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वेद तथा अनेक वेदेतर ग्रन्थों में वायुयान का वर्णन आता है । ऋग्वेद की भाषा जहाँ सांकेतिक है वहीं यजुर्वेद में वायुयान के अग्रभाग, पृष्ठभाग, नियंत्रण कक्ष तथा उर्जा स्रोत का स्पष्ट वर्णन आता है । राजा भोज के समराड्ण सूत्रधार ग्रन्थ में विमान बनाने का स्पष्ट वर्णन मिलता है । महर्षि दयानन्दने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ क्रग्वेदादिभाष्यभूमिकामें नौविमानविद्या विषयक प्रकरण में जल तथा वायुयान का वर्णन किया है । मुम्बई के शिवकर बापूजी तलपदे नामक वेदों के अध्येताने वेदोमें विमानविद्याको खोजना आरम्भ किया |
 
वेद तथा अनेक वेदेतर ग्रन्थों में वायुयान का वर्णन आता है । ऋग्वेद की भाषा जहाँ सांकेतिक है वहीं यजुर्वेद में वायुयान के अग्रभाग, पृष्ठभाग, नियंत्रण कक्ष तथा उर्जा स्रोत का स्पष्ट वर्णन आता है । राजा भोज के समराड्ण सूत्रधार ग्रन्थ में विमान बनाने का स्पष्ट वर्णन मिलता है । महर्षि दयानन्दने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ क्रग्वेदादिभाष्यभूमिकामें नौविमानविद्या विषयक प्रकरण में जल तथा वायुयान का वर्णन किया है । मुम्बई के शिवकर बापूजी तलपदे नामक वेदों के अध्येताने वेदोमें विमानविद्याको खोजना आरम्भ किया |
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दस वर्षो के अथक प्रयासके बाद १८९५ ई. में मुम्बई की चौपाटी पर वेद ज्ञान पर आधारित शुद्ध स्वदेशी उपकरणोंसे निर्मित वायुयान का उन्होंने परीक्षण किया. मरुतूसखा नामक इस वायुयानकी आधे घण्टेकी खुले आकाशमें उडानके साक्षी रहे तत्कालीन सुप्रसिद्ध न्यायमूर्ति महादेव गोविन्द रानडे तथा बडोदा नरेश सयाजीराव गायकवाड । यह घटना राईट बन्धुओं के विमान उड़ाने के सात वर्ष पूर्वकी है।
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दस वर्षो के अथक प्रयास के बाद १८९५ ई. में मुम्बई की चौपाटी पर वेद ज्ञान पर आधारित शुद्ध स्वदेशी उपकरणोंसे निर्मित वायुयान का उन्होंने परीक्षण किया. मरुतूसखा नामक इस वायुयानकी आधे घण्टेकी खुले आकाशमें उडानके साक्षी रहे तत्कालीन सुप्रसिद्ध न्यायमूर्ति महादेव गोविन्द रानडे तथा बडोदा नरेश सयाजीराव गायकवाड । यह घटना राईट बन्धुओं के विमान उड़ाने के सात वर्ष पूर्वकी है।
    
श्री शिवकर बापूजी तलपदे मुम्बई के सुप्रसिद्ध जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट्समें चित्रकलाके शिक्षक थे । प्रसिद्ध वैदिक विद्वान श्री श्रीपाद दामोदर सातवलेकर भी उस समय जे. जे. स्कूल में अध्ययनरत थे । दोनों ही वेदों के अध्येता तथा ऋषि दयानंद के भक्त थे | वायुयान निर्माणमें श्री तलपदेको मुम्बई के लोक निर्माण विभागमें कार्यरत वास्तुशास्त्रविदू श्री पिटकरने भी महत्त्वपूर्ण सहयोग fear | मरुतूसखा ने परीक्षण उडान में तो सफलता प्राप्त कर ली किन्तु अपने देश में परकीयों का शासन होने से श्री तलपदेजीको आवश्यक आर्थिक सहयोग तथा समर्थन नहीं मिला । अंग्रेज किसी भारतीयको विमान विद्याके आविष्कारक का सम्मान लेने देना नहीं चाहते थे | श्री तलपदे सातवलेकरजी के साथ मिलकर शामरावकृष्ण आणि मण्डली तथा वेद प्रचारिणी सभा मुम्बई के माध्यम से वेद प्रचार में संलयर थे । उन्होंने मराठी पत्र “आर्यधर्म' का सम्पादन भी किया था । “आर्यधर्म' के जनवरी १९०९ के अंकमें श्री तलपदेने अपने विमान विद्या सम्बन्धी ग्रन्थ “प्राचीन विमान कला” का विज्ञापन दिया था, जिसमें उन्होंने लिखा -
 
श्री शिवकर बापूजी तलपदे मुम्बई के सुप्रसिद्ध जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट्समें चित्रकलाके शिक्षक थे । प्रसिद्ध वैदिक विद्वान श्री श्रीपाद दामोदर सातवलेकर भी उस समय जे. जे. स्कूल में अध्ययनरत थे । दोनों ही वेदों के अध्येता तथा ऋषि दयानंद के भक्त थे | वायुयान निर्माणमें श्री तलपदेको मुम्बई के लोक निर्माण विभागमें कार्यरत वास्तुशास्त्रविदू श्री पिटकरने भी महत्त्वपूर्ण सहयोग fear | मरुतूसखा ने परीक्षण उडान में तो सफलता प्राप्त कर ली किन्तु अपने देश में परकीयों का शासन होने से श्री तलपदेजीको आवश्यक आर्थिक सहयोग तथा समर्थन नहीं मिला । अंग्रेज किसी भारतीयको विमान विद्याके आविष्कारक का सम्मान लेने देना नहीं चाहते थे | श्री तलपदे सातवलेकरजी के साथ मिलकर शामरावकृष्ण आणि मण्डली तथा वेद प्रचारिणी सभा मुम्बई के माध्यम से वेद प्रचार में संलयर थे । उन्होंने मराठी पत्र “आर्यधर्म' का सम्पादन भी किया था । “आर्यधर्म' के जनवरी १९०९ के अंकमें श्री तलपदेने अपने विमान विद्या सम्बन्धी ग्रन्थ “प्राचीन विमान कला” का विज्ञापन दिया था, जिसमें उन्होंने लिखा -
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