Line 17:
Line 17:
९. कृषि के लिये, वस्त्र निर्माण के लिये, छोटे से छोटे काम के लिये और पेट्रोल आदि ऊर्जा से चलने वाले यन्त्रों का प्रयोग होता है । ये यन्त्र विराटकाय होते हैं। ऐसी ऊर्जा के परिचालन के लिये भी अनेक यन्त्रों की आवश्यकता होती है । इस प्रकार यन्त्र के लिये यन्त्र, उसके लिये यन्त्र, उसके लिये यन्त्र ऐसी अनन्त शुखला निर्माण होती है जो पर्यावरण का नाश करती है, मनुष्य की शक्ति, बुद्धि और वृत्ति का नाश करती है, कौशल का नाश करती है और मनुष्य का भी नाश करती है ।
९. कृषि के लिये, वस्त्र निर्माण के लिये, छोटे से छोटे काम के लिये और पेट्रोल आदि ऊर्जा से चलने वाले यन्त्रों का प्रयोग होता है । ये यन्त्र विराटकाय होते हैं। ऐसी ऊर्जा के परिचालन के लिये भी अनेक यन्त्रों की आवश्यकता होती है । इस प्रकार यन्त्र के लिये यन्त्र, उसके लिये यन्त्र, उसके लिये यन्त्र ऐसी अनन्त शुखला निर्माण होती है जो पर्यावरण का नाश करती है, मनुष्य की शक्ति, बुद्धि और वृत्ति का नाश करती है, कौशल का नाश करती है और मनुष्य का भी नाश करती है ।
−
............. page-256 .............
+
१०. बचपन से ही हाथ से काम नहीं करने की वृत्ति बढती जाती है और वह सर्वत्र अपनी सत्ता प्रस्थापित करती है । हाथ से काम नहीं करना ही प्रगति का लक्षण बन गया है ।
+
+
११. शिक्षा में भी विविध रूपों में यह दिखाई देता है । अब पहाड़े, नियम, सूत्र, श्लोक, मन्त्र आदि रटने की, याद करने की आवश्यकता नहीं, सब तैयार मिल जाता है। अब नकशे, विज्ञान के प्रयोग, विभिन्न प्रकार की आकृतियाँ हाथ से बनाने की आवश्यकता नहीं, सब तैयार मिल जाता है । अब पुस्तकालय से पुस्तक लाकर आवश्यक सामग्री हाथ से लिखने की आवश्यकता नहीं, झेरोक्स हो जाता है, प्रकल्प हाथ से, बुद्धि का उपयोग कर तैयार करने की आवश्यकता नहीं, इण्टरनेट पर सब उपलब्ध हो जाता है। अब कार्यक्रमों के बैनर, प्रदर्शनी, साजसज्जा आदि में कल्पना और कुशलता की आवश्यकता नहीं, यन्त्र हाजिर है। मनुष्य के शरीर, मन, बुद्धि की कोई आवश्यकता ही नहीं है । शिक्षा से हम किस बात का विकास चाहते हैं इसकी ही स्पष्टता नहीं है ।
+
+
१२. मनुष्य केवल यन्त्र होता तो बहुत परेशानी नहीं होती । वह अन्तःकरण से युक्त है इसलिये चिन्ता है । यंत्रों के प्रभाव से मनुष्य समाज संस्कृति से मुँह मोडकर विकृति की ओर धँस रहा है । यही चिन्ता का विषय है ।