Changes

Jump to navigation Jump to search
Line 12: Line 12:  
# आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय को सहयोग करने का किसी पर सरकारी दबाव बने ऐसा हम नहीं चाहते । परन्तु अविरोध अवश्य चाहेंगे।
 
# आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय को सहयोग करने का किसी पर सरकारी दबाव बने ऐसा हम नहीं चाहते । परन्तु अविरोध अवश्य चाहेंगे।
 
# धीरे धीरे बिना सरकारी मान्यता के भी पढा जाता है ऐसी मानसिकता बनाने में आपका बहुत बड़ा योगदान हो सकता है। आप जहाँ जायें वहाँ औपचारिक अनौपचारिक तौर पर इस विश्वविद्यालय की चर्चा हो ऐसे अवसर आप बनायें। अनेक लोग इस विश्वविद्यालय की संकल्पना सुनने समझने के लिये आयें इस हेतु प्रोत्साहन दें। शिक्षा धीरे धीरे सरकार से समाज की ओर किस प्रकार जाय इसका विचार करें। आज सरकार शिक्षा को उद्योगों को हस्तान्तरित कर रही है। इससे शिक्षा का बाजारीकरण होने की सम्भावनायें बढती हैं। शिक्षा को बाजार के हाथ में न दें, शिक्षकों के हाथ में दें।
 
# धीरे धीरे बिना सरकारी मान्यता के भी पढा जाता है ऐसी मानसिकता बनाने में आपका बहुत बड़ा योगदान हो सकता है। आप जहाँ जायें वहाँ औपचारिक अनौपचारिक तौर पर इस विश्वविद्यालय की चर्चा हो ऐसे अवसर आप बनायें। अनेक लोग इस विश्वविद्यालय की संकल्पना सुनने समझने के लिये आयें इस हेतु प्रोत्साहन दें। शिक्षा धीरे धीरे सरकार से समाज की ओर किस प्रकार जाय इसका विचार करें। आज सरकार शिक्षा को उद्योगों को हस्तान्तरित कर रही है। इससे शिक्षा का बाजारीकरण होने की सम्भावनायें बढती हैं। शिक्षा को बाजार के हाथ में न दें, शिक्षकों के हाथ में दें।
# आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में शिक्षित लोगों को सरकारी नौकरियाँ न दें। यह एक आपद्धर्म होगा । मैं ऐसा उल्टा कथन आपकी सहायता हेतु ही कर रहा हूँ । सरकारी
+
# आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में शिक्षित लोगों को सरकारी नौकरियाँ न दें। यह एक आपद्धर्म होगा । मैं ऐसा उल्टा कथन आपकी सहायता हेतु ही कर रहा हूँ । सरकारी नौकरियाँ मिलती ही रहेगी तो अन्य लोग भी अपने अपने निजी विश्वविद्यालय शुरू करेंगे। वे कुछ भी पढायेंगे और आपके लिये नौकरियाँ देने का बोज बढ़ जायेगा। धीरे धीरे हम समाज को नौकरी मुक्त भी बनाना चाहेंगे । इसलिये जिस प्रकार शिक्षा को स्वतन्त्रत करना है उस प्रकार अर्थार्जन को भी स्वतन्त्र करने की आवश्यकता रहेगी। नौकरी नहीं करने वाले और अपनी मालिकी का व्यवसाय करने वालों का सामाजिक और राजकीय सम्मान बढाने के उपाय करने चाहिये । समाज जागरण के कार्यक्रमों को अर्थनिरपेक्ष बनाने की दिशा में हम सबको मिलकर बहुत प्रयास करने होंगे। शिक्षा का अर्थार्जन से सम्बन्ध तोडकर ज्ञानार्जन से जोड़ने की दिशा में यह पहल होगी सरकार और विश्वविद्यालय ये संयुक्त प्रयासों से ही यह बदल होने वाला है।
 +
'''मन्त्री''' : मैं आपकी बात समझ रहा हूँ। परन्तु एक बात हमें ठीक से समझ लेनी होगी। आप समाज में कार्य कर रहे हैं । आप स्थिरतापूर्वक काम कर सकते हैं । हमारी सरकार चुनाव के बाद बनती है और चुनाव हर पाँच वर्षों में आते हैं। कभी कभी जल्दी भी आ जाते हैं। अतः पाँच वर्षों के बाद हम होंगे कि नहीं यह अनिश्चित होता है। दूसरे पक्ष की सरकार बनते ही आपके जैसे कार्यों में सहयोग करने के स्थान पर रूकावटें ही शुरू हो जाती हैं। इस अनिश्चितता का विचार कैसे करें ?
 +
 
