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'''प्रशासक''' : आज पहली बार ऐसी बातें सुन रहा हूँ। हमारी पढाई में और प्रशिक्षण में इस दृष्टि से विचार करने की कभी सम्भावना ही निर्माण नहीं हुई है। आपकी बातें सूनकर मेरी कल्पना के समक्ष चित्र धीरे धीरे उभर रहा है। मैं देख रहा हूँ कि ब्रिटीश तो भारत छोडकर जाने की तैयारी कर रहे हैं और हम भी स्वाधीन होने का हर्ष मना रहे हैं परन्तु उस हर्ष के आवेशमें ब्रिटीश अपनी सारी व्यवस्था यहाँ छोडकर जा रहे हैं यह बात हम देखते नहीं है । हमने व्यक्तियों को देखा परन्तु उन व्यक्तियों द्वारा निर्मित व्यवस्थाओं को नहीं देखा । वास्तव में लोगों से भी लोगों द्वारा बनाई गई व्यवस्थायें ज्यादा भयंकर हैं। और विडम्बना यह है कि हमें इसका ज्ञान तो छोडो भान ही नहीं है। परन्तु आपने ही अभी कहा कि सिस्टम जड है। वह अपने आपको तो बदलेगी नहीं, उपर से जो भी बदलने का प्रयास करेगा उसका ही विरोध करेगी, उसे बदलने नहीं देगी, बदलाव में बाधायें निर्माण करेगी।
 
