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# वर्तमान में तो गाँवों को लेकर कोई व्यवस्था ही नहीं है । व्यवस्था तो नगरों को लेकर भी नहीं है। इसी प्रकार से विचार करें तो शिक्षा, समाज जीवन, न्याय, कानून आदि किसी की भी व्यवस्था नहीं है। सारी अनवस्था ही है । इसका कारण यह है कि हमने एक सर्वथा पराये तन्त्र को अपने आप पर थोप लिया है। अपना भी ठीक नहीं हो रहा है और पराया ठीक बैठ नहीं रहा है।
 
# वर्तमान में तो गाँवों को लेकर कोई व्यवस्था ही नहीं है । व्यवस्था तो नगरों को लेकर भी नहीं है। इसी प्रकार से विचार करें तो शिक्षा, समाज जीवन, न्याय, कानून आदि किसी की भी व्यवस्था नहीं है। सारी अनवस्था ही है । इसका कारण यह है कि हमने एक सर्वथा पराये तन्त्र को अपने आप पर थोप लिया है। अपना भी ठीक नहीं हो रहा है और पराया ठीक बैठ नहीं रहा है।
 
# अपने तन्त्र को ठीक करने के लिये हमें गाँव को परिभाषित करते हुए भारत का ग्रामीणीकरण करना चाहिये । यह कार्य असम्भव सा लगता है परन्तु असम्भव है नहीं। होगा नहीं यह कहने के स्थान पर कैसे होगा इसका विचार करने से असम्भव से लगने वाले काम होते हैं।
 
# अपने तन्त्र को ठीक करने के लिये हमें गाँव को परिभाषित करते हुए भारत का ग्रामीणीकरण करना चाहिये । यह कार्य असम्भव सा लगता है परन्तु असम्भव है नहीं। होगा नहीं यह कहने के स्थान पर कैसे होगा इसका विचार करने से असम्भव से लगने वाले काम होते हैं।
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==== ६. यंत्रवाद से मुक्ति ====
    
==References==
 
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