 +
'''शिक्षक''' : हम पक्ष से ऊपर उठकर काम करेंगे। देशभक्ति और देश की मिट्टी और पूर्वजों का गौरव सभी पक्षों के लिये समान मुद्दा बनना चाहिये । इसलिये हमारे सम्पर्क अभियान में सभी पक्षों की सरकारों का समावेश होगा । हम कमअधिक मात्रा में सहयोग और अवरोध की सम्भावनाओं को नकार नहीं रहे हैं परन्तु हम निवेदन करना नहीं चूकेंगे। आखिर शिक्षा जैसे विषय के लिये बहुमत अल्पमत का मुद्दा न बने इसका भी हमें ध्यान रखना ही होगा । अतः आप चुनावों की और पक्ष की सरकार बनती है कि नहीं इसकी चिन्ता न करें। और फिर आप विपक्ष में हों तो भी सहयोग तो कर ही सकते हैं।
 +
 
 +
'''प्रशासक''' : और हमारा प्रशासकों का वर्ग तो पक्षीय राजनीति में है ही नहीं । वह अच्छे और सही कामों में सहयोग करने के लिये तत्पर रहेगा ही।
 +
 
 +
'''शिक्षक''' : हमारी प्रशासकीय सेवाओं का भारतीय करण करने का आपके लिये भी अच्छा अवसर है। वास्तव में हमारी सभी व्यवस्थाओं का पुनर्विचार करने का प्रारम्भ हमें कर देना चाहिये । सारा राष्ट्रजीवन भारतीय बने इसलिये ऐसा करना आवश्यक है।
 +
 
 +
'''प्रशासक''' : यह आपने अच्छा सुझाव दिया । हमारी प्रशासकीय सेवाओं के पाठ्यक्रमों का हम पुनर्विचार करेंगे । उसका प्रशिक्षण चलता है। उसमें भी भारतीयता का मुद्दा चर्चा में आना आवश्यक है। हमें आपकी सहायता चाहिये । हमारे वर्गों में वर्तमान विश्वविद्यालयों में पढे हुए लोग होते हैं। उन्हें भारत का भारतीय दृष्टि से लिखा हुआ इतिहास, भारतीय जीवनदृष्टि, राष्ट्रजीवन आदि बातों का परिचय ही नहीं होता। परन्तु वे बुद्धिमान होते हैं। व्यवहारदक्ष और चतुर भी होते हैं । शासन और प्रजा दोनों यदि भारतीयता चाहते हैं तो उन्हें भारतीयता क्या है यह समझने में देर नहीं लगेगी । हाँ, उन्हें अपने आपको प्रजा से अलग समझना बन्द करना होगा। मैं इसके लिये प्रयास करूँगा।
 +
 
 +
'''मन्त्री''' : यह अच्छा विचार है। शासन इस पर अवश्य विचार करेगा । हमें भारत को भारत केन्द्री होना चाहिये इस सूत्र को प्रचार में लाना चाहिये । मैंने अभी एक लेख पढा था । उसमें एक मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की गई थी। लेखक कहता था कि आज भारत के बौद्धिकों का वैचारिक गतिविधियों का गुरुत्वमध्यबिन्दु भारत के बाहर है, उसे पुनः भारत में लाना चाहिये । लेखकने भारत के शिक्षा आयोग के अध्यक्ष डॉ. दौलतसिंह कोठारी के सन्दर्भ से यह कहा था। लेखक ने इसके कई उदाहरण भी दिये थे। वैचारिक गुरुत्व मध्यबिन्दु को भारत में कैसे लाया जाय इसके कई सुझाव भी दिये थे। मैंने कई लोगों से इसकी चर्चा की। कुछ लोगों को बहुत विस्मय हुआ कि आज तक हमें यह बात सूझी क्यों नहीं । मुद्दा तो एकदम सही है ।इस बात पर व्यापक चर्चा होनी चाहिये ।
 +
 
