इस चार पंक्तियों में लिखी गई एक से अधिक संज्ञाओं के अर्थ ही आज विपरीत बन गये हैं और विवाद के विषय बन गये हैं । उदाहरण के लिये “धर्म' संज्ञा को ही ले सकते हैं । आज यहाँ अज्ञान से और कहीं जानबूझकर धर्म को लेकर विवाद किया जाता है और अशान्ति फैलाई जाती है । ऐसी ही दूसरी संज्ञा है जीवनदृष्टि । वैश्विकता के नाम पर राष्ट्र और राष्ट्र की जीवनदृष्टि दोनों की अपेक्षा होती है । यह जानने के उपरान्त नहीं होता, अज्ञानवश ही होता है। | इस चार पंक्तियों में लिखी गई एक से अधिक संज्ञाओं के अर्थ ही आज विपरीत बन गये हैं और विवाद के विषय बन गये हैं । उदाहरण के लिये “धर्म' संज्ञा को ही ले सकते हैं । आज यहाँ अज्ञान से और कहीं जानबूझकर धर्म को लेकर विवाद किया जाता है और अशान्ति फैलाई जाती है । ऐसी ही दूसरी संज्ञा है जीवनदृष्टि । वैश्विकता के नाम पर राष्ट्र और राष्ट्र की जीवनदृष्टि दोनों की अपेक्षा होती है । यह जानने के उपरान्त नहीं होता, अज्ञानवश ही होता है। |