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वर्तमान विश्व के संकटों को दूर करने हेतु भारत को अपनी भूमिका निभाने हेतु सिद्ध होना होगा। इसके लिये भारत क्या करे ?
 
वर्तमान विश्व के संकटों को दूर करने हेतु भारत को अपनी भूमिका निभाने हेतु सिद्ध होना होगा। इसके लिये भारत क्या करे ?
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सर्वप्रथम तो भारत को निश्चयपूर्वक अपनी भूमिका का स्वीकार करना होगा। संकट इतने भयावह हैं कि अब उनके निवारण हेतु हमें कुछ करना ही चाहिये ऐसा विचार भारत के मन में आना ही चाहिये । विश्व में अनेक देश हैं, वे बड़े हैं, समर्थ हैं अनेक तो अपने आपको महासमर्थ मानते हैं, सामर्थ्य को लेकर एकदूसरे से स्पर्धा करते हैं, वे यदि संकटों के निवारण की बात नहीं करते तो फिर हम क्यों करें ऐसा विचार नहीं करना चाहिये । कोई नहीं करता तो मैं क्यों करूं यह भारतीय विचार ही नहीं है, कोई नहीं करता तब भी मुझे करना चाहिये, और कोई नहीं करता तब तो मुझे करना ही चाहिये यह भारतीय विचार है। इसलिये विश्व के देश संकटों के निवारण का विचार करे न करें भारत
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सर्वप्रथम तो भारत को निश्चयपूर्वक अपनी भूमिका का स्वीकार करना होगा। संकट इतने भयावह हैं कि अब उनके निवारण हेतु हमें कुछ करना ही चाहिये ऐसा विचार भारत के मन में आना ही चाहिये । विश्व में अनेक देश हैं, वे बड़े हैं, समर्थ हैं अनेक तो अपने आपको महासमर्थ मानते हैं, सामर्थ्य को लेकर एकदूसरे से स्पर्धा करते हैं, वे यदि संकटों के निवारण की बात नहीं करते तो फिर हम क्यों करें ऐसा विचार नहीं करना चाहिये । कोई नहीं करता तो मैं क्यों करूं यह भारतीय विचार ही नहीं है, कोई नहीं करता तब भी मुझे करना चाहिये, और कोई नहीं करता तब तो मुझे करना ही चाहिये यह भारतीय विचार है। इसलिये विश्व के देश संकटों के निवारण का विचार करे न करें भारत को तो सिद्ध होना ही चाहिये ।
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दूसरा कारण यह है कि विश्व भी आज संकटों का अनुभव तो कर ही रहा है और उनके निवारण हेतु प्रयास भी कर रहा है। उदाहरण के लिये पर्यावरण के प्रदूषण के संकट के निवारण हेतु विश्वस्तर के सम्मेलन हो रहे हैं, प्रस्ताव पारित हो रहे हैं, जनमानस प्रबोधन हेतु सूचनायें प्रसारित की जा रही हैं, संचार माध्यमों के द्वारा प्रचार हो रहा है परन्तु प्रदूषण कम नहीं हो रहा है (अर्थात् संकटों की भी वही स्थिति है। इससे सिद्ध होता है कि अनेक प्रयासों के बाद भी संकट दूर नहीं हो रहे हैं । भारत की सादी समझ तो यही कहती है कि संकटों के निवारण का प्रस्थान बिन्दु ही यदि ठीक नहीं है तो निवारण होना ही सम्भव नहीं । प्रदूषण करने वाला यदि अपने आपको बचाकर दूसरों को ही उपदेश देगा तो निवारण हो कैसे सकेगा ? अतः भारत को विश्व के अन्य देशों से अपेक्षा न करते हुए अपने
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