'''प्रशासक''' : आज पहली बार ऐसी बातें सुन रहा हूँ। हमारी पढाई में और प्रशिक्षण में इस दृष्टि से विचार करने की कभी सम्भावना ही निर्माण नहीं हुई है। आपकी बातें सूनकर मेरी कल्पना के समक्ष चित्र धीरे धीरे उभर रहा है। मैं देख रहा हूँ कि ब्रिटीश तो भारत छोडकर जाने की तैयारी कर रहे हैं और हम भी स्वाधीन होने का हर्ष मना रहे हैं परन्तु उस हर्ष के आवेशमें ब्रिटीश अपनी सारी व्यवस्था यहाँ छोडकर जा रहे हैं यह बात हम देखते नहीं है । हमने व्यक्तियों को देखा परन्तु उन व्यक्तियों द्वारा निर्मित व्यवस्थाओं को नहीं देखा । वास्तव में लोगों से भी लोगों द्वारा बनाई गई व्यवस्थायें ज्यादा भयंकर हैं। और विडम्बना यह है कि हमें इसका ज्ञान तो छोडो भान ही नहीं है। परन्तु आपने ही अभी कहा कि सिस्टम जड है। वह अपने आपको तो बदलेगी नहीं, उपर से जो भी बदलने का प्रयास करेगा उसका ही विरोध करेगी, उसे बदलने नहीं देगी, बदलाव में बाधायें निर्माण करेगी।
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'''शिक्षक''' : आपने ठीक कहा । अब आप परिस्थिति
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'''शिक्षक''' : आपने ठीक कहा । अब आप परिस्थिति की गम्भीरता को समझ रहे हैं। हमारा निवेदन है कि हम साथ मिलकर विचार करें कि हमारे सामने जो चुनौती है उसका सामना हम किस प्रकार करें । हम मानते हैं कि शिक्षा को बदलने से ही व्यवस्थायें बदलेंगी और व्यवस्थाओं को बदलने से देश बदलेगा । देश स्वतन्त्र तब कहा जायेगा जब वह अपने तन्त्र से चलेगा । ऐसी स्वतन्त्रता के लिये हम क्या कर सकते हैं । इसका विचार करें।
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'''प्रशासक''' : हमने कभी ऐसा विचार किया नहीं है इसलिये एकदम तो मेरे ध्यान में कुछ विचार आ नहीं रहा है। फिर भी मुझे दो बातें महत्त्वपूर्ण लगती हैं । एक तो यह कि सिस्टम को बदलने हेतु शिक्षा को सिस्टम से बाहर रहकर प्रयास करने होंगे। सिस्टम के अन्दर ही अन्दर तो खास कुछ होगा नहीं । दूसरा मुझे लगता है कि शासन, प्रशासन और शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत समाजसेवी संगठन साथ मिलकर प्रयास करें।
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साथ ही यह भी आवश्यक है कि शैक्षिक संगटन ही इसकी पहल करें । शिक्षा को यदि सिस्टम से मुक्त करना है तो पहल भी उन लोगों को करनी चाहिये जो मुक्ति चाहते हों, वास्तव में मुक्त हों और अपने आपको मुक्त मानते हों।
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'''शिक्षक''' : आपने मेरे मन की बात कही । सौभाग्य से आज भी देश के जनमानस में स्वतन्त्रता की चाह समाप्त नहीं हुई है। लोग मुक्ति चाहते ही हैं। साथ ही देश में अनेक संगठन कार्यरत हैं । लगभग सभी धार्मिक सांस्कृतिक संगठन विद्यालय और महाविद्यालय चलाते हैं। आपको पता नहीं होगा परन्तु ऐसे असंख्य लोग हैं जो इस शिक्षा को पसन्द नहीं करते इसलिये अपने बच्चों को घर में ही पढाते हैं । अनेक स्थानों पर ऐसे गुरुकुलों की स्थापना लोग कर रहे हैं जो इस सिस्टम से मुक्त रह कर चलाये जायें । परन्तु वे सिस्टम से डर रहे हैं । सिस्टम की मान्यता नहीं है ऐसे किसी भी प्रयोग को सिस्टम चलने नहीं देती ऐसी आज की स्थिति है । यह स्थिति अपने आपमें भी अन्यायी और अनुचित है। इतने बड़े देश की शिक्षा का तन्त्र सरकार चलाये यही अत्यन्त अव्यावहारिक है । उस पर जड सिस्टम में शिक्षा को जकडना अत्यन्त अनुचित है। मेरा निवेदन
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यह है कि सिस्टम की जकडन से शिक्षा  को मुक्त करने के उपाय आप ही बतायें। आपके जितना सिस्टम को कौन जानता है हम भी मेहनत करेंगे परन्तु आपके समान वह कार्य हमारे लिये सरल नहीं होगा।
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'''प्रशासक''' : मेरा सुझाव यह है कि आप पहल करें। सिस्टम का अध्ययन आप भी करें । शिक्षा को मुक्त करने की योजना चरणबद्ध स्वरूप में करनी होगी। मेरा दूसरा सुझाव यह है कि हमारी योजना में हम माननीय शिक्षामान्त्रीजी को भी सम्मिलित करें। उनके बिना यह कार्य होना असम्भव है। आवश्यकता पड़ने पर हम माननीय प्रधानमन्त्री से भी बात कर सकते हैं, करनी भी चाहिये । हम भी तो देश की ओर देशवासियों की सेवा के लिये ही हैं।
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'''शिक्षक''' : आपके प्रस्ताव का मैं स्वागत करता हूँ। परन्तु जाते जाते एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विषय का प्रारम्भ कर देता हूँ। हम सब कार्यकर्ताओं ने मिलकर एक आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का प्रारम्भ करने का मानस बनाया है। आपकी सहायता की उसमें बहुत आवश्यकता रहेगी।
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'''प्रशासक''' : यह कौनसी नई बात है ? आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय सुरू करना कोई खेल थोडे ही हैं ? कितना धन चाहिये और कितना परिश्रम ? फिर संसद में कानून भी पारित करना होगा। कितनी प्रशासकीय आवश्यकतायें पूरी करना होगी। फिर भी आप नहीं कर सकते हैं ऐसा तो नहीं है। सारी प्रक्रियाएँ पूर्ण कीजिये और शुरू कीजिये । मेरी और से मैं हर प्रकार से सहायता करूँगा। परन्तु सरकार से शिक्षा की मुक्ति और यह आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय दोनों अलग विषय हैं । दोनों की चर्चा एकदूसरे से स्वतन्त्र रूप से करनी होंगी। पहला विषय कठिन है, दूसरा तो सरल है।
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'''शिक्षक''' : दोनों विषय एकदूसरे से सम्बन्धित ही हैं, यह मैं जब उसकी कल्पना आपके समक्ष स्पष्ट करूँगा तब आपके ध्यान में आयेगा। अभी तो मैं आगामी बैठक निश्चित करके आपको सूचित करूंगा। तब तक के लिये आज्ञा दीजिये।
    
==References==
 
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