विश्व के सन्दर्भ में प्रस्तुत होने के लिये यह आवश्यक है कि भारत शिक्षा विषयक अपने मापदण्ड निश्चित कर ले । स्वाभाविक ही ये मापदण्ड अपनी जीवनदृष्टि के अनुसार ही होंगे । भारत एक बार विश्वास कर ले कि अपनी जीवनदृष्टि के अनुसार चलने वाली शिक्षा ही विश्व का कल्याण करने वाली है। इस दृष्टि से हमें विश्व को बताना होगा कि..
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१. जो शिक्षा मनुष्य को दूसरों का विचार करना नहीं सिखाती वह उसके अपने लिये भी हानिकारक ही होती है। अपने ही स्वार्थ का विचार करने वाला मानवता का भी अपराधी होता है और सृष्टि का, और सृष्टि चूँकि परमात्माने बनाई है इसलिये परमात्मा