१४. अपने पूर्वजों के प्रति, गुरु के प्रति, मातापिता के प्रति, ज्ञानियों और तपस्वियों के प्रति, सज्जनों के प्रति, श्रद्धा का भाव रखना सहज है। श्रद्धायुक्त अन्तःकरण उस अन्तःकरण के स्वामी की सम्पत्ति है, जिनके प्रति श्रद्धा है उसके लिये श्रद्धेयता सम्पत्ति है और श्रद्धा के लायक होना उसके लिये साधना है। इस प्रकार श्रद्धा दोनों को उन्नत बनाती है। | १४. अपने पूर्वजों के प्रति, गुरु के प्रति, मातापिता के प्रति, ज्ञानियों और तपस्वियों के प्रति, सज्जनों के प्रति, श्रद्धा का भाव रखना सहज है। श्रद्धायुक्त अन्तःकरण उस अन्तःकरण के स्वामी की सम्पत्ति है, जिनके प्रति श्रद्धा है उसके लिये श्रद्धेयता सम्पत्ति है और श्रद्धा के लायक होना उसके लिये साधना है। इस प्रकार श्रद्धा दोनों को उन्नत बनाती है। |