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* शिक्षा का उद्देश्य मुक्ति है, यह तत्त्व है परन्तु हमने शिक्षा का लक्ष्य अथर्जिन है, ऐसा मानकर सारी व्यवस्था की है ।
 
* शिक्षा का उद्देश्य मुक्ति है, यह तत्त्व है परन्तु हमने शिक्षा का लक्ष्य अथर्जिन है, ऐसा मानकर सारी व्यवस्था की है ।
 
ऐसे तो अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं जो दृशतति हैं कि व्यवहार तत्त्व से कितना दूर चला गया है । शिक्षा को ही यह सब ठीक करना चाहिये, यह स्वाभाविक तथ्य है । इसलिये शिक्षा के सम्बन्ध में तत्त्वचिन्तन जितना आवश्यक है उतना ही व्यवहारचिन्तन भी है । तत्त्वचिन्तन कदाचित सरल है परन्तु व्यवहारचिन्तन नहीं क्योंकि व्यवहार बहुत जटिल होता है, तत्त्व सरल । तत्त्व बुद्धि से समझा जाता भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम है इसलिये सरल है । व्यवहार मन, बुद्धि और शरीर से होता है इसलिये देशकाल परिस्थिति सापेक्ष होता है और हर समय नए से विचार कर निश्चित करना होता है ।
 
ऐसे तो अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं जो दृशतति हैं कि व्यवहार तत्त्व से कितना दूर चला गया है । शिक्षा को ही यह सब ठीक करना चाहिये, यह स्वाभाविक तथ्य है । इसलिये शिक्षा के सम्बन्ध में तत्त्वचिन्तन जितना आवश्यक है उतना ही व्यवहारचिन्तन भी है । तत्त्वचिन्तन कदाचित सरल है परन्तु व्यवहारचिन्तन नहीं क्योंकि व्यवहार बहुत जटिल होता है, तत्त्व सरल । तत्त्व बुद्धि से समझा जाता भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम है इसलिये सरल है । व्यवहार मन, बुद्धि और शरीर से होता है इसलिये देशकाल परिस्थिति सापेक्ष होता है और हर समय नए से विचार कर निश्चित करना होता है ।
[[Category:Education Series]]
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[[Category:Bhartiya Shiksha Granthmala(भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला)]]
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[[Category:ग्रंथमाला 3 पर्व 1: विषय प्रवेश]]
[[Category:भारतीय शिक्षा : भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम]]
 

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