 +
'''प्रशासक''' : मुझे एक विचार आ रहा है। हमारे सारे राष्ट्रीय संकटों की जड दो सौ वर्षों का ब्रिटीशों का आधिपत्य ही है। उस कालखण्ड में उन्होंने हमारे सारे विषयों के पाठ्यक्रम और स्वरूप बदल दिये । इतिहास भी फिर से लिखा ताकि हमें भविष्य में कुछ पता ही न चले। हमारी व्यवस्थायें छिन्नभिन्न कर दी । इसलिये मुझे लगता है कि हमें इन दो सौ वर्षों का प्रमाणभूत इतिहास पुनः लिखना चाहिये । हमें इसके लिये पर्याप्त अनुसन्धान भी करना होगा। हम किसी अच्छे विश्वविद्यालय को यह प्रकल्प दे सकते हैं और उसके लिये सहायता भी कर सकते हैं।
 +
 
 +
दूसरा मुजे लगता है कि एक शिक्षा आयोग की रचना की जाय जो भारत केन्द्री शिक्षा की संकल्पना और स्वरूप का दस्तावेज तैयार करे तथा साथ में उसे लागू कैसे किया जाय इसकी व्यावहारिक योजना भी दे। यह बात ठीक है कि सरकार द्वारा गठित आयोगों पर किसी को श्रद्धा या विश्वास नहीं होते, परन्तु हम इस बार आयोग की रचना और उसके कामकाज को पर्याप्त गम्भीरता से लेंगे।
 +
 
 +
इस आयोग में सुलझे हुए विद्वजनों को लेना चाहिये । आयोग में बहुत अधिक व्यक्ति नहीं होने चाहिये । इस आयोग का कार्यक्षेत्र सम्पूर्ण देश होना चाहिये । साथ ही विश्व के प्रमुख देशों में भी उन्होंने जाना चाहिये । यह ध्यान में रखना चाहिये कि केवल अच्छी शिक्षा हमारा उद्देश्य नहीं है, अच्छी भारतीय शिक्षा हमारा उद्देश है। वर्तमान समय में हम अच्छी शिक्षा की संकल्पना विचार में लेते हैं, परन्तु भारतीय शिक्षा का मुद्दा छूट ही जाता है। हम सरकार के मन्त्रीमण्डल से इस आयोग के गठन हेतु परामर्श भी ले सकते हैं।
 +
 
 +
'''शिक्षक''' : आपका यह विचार उत्तम है। आपका दोसौ वर्षों के इतिहास के लेखन का प्रस्ताव तो हमें पूर्ण रूप से स्वीकार्य है। मैं आज से ही योग्य व्यक्तियों को खोजकर उनसे बात करना शुरू कर देता हैं। शीघ्र ही मैं उनके नाम और अन्य जानकारी, अनुकूल विश्वविद्यालयों की जानकारी तथा प्रकल्प की रूपरेखा आपके सम्मुख प्रस्तुत करूँगा । आयोग हेतु आप दोनों सक्रिय हों तो पर्याप्त
 +
 
 +
'''मन्त्री''' : आपने एक वर्ष की सम्पर्क योजना तो प्रस्तुत की परन्तु आगे की क्या योजना होगी ? मुझे लगता है कि कम से कम पाँच वर्षों की योजना बनाकर हमने काम प्रारम्भ करना चाहिये । अर्थात् आप अभी ही योजना बतायें ऐसा आग्रह नहीं है।
 +
 
 +
'''शिक्षक''' : मैं विस्तार पूर्वक तो योजना कुछ दिनों बाद बताऊँगा परन्तु अभी मैं इतना कह सकता हूँ कि हमें तीन विभाग एक साथ शुरू करने होंगे। एक होगा विश्वअध्ययन केन्द्र, दूसरा होगा भारत अध्ययन केन्द्र और तीसरा होगा राष्ट्रीय ग्रन्थालय । हम तीनों विभागों की टोली को अपनी अपनी पाँच वर्षों की योजना बनाने के लिये बतायेंगे। प्रथम दो विभागों में अनुसन्धान से कार्य का प्रारम्भ होगा और धीरे धीरे नीचे की ओर चलते जायेंगे।
 +
 
