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हम आधुनिक विज्ञान के अनिष्टों के विषय में दुःख व्यक्त करते हैं वह आज पश्चिम में उसे लेकर जो प्रश्नचिह्न खड़े हुए हैं उससे सुसंगत होगा, परन्तु जिस प्रकार के प्रश्न उठाए जाते हैं उससे तो आधुनिक विज्ञान अधिक सामर्थ्यवान बनता है। यदि उसके गैरयूरोपीय विकल्पों का निर्माण करना है तो भारत की स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए महात्मा गांधी द्वारा दर्शाए एवं अपनाए गए मार्ग पर चलना होगा।
 
हम आधुनिक विज्ञान के अनिष्टों के विषय में दुःख व्यक्त करते हैं वह आज पश्चिम में उसे लेकर जो प्रश्नचिह्न खड़े हुए हैं उससे सुसंगत होगा, परन्तु जिस प्रकार के प्रश्न उठाए जाते हैं उससे तो आधुनिक विज्ञान अधिक सामर्थ्यवान बनता है। यदि उसके गैरयूरोपीय विकल्पों का निर्माण करना है तो भारत की स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए महात्मा गांधी द्वारा दर्शाए एवं अपनाए गए मार्ग पर चलना होगा।
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तीसरा विश्व आधुनिक पाश्चात्य विज्ञान के स्थान पर जो विकल्प खोजेगा उसका स्वरूप भिन्न भिन्न प्रदेशों में भिन्न भिन्न होगा। भौगोलिक रूप से तीसरा विश्व बहुत ही विशाल है। उसमें भिन्न भिन्न प्रदेशों की जलवायु, वृक्ष,
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तीसरा विश्व आधुनिक पाश्चात्य विज्ञान के स्थान पर जो विकल्प खोजेगा उसका स्वरूप भिन्न भिन्न प्रदेशों में भिन्न भिन्न होगा। भौगोलिक रूप से तीसरा विश्व बहुत ही विशाल है। उसमें भिन्न भिन्न प्रदेशों की जलवायु, वृक्ष, अपनी देशभक्ति से मुकाबला कर सकते थे परन्तु इंग्लैंड के ही लोगों का अपमान तो उनका मानवता के प्रति अपराध था। उसे देखकर ही उन्होंने निश्चय किया कि उनका देश एवं अन्य जो भी कोई उनकी इस भावना से सहमत होगा उनका ऐसी सभ्यता के साथ किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं होगा। परन्तु अपनी यह भावना वे पंडित नेहरू जैसे लोगों में नहीं जगा पाए।
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स्पष्ट है कि तीसरे विश्व के शासक एवं विद्वान आधुनिक विज्ञान से अभिभूत हो गए हैं,हतप्रभ हो गए हैं। उसकी चमक उनमें आकर्षण पैदा करती है, उसकी शक्ति उन्हें यूरोप के नेताओं एवं उद्योगपतियों का अनुकरण करने के लिए प्रेरित करती है। परन्तु ऐसा मानना कि वे आधुनिक विज्ञान के सभी दावों एवं भ्रमों में भी विश्वास करते हैं उनके साथ अन्याय करना होगा। कदाचित् ४० वर्ष पूर्व उनमें ऐसा विश्वास होगा, परन्तु वर्तमान समय में तो आंतरिक एवं बाह्य कारकों के विरुद्ध उत्पन्न विवशता के कारण एवं स्वंय (अपने) विद्वानों की वैकल्पिक आकर्षक व्यवस्था निर्माण की एवं उसे प्रतिष्ठित करने की अक्षमता के कारण तीसरा विश्व, अपने विद्वान एवं राष्ट्र निर्माताओं सहित आधुनिक विज्ञान एवं तकनीक एवं उससे भी ज्यादा उसके साथ अविनाभाव से संबंधित ढाँचे एवं व्यवस्था के अजगरमुख में धंसता जा रहा है। कम से कम भारत के विषय में तो यह सच ही है।
