है, गुण व्यवस्था का नहीं । बिना गुण के केवल व्यवस्था से प्राप्त अधिकार समय बीतते मजाक और उपेक्षा के योग्य बन जाता है। | | कहने की आवश्यकता नहीं कि शिक्षक समाज को अपने ज्ञान, तप, आचरण, सेवाभाव, सद्भाव और निष्ठा से ही यह पात्रता और अधिकार प्राप्त होता है केवल व्यवस्था से नहीं । व्यवस्था गुणों का अनुसरण करती है, गुण व्यवस्था का नहीं । बिना गुण के केवल व्यवस्था से प्राप्त अधिकार समय बीतते मजाक और उपेक्षा के योग्य बन जाता है। |
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− | ====== ३. समस्या का हल करना मुख्याध्यापक का दायित्व है ====== | + | ====== समस्या का हल करना मुख्याध्यापक का दायित्व है ====== |
| विद्यालय में व्यवहार या व्यवस्था के सन्दर्भ में यदि कोई समस्या निर्माण होती है तब उसे अपने बलबूते पर उसे हल करना मुख्याध्यापक का दायित्व है उसमें सहभागी बनना शिक्षकों का। | | विद्यालय में व्यवहार या व्यवस्था के सन्दर्भ में यदि कोई समस्या निर्माण होती है तब उसे अपने बलबूते पर उसे हल करना मुख्याध्यापक का दायित्व है उसमें सहभागी बनना शिक्षकों का। |
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| इसी प्रकार से विद्यालय परिसर में पुलीस को बुलाना, न्यायालय में केस दर्ज करना आदि नहीं होना चाहिये । यह मुख्याध्यापक की वरिष्ठता समाप्त कर देता है। विद्यार्थी, शिक्षक, अभिभावक या समाज से अन्य कोई न्यायालय में शिकायत करे ऐसी नौबत नहीं आने देना यह विद्यालय के मुख्याध्यापक और शिक्षकों की गुणवत्ता और व्यवहार दक्षता पर निर्भर करता है । यह बात ठीक है कि विद्यालय स्वयं पुलिस या न्यायालय के सामने नहीं जायेगा परन्तु कोई यदि उन्हें घसीटता है तो उन्हें जाना पडेगा । परन्तु स्थितियों का ठीक से आकलन करना शिक्षकों को आना ही चाहिये । शिक्षक बनना आसान नहीं है, विद्याव्रत भी आसान व्रत नहीं है, शिक्षक के नाते सम्मान सस्ते में नहीं मिलता है । | | इसी प्रकार से विद्यालय परिसर में पुलीस को बुलाना, न्यायालय में केस दर्ज करना आदि नहीं होना चाहिये । यह मुख्याध्यापक की वरिष्ठता समाप्त कर देता है। विद्यार्थी, शिक्षक, अभिभावक या समाज से अन्य कोई न्यायालय में शिकायत करे ऐसी नौबत नहीं आने देना यह विद्यालय के मुख्याध्यापक और शिक्षकों की गुणवत्ता और व्यवहार दक्षता पर निर्भर करता है । यह बात ठीक है कि विद्यालय स्वयं पुलिस या न्यायालय के सामने नहीं जायेगा परन्तु कोई यदि उन्हें घसीटता है तो उन्हें जाना पडेगा । परन्तु स्थितियों का ठीक से आकलन करना शिक्षकों को आना ही चाहिये । शिक्षक बनना आसान नहीं है, विद्याव्रत भी आसान व्रत नहीं है, शिक्षक के नाते सम्मान सस्ते में नहीं मिलता है । |
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− | ====== ४. विद्यालय की गरिमा व पवित्रता की रक्षा ====== | + | ====== विद्यालय की गरिमा व पवित्रता की रक्षा ====== |
| विद्यालयीन शिष्टाचार में विद्यालय संस्था की गरिमा और पवित्रता की रक्षा करने के व्यवहार का भी समावेश होता है । जैसे कि - | | विद्यालयीन शिष्टाचार में विद्यालय संस्था की गरिमा और पवित्रता की रक्षा करने के व्यवहार का भी समावेश होता है । जैसे कि - |
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| शिक्षक जब कहने लगते हैं कि हम क्या कर सकते हैं, तभी सब कुछ दुर्गति की और जाता है । | | शिक्षक जब कहने लगते हैं कि हम क्या कर सकते हैं, तभी सब कुछ दुर्गति की और जाता है । |
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− | ==== विद्यालय संचालन में विद्यार्थियों का सहभाग ====
| + | == विद्यालय संचालन में विद्यार्थियों का सहभाग == |
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| ===== विद्यालय क्या है ===== | | ===== विद्यालय क्या है ===== |
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| 6. यह कार्य त्वरित गति से तो नहीं होगा । धैर्यपूर्वक और निरन्तरतापूर्वक इस कार्य में लगे रहने की आवश्यकता है। भारतीय शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा हेतु यह करना अनिवार्य है यह निश्चित है। | | 6. यह कार्य त्वरित गति से तो नहीं होगा । धैर्यपूर्वक और निरन्तरतापूर्वक इस कार्य में लगे रहने की आवश्यकता है। भारतीय शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा हेतु यह करना अनिवार्य है यह निश्चित है। |
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− | ==== विद्यालय और पूर्व छात्र ====
| + | == विद्यालय और पूर्व छात्र == |
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| ===== विद्यालय और पूर्व छात्र का सम्धबन्ध ===== | | ===== विद्यालय और पूर्व छात्र का सम्धबन्ध ===== |
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| * महाविद्यालयों के रंगमंच कार्यक्रमों में राष्ट्रीय समस्याओं के सन्दर्भ में प्रबोधन और शिक्षाक्षेत्र के माध्यम से क्या हल हो सकता है उसका विचार भी प्रस्तुत होना चाहिए । उदाहरण के लिए देश की आर्थिक स्थिति का विश्लेषण और उपाय, देश के गौरव का स्मरण और जागरण,सांस्कृतिक श्रेष्ठता के जतन का आग्रह, विश्व में भारत की भूमिका आदि महत्त्वपूर्ण विषयों का समावेश रंगमंच कार्यक्रमों में होना चाहिए । संक्षेप में रंगमंच कार्यक्रम शिशु से लेकर बड़ी कक्षाओं तक शिक्षाप्रक्रिया का ही नियमित और अंगभूत हिस्सा बनना चाहिए, अलग से कोई विशेष कार्यक्रम नहीं । यह पैसे का और मनोरंजन का विषय नहीं है, क्रियात्मक, भावात्मक, कलात्मक, व्यावहारिक शैक्षिक विषय है। | | * महाविद्यालयों के रंगमंच कार्यक्रमों में राष्ट्रीय समस्याओं के सन्दर्भ में प्रबोधन और शिक्षाक्षेत्र के माध्यम से क्या हल हो सकता है उसका विचार भी प्रस्तुत होना चाहिए । उदाहरण के लिए देश की आर्थिक स्थिति का विश्लेषण और उपाय, देश के गौरव का स्मरण और जागरण,सांस्कृतिक श्रेष्ठता के जतन का आग्रह, विश्व में भारत की भूमिका आदि महत्त्वपूर्ण विषयों का समावेश रंगमंच कार्यक्रमों में होना चाहिए । संक्षेप में रंगमंच कार्यक्रम शिशु से लेकर बड़ी कक्षाओं तक शिक्षाप्रक्रिया का ही नियमित और अंगभूत हिस्सा बनना चाहिए, अलग से कोई विशेष कार्यक्रम नहीं । यह पैसे का और मनोरंजन का विषय नहीं है, क्रियात्मक, भावात्मक, कलात्मक, व्यावहारिक शैक्षिक विषय है। |
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− | ==== विद्यालय सामाजिक चेतना का केंद्र ====
| + | == विद्यालय सामाजिक चेतना का केंद्र == |
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| ===== समाज का अर्थ ===== | | ===== समाज का अर्थ ===== |
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| यह सब होता है इसलिये विद्यालयों को ‘सामाजिक चेतना के केन्द्र' कहा जाता है । | | यह सब होता है इसलिये विद्यालयों को ‘सामाजिक चेतना के केन्द्र' कहा जाता है । |
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− | ==== पुरे दिन का विद्यालय ==== | + | == पूरे दिन का विद्यालय == |
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| ===== कैसे विचार करना चाहिए ===== | | ===== कैसे विचार करना चाहिए ===== |
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| इस दृष्टि से पूरे दिन के विद्यालयों का शैक्षिक दृष्टि से अधिक प्रचलन हो यह हितकारी है । | | इस दृष्टि से पूरे दिन के विद्यालयों का शैक्षिक दृष्टि से अधिक प्रचलन हो यह हितकारी है । |
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− | ==== आवासीय विद्यालय ====
| + | == आवासीय विद्यालय == |
| अनेक प्रकार के विद्यालयों में एक प्रकार आवासीय विद्यालयों का होता है। यह ऐसा विद्यालय है जहाँ विद्यार्थी चौबीस घण्टे और पूरा वर्ष रहता है। उसकी शिक्षा और निवास, भोजन आदि की व्यवस्था एक ही स्थान पर होती है। ऐसे आवासीय विद्यालयों के सम्बन्ध में अनेक आयामों में विचार करने की आवश्यकता है। | | अनेक प्रकार के विद्यालयों में एक प्रकार आवासीय विद्यालयों का होता है। यह ऐसा विद्यालय है जहाँ विद्यार्थी चौबीस घण्टे और पूरा वर्ष रहता है। उसकी शिक्षा और निवास, भोजन आदि की व्यवस्था एक ही स्थान पर होती है। ऐसे आवासीय विद्यालयों के सम्बन्ध में अनेक आयामों में विचार करने की आवश्यकता है। |
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− | ===== 1. प्रयोजन ===== | + | ===== प्रयोजन ===== |
| विद्यार्थी को आवासीय विद्यालय में जाने की आवश्यकता क्यों होती है ? | | विद्यार्थी को आवासीय विद्यालय में जाने की आवश्यकता क्यों होती है ? |
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| 6. आध्यात्मिक केन्द्रों में, मठों में, वेदाध्ययन केन्द्रों में जो विद्यालय चलते हैं वे आवासीय ही होते हैं । कई शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय भी अनिवार्य रूप से आवासीय होते हैं। | | 6. आध्यात्मिक केन्द्रों में, मठों में, वेदाध्ययन केन्द्रों में जो विद्यालय चलते हैं वे आवासीय ही होते हैं । कई शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय भी अनिवार्य रूप से आवासीय होते हैं। |
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− | ===== 2. स्वरूप ===== | + | ===== स्वरूप ===== |
| विभिन्न प्रयोजनों से चलने वाले आवासीय विद्यालयों के स्वरूप भी भिन्न भिन्न होते हैं । | | विभिन्न प्रयोजनों से चलने वाले आवासीय विद्यालयों के स्वरूप भी भिन्न भिन्न होते हैं । |
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| सही अर्थ में आवासीय विद्यालय की अधिक चर्चा करना उपयुक्त रहेगा। | | सही अर्थ में आवासीय विद्यालय की अधिक चर्चा करना उपयुक्त रहेगा। |
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− | ====== आवासीय विद्यालय ====== | + | ====== आवासीय विद्यालय - आज वे कैसे चलते हैं ? ====== |
| ये विद्यालय वास्तव में हमें प्राचीन गुरुकुलों का स्मरण करवाने वाले हैं, जहाँ पूर्ण समय विद्यार्थी अपने अध्यापकों के साथ रहते हैं। परन्तु गुरुकुल की सही संकल्पना ज्ञात न होने के कारण से आज वे उनसे भिन्न रूप में चलते हैं। | | ये विद्यालय वास्तव में हमें प्राचीन गुरुकुलों का स्मरण करवाने वाले हैं, जहाँ पूर्ण समय विद्यार्थी अपने अध्यापकों के साथ रहते हैं। परन्तु गुरुकुल की सही संकल्पना ज्ञात न होने के कारण से आज वे उनसे भिन्न रूप में चलते हैं। |
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− | ====== आज वे कैसे चलते हैं ? ======
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| 1. इन विद्यालयों की दिनचर्या बहुत आदर्श मानी जाय ऐसी होती है। प्रातः जल्दी जगना, प्रातःप्रार्थना, योगाभ्यास, व्यायाम आदि करना, अल्पाहार और गृहपाठ करना, ग्यारह बजे विद्यालय जाना, बीच में भोजन की छुट्टी होना, पुनः विद्यालय जाना, सायंकाल मैदान में खेलना, सायंप्रार्थना करना, भोजन करना, स्वाध्याय या गृहपाठ करना और सो जाना यही दिनक्रम रहता है। रविवार को छुट्टी रहती है । उस दिन की दिनचर्या कुछ विशेष रहती है। अन्य विद्यालयों की तरह ही परीक्षायें और अवकाश रहते हैं जब विद्यार्थी घर जाते हैं । | | 1. इन विद्यालयों की दिनचर्या बहुत आदर्श मानी जाय ऐसी होती है। प्रातः जल्दी जगना, प्रातःप्रार्थना, योगाभ्यास, व्यायाम आदि करना, अल्पाहार और गृहपाठ करना, ग्यारह बजे विद्यालय जाना, बीच में भोजन की छुट्टी होना, पुनः विद्यालय जाना, सायंकाल मैदान में खेलना, सायंप्रार्थना करना, भोजन करना, स्वाध्याय या गृहपाठ करना और सो जाना यही दिनक्रम रहता है। रविवार को छुट्टी रहती है । उस दिन की दिनचर्या कुछ विशेष रहती है। अन्य विद्यालयों की तरह ही परीक्षायें और अवकाश रहते हैं जब विद्यार्थी घर जाते हैं । |
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| यह सब कर रहे हैं ऐसा बडों का भाव होता है । अनेक बार तो सामान्य आर्थिक स्थिति के मातापिता क्रण लेकर भी अपनी संतानों के इस प्रकार के अध्ययन की व्यवस्था करते हैं परन्तु यह शैक्षिक दृष्टि से भी उचित होता है ऐसा अनुभव तो नहीं आता । सामाजिक सांस्कृतिक दृष्टि से यह हानिकारक है । | | यह सब कर रहे हैं ऐसा बडों का भाव होता है । अनेक बार तो सामान्य आर्थिक स्थिति के मातापिता क्रण लेकर भी अपनी संतानों के इस प्रकार के अध्ययन की व्यवस्था करते हैं परन्तु यह शैक्षिक दृष्टि से भी उचित होता है ऐसा अनुभव तो नहीं आता । सामाजिक सांस्कृतिक दृष्टि से यह हानिकारक है । |
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− | ==== सरकारी प्राथमिक विद्यालयों का क्या करें ====
| + | == सरकारी प्राथमिक विद्यालयों का क्या करें == |
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| ===== वर्तमान स्थिति ===== | | ===== वर्तमान स्थिति ===== |