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| २७. इसके साथ ही सभा विसर्जित हुई । आचार्य विश्वावसु और उनके साथ आए हुए प्राध्यापक आश्वस्त दिखाई दे रहे थे । उन्हें लगा कि इस चर्चा का कोई परिणाम अवश्य निकलेगा । उन्होंने कृतज्ञतापूर्वक स्वामीजी को प्रणाम किया और अपने निवास की ओर चले | | | २७. इसके साथ ही सभा विसर्जित हुई । आचार्य विश्वावसु और उनके साथ आए हुए प्राध्यापक आश्वस्त दिखाई दे रहे थे । उन्हें लगा कि इस चर्चा का कोई परिणाम अवश्य निकलेगा । उन्होंने कृतज्ञतापूर्वक स्वामीजी को प्रणाम किया और अपने निवास की ओर चले | |
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− | धर्मचर्चा | + | === धर्मचर्चा === |
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| १. सभा पुनः शुरू हुई । वातावरण कुछ गम्भीर था । सबको विषय बहुत महत्त्वपूर्ण लग रहा था परन्तु उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि समस्या का हल कैसे निकाला जाय । कल सब आपस में बहुत चर्चा कर रहे थे परन्तु ठीक से जानकारी नहीं होने के कारण चर्चा बार बार भटक जाती थी । | | १. सभा पुनः शुरू हुई । वातावरण कुछ गम्भीर था । सबको विषय बहुत महत्त्वपूर्ण लग रहा था परन्तु उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि समस्या का हल कैसे निकाला जाय । कल सब आपस में बहुत चर्चा कर रहे थे परन्तु ठीक से जानकारी नहीं होने के कारण चर्चा बार बार भटक जाती थी । |
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| १३, इतना वाद होने की ही देर थी कि सारे साधु महात्मा अपनी अपनी बात कहने लगे । अब सब बोल ही रहे थे, कोई किसीकि सुन नहीं रहा था । सभागृह में कोलाहल मच गया । धर्मसभा बिखर गई । कई लोग सभा छोड़कर चले गए । स्वामीजी और आचार्य विश्वावसु निराश होकर सब देख रहे थे । कुछ समय बाद सभा में फिर से शान्ति स्थापित हुई परन्तु अब किसी का भी चर्चा करने का मन नहीं था । स्वामीजीने सभा समाप्ति की घोषणा की और आचार्य विश्वावसु को साथ लेकर अपने निवास की ओर चले । | | १३, इतना वाद होने की ही देर थी कि सारे साधु महात्मा अपनी अपनी बात कहने लगे । अब सब बोल ही रहे थे, कोई किसीकि सुन नहीं रहा था । सभागृह में कोलाहल मच गया । धर्मसभा बिखर गई । कई लोग सभा छोड़कर चले गए । स्वामीजी और आचार्य विश्वावसु निराश होकर सब देख रहे थे । कुछ समय बाद सभा में फिर से शान्ति स्थापित हुई परन्तु अब किसी का भी चर्चा करने का मन नहीं था । स्वामीजीने सभा समाप्ति की घोषणा की और आचार्य विश्वावसु को साथ लेकर अपने निवास की ओर चले । |
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− | स्वामीजी और आचार्य विश्वावसु | + | === स्वामीजी और आचार्य विश्वावसु === |
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| १. स्वामीजी और आचार्य विश्वावसु स्वामीजी की कुटीर के बाहर एक वृक्ष के नीचे बैठे थे । दोनों चिन्तित दिखाई दे रहे थे । कल की धर्मसभा कोलाहलसभा में परिवर्तित हो गई थी इसकी ही उन्हें चिन्ता हो रही थी । उन्हें ध्माचार्यों से बहुत अपेक्षा थी । परन्तु धर्माचार्यों ने उन अपेक्षाओं की कोई दखल ही नहीं ली। | | १. स्वामीजी और आचार्य विश्वावसु स्वामीजी की कुटीर के बाहर एक वृक्ष के नीचे बैठे थे । दोनों चिन्तित दिखाई दे रहे थे । कल की धर्मसभा कोलाहलसभा में परिवर्तित हो गई थी इसकी ही उन्हें चिन्ता हो रही थी । उन्हें ध्माचार्यों से बहुत अपेक्षा थी । परन्तु धर्माचार्यों ने उन अपेक्षाओं की कोई दखल ही नहीं ली। |
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| २२. परन्तु वे जानते थे कि दुःखी होने से समस्या का हल नहीं प्राप्त होता, कुछ करने से ही परिणाम मिलता है । इसलिए कुछ क्षण मौन रहकर वे अपने विचार बताने लगे । वे मुख्य रूप से धर्माचार्यों का शिक्षा से क्या संबंध है उसकी बात करना चाहते थे । स्वामीजी भी उनकी बात ध्यानपूर्वक सुन रहे थे । | | २२. परन्तु वे जानते थे कि दुःखी होने से समस्या का हल नहीं प्राप्त होता, कुछ करने से ही परिणाम मिलता है । इसलिए कुछ क्षण मौन रहकर वे अपने विचार बताने लगे । वे मुख्य रूप से धर्माचार्यों का शिक्षा से क्या संबंध है उसकी बात करना चाहते थे । स्वामीजी भी उनकी बात ध्यानपूर्वक सुन रहे थे । |
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− | धर्माचार्यों की भूमिका | + | === धर्माचार्यों की भूमिका === |
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| १. बार बार कहा जाता है कि शिक्षा धर्म सिखाती है । जब शिक्षा धर्मानुसारी न रहकर अर्थानुसारी बन जाती है तब समाजजीवन उल्टी दिशा में गति करता है । जीवन की सारी बातें उल्टी ही बन जाती हैं । | | १. बार बार कहा जाता है कि शिक्षा धर्म सिखाती है । जब शिक्षा धर्मानुसारी न रहकर अर्थानुसारी बन जाती है तब समाजजीवन उल्टी दिशा में गति करता है । जीवन की सारी बातें उल्टी ही बन जाती हैं । |