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हम आधुनिक विज्ञान के अनिष्टों के विषय में दुःख व्यक्त करते हैं वह आज पश्चिम में उसे लेकर जो प्रश्नचित खड़े हुए हैं उससे सुसंगत होगा, परन्तु जिस प्रकार के प्रश्न उठाए जाते हैं उससे तो आधुनिक विज्ञान अधिक सामर्थ्यवान बनता है। यदि उसके गैरयूरोपीय विकल्पों का निर्माण करना है तो भारत की स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए महात्मा गांधी द्वारा दर्शाए एवं अपनाए गए मार्ग पर चलना होगा।
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तीसरा विश्व आधुनिक पाश्चात्य विज्ञान के स्थान पर जो विकल्प खोजेगा उसका स्वरूप भिन्न भिन्न प्रदेशों में भिन्न भिन्न होगा। भौगोलिक रूप से तीसरा विश्व बहुत ही विशाल है। उसमें भिन्न भिन्न प्रदेशों की जलवायु, वृक्ष, वनस्पति, एवं लोगों में विविधता बहुत बड़े पैमाने पर है। तीसरे विश्व के लोगों में इतिहास के संदर्भ में तो बहुत बड़ा अंतर एवं विविधता पाई जाती है। इतने अधिक विभिन्नता वाले देशों को एक सूत्र में पिरोनेवाला यदि कोई तथ्य है तो वह यह है कि सभी समान रूप से गत १५०० वर्षों से यूरोपीयन सभ्यता के शिकंजे में जकड़े हुए हैं, परन्तु प्रत्येक देश की इस जकडन की अनुभूति भिन्न है। अलग अलग समय में अलग अलग प्रदेश पर अलग अलग मात्रा में इस जकडन का प्रभाव रहा है। इस विषय में भी सभी देशों में एक समानता है तो वह है सामान्य मनुष्य के आत्मगौरव पर बहुत बड़ा आघात हुआ है, उनके व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से कुछ भी कर सकने के सामर्थ्य को कुचल दिया गया है, उनके पर्यावरण की हानि हुई है, उनका उत्पादन एवं अर्थतन्त्र यूरोप के अधीन हो गया है, उनके विद्वान देश के सामान्य जन से विमुख हो गए हैं एवं बड़ी संख्या में लोग गरीब हो गए हैं। इसलिए हो सकता है कि इन सभी का समान लक्ष्य यह बने कि किस प्रकार इस अभूतपूर्व अस्वस्थता पर विजय प्राप्त करके खोया हुआ संतुलन तथा गौरव वापस प्राप्त किया जा सके एवं इसके बाद वैविध्य एवं भिन्नता होने के बावजूद एक प्रकार के बंधुत्व की स्थापना की जा सके। यह बंधुत्व तीसरे विश्व के साथ हो और वह और ज्यादा मजबूत भी हो। यद्यपि इस प्रक्रिया का स्वरूप प्रत्येक प्रदेश के लिए अलग अलग होगा। परन्तु उसके नमूने के रूप में किसी एक प्रदेश में, उदाहरण के तौर पर भारत में यह प्रक्रिया कैसी होगी इसके विषय में चर्चा की जा सकती है।
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यूरोपीय आधिपत्य में आने से पूर्व भारत में बहुत ही समृद्ध कृषि एवं विभिन्न प्रकार के अत्यंत विकसित उद्योगक्षेत्र थे। सन् १८०० तक तो भारत की कृषि उपज उस समय के इंग्लैंड की कृषि उपज से तीन गुना थी। औद्योगिक सामर्थ्य का पता इस बात से चलता है कि उस काल में भारत लगभग १,००,००० टन उत्तम प्रकार के इस्पात का निर्माण करता था।
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उससे पूर्व छहसौ सातसौ वर्ष अर्थात् ग्यारहवीं से सत्रहवीं शताब्दी तक पश्चिम भारत एवं उत्तर भारत अनेक
    
==References==
 
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