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| एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषतः । त्वदन्यः संशयस्यास्य छेत्ता न ह्युपपद्यते ॥६- ३९॥ | | एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषतः । त्वदन्यः संशयस्यास्य छेत्ता न ह्युपपद्यते ॥६- ३९॥ |
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| + | etan me saṁśayaṁ kṛṣṇa chettum arhasy aśeṣataḥ tvad-anyaḥ saṁśayasyāsya chettā na hy upapadyate ॥ 6- 39॥ |
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| '''श्रीभगवानुवाच''' | | '''श्रीभगवानुवाच''' |
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| + | śrī-bhagavān uvāca |
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| पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते । न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति ॥६- ४०॥ | | पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते । न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति ॥६- ४०॥ |
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| + | pārtha naiveha nāmutra vināśas tasya vidyate na hi kalyāṇa-kṛt kaścid durgatiṁ tāta gacchati ॥ 6- 40॥ |
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| प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वतीः समाः । शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते ॥६- ४१॥ | | प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वतीः समाः । शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते ॥६- ४१॥ |
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| + | prāpya puṇya-kṛtāṁ lokān uṣitvā śāśvatīḥ samāḥ śucīnāṁ śrīmatāṁ gehe yoga-bhraṣṭo ’bhijāyate ॥ 6- 41॥ |
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| अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम् । एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम् ॥६- ४२॥ | | अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम् । एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम् ॥६- ४२॥ |
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| + | atha vā yoginām eva kule bhavati dhīmatām etad dhi durlabha-taraṁ loke janma yad īdṛśam ॥ 6- 42॥ |
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| तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम् । यतते च ततो भूयः संसिद्धौ कुरुनन्दन ॥६- ४३॥ | | तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम् । यतते च ततो भूयः संसिद्धौ कुरुनन्दन ॥६- ४३॥ |
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| + | tatra taṁ buddhi-saṁyogaṁ labhate paurva-dehikam yatate ca tato bhūyaḥ saṁsiddhau kuru-nandana ॥ 6- 43॥ |
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| पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि सः । जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते ॥६- ४४॥ | | पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि सः । जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते ॥६- ४४॥ |
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| + | pūrvābhyāsena tenaiva hriyate hy avaśo ’pi saḥ jijñāsur api yogasya śabda-brahmātivartate ॥ 6- 44॥ |
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| प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिषः । अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम् ॥६- ४५॥ | | प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिषः । अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम् ॥६- ४५॥ |
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| + | prayatnād yatamānas tu yogī saṁśuddha-kilbiṣaḥ aneka-janma-saṁsiddhas tato yāti parāṁ gatim ॥ 6- 45॥ |
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| तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः । कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन ॥६- ४६॥ | | तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः । कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन ॥६- ४६॥ |
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| + | tapasvibhyo ’dhiko yogī jñānibhyo ’pi mato ’dhikaḥ karmibhyaś cādhiko yogī tasmād yogī bhavārjuna ॥ 6- 46॥ |
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| योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना । श्रद्धावान् भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः ॥६- ४७॥ | | योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना । श्रद्धावान् भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः ॥६- ४७॥ |
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| + | yoginām api sarveṣāṁ mad-gatenāntar-ātmanā śraddhāvān bhajate yo māṁ sa me yukta-tamo mataḥ ॥ 6- 47॥ |
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| ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे आत्मसंयमयोगो नाम षष्ठोऽध्यायः ॥ ६ ॥ | | ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे आत्मसंयमयोगो नाम षष्ठोऽध्यायः ॥ ६ ॥ |