इस प्रकार सीधे सीधे शिक्षा में परिवर्तन करने के स्थान पर व्यापक सन्दर्भो को अनुकूल बनाना चाहिये ।
इस प्रकार सीधे सीधे शिक्षा में परिवर्तन करने के स्थान पर व्यापक सन्दर्भो को अनुकूल बनाना चाहिये ।
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आज देशभर में ऐसे असंख्य प्रयोग चल रहे हैं। ये प्रयोग ऐसे हैं जिनमें सरकारी मान्यता, परीक्षा, प्रमाणपत्र, नौकरी आदि कुछ भी नहीं हैं। लोग अपनी सन्तानों को
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आज देशभर में ऐसे असंख्य प्रयोग चल रहे हैं। ये प्रयोग ऐसे हैं जिनमें सरकारी मान्यता, परीक्षा, प्रमाणपत्र, नौकरी आदि कुछ भी नहीं हैं। लोग अपनी सन्तानों को स्वयं पढाते हैं। वे इस आसुरी शिक्षा व्यवस्था में अपनी सन्तानों को भेजना नहीं चाहते । अनेक लोग झुग्गीझोंपडियों के बच्चों को पढ़ाने की सेवा करते हैं। अनेक धार्मिक सम्प्रदाय संस्कार केन्द्रों के रूप में धर्मशिक्षा दे रहे हैं। अनेक संगठन वनवासी और ग्रामीण बच्चों के लिये एकल शिक्षक विद्यालय चलाते हैं। ये सब निःशुल्क शिक्षा के प्रयोग हैं। ये समाज की और शिक्षा की सेवा के रूप में चलते हैं।
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अनेक धार्मिक संगठन उपनिषदों का अध्ययन करवाते हैं। यह उपदेश नहीं शिक्षा होती है । वेद पाठशालाओं में वेद अभी भी जीवित हैं । स्थान स्थान पर गुरुकुलों के प्रयोग शुरु हो रहे हैं।
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ये सारे प्रयोग वर्तमान शिक्षा की मुख्य धारा से बाहर हैं। शिक्षा की मुख्य धारा यूरोपीय है परन्तु ये सभी प्रयोग कमअधिक मात्रा में भारतीय है । इन्हें यदि एक साथ रखा जाय तो इनका पलडा मुख्य धारा की शिक्षा के पलडे से भारी होगा । ये सरकार के नहीं, समाज के भरोसे चलते हैं। समाज इनका सम्मान करता है क्योंकि वे समाज की सांस्कृतिक आवश्यकता की पूर्ति करते हैं। भारत इन के भरोसे भारत है । भारत अभी जीवित है मरा नहीं है इसका श्रेय इन प्रयोगों को है । इन प्रयासों के साथ विश्वविद्यालयों