| वस्तू, भावना, विचार, संकल्पना आदि सब पदार्थ ही हैं। जिस पद अर्थात शब्द का अर्थ है उसे पदार्थ कहते हैं । पहचान किसे कहते हैं? अन्यों से भिन्नता ही उस पदार्थ की पहचान होती है । हमारी विशेषताएं ही हमारी पहचान हैं । हमारी विश्वनिर्माण की मान्यता, जीवन दृष्टि, जीने के व्यवहार के सूत्र, सामाजिक संगठन और सामाजिक व्यवस्थाएँ यह सब अन्यों से भिन्न है । विश्व में शान्ति सौहार्द से भरे जीवन के लिए परस्पर प्रेम, सहानुभूति, विश्वास की आवश्यकता होती है । लेकिन ऐसा व्यवहार कोई क्यों करे इसका कारण केवल अद्वैत या ब्रह्मवाद से ही मिल सकता है । अन्य किसी भी तत्वज्ञान से नहीं । सभी चर और अचर, जड़ और चेतन पदार्थ एक परमात्मा की ही भिन्न भिन्न अभिव्यक्तियाँ हैं । यही हिन्दू की पहचान है । यह हिन्दू की श्रेष्ठता भी है और इसीलिये विश्वगुरुत्व का कारण भी है। यही विचार निरपवाद रूप से भिन्न भिन्न जातियों के और सम्प्रदायों के सभी हिन्दू संतों ने समाज को दिया है। यह परमात्मा अनंत चैतन्यवान है । यह छ: दिन विश्व का निर्माण करने से थकने वाला गॉड या जेहोवा या अल्लाह नहीं है । हिन्दू विचारधारा ज्ञान के फल को खाने से ‘पाप’ होता है ऐसा माननेवाली नहीं है । पुरूष की पसली से बनाए जाने के कारण स्त्री में रूह नहीं होती ऐसा मानकर स्त्री को केवल उपभोग की वस्तू माननेवाली विचारधारा नहीं है । यह ज्ञान के प्रकाश से विश्व को प्रकाशित करनेवाली विचारधारा है । इसमें स्त्री और पुरूष दोनों का समान महत्त्व है । इसीलिये केवल हिन्दू ही जैसे ब्रह्मा, विष्णू, महेश, गणेश, कार्तिकेय आदि पुरूष देवताओं के सामान ही सरस्वती (विद्या की देवता), लक्ष्मी (समृद्धि की देवता) और दुर्गा (शक्ति की देवता) इन्हें भी देवता के रूप में पूजता है । परमात्मा, जीवात्मा, मोक्ष, धर्म, राजा, सम्राट, संस्कृति, कुटुंब, स्वर्ग, नरक आदि शब्दों के अर्थ क्रमश: गॉड, सोल, साल्वेशन, रिलीजन, किंग, मोनार्क, कल्चर, फेमिली, हेवन, हेल आदि नहीं हैं। ऐसे सैकड़ों शब्द हैं जिनका अंग्रेजी में या अन्य विदेशी भाषाओं में अनुवाद ही नहीं हो सकता। क्यों कि वे हमारी विशेषताएं हैं । भारतीय/हिंदू जन्म से ही भारतीय/हिन्दू ‘होता’ है, बनाया नहीं जाता । हिन्दू तो जन्म से होता है । सुन्नत या बाप्तिस्मा जैसी प्रक्रिया से बनाया नहीं जाता । | | वस्तू, भावना, विचार, संकल्पना आदि सब पदार्थ ही हैं। जिस पद अर्थात शब्द का अर्थ है उसे पदार्थ कहते हैं । पहचान किसे कहते हैं? अन्यों से भिन्नता ही उस पदार्थ की पहचान होती है । हमारी विशेषताएं ही हमारी पहचान हैं । हमारी विश्वनिर्माण की मान्यता, जीवन दृष्टि, जीने के व्यवहार के सूत्र, सामाजिक संगठन और सामाजिक व्यवस्थाएँ यह सब अन्यों से भिन्न है । विश्व में शान्ति सौहार्द से भरे जीवन के लिए परस्पर प्रेम, सहानुभूति, विश्वास की आवश्यकता होती है । लेकिन ऐसा व्यवहार कोई क्यों करे इसका कारण केवल अद्वैत या ब्रह्मवाद से ही मिल सकता है । अन्य किसी भी तत्वज्ञान से नहीं । सभी चर और अचर, जड़ और चेतन पदार्थ एक परमात्मा की ही भिन्न भिन्न अभिव्यक्तियाँ हैं । यही हिन्दू की पहचान है । यह हिन्दू की श्रेष्ठता भी है और इसीलिये विश्वगुरुत्व का कारण भी है। यही विचार निरपवाद रूप से भिन्न भिन्न जातियों के और सम्प्रदायों के सभी हिन्दू संतों ने समाज को दिया है। यह परमात्मा अनंत चैतन्यवान है । यह छ: दिन विश्व का निर्माण करने से थकने वाला गॉड या जेहोवा या अल्लाह नहीं है । हिन्दू विचारधारा ज्ञान के फल को खाने से ‘पाप’ होता है ऐसा माननेवाली नहीं है । पुरूष की पसली से बनाए जाने के कारण स्त्री में रूह नहीं होती ऐसा मानकर स्त्री को केवल उपभोग की वस्तू माननेवाली विचारधारा नहीं है । यह ज्ञान के प्रकाश से विश्व को प्रकाशित करनेवाली विचारधारा है । इसमें स्त्री और पुरूष दोनों का समान महत्त्व है । इसीलिये केवल हिन्दू ही जैसे ब्रह्मा, विष्णू, महेश, गणेश, कार्तिकेय आदि पुरूष देवताओं के सामान ही सरस्वती (विद्या की देवता), लक्ष्मी (समृद्धि की देवता) और दुर्गा (शक्ति की देवता) इन्हें भी देवता के रूप में पूजता है । परमात्मा, जीवात्मा, मोक्ष, धर्म, राजा, सम्राट, संस्कृति, कुटुंब, स्वर्ग, नरक आदि शब्दों के अर्थ क्रमश: गॉड, सोल, साल्वेशन, रिलीजन, किंग, मोनार्क, कल्चर, फेमिली, हेवन, हेल आदि नहीं हैं। ऐसे सैकड़ों शब्द हैं जिनका अंग्रेजी में या अन्य विदेशी भाषाओं में अनुवाद ही नहीं हो सकता। क्यों कि वे हमारी विशेषताएं हैं । भारतीय/हिंदू जन्म से ही भारतीय/हिन्दू ‘होता’ है, बनाया नहीं जाता । हिन्दू तो जन्म से होता है । सुन्नत या बाप्तिस्मा जैसी प्रक्रिया से बनाया नहीं जाता । |