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=== अध्याय ४४ ===
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'''शिक्षक''' : आज बहुत ही महत्त्वपूर्ण दिन है जब संगठन, प्रशासन और शासन के प्रमुख दायित्व निभाने वाले लोग सहृदयता पूर्वक एकदूसरे की बात सुनने के लिये और राष्ट्रजीवन की एक गम्भीर समस्या के हल की चर्चा करने के लिये एकत्रित आये हैं । मैं इसे शुभ शकुन समझता हूँ।
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गत बार जब मैं और आदरणीय शिक्षा सचिव मिले थे तब हमने दो विषयों पर प्राथमिक स्वरूप की चर्चा की थी।
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१. इस देश की शिक्षा ब्रिटीश व्यवस्थातन्त्र और यूरोपीय ज्ञान के ढाँचे में ही चल रही है। किसी भी स्वाधीन और स्वतन्त्र देश में ऐसा होता नहीं है । इसका ही एक अंग यह है कि शिक्षा शासन के और सम्पूर्ण नियन्त्रण में चल रही है। इसे इस व्यवस्थातन्त्र से मुक्त करना चाहिये।
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दूसरा मुद्दा था आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का । इसके विषय में मैंने कुछ भी नहीं कहा था । अतः संक्षेप में थोडी जानकारी देकर हम उस पर चर्चा करेंगे ।
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मेरे प्रस्ताव का सार इस प्रकार है ।
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(१) स्वाधीनता से पूर्व के देढ या दो सौ वर्षों में भारत की शिक्षा ब्रिटीश पद्धति से चल रही है । इसका ज्ञान भी यूरोपीय है और ढाँचा भी। स्वाधीनता के बाद हमने उस व्यवस्था को जैसा का तैसा अपनाया है।
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(२) हमें स्वाधीनता के तुरन्त बाद उसे पूर्ण रूप से छोडने की आवश्यकता थी क्योंकि शिक्षा के माध्यम से जो यूरोपीय जीवनदृष्टि और जीवनशैली हम पर थोपी गई थी वही वास्तव में गुलामी थी। हमने राजकीय स्वाधीनता प्राप्त कर ली परन्तु सारी व्यवस्थायें वैसी ही रहीं। सत्तर वर्षों तक हम उसे ही कुछ आन्तरिक परिवर्तनों के साथ चला रहे हैं । सबसे पहली आवश्यकता इस व्यवस्था को बदलने की है।
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==References==
 
==References==
 
<references />भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे
 
<references />भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे
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