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धर्म बुद्धि का जब क्षय हुआ तो अधर्म की वृद्धि होना, अधर्म की वृद्धि से समस्याओं और संकटों की वृद्धि होना स्वाभाविक है उसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं । जब तक हमारी धर्म बुद्धि होगी भाव का शुद्धिकरण भी होता रहेगा। धर्म की शक्ति ही भाव को शुद्ध करती है । हम और आप दो नहीं एक ही हैं, यह तो भावजगत का प्रश्न है, लेकिन यह भाव पैदा किस शक्ति से होता है ? धर्म की शक्ति से, और जब धर्म बुद्धि का ह्रास होगा, धर्म की शक्ति धीरे-धीरे क्षीण __ होगी तो यह भाव कभी पैदा हो ही नहीं सकता । इसीलिए समाज टूट रहा है, इसीलिए परिवार टूट रहे हैं क्योंकि वह भाव जिस शक्ति पर प्रतिष्ठित है, उस शक्ति का क्षरण हो रहा है। मंदिर तो बन रहे हैं लेकिन घर मंदिर नहीं बन रहा । यह नहीं कि मंदिर न बने, मंदिर तो बने ही, घर भी मंदिर बने, शिक्षा संस्था भी मंदिर बनें । संसद भी मन्दिर की तरह पवित्र हो, सांसद भी संसद में इस भाव से बैठे जैसे कि किसी पवित्र कार्य करने बैठे हैं । शिक्षक भी शिक्षालय में इस भाव से जायें कि जैसे कोई पवित्र कार्य करने आये हैं। professionalism करने नहीं आये हैं, profession की दृष्टि खतम हो । vocation की दृष्टि पाये, यह धर्म की दृष्टि है। लेकिन आज हरचीज को हमने professionalise कर दिया गया है क्यों कि धर्म दृष्टि से, धर्मबुद्धि से हमने चीजों को देखना समाप्त कर दिया है।
 
धर्म बुद्धि का जब क्षय हुआ तो अधर्म की वृद्धि होना, अधर्म की वृद्धि से समस्याओं और संकटों की वृद्धि होना स्वाभाविक है उसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं । जब तक हमारी धर्म बुद्धि होगी भाव का शुद्धिकरण भी होता रहेगा। धर्म की शक्ति ही भाव को शुद्ध करती है । हम और आप दो नहीं एक ही हैं, यह तो भावजगत का प्रश्न है, लेकिन यह भाव पैदा किस शक्ति से होता है ? धर्म की शक्ति से, और जब धर्म बुद्धि का ह्रास होगा, धर्म की शक्ति धीरे-धीरे क्षीण __ होगी तो यह भाव कभी पैदा हो ही नहीं सकता । इसीलिए समाज टूट रहा है, इसीलिए परिवार टूट रहे हैं क्योंकि वह भाव जिस शक्ति पर प्रतिष्ठित है, उस शक्ति का क्षरण हो रहा है। मंदिर तो बन रहे हैं लेकिन घर मंदिर नहीं बन रहा । यह नहीं कि मंदिर न बने, मंदिर तो बने ही, घर भी मंदिर बने, शिक्षा संस्था भी मंदिर बनें । संसद भी मन्दिर की तरह पवित्र हो, सांसद भी संसद में इस भाव से बैठे जैसे कि किसी पवित्र कार्य करने बैठे हैं । शिक्षक भी शिक्षालय में इस भाव से जायें कि जैसे कोई पवित्र कार्य करने आये हैं। professionalism करने नहीं आये हैं, profession की दृष्टि खतम हो । vocation की दृष्टि पाये, यह धर्म की दृष्टि है। लेकिन आज हरचीज को हमने professionalise कर दिया गया है क्यों कि धर्म दृष्टि से, धर्मबुद्धि से हमने चीजों को देखना समाप्त कर दिया है।
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==== व्यवसायीकरण से धर्मबुद्धि का क्षय ====
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आज स्थिति यह है कि हम न तो शिक्षा के व्यवसायीकरण को रोक सकते हैं, न राजनीति के, न अर्थव्यवस्था के। न स्त्री-पुरुष सम्बन्धों को आप व्यवसायीकरण होने से रोक सकते हैं, ना भाई-बहन के । हर चीज का बाजारीकरण होना तय है। अंग्रेजी साहित्य में एक बड़े कवि हुए हैं,ओलिवर गोल्डस्मिथ उनकी एक बड़ी श्रेष्ठ रचना है, 'ध डेझर्टेड विलेज', उजडा गाँव'। वह इसी सन्ताप को प्रकट करती है कि जिसके अन्दर भावना है, भाव है उसे जब परम्परागत ग्राम और समाज टूटता है तो क्या दुःख होता है । जिसमें नहीं है उसको तो कोई फर्क नहीं पड़ता। 'जब राष्ट्रों के दिल ठंडे पड़ जाते हैं तो सम्बन्धों में भी ठंडापन आ जाता है और हर शाखा पर व्यापार-वाणिज्य फलनेफूलने लगता है। जब हर चीज कॉमर्स हो जायेगी तो फिर उसमें विवाद होंगे ही होंगे । जब कोई चीज व्यवसाय बन गई तो फिर लाभ-हानि की दृष्टि से विवाद होना तय है । हम को ज्यादा मिला कि तुम को ज्यादा मिला यह विचार तो आयेगा ही आयेगा । यह विचार तो तब नहीं आयेगा जब सम्बन्धों के प्रति, समाज के प्रति, संस्थाओं के प्रति धर्म की दृष्टि होगी । धर्म की बुद्धि होगी।
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==== सामंजस्य समान धर्मियों में, विधर्मियों में नहीं ====
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और जब धर्म बुद्धि का क्षय हआ तो उस में से एक तीसरी जो नई प्रवृत्ति आयी उससे बचने के लिए हमने यह कहना शुरु कर दिया कि भाई परम्परागत समाज में कुछ बुराइयाँ थीं, त्रुटियाँ थी या परम्परा प्रस्तुत नहीं रह गई, प्रासंगिक नहीं रह गई। और एक शब्दावली चली 'Modernization of Traditions'| परम्परा का आधुनिकीकरण होना चाहिए। या कुछ लोग कहते हैं कि दोनों में सामंजस्य बिठा लीजिये। यह वैसा ही काम है जैसा कि आग व पानी में सामंजस्य बिठाने का काम करना । पानी की अधिकता से या तो आग बुझ जायेगी या पानी भाप बन जायेगा, उनमें कोई सामंजस्य नहीं हो सकता। अगर दोनों एक ही प्रकार के वृक्ष हैं तो शायद उनका या एक ही प्रकार की चीजें हैं तो शायद उनका
    
==References==
 
==References==
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