Changes

Jump to navigation Jump to search
Line 40: Line 40:  
==== शिक्षा का विषयवस्तु के बारे में विचार ====
 
==== शिक्षा का विषयवस्तु के बारे में विचार ====
 
आप जो विभिन्न विषय पढाते हैं उनकी विषयवस्तु के बारे में आपको मूल से ही पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। कक्षाकक्ष की शिक्षा को आप विद्यार्थी के दैनन्दिन व्यवहार के साथ तथा जागतिक परिस्थिति के साथ जोडकर देखिये । क्या निम्नलिखित प्रश्नों का आपने विचार नहीं करना चाहिये ?  
 
आप जो विभिन्न विषय पढाते हैं उनकी विषयवस्तु के बारे में आपको मूल से ही पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। कक्षाकक्ष की शिक्षा को आप विद्यार्थी के दैनन्दिन व्यवहार के साथ तथा जागतिक परिस्थिति के साथ जोडकर देखिये । क्या निम्नलिखित प्रश्नों का आपने विचार नहीं करना चाहिये ?  
 +
# आपके आठ नौ वर्ष की आयु के विद्यार्थी के बस्ते में पिस्तौल या पिस्तौल जैसा शस्र होता है। वह उसे चलाना जानता भी है और चाहता भी है। वह अपने स्वजनों पर ही उसे चलाता है।
 +
# आप की बारह तेरह वर्ष की आयु की लडकियाँ गर्भवती होती हैं। उनके लिये गर्भपात भी एक खेल है।
 +
# आपके सत्तर प्रतिशत बच्चे सिंगल पेरैण्ट चिल्ड्रन हैं। क्या बच्चों का अधिकार नहीं है कि उनके माता और पिता का प्रेम और सुरक्षा उन्हें मिले ? क्या आप अपने देश के युवक-युवतियों को अच्छे माता और पिता बनने की शिक्षा नहीं दे सकते ?
 +
# आपके लिये पदार्थ, प्राणी, मनुष्य, भगवान सब कुछ खरीदने और बेचने की वस्तुयें हैं। क्या यह अति विचित्र स्थिति नहीं है ?
 +
ये तो कुछ उदाहरण हैं । ऐसे तो सैंकडों उदाहरण हम दे सकते हैं । परन्तु विचार करने लायक बात यह है कि ऐसी स्थिति और ऐसी मानसिकता कैसे निर्माण होती है ? निश्चित ही आपकी शिक्षा इसके लिये कारणभूत है। आप विश्वविद्यालयों में समाजशास्त्र ऐसा पढाते हैं कि सामाजिक समरसता, बन्धुता, आदर और श्रद्धा जैसे तत्त्व ही पैदा नहीं होते । इन तत्त्वों की आप कल्पना भी नहीं कर सकते । आप ऐसा अर्थशास्त्र पढाते हैं जिसके परिणामस्वरूप सबकुछ बिकाऊ बन जाता है और आर्थिक शोषण, लूट, हत्या, आधिपत्य, दूसरों को गुलाम बनाना आदि सब बिना हिचकिचाहट से मान्य हो जाता है।
   −
१. आपके आठ नौ वर्ष की आयु के विद्यार्थी के बस्ते में पिस्तौल या पिस्तौल जैसा शस्र होता है। वह उसे चलाना जानता भी है और चाहता भी है। वह अपने स्वजनों पर ही उसे चलाता है।
+
आप ऐसा मनोविज्ञान पढाते है कि कामप्रवृत्ति को ही मान्यता दे देते हैं । आप ऐसा भौतिक विज्ञान पढाते हैं जो जीवन की हर भावना, तत्त्व, प्रक्रिया, अनुभूति, संवेदना - स्वयं जीवन - को निर्जीव पदार्थ बना देता है और 'सर्वशास्रप्रधानम्' का दर्जा प्राप्त कर लेता है । इस कारण से आपको लगता है कि आपने असीम वैभव प्राप्त कर लिया है और प्रकृति को अपना दास बना लिया है । परन्तु
   −
२. आप की बारह तेरह वर्ष की आयु की लडकियाँ
+
आपने बहुत बडी मूल्यवान बातों को खो दिया है । जीवन का और जीवन के आनन्द का तो आपको स्पर्श भी नहीं हुआ है । प्रकृति को अपना दास बना लेना सिद्धि नहीं है, विजय नहीं है, प्रकृति के प्रेम और आशीर्वाद से आप वंचित हो जाते हैं और आपको अहेसास भी नहीं होता कि आपने कितनी मूल्यवान चीज को खो दिया है।
 +
 
 +
आप जानते ही नहीं है कि धर्म और संस्कृति जैसे
    
==References==
 
==References==
1,815

edits

Navigation menu