 +
इस विश्वविद्यालय की व्याप्ति सम्पूर्ण विश्व की रहेगी परन्तु वह जहाँ भी होगा भारतीय दृष्टि से विश्व का अध्ययन यह प्रमुख विषय रहेगा । इस दृष्टि को स्पष्ट करने हेतु चार आयामों में विचार होगा...
 +
# भारत की दृष्टि से विश्व का अध्ययन...
 +
# भारत की दृष्टि से भारत का अध्ययन...
 +
# पश्चिम की दृष्टि से विश्व का अध्ययन...
 +
# पश्चिम की दृष्टि से भारत का अध्ययन...
 +
इन चारों आयामों के साथ तुलनात्मक अध्ययन और व्यवहार में परिवर्तन हेतु सुझाव अनिवार्य रूप से रहेंगे।
 +
 
 +
'''प्रशासक''' : इस सम्पूर्ण कार्य हेतु खर्च तो बहुत होगा। उसका क्या करेंगे ? मुझे नहीं लगता कि आप सरकार से कुछ अपेक्षा करेंगे। अनेक व्यावहारिक कारणों से सरकार सहायता करने में समर्थ नहीं रहेगी। आपने इस विषय में भी कुछ विचार किया ही होगा।
 +
 
 +
'''शिक्षक''' : आपकी बात ठीक है । खर्च बहुत होगा । हम सरकार से अपेक्षा नहीं करेंगे । हम समाज पर ही निर्भर करेंगे । वैसे आज जितने भी सामाजिक, सांस्कृतिक संगठन और संस्थायें इस देश में कार्यरत हैं उन सब का कार्य समाज के भरोसे ही चलता है । हम समाज से भिक्षा माँगेंगे। समाज पर भरोसा रखेंगे। आप लोगों के पास व्यक्तिगत रूप से भी हम भिक्षा माँगेंगे और सरकारों से भी माँगेंगे । वह अनुदान या कृपा नहीं होंगे, केवल सहयोग होगा।
 +
 
 +
'''मन्त्री''' : यह विचार अच्छा है। हम भी आपके कार्य में अवश्य सहयोग करेंगे । परन्तु क्या भारतीय के साथ साथ विदेशों से भी विद्वान शोध और अध्ययन करने हेतु या अध्यापन करने हेतु आयेंगे ? या आप केवल भारतीयों को ही पढाने की अनुमति देंगे ?
 +
 
 +
'''शिक्षक''' : अरे यह आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय है तो हम सम्पूर्ण विश्व से अध्यापकों को आमान्त्रित करेंगे। वास्तव में पूर्व और पश्चिम का भेद दिशाओं का, अथवा भारत और अमेरिका का नहीं है, वह दैवी और आसुरी सम्पदा का विरोध है । इसलिये विश्व के किसी भी स्थान से अध्यापक और विद्यार्थी यहा आयेंगे।
 +
 
 +
मैं एकबार पुनः स्पष्टता करता हूँ कि यह विश्वविद्यालय केवल भारत के लिये नहीं है, मुख्य रूप से यह विश्व के लिये है। विश्व जिन भीषण संकटों से घिरा हुआ है उसका निवारण करने हेतु वह अपने तरीके से प्रयास तो कर रहा है, परन्तु उसमें उसे यश नहीं मिल रहा है। हमारा पक्का विश्वास है कि पश्चिम को उसके प्रयास में यश मिल ही नहीं सकता क्योंकि उसकी जीवनशैली ही सारे संकटों का मूल है । वह अपनी शैली छोडना नहीं चाहता और संकट दूर करना चाहता है । ये दोनों बातें साथ साथ नहीं हो सकती । हमें पक्का विश्वास यह भी है कि भारत की जीवनदृष्टि इन संकटों का निवारण कर सकती है । परन्तु इसके लिये भारत को पश्चिमी प्रभाव से मुक्त होना पड़ेगा। आज तो भारत की स्थिति भी चिन्ताजनक है । इसलिये हमें भारत अध्ययन केन्द्र और विश्वअध्ययन केन्द्र बनाने पडेंगे । प्रथम भारत को पश्चिम के प्रभाव से मुक्त करना और बाद में भारत विश्व को संकटों से मुक्ति का मार्ग दिखायेगा । दोनों काम साथ साथ चलेंगे । इस कार्य में पश्चिम को भी तो साथ में लेना होगा।
    
==References==
 
==References==
1,815

edits

Navigation menu