− | हे विश्ववासियों, आप शिक्षा का महत्त्व जानते ही | + | हे विश्ववासियों, आप शिक्षा का महत्त्व जानते ही है। आज विश्व में अन्न, वस्त्र, निवास की तरह शिक्षा भी जीवन की प्राथमिक आवश्यकता बन गई है। विश्व के सारे देश प्रजा को शिक्षित बनाने का प्रयास कर रहे हैं। आज विश्व ने सूत्र बनाया है, 'नॉलेज इझ पावर' - ज्ञान ही सामर्थ्य है । यह बहुत ही सराहनीय बात है । ज्ञान को ही सामर्थ्य मानना भारत की भी परम्परा रही है। भारत ने ज्ञान को पवित्रतम, श्रेष्ठतम, उत्तम माना है। आप भी ऐसा मानते हैं यह अच्छा है। परन्तु इस विषय में प्रारम्भ में ही कुछ स्पष्टता कर लेना आवश्यक है। हम आपसे आग्रहपूर्वक कहना चाहते हैं कि ज्ञान को, और चूंकि शिक्षा ज्ञान की ही व्यवस्था है इसलिये शिक्षा को पदार्थ मत मानो । आज विश्वने शिक्षा को महत्त्वपूर्ण माना तो है परन्तु उसे भौतिक पदार्थ मानने की गलती भी की है। अन्न, वस्त्र, निवास आदि भौतिक पदार्थ हैं। वे शरीर का रक्षण और पोषण करते हैं। शिक्षा उनकी श्रेणी में नहीं बैठती । शिक्षा का सम्बन्ध मुख्य रूप से अन्तःकरण के साथ है। मनुष्य का मन, बुद्धि, चित्त, हृदय आदि अन्तःकरण हैं । अन्तःकरण ही तो मनुष्य को अन्य पदार्थों और प्राणियों से भिन्न और श्रेष्ठ बनाता है। शिक्षा का सम्बन्ध इस अन्तःकरण से है । उसे अन्य भौतिक पदार्थों के समान ही मानने से बड़ा अनर्थ होता है। आज वह हो ही रहा है। भौतिक पदार्थों की उत्पादन की व्यवस्था को हम उद्योग कहते हैं । शिक्षा को भौतिक पदार्थ मानने से शिक्षा का भी उद्योग बन जाता है। शिक्षा को उद्योग बनाते ही अनर्थों की परम्परा बनने लगती है। भौतिक पदार्थों का मापन करने के लिये वजन, लम्बाई, कद, उसके गुणधर्म, शरीर पर होने वाले परिणाम, उनकी आन्तप्रक्रियाएँ आदि बातें होती हैं । जाहिर है कि शिक्षा को वजन, कद, संख्या, वृद्धि, घनता आदि लागू नहीं हो सकते। उसकी आन्तरप्रक्रियाएँ पानी, भट्टी, सुवर्ण, वायू आदि के साथ नहीं हो सकती । अन्न लेने के बाद पेट भरता है, पानी से प्यास बुझती है, काम करने से शरीर एक ओर तो थकता है दूसरी ओर कुशल बनता है। शिक्षा से ऐसा कुछ नहीं होता । सारे भौतिक पदार्थों का मूल्य पैसे में आँका जा सकता हैं क्योंकि पैसा भी तो भौतिक स्तर की ही व्यवस्था है। |