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| ५०. वर्तमान में परिवार स्वावलम्बी नहीं रहे हैं, नौकरावलम्बी और बाजारावलम्बी बन गये हैं । वास्तव में नौकर घर के सदस्यों के सहायक होते हैं, पर्याय नहीं । घर के कामों के प्रति रुचि और लगाव होने से परिवार स्वावलम्बी बनता है । घर के कामों को तुच्छ और बोजरूप जानने से घर की ही अवमानना होती है । | | ५०. वर्तमान में परिवार स्वावलम्बी नहीं रहे हैं, नौकरावलम्बी और बाजारावलम्बी बन गये हैं । वास्तव में नौकर घर के सदस्यों के सहायक होते हैं, पर्याय नहीं । घर के कामों के प्रति रुचि और लगाव होने से परिवार स्वावलम्बी बनता है । घर के कामों को तुच्छ और बोजरूप जानने से घर की ही अवमानना होती है । |
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− | परिवार महत्त्वपूर्ण शिक्षाकेन्द्र | + | === परिवार महत्त्वपूर्ण शिक्षाकेन्द्र === |
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| ५१. घर को मिट्टी का आँगन नहीं होना, वर्षा के पानी के संग्रह की व्यवस्था नहीं होना, प्राकृतिक हवा और प्रकाश के अभाव में दिनमें भी बिजली के दीप और पंखे चालू रखने की बाध्यता होना, घर का मुख्य दृरवाजा सदैव बन्द रहना अनेक प्रकार से अनिष्ट व्यवस्थायें हैं। इन पर अनेक प्रकार से साधक बाधक चर्चा होने की आवश्यकता है । | | ५१. घर को मिट्टी का आँगन नहीं होना, वर्षा के पानी के संग्रह की व्यवस्था नहीं होना, प्राकृतिक हवा और प्रकाश के अभाव में दिनमें भी बिजली के दीप और पंखे चालू रखने की बाध्यता होना, घर का मुख्य दृरवाजा सदैव बन्द रहना अनेक प्रकार से अनिष्ट व्यवस्थायें हैं। इन पर अनेक प्रकार से साधक बाधक चर्चा होने की आवश्यकता है । |
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| ५५. इसका तात्पर्य यह है कि एक पीढी जब दूसरी पीढ़ी को ज्ञान, संस्कार, कौशल आदि हस्तान्तरित करती है तब कालबाह्म बातें दूर करने, उसे समृद्ध बनाने, युगानुकूल बनाने का कार्य होता है । यह परिष्कृति का लक्षण है । किसी भी गतिमान, प्रवाहमान पदार्थ का लक्षण है । | | ५५. इसका तात्पर्य यह है कि एक पीढी जब दूसरी पीढ़ी को ज्ञान, संस्कार, कौशल आदि हस्तान्तरित करती है तब कालबाह्म बातें दूर करने, उसे समृद्ध बनाने, युगानुकूल बनाने का कार्य होता है । यह परिष्कृति का लक्षण है । किसी भी गतिमान, प्रवाहमान पदार्थ का लक्षण है । |
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− | एकात्मता | + | === एकात्मता === |
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| ५६. अतः पतिपत्नी बनने की, गृहस्थ-गृहिणी बनने की और मातापिता बनने की शिक्षा परिवार में मिलनी चाहिये । इस रूप में परिवार सांस्कृतिक शिक्षा का महत्त्वपूर्ण केन्द्र है । | | ५६. अतः पतिपत्नी बनने की, गृहस्थ-गृहिणी बनने की और मातापिता बनने की शिक्षा परिवार में मिलनी चाहिये । इस रूप में परिवार सांस्कृतिक शिक्षा का महत्त्वपूर्ण केन्द्र है । |
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| ७७. पडौसी के साथ आत्मीयता का सम्बन्ध बनाना चाहिये । आवश्यकता के अनुसार पडौसी की सहायता करना और उनसे सहायता लेना बिना उपकार की भावना से होना चाहिये । उपभोग की नई सामग्री पडौसी के साथ बाँटनी चाहिये । | | ७७. पडौसी के साथ आत्मीयता का सम्बन्ध बनाना चाहिये । आवश्यकता के अनुसार पडौसी की सहायता करना और उनसे सहायता लेना बिना उपकार की भावना से होना चाहिये । उपभोग की नई सामग्री पडौसी के साथ बाँटनी चाहिये । |
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− | संस्कृति को बाधक | + | === संस्कृति को बाधक === |
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| ७८. दान करना गृहस्थ का परम धर्म है। सुपात्र को आवश्यकता के अनुसार दान देना ही चाहिये । अपनी कमाई का दस प्रतिशत हिस्सा दान करना ही चाहिये । दान सात्त्विक ही होना चाहिये । किसी ने कुछ माँगा तब तो मुँह से 'नहीं' निकलना ही नहीं चाहिये । | | ७८. दान करना गृहस्थ का परम धर्म है। सुपात्र को आवश्यकता के अनुसार दान देना ही चाहिये । अपनी कमाई का दस प्रतिशत हिस्सा दान करना ही चाहिये । दान सात्त्विक ही होना चाहिये । किसी ने कुछ माँगा तब तो मुँह से 'नहीं' निकलना ही नहीं चाहिये । |
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| ८७. परिवारव्यवस्था विश्व में भारत की पहचान है । परिवारभावना अध्यात्म का ही सामाजिक स्वरूप है। ये दोनों बने रहें ऐसी शिक्षा मुख्यरूप से घर में ही मिलती है । घर शिक्षा केन्द्र बनेंगे और विद्यालय इस शिक्षा केंद्र में मिलने वाली शिक्षा के पूरक होंगे तब भारतीय शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा होगी । | | ८७. परिवारव्यवस्था विश्व में भारत की पहचान है । परिवारभावना अध्यात्म का ही सामाजिक स्वरूप है। ये दोनों बने रहें ऐसी शिक्षा मुख्यरूप से घर में ही मिलती है । घर शिक्षा केन्द्र बनेंगे और विद्यालय इस शिक्षा केंद्र में मिलने वाली शिक्षा के पूरक होंगे तब भारतीय शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा होगी । |
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− | परिवार और सामाजिक दायित्व | + | === परिवार और सामाजिक दायित्व === |
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| ८७. परन्तु स्खलन यदि सामाजिक अपराध हो तो उसका कडाईपूर्वक ही परिमार्जन भी होना चाहिये और दण्ड भी मिलना चाहिये । उदाहरण के लिये घर के पुत्र ने परीक्षा में नकल की, तो उसे दृण्ड भी मिलना चाहिये और अनुत्तीर्ण होने का परिणाम भी भुगतना चाहिये । घर के पुत्र ने किसी पराई लडकी को छेडा तो उसे दण्ड भी मिलना चाहिये और उस लडकी से क्षमा भी माँगनी चाहिये । | | ८७. परन्तु स्खलन यदि सामाजिक अपराध हो तो उसका कडाईपूर्वक ही परिमार्जन भी होना चाहिये और दण्ड भी मिलना चाहिये । उदाहरण के लिये घर के पुत्र ने परीक्षा में नकल की, तो उसे दृण्ड भी मिलना चाहिये और अनुत्तीर्ण होने का परिणाम भी भुगतना चाहिये । घर के पुत्र ने किसी पराई लडकी को छेडा तो उसे दण्ड भी मिलना चाहिये और उस लडकी से क्षमा भी माँगनी चाहिये । |