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| * और मेरे बैरियों को जो यह नहीं चाहते थे कि मैं उनपर राज्य करूं, इधर लाकर मेरे सामने मार डालो - सन्त लूकस १९/२७ | | * और मेरे बैरियों को जो यह नहीं चाहते थे कि मैं उनपर राज्य करूं, इधर लाकर मेरे सामने मार डालो - सन्त लूकस १९/२७ |
| * बायबल मे वर्णित भिन्न भिन्न पैगंबरों ने भी कल का तूफान मचाया था। जैसे दाऊद (सॅम्युएल का दूसरा ग्रंथ १२/३१, १८/२७ ), येहू | | * बायबल मे वर्णित भिन्न भिन्न पैगंबरों ने भी कल का तूफान मचाया था। जैसे दाऊद (सॅम्युएल का दूसरा ग्रंथ १२/३१, १८/२७ ), येहू |
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| + | ==== ६. इसाईयत और स्त्री ==== |
| + | * उसने (ईश्वरने) स्त्री से यह कहा,' मैं तुम्हारी गर्भावस्था का कष्ट बढाऊंगा और तुम पीडा में सन्तान को जन्म दोगी । तुम वासना के कारण पति में आसक्त होगी और वह तुमपर शासन करेगा - उत्पत्ति ग्रंथ ३/१६ |
| + | * पुरूष स्त्री से नही बना बल्कि स्त्री पुरूष से बनी - और पुरूष की सृष्टी स्त्री के लिये नहीं हुई बल्कि पुरूष के लिये स्त्री की सृष्टी हुई - कुरिन्थियों के नाम पहला पत्र ११/८,९ |
| + | * धर्मशिक्षा के समय स्त्रियाँ अधीनता स्वीकार करते हुवे मौन रहें - मैं नहीं चाहता कि वे शिक्षा दें या पुरुषों पर अधिकार जतायें । वे मौन ही रहें - क्यों कि आदम पहले बना हव्वा बाद में - और आदम बहकावे में नहीं पडा बल्कि हव्वा ने बहकावे में पड़कर अपराध किया - कुरिन्थियों के नाम पहला पत्र ५/११ से १४ |
| + | * जिस तरह कलिसिया मसीह के अधीन रहती है उसी तरह पत्नी को भी सब बातों में पति के अधीन रहना चाहिये - कुरिन्थियों के नाम पहला पत्र ५/२४ |
| + | * जैसा कि प्रभु-भक्तों के लिये उचित है, पत्नियाँ अपने पतियों के अधीन रहें - कलोसियों के नाम पत्र ३/१८ |
| + | * आप की धर्मसभाओं में भी स्त्रियाँ मौन रहें। उन्हें बोलने की अनुमति नहीं है। वे अपनी अधीनता स्वीकार करें जैसा कि संहिता कहती है कुरिन्थियों के नाम पहला पत्र १४/३४ |
| + | - यदि वे किसी बात की जानकारी प्राप्त करना चाहती है तो वे घर में अपने पतियों से पूछे । धर्मसभामें बोलना स्त्री के लिये लज्जा की बात है - कुरिन्थियों के नाम पहला पत्र १४३५ |
| + | * यदि उसने अपराध किया और अपने पति के साथ विश्वासघात किया, तो वह शाप लानेवाला जल, जो याजक उसे पिलाता है, उस में असह्य पीडा उत्पन्न करेगा । स्त्री का पेट फूल जायेगा, उसकी जा घुल जायेंगी और उसका नाम उसके लोगों में अभिशाप्त हो जायेगा -गणना ग्रंथ ५/२७ |
| + | * यदि प्रभु, तुम्हारा ईश्वर उसे तुम्हारे हवाले करे तो उसका प्रत्येक पुरूष तलवार के घाट उतार दिया जाये - स्त्रियाँ, बच्चे, पू और जो कुछ उस नगर में है - वह सब तुम अपने अधिकार में कर लो और अपने शत्रुओं से लूटे हुए माल का उपभोग करो - विधि विवरण ग्रंथ २०/ १३, १४ |
| + | * इसलिये सब लड़कों को मार डालो और उन स्त्रीयों को भी जिनका पुरूष के साथ प्रसंग हवा है, किंतु तुम उन सब कन्याओं को जिनका पुरूषों से प्रसंग नहीं हुवा है अपने लिये जीवित रखो - गणना ग्रंथ ३१/१७,१८ |
| + | * सोलह हजार कन्याएं - इन में से प्रभू के लिये चढावा बत्तीस कन्याएं - गणना ग्रंथ ३१/४० |
| + | * जब कोई आदमी अपनी लडकी को दासी के रूप में बेचे, तो वह दासों की तरह नही छोडी जायेगी |
| + | - - यदि वह अपने स्वामी को पसन्द न आये, जिसने उसे खरीदा है, तो वह उसे बेच सकता है। उसे किसी विदाशी व्यक्ति को न बेचा जाये, क्यों कि यह उसके साथ विश्वासघात होगा - निर्गमन ग्रंथ २१/७,८ |
| + | * न्यायाधिकरण (इन्क्विझिशन) का काम था घोर अत्याचार करना । - - उसने लाखों भाग्यहीन स्त्रियों को जादूगरनिया कहकर आग में झोंक दिया और धर्म के नामपर अनेक प्रकार के लोगों पर कई तरह के अत्याचार किए - बांड रसेल' व्हाय आय ऍम नॉट ए क्रिचियन एड अदर एसेज ऑन रिलीजन' पृष्ठ २४, ७वा संस्करण |
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| ==References== | | ==References== |