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| स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते । लभते च ततः कामान्मयैव विहितान्हि तान् ॥७- २२॥ | | स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते । लभते च ततः कामान्मयैव विहितान्हि तान् ॥७- २२॥ |
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| + | sa tayā śraddhayā yuktas tasyārādhanam īhate labhate ca tataḥ kāmān mayaiva vihitān hi tān ॥ 7- 22 ॥ |
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| अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम् । देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि ॥७- २३॥ | | अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम् । देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि ॥७- २३॥ |
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| + | antavat tu phalaṁ teṣāṁ tad bhavaty alpa-medhasām devān deva-yajo yānti mad-bhaktā yānti mām api ॥ 7- 23 ॥ |
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| अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः । परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम् ॥७- २४॥ | | अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः । परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम् ॥७- २४॥ |
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| + | avyaktaṁ vyaktim āpannaṁ manyante mām abuddhayaḥ paraṁ bhāvam ajānanto mamāvyayam anuttamam ॥ 7- 24 ॥ |
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| नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः । मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम् ॥७- २५॥ | | नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः । मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम् ॥७- २५॥ |
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| + | nāhaṁ prakāśaḥ sarvasya yoga-māyā-samāvṛtaḥ mūḍho ’yaṁ nābhijānāti loko mām ajam avyayam ॥ 7- 25 ॥ |
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| वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन । भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन ॥७- २६॥ | | वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन । भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन ॥७- २६॥ |
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| + | vedāhaṁ samatītāni vartamānāni cārjuna bhaviṣyāṇi ca bhūtāni māṁ tu veda na kaścana ॥ 7- 26 ॥ |
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| इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत । सर्वभूतानि संमोहं सर्गे यान्ति परन्तप ॥७- २७॥ | | इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत । सर्वभूतानि संमोहं सर्गे यान्ति परन्तप ॥७- २७॥ |
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| + | icchā-dveṣa-samutthena dvandva-mohena bhārata sarva-bhūtāni sammohaṁ sarge yānti paran-tapa ॥ 7- 27 ॥ |
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| येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम् । ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रताः ॥७- २८॥ | | येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम् । ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रताः ॥७- २